पाक इश्क़
पाक इश्क़
आज भी याद है मुझे हमारी पहली मुलाक़ात , जब हम मंदिर में मिले थे । सोचकर हंसी आ जाती है कि दो प्रेमियों की पहली भेंट यूं मंदिर में हो सकती है तब जानती न थी तुम्हे पर तुम्हारी सादगी दिल में उतर गई खूबसूरती के साथ सादगी में लिपटे हुए , गुणों की चादर ओढ़े देखा था तुम्हे जब तुमने एक बूढ़ी अम्मा की मदद की तभी से तुम्हारी कायल हो गई थी. जैसे तैसे उस दिन मेरी रात गुजरी थी अगली सुबह कॉलेज का पहला दिन था.मैंने तुम्हे कॉलेज में देखा पर बात करने की हिम्मत ना जुटा सकी , सिलसिला आगे बढ़ रहा था वो दिन भी याद आ रहा कुछ जब हम दोनों अचानक टकराए थे तुमने तो नज़रे ही झुका ली और मुस्कुरा कर चले गए , सच कहूं तो तुम्हारे दिल का हाल तभी समझ गई थी मैं , अब आगे क्या कहूं समय बीत रहा था, तुम दोस्त बन चुके थे पर हमेशा चुप रहते थे कभी कुछ ना बोले थे तुम , मेरी राते गिन गिन कर कट रही थी । दोस्ती प्यार में बदल चुकी थी , प्यार परवान चढ़ चुका था याद है मुझे वो ट्रिप भी , जब बारिश का मौसम था और जिस्म मिलने को बेकरार था , तुमने मुझे बाहों में भर कर माथा मेरा चूमा था , जिस्म के मिलन को मैं बेताब थी ,पर तुम मेरी मर्यादा बचा ली मेरी आबरू को सम्भाल कर अपना पति धर्म निभाया था बिना मेरा सिन्दूर बने । आज मैं बिस्तर पर लेटी सोच रही हूं कि माना वो बिस्तर पर ही हमारी आखिरी मुलाकात थी , जब तुमने मर्यादा की एक रेखा खीच दी थी और हमारी मोहब्बत पाक थी ।

