STORYMIRROR

Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Tragedy Action

3  

Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Tragedy Action

फाइव मिनिट्स-समय होत बलवान

फाइव मिनिट्स-समय होत बलवान

4 mins
321

"समय अमूल्य है। जो समय बीत जाता है वह वापस नहीं आता है। जिस तरह हम अपनी आमदनी और खर्चे में समायोजन करते हैं इसी तरह हमें अपने समय की भी योजना बनाना परमावश्यक है। पता नहीं इस आलस के लोग से तुझे मुक्ति कब मिलेगी? मिलेगी भी या नहीं? सोच रहा था कि शादी के बाद तू सुधरेगा । लगता है मधु ने अभी सुधार नहीं पाया। "- सुबोध ने अपने परमप्रिय मित्र कुशल को समझाते हुए कहा।


कुशल और सुबोध दोनों ने ही अपनी शादी का एक वर्ष पूरा होने के बाद पांच दिन घूमने की योजना बनाई थी। दोनों दम्पत्ति यहां एक ही होटल में आकर ठहरे थे। कुशल की पत्नी मधुरिमा और सुबोध की पत्नी शालिनी भी बहुत ही उत्साहित थीं। मधुरिमा कुशल की लेट- लतीफी के स्वभाव से इस एक वर्ष में भली-भांति परिचित हो चुकी थी।

शालिनी भी सुबोध को परिस्थिति के अनुसार धैर्य धारण करने की बात अक्सर कहती रहती थी।


शालिनी ने सुबोध से बोली-" आप थोड़ा सा धीरे धरें। भैया तैयार हो ही रहे हैं। अब थोड़ा सा ही तो समय और लगना है। "


" भाई! तो जरा सी बात पर लम्बा सा भाषण देने लग जाता है। मेरा नाम कुशल है और मैं सारी योजनाएं बड़ी कुशलता से बनाता हूं। अब देख आज के घूमने की उत्कृष्ट योजना मेरे नियोजन का एक बेहतरीन नमूना है। "- कुशल ने सुबोध से शिकायती लहजे के साथ आत्मप्रशंसा करते हुए कहा।


कुशल की पत्नी मधुरिमा ने सुबोध से कहा-"भाई साहब,आप तो इनकी रग-रग से भलीभांति परिचित हैं। कुछ भी हो जाए पर इनकी की लेट- लतीफी की चैम्पियनशिप इन्हीं के पास रहेगी। "


शालिनी ने कहा-" बहुत ज्यादा टोका-टाकी भी कोई बहुत सकारात्मक परिणाम नहीं निकलता। कभी- कभार इस उल्टा असर भी देखने को मिलता है। "


कुशल बोला-" बस मेरी आंख खुलने में पांच मिनट की देरी हो गई और तुम्हें तो बस बोलने का मौका चाहिए। हो जाते हो शुरू। "


सुबोध बोला-"कभी-कभी पांच मिनट क्या पांच सेकण्ड भी भारी पड़ जाते हैं । बस वक्त-वक्त की बात होती है। इंतजार करते हुए एक पल एक घण्टे के बराबर लगता है और जीवन के सुखद पल रेत की तरह मुट्ठी से पर भर में फिसलते लगते हैं। "


"मैं भी तैयार हूं। "- कुशल ने तैयारी का मैदान मारने की घोषणा की।


"बड़ी मेहरबानी, आपकी। "-सुबोध व्यंग्य कहते हुए बोला।


चारों लोग मेट्रो स्टेशन पहुंच गए। सुबोध और शालिनी आगे-आगे और कुशल की सुस्ती को धकियाती मधुरिमा और कुशल पीछे-पीछे । सुबोध और शालिनी मेट्रो मेट्रो के अंदर घुस गए।

कुशल के सुस्ती भरे कदमों और मेट्रो के बन्द होते दरवाजों की प्रतियोगिता में मेट्रो के दरवाजे विजयी हुए और कुशल मधुरिमा के साथ प्लेटफार्म पर ही रह गया। सुबोध और मधुरिमा मेट्रो में आगे चले गए। अगली मेट्रो का कुशल और मधुरिमा इंतजार करने लगे। अब इसे संयोग कहां जाए या विधि का विधान ,अगली मेट्रो जैसे प्लेटफार्म की तरफ आई रही थी कि एक सिरफिरे ने मेट्रो के छलांग लगा दी। पूरे मेट्रो स्टेशन पर शोर मच गया। अगले मेट्रो एक घंटे बाद ही आगे जा पाएगी । यह उद्घोषणा होने पर कुशल और सुबोध अपने गंतव्य स्थान पर जहां इन चारों को पहुंचना था। सुबोध और शालिनी तो मेट्रो से निकल ही गए थे। कुशल और मधुरिमा मेट्रो स्टेशन के नीचे आकर वहां पहुंचने के लिए थ्री व्हीलर में बैठ गए। सड़क पर जाम लगा हुआ था जिसमें वे काफी देर तक फंसे रहे इस बीच में सुबोध में मोबाइल पर कुशल से बात की। कुछ नहीं बताया अभी भी जाम में फंसे हुए हैं। साथ में यह भी कह दिया कि यदि उन्हें कुछ देर हो जाए तो तब तक तुम लोग घूमना। जब तक शो शुरू होगा तब तक हम लोग आ जाएंगे। काफी देर घूमने के बाद शो शुरू होने का समय हो गया। इस बार बात करने पर कुशल ने कहा कि शो देखने के लिए वे लोग हाल में पहुंच जाएं। हम लोग जल्दी ही वहीं पहुंचेंगे। हॉल में मोबाइल ले जाना वर्जित था । सुबोध और शालिनी हॉल में अपनी - अपनी सीटों पर यह सोचकर बैठ गए कि शो के बाद फिर एक साथ घूमेंगे। हाल से बाहर आने पर कुशल और मधुरिमा नहीं दिखे। मोबाइल वापस लेकर सुबोध ने देखा तो पता चला कि कुशल के मोबाइल से पांच मिस्ड कॉल थीं। सुबोध ने वापसी में काल की तो मधुरिमा ने बताया कि थ्री व्हीलर का एक्सीडेंट हो गया था। कुशल को गम्भीर चोट लगी है। वे दोनों अस्पताल में हैं। अस्पताल का नाम पता पूछकर फोन मन में कुशल और मधुरिमा की कुशलता के लिए के मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना करते हुए सुबोध और शालिनी अस्पताल की ओर निकल पड़े।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract