Priyanka Gupta

Abstract Drama Inspirational

4.5  

Priyanka Gupta

Abstract Drama Inspirational

पाक कला

पाक कला

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"आज कुसुम मासी जी आ रही हैं। जबलपुर से यहाँ पुणे में रह रहे अपने बेटे के पास रहने आयी हैं। कह रही थी कि आज तो दोनों बहुओं से मिलना हो जायेगा। ",मेरे जेठजी रोहित भैया ने फ़ोन काटते हुए कहा। 

"अच्छा। ",मैं और मेरी जेठानी काजल भाभी ने एक स्वर में कहा। 

"मासी जी डिनर करेंगी न। उस हिसाब से कुक को बताना होगा। ",एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में एच.आर. मैनेजर काजल भाभी ने रोहित भैया से पूछा। 

"नहीं, कुसुम मासीजी ने डिनर के लिए तो मना कर दिया है। ",रोहित भैया ने कहा। 

"वैसे, भैया ये कौनसी मासी जी हैं ?",मैंने भैया से पूछा। 

"अरे, ये मम्मी की चचेरी बहिन हैं। हम दोनों भाइयों की शादियों में नहीं आ पायी थी तो अब तुम दोनों से मिलने ;मेरा मतलब तुम दोनों को परखने आ रही हैं। ",भैया ने चुटकी लेते हुए कहा। 

"सही है ;बस बहुओं को ही परखते रहो। दामाद के मामले में यह हसीं ख़्याल कहाँ चला जाता है। ",काजल भाभी ने आवाज़ में थोड़ी नाराज़गी लाने की कोशिश करते हुए कहा। 

"अरे, वैसे भी तुम दोनों बच गयी। मासी जी डिनर तो करने वाली ही नहीं हैं। अच्छी बहू का एक मुख्य लक्षण अच्छा खाना बनाना भी तो है। ",आज भैया हम दोनों की टाँग खींचने के पूरे मूड में थे। 

"अरे भैया खाना बनाना तो सबको ही आना चाहिए। जीने के लिए खाना जो जरूरी है। वैसे भाभी अच्छा खाना बनाती हैं, वह तो नौकरी की वजह से उन्हें समय कम मिलता है। ",मैंने मुस्कुराते हुए कहा। 

"हाँ, तुम्हारी भाभी आज जिस पोजीशन पर है ;उसके लिए उसने बहुत मेहनत की है। जितने बड़े पद पर हो, जिम्मेदारियाँ भी उतनी ही होती हैं। वैसे खाना तो तुम भी अच्छा बना लेती हो। मैं और रोहण भी पेट भर जाए, ऐसा तो बना ही लेते हैं। ",रोहित भैया ने सिम्मी भाभी की तरफ देखते हुए कहा। 

"हाँ, भैया। आप दोनों ही भाई अपने घरवालों से अलग हो। नहीं तो, मेरा और भाभी का तो इस घर में गुजारा नहीं होता। ",मैंने कहा। 

"चलो, वह सब तो ठीक है। घर में दूध तो है न, मासी जी चाय -कॉफ़ी तो कुछ ले ही सकती हैं। उनके सामने लेने जाना, बहुत ही अजीब लगेगा। ",भैया ने पूछा। 

मैंने रेफ्रीजिरेटर में चेक किया दूध के 2 पैकेट्स थे। मैंने भैया की शंका दूर कर दी।

मैं, दिव्या, रोहित भैया के छोटे भाई रोहण की पत्नी हूँ। मैं और रोहण दिल्ली में रहते हैं। मेरे ऑफिस के किसी ट्रैनिंग प्रोग्राम के लिए मैं कुछ दिनों के लिए पुणे आयी थी। भैया की बातें सुनकर मैं सोच रही थी कि बहुओं को कितना परखा जाता है। बहुओं से ही उम्मीद की जाती है कि वह अपने ससुराल में हर किसी के साथ अच्छे से रहे। वहीँ अगर दामाद थोड़ा नकचढ़ा हो, लेकिन अच्छा कमाता हो तो कोई उसके बारे में बात नहीं करता ;बल्कि उसके आने पर उसका बहुत ध्यान रखा जाता है। 

लड़की जन्मी नहीं कि माँ बाप को उसकी शादी की चिंता शुरू हो जाती है। अच्छे से शादी हो जाए इसलिए बचपन से उसे एक अच्छी बहू बनने का प्रशिक्षण दिया जाता है;मजे की बात यह है कि किसी लड़के को अच्छा दामाद बनने का कोई प्रशिक्षण नहीं दिया जाता । एक अच्छी बहू के लिए कई मानक गाहे बेगाहे हमारे समाज ने निश्चित भी कर दिए हैं। एक लड़की के मां बाप लड़की के पैदा होने के साथ ही इन मानकों के अनुसार उसका प्रशिक्षण भी प्रारम्भ कर देते हैं।

उन्हें डर बना रहता है कि कहीं उनकी बेटी इस दौड़ में पीछे न रह जाए। इसीलिए उठते बैठते बेटियों को कहते रहते हैं कि अगर अभी से घर गृहस्थी के कामकाज नहीं सीखे तो तेरी शादी कैसे होगी। मानो ज़िन्दगी का अंतिम और एक मात्र लक्ष्य शादी करना ही है। खैर ऐसे ही गुणों में एक गुण, जो कि सर्वप्रमुख है, जिसके बिना तो आपके शादी रुपी बाजार में मार्किट वैल्यू बुरे तरीके से गिर सकती है, वह है पाक कला अर्थात अच्छा खाना बनाना।

मानो मेरे माँ बाप के लिए तो बिल्ली के हाथों छीका ही टूटा, जो मुझ जैसी हर परंपरा, बात आदि में स्त्री पुरुष समानता की बात करने वाली लड़की की हॉबी कुकिंग अर्थात खाना बनाना थी। मेरे ससुराल पक्ष के लोगों को ये पूरी उम्मीद थी कि मैं अच्छी बहू की कसौटी पर जो कि हमारे समाज ने तय की है, बिल्कुल भी खरी उतरने वाली नहीं हूँ। खैर इन सब के लिए मैं तो हमेशा ही मानसिक तौर पर तैयार रहती हूँ। 

सोने पर सुहागा यह कि मेरी जेठानी काजल भाभी भी एक सफल कामकाजी महिला हैं। उनमें और मुझमें तुलना का भी कोई बड़ा प्रश्न मेरे सामने नहीं है। मेरी सासु माँ तो यही सोचती होंगी, ,"मेरी तो दोनों बहुएँ ही एक जैसी हैं। "

अभी मैं अपने विचारों के उपवन में विचरण ही कर रही थी कि, दरवाजे की घंटी बजी। इस घंटी को सुनकर,मुझे स्कूल -कॉलेज के दिनों मैं परीक्षा शुरू होने से पहले बजने वाली घंटी याद आ गयी। मेरे दिल में वैसे ही धुकधुकी होने लगी, जैसे परीक्षा के दौरान पेपर वितरित होने से पहले होती थी। 

मासी जी अपने बेटे के साथ आ चुकी थी। डिनर के लिए तो मासीजी ने पहले ही मना कर दिया था। हमने उन्हें चाय कॉफ़ी के लिए पूछा,उन्होंने कॉफ़ी पीने की इच्छा जताई। तो भई,हम अपनी पाक कला का प्रदर्शन करने के लिए किचन में चले गए। मौसी जी को जाने की जल्दी थी, हमने भी कहा अभी १० मिनट में कॉफ़ी बनाकर लाते हैं।मैं और काजल भाभी दोनों किचेन में चले गए। 

भाभी ने कहा, "तुम अच्छी कॉफ़ी बनाती हो। कॉफ़ी तुम बना लो। बाकी नाश्ता मैं लगा देती हूँ। "

 मैं कॉफ़ी बनाने की तैयारी करने लग गयी। मैंने कॉफ़ी फेंटकर बनाने का निश्चय किया। एक तरफ कॉफ़ी फेंटने लगी और गैस स्टोव पर दूध गरम करने के लिए चढ़ा दिया. ठण्ड का मौसम था, घर में आधा आधा लीटर के दूध के दो पैकेट्स थे, एक पैकेट का दूध गर्म करने चढ़ा दिया था। मैं कॉफ़ी फेंट चुकी थी, दूध कप्स में डालने ही जा रही थी कि,मैंने देखा कि दूध फट गया। सोचा शायद बर्तन सही से साफ़ नहीं किया था, इसलिए दूध फट गया। दूध का दूसरा पैकेट फ्रीज से निकाला और एक दूसरा बर्तन अच्छे से साफ़ किया। दोबारा दूध गरम करने चढ़ा दिया। उधर मौसी जी बार -बार जाने की जल्दी मचा रही थी।रोहित भैया बार -बार किचेन में आ -जा रहे थे। 

भैया ने चुटकी ली कि, "आज तो दोनों बहुयें खानदान का नाम डुबोकर ही रहेंगी। "

दूसरा पैकेट दूध भी फट गया। अब आसपास न तो कोई दुकान ही थी, दूसरा मौसी जी को घर पर छोड़कर जाना भी अजीब था। अब तो बड़ी दुविधापूर्ण स्थिति हो गई थी। तब ही भाभी को ध्यान आया कि घर पर तो मिल्कमेड भी रखा हुआ है। अब मिल्कमेड से कॉफ़ी बनाने की रेसपी गूगल बाबा पर सर्च की। गूगल बाबा ने बता भी दी। लेकिन कॉफ़ी बनने में १ से ढेड़ घंटा लग गया, दूसरा कॉफ़ी मिल्कमेड के कारण बहुत ज्यादा मीठी हो गयी थी।

मौसीजी ने बातों बातों में रोहितभैया से पूछ ही लिया कि घर में खाना कौन बनाता है।भाभी और मैं दोनों ही कामकाजी महिलाएँ हैं ,इसलिए हमने घर पर खाना बनाने के लिए कुक रखा हुआ है। अतः यही हमने मौसी जी को बताया।मैं सोच रही थी की मौसी जी, मीठी कॉफ़ी तो पचा जाएँगी, लेकिन कॉफी बनाने में लगे समय को पचाना उनके लिए नामुमकिन होगा।

मेरा सोचना कितना सही था, ये मौसीजी के जाने के एक घंटे के अंदर पता चल गया। एक घंटे बाद ही मेरी सास ने रोहितभैया को फ़ोन करके बताया कि,मौसी जी ने पूछा तुम्हारी दोनों ही बहुओं को खाना बनाना नहीं आता है क्या ? तब मेरी सास ने उन्हें बताया कि खाना बनाना तो मेरी दोनों बहुओं को ही अच्छे से आता है ।रोहित भैया ने अपनी मां को पूरी कहानी सुनाई। मैं पूरी तरीके से १०० नहीं २०० प्रतिशत निश्चित हूँ की अपने पक्ष को मजबूत बनाये रखने के लिए मेरी सास ने उस दिन की कहानी जरूर अपनी बहन को सुनाई होगी।

मेरी समस्या ये नहीं है कि कॉफ़ी ख़राब बनी और हमारी छवि ख़राब हुई। समस्या ये है कि क्या पाक कला में पारंगत होना इतना आवश्यक है कि एक कमी व्यक्ति विशेष की अन्य सभी खूबियों पर पानी फेर दे।पतियों को परखने के लिए तो ऐसी कोई कसौटी है ही नहीं, तो फिर हम पत्नियों के लिए क्यों ?

दोस्तों क्या कभी आपको भी महसूस हुआ कि अच्छी बहू होने के लिए इतने मानक और कसौटी क्यों है ? आप मुझे जरूर बताइये कि आपको कब ऐसी कसौटी को लेकर बहुत बुरा लगा। 


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