sonal johari

Horror Romance Fantasy

4.0  

sonal johari

Horror Romance Fantasy

पार्ट-5: मालवन में 'वो'

पार्ट-5: मालवन में 'वो'

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325


आपने पिछले पार्ट में पढ़ा कि अर्जुन का मनी बैक प्लान पूरी तरह फेल हो गया है, अचानक उसे मंजरी दिखती है जो रुपयों से भरा बैग उसके आगे रख उसके केबिन से निकल कर बाहर जाती है और उस लाश के ऊपर लेट जाती है ...अब आगे..


सब जैसे जड़वत होकर अर्जुन को ही देख रहे थे ...यहाँ तक कि मृत लड़की के माता और पिता भी ..."उठो मंजरी...ये नहीं हो सकता...(चीखते हुए) नहीं हो सकता "अर्जुन को चीखते देख उस मृत लड़की की माँ ने अर्जुन के कंधे पर हाथ रखा और बोली "मुझे नहीं पता था..आप इतने भले आदमी हैं..इसका नाम मंजरी नहीं..मीना है ...मीना मेरी बेटी..(रोते हुए ) अहहह आह" भौचक अर्जुन ने उस औरत को एक नजर देखा और अगले पल उस लड़की को देखा जो मृत पड़ी थी.... अर्जुन ने इस बार देखा तो कोई और थी.. और... मतलब मीना..मीना जो कुछ पल पहले तक उसे मंजरी दिख रही थी...वो अपनी कमर के बल घिसटता सा पीछे हटा...भौंचक अर्जुन कुछ बोलने या समझने की हालत में नही था....इतने में रावत ने आकर उसे सहारा देते हुए उठाया.."अर्जुन सर, सब देख रहे हैं..." रावत ने उसे हिलाते हुए कहा ...अर्जुन जैसे सपने से जगा हो, उसने एक नजर रावत की ओर देखा और खुद के हाथों से ही मुंह पोंछते हुए वो अपने केबिन की ओर भागा... बैग मेज़ पर अब भी रखा था..उसने बैग खोला तो सच में वो नोटों से भरा हुआ था...

"सर, वो लोग जा रहें हैं" रावत भी उसके पीछे-पीछे केबिन आते हुए बोला, अर्जुन ने उसे एक नजर देखा और बैग उठाकर पकड़ाते हुए बोला" उन्हें पैसे दे दो ”

"पैसे " हैरानी से रावत ने पैसों का बैग देखा लेकिन इस वक़्त इन पैसों के बारे में जानना उसे ज्यादा जरूरी नहीं लगा

"कितने पैसे देने हैं सर" रावत बैग पकड़ते हुए बोला

"जितने तुम्हें ठीक लगे दे दो.." अर्जुन कुर्सी पर अपना सिर पकड़कर बैठ गया अभी अभी हुई घटना से जुड़े सवाल उसके जेहन में कौंध रहे थे.."ये क्या था....ये था क्या...ऐसा पहले कभी अनुभव नहीं किया मैंने ..कहीं ये कोई कुदरत का इशारा तो नहीं ? मंजरी कहीं किसी मुसीबत में तो नहीं ..." वो खुद में बुदबुदाया और उसने मोबाइल उठाया...मंजरी का नम्बर डायल कर दिया...उसके मोबाइल में मंजरी की बहुत मिस कॉल बनी हुई थी जो मंजरी ने इन बीते दिनों में उसे की थी लेकिन अर्जुन ने उसका फोन नहीं उठाया था..उसने कॉल कनेक्ट होने से पहले ही डिस्कनेक्ट की और बोला "नहीं तुम्हें फोन नहीं करूँगा मंजरी..बहुत नाराज हूँ तुमसे.."फिर उसने राहुल का नम्बर डायल कर दिया .......

***

राहुल ने अपने मोबाइल पर अर्जुन का नाम देखा तो चिढ़ते हुए मेज़ पर रखा मोबाइल पलट दिया और अपने काम में लग गया

राहुल के केबिन में बाहर की ओर खुलने वाली एक बॉलकनी बनी हुई थी..जिस से सड़क दिखाई देती थी..सुबह की हल्की धूप बड़ी सुहानी लग रही थी..राहुल वही खड़ा होकर किसी से फोन पर बात कर रहा था..जब सड़क पर मंजरी की कार आते देखी तो अपनी नजरें उसी ओर टिका दीं..ऑफिस से लगभग आधा मील दूरी पर मंजरी की कार रुक गयी..मंजरी उसे बार-बार स्टार्ट कर रही थी..लेकिन कार स्टार्ट नहीं हो रही थी...उसने देबू की स्टाइल में बाहर निकलकर कार के बोनट पर एक घूँसा दे मारा और कार के अंदर बैठ कर फिर कार स्टार्ट की..राहुल ने जब ये देखा तो फ़ोन डिस्कनेक्ट किया और बड़े चाव से मंजरी की गतिविधि देखने लगा..मंजरी की कार इस बार भी स्टार्ट नहीं हुई..वो बुदबुदाती हुई कार से बाहर निकली और अगले टायर पर अपना पैर मारते हुए बोली "हद्द है..ये कार भी अपनी मर्ज़ी से चलती है" ..राहुल हँसते हुए अपने केबिन में आ गया..और थोड़ी ही देर में मंजरी उसके केबिन में आते हुए बोली

"राहुल..बाकी सब तो लगभग फाइनल है ही..तुम बस एक नजर डाल लेना और..शेफ़ के सिलेक्शन के लिए एक आइडिया है मेरे पास..."

"हाँ बोलो ना मंजरी .." मंजरी की देखी हुई गतिविधि से अब तक उसके चेहरे पर मुस्कान बनी हुई थी

"क्यों ना हम ऐसा करें कि सारे केंडिडेट को एकसाथ बुलाकर खाना बनवा लें..

"इतना खाना कौन खायेगा..क्या कहना चाहती हो मंजरी"? वो मंजरी की बात बीच में रोकते हुए बोला

"अररे..सुनो तो "

"हम्म सुनाओ.." वो अपनी हथेली पर चेहरा टिका कर मंजरी की ओर देखने लगा

"हम सारे केंडिडेटस को एकसाथ बुलाकर खाना पकाने को बोलेंगे..इससे हमें लाइव डेमो मिल जाएगा..साथ ही ऑफिस के सारे मेम्बर्स के लिए भी ये थोड़ा रिफ्रेसिंग हो जाएगा..सिलेक्शन प्रोसेस का हिस्सा बनने पर जहाँ सारे ऑफिस एम्प्लोयी खुश हो जायेंगे वहीं हमें भी ज्यादा काबिल और भरोसेमंद शेफ़ चुनने में बड़ी आसानी होगी"

"हम्म..और ऑफिस में एक फंक्शन भी हो जाएगा"

"बिल्कुल" वो हँसते हुए बोली

"हम्म..बहुत बढ़िया विचार है….. एक्सीलेंट मंजरी...ठीक है..यही कराओ"

"मुझे बस्स ये बताओ कि कब रखूँ ये फंग्शन राहुल.."

"24 तारीख को "

"24 तारीख ..कोई खास वजह "?

"सरप्राइज है..पता लग जायेगा तुम्हें ..."

"ठीक है...तो तैयारी शुरू करती हूँ" मंजरी ने कहा और राहुल के केबिन से बाहर निकल गयी

***

राहुल को बताए गए प्लान की तैयारी कर मंजरी अपनी गाड़ी उठा सीधे बाजार पहुंची और एक शर्ट ट्राउजर खरीद लिए देवांश के लिए.."पागल ..जंगल में लंगूर बना घूमता है..हा हा हा ..आज उससे कहूँगी मेरे सामने इंसानों की तरह आया करे" खुद से ही बोलते हुए मंजरी ने शॉपिंग बैग कार में रखा और

मालवन पहुँच गयी...थी तो दोपहर लेकिन बहुत पेड़ होने की वजह से वहाँ अंधेरा ही रहता..मंजरी को अब ना तो डर लगता ना ही घबराहट...नियत जगह कार रोककर वो बाहर निकली..और बिना कुछ बोले ही एक पेड़ के नीचे बैठ गयी..थोड़ी देर में कुछ फूल उसके ऊपर गिरे..वो उठ कर खड़ी हो गयी...फिर तो जैसे उस पेड़ ने उस पर फूलों की बारिश ही शुरू कर दी...वो खिलखिला कर अपने पैरों के पंजों पर घूम गयी...नजर उठा कर देखा तो सामने देवांश खड़ा था..

"देवू ...ये तुमने किया ना" वो चहकती हुई बोली

"एक परी का स्वागत तो ऐसे ही होना चाहिए ना.."उसने भी मुस्कुराते हुए कहा...मंजरी ने देखा आज देवांश सलीके से कपड़े पहने था..सफेद पेंट शर्ट ,तरीके से संवरे उसके बाल ..धुंधली रोशनी में भी चमकती उसकी काली आँखे..और गठा हुआ उसका 6 फ़ीट का कद ..मंजरी कुछ पल उसे देखती रही.फिर एकाएक उसे अर्जुन का ख़्याल हो आया और उसने अपना चेहरा फेरते हुए कहा "जानते हो कुछ लायी थी तुम्हारे लिए"

"मेरे लिए "? अपना हाथ वो खुद के सीने पर रखता हुआ बोला

"हम्म" करती हुई मंजरी अपनी कार तक गयी और देवांश के लिए लाया हुआ पेंट शर्ट उसे थमा दिया

(कपड़े देखते हुए) समंझ गया ..तुम अब मुझे जंगली रूप में बिल्कुल देखना नहीं चाहती..है ना

"हा हा हा सही कहा..बताओ तो कैसा लगा"

{कपड़े देखते हुए} तुम लायी हो मंजरी ..तो सबसे अच्छा है"?

"अब बताओ हर समय इस सुनसान जंगल में करते क्या हो तुम.... हम्म"?

"अब एक फॉरेस्ट ऑफिसर को तो जंगल में ही रहना होगा ना मंजरी"?

"(आश्चर्य से मुँह खोलकर) तुम..फॉरेस्ट ऑफिसर ?

(बस्स मुस्कुराते हुए सिर हिलाता है)

(दोनों हाथ मुँह पर रखकर खुशी से ) बाउ..तुमने तो कमाल कर दिया..देबू

"सब तुम्हारा कमाल है "

"कैसे"?

"तुमने ही मुझे पढ़ने के लिए प्रेरित किया था ..याद है"

(मुस्कुराते हुए ) "हम्म "

"मैं भी कुछ लाया था तुम्हारे लिए मंजरी

"मेरे लिए ...क्या"

देवांश ने उसके हाथ पर दो कंगन रख दिये जिन्हें देखकर उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी..बारहवीं क्लास में पहुंचने के बाद देवांश मंजरी के लिए उसके जन्मदिन पर एक चांदी का कंगन ले आया था..जिसे देख कर मंजरी थोड़ी देर के लिए खुश हो गयी थी...फिर उसे वो कंगन वापस देते हुए बोली "देखो देवांश ये चांदी -वांन्दी मुझे पसंद नहीं..पकड़ो इसे और आगे से मेरे लिए पैसे बर्बाद मत करना समझे"

सारा उत्साह और खुशी देवांश के चेहरे से गायब हो गयी थी..उसे इस बात का कोई अफसोस नहीं था..कि कई महीनों का जेब खर्च बचा कर लाया था वो कंगन..अफसोस इस बात का था कि वो चाँदी का कंगन मंजरी को देने की मूर्खता भी कैसे कर सका वो, मंजरी जो उसकी नजर में सबसे ज्यादा खूबसूरत और काबिल थी और मन ही मन वो उसे अपना सब कुछ मान चुका था..जो उसकी नज़र में किसी राजकुमारी से कम नहीं थी...और राजकुमारियाँ हीरे और वेशकीमती रत्न के गहने पहनतीं हैं...चाँदी के गहने तो नहीं...उसे इतना चुप देख मंजरी बोली

"ये क्या.. तुम तो दुखी हो गए..अच्छा सुनो ..जब पैसे कमाने लगो तब बिल्कुल ऐसा ही सोने का कंगन लाना ..इसलिए इसे अपने पास रखो "..कंगन देवांश को थमा कर मंजरी हँसते हुए बोली तो उसे हँसते देख देवांश के चेहरे पर भी मुस्कान आ गयी थी और उसने वो कंगन उससे बापस ले लिया था...

वही मंजरी आज आँखो में आँसू भरे एक जैसे दिखने वाले उन दोंनो कंगनों को हाथ में लिये घूर रही थी..

"जानती हो .. बहुत पहले ही बनवा लिया था मैंने इसे..सोचता था... दे पाऊँगा भी या नहीं..लेकिन कुदरत को तरस आ गया मुझ पर जो मेरी ये इच्छा पूरी हुई..."अपनी बात पूरी कर देवांश ने मंजरी की ओर देखा जो उसे ही देख रही थी..

"तुम्हें याद रहा ये..?

"क्यों.. याद नहीं रहना चाहिए था मंजरी"? वो एक पेड़ से टिक कर खड़ा हो गया था

"तुम पागल हो क्या...हम बच्चे थे उस वक़्त.."

"हम्म ...तो"

"तो ये कि पागल थी मैं कुछ भी बोलती थी..उन बातों को मन से लगाने का क्या मतलब है देबू"

-".. तुम मेरी सबसे अच्छी दोस्त थी..और हो..मैं तो यही मानता हूँ....तुम क्यों परेशान हो बेकार ही..मैंने ये ( कंगन की ओर इशारा करके) अपना वादा निभाने के लिए किया है बस्स..स्वीकार करने की भी बाध्यता नहीं है मंजरी"

"बड़े पागल हो..क्यों नहीं स्वीकार करूँगी..(कंगन पहनकर उसे देखते हुए) ये बहुत सुंदर है"

फिर कुछ सोचकर बोली "सुनो देबू..मैं अर्जुन से प्यार करती हूँ..और तुमने उसे लाने का वादा किया है..भूलना मत"

मंजरी बड़े होशियारी से भावनाओं को रोकने वाला एक बांध बना रही थी ..जिससे भावनाएं एक पार से दूसरे पार ना जा पाएं..इसीलिए उसने अर्जुन का नाम लिया...उसकी बात सुनकर देवांश मुस्कुराया और अपना सिर हिला कर उसे आश्वासन दिया कि उसे मंजरी से किया हुआ अपना वादा याद है.. उसने मंजरी को उसकी कार की तरफ चलने का इशारा किया..मंजरी आगे बढ़ कर चलने लगी दोनों चुप रहे कार तक पहुंचे...फिर मंजरी कार में बैठी तो देवांश बोला.

" मंजरी ..जब हम बच्चे थे.. तुम्हारी कही हुई बात मेरे लिए तब भी कीमती थी .. आज भी है और हमेशा रहेगी" उसने मंजरी की, कार की छत पर फिर एक हाथ की थपकी मारी और जंगल की ओर मुड़ गया...मंजरी उसे देखती रही..थोड़ी देर में वो आँखों से ओझल हो जंगल में गुम हो गया....

मंजरी ने अपनी कलाई पर पहने उस कंगन को दूसरे हाथ की उंगली से घुमाया और "पागल कहीं का" बोलते हुए मुस्कुरायी...फिर कार स्टार्ट की और घर की ओर निकल गयी....

***

राहुल के ऑफ़िस का हॉल लोगों से भरा पड़ा था..एक लाइन में

में शेफ़ खाना पका रहे थे..एम्प्लोयीस काम ना करके बातों में मशगूल थे..

एक त्योहार सा लग रहा था..खाना बनने के बाद सबने खाना टेस्ट किया, राहुल और मंजरी ने अपने काम मे माहिर कुछ शेफ़ को सेलेक्ट कर लिया...और जैसे ही ये सेलेक्शन प्रोसेस खत्म हुआ …राहुल ने सबके आगे खड़े होकर तेज़ आवाज में कहा "सुनिये सब लोग...अभी कुछ बचा है ..."

सबने तालियां बजाना शुरू कर दीं...

"(हँसते हुए) ठीक है ..ठीक है.. (मंजरी को हाथ के इशारे से मंजरी को बुलाते हुए) मंजरी आप जरा इधर आइये.."

मंजरी थोड़ा झिझकी..फिर जब सब उसे देखने लगे तो वो राहुल के सामने जाकर खड़ी हो गयी..और राहुल ने उसकी ओर एक कार की चाबी बढ़ा दी...

"ये ..ये क्या है राहुल" वो घबराते हुए बोली

"मंजरी ..तुम्हारी कार खराब है ना ..मैं नहीं चाहता काम में कोई रुकावट आये तुम्हें अक्सर मालवन जाना पड़ता है..बस्स .इसीलिए..." उसने फिर कार की चाबी उसकी ओर बढ़ा दी..और सभी मौजूद लोग फिर तालियां बजाने लगे...मंजरी ने अब तक कार की चावी नहीं पकड़ी थी..वो बस्स ठिठकी खड़ी थी...

इतने में अर्जुन वहाँ पहुंच चुका था ...और दूर खड़ा सब देख रहा था...लेकिन राहुल ने कनखियों से अर्जुन को देख लिया था..

"ले लो मंजरी...सब देख रहे है प्लीज़..." राहुल, मंजरी को कार की चाबी लगभग पकड़ाते हुए बोला..मंजरी ने बनावटी मुस्कान के साथ चाबी पकड़ ली..और सब ने फिर से जोरदार तालियाँ बजा दीं

ये सब देख अर्जुन गुस्से से भर गया..उसकी आँखें गुस्से से लाल हो गयी..अपने हाथ में पकड़े मोबाइल को उसने जोर से भींचा और पूरी ताकत से दीवार में दे मारा..और पैर पटकता वहाँ से बाहर निकल गया..

अर्जुन को बाहर जाता देख राहुल के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान उभर आई......क्रमशः...



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