नया घर और ......(भाग 9)
नया घर और ......(भाग 9)
बूढ़ी अम्मा आगे बताया कि “पिता के जाने के बाद लम्बे समय तक रजनी अपनी माँ शालिनी के साथ रुकी लेकिन कब तक रुक सकती थी आख़िरकार जाना पड़ा क्यूँकि उसके बच्चे और गृहस्थी को उसके पति अकेले ही सम्भाल रहे थे। इस बार भी रजनी ने माँ को अपने साथ ले जाने के लिए मानने की पूरी कोशिश की लेकिन शालिनी नही मानी। शालनी इस घर को छोड़ कर नही जाना चाहती थी। इस घर में उसकी सारी यादें जुड़ी थी चाहे वो अजीत के बारे में हो या रजनी के बारे में। घर की एक एक चीज़ और हर एक कोना उन यादों को ताज़ा करता था।
शालिनी को छोड़ कर जाते समय रजनी बिलकुल टूट सी गयी थी। उसे अपने विदेश में बसने के फ़ैसले पर बार बार ग्लानि हो रही थी। वह बार बार स्वयं को कोसती, दुखित होती कि सब कुछ होने के बाद भी वह अपने माता पिता के लिए वह कुछ नही कर सकी। जिस समय उन्हें उसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी उस वक्त वह उनसे दूर सात समुंदर पार बैठी थी।
रजनी के जाने के बाद शालिनी अकेली रह गयी थी और उसके साथ थी उसकी पुरानी यादें जिनमे रजनी की प्यारी गुड़िया और आँगन का झूला ख़ास थे। सुबह से शाम वह गुड़िया के साथ झूले पर बीता दिया करती थी। कभी कभी मैं शालिनी से मिलने उसके घर चली जाती थी तो कभी जब मैं छत पर जाती तो वह नीचे झूले पर बैठी दिखती तो हम दोनो के बीच बातें हो जाती थी।
शालिनी से मिलने रजनी जल्दी जल्दी आ जाती थी। अचानक जब बहुत दिनों तक रजनी शालिनी से मिलने नही आयी तो शालिनी से पता चला कि रजनी अपने पिता की मृत्यु और माँ के अकेलेपन को बरदास्त नही कर सकी और अवसाद से ग्रसित हो गयी है। उसका इलाज चल रहा है जिस कारण वह भारत, शालिनी से मिलने नही आ सकी। अब तो शालिनी और भी ज़्यादा अकेली हो गयी थी।
उम्र बढ़ने के साथ मैं भी शारीरिक मजबूरियों के कारण अब शालिनी से मिलने नही जा पाती थी और घुटने के दर्द की वजह से छत्त पर जाना भी सम्भव नही हो पाता, जिस कारण मेरे और शालिनी के बीच संवाद भी टूट गया था। अब बच्चों से पूछ कर ही शालिनी का हाल समचर लिया करती थी और शालिनी भी मेरे बारे में बच्चों से ही पता करती थी। आज से लगभग दस से बारह साल पहले की बात है बच्चों से पता चला की शालिनी की तबियत बोहोत ही ज़्यादा ख़राब हो गयी है और अब वह घर के भीतर ही रहती है। शालिनी की देखभाल के लिए जिस महिला को वर्षों पहले रखा गया था वही उसकी आज भी देखभाल कर रही है। कुछ दिनो बाद पता चला की रजनी का पति विदेश से आया हुआ है। मैंने अपने बेटे से कहा की वह शालिनी की खबर ले आए तो पता चला की वह घर बंद करने आया था और वापस भी चला गया लेकिन शालिनी के बारे में कोई समाचार नही मिल पाया। थोड़े दिनो बाद बेटे ने बताया कि शालिनी कहीं खो गयी थी और उसकी देखभाल करने वाली महिला को भी कोई जानकारी नही थी। रजनी का पति अपनी सास की खोज करने ही विदेश से आया था और जब बोहोत छान भीन के बाद भी जब उसका कोई पता नही चला तो वह वापस चला गया। यह खबर शालिनी के देखभाल करने वाली महिला ने बताई थी।“
सारी बात सुन कर गुरुजी ने कहा कि “शालिनी के गुमशुदगी के बाद से दस बारह साल क्या कोई इस घर में नही रहा?” तब रजनी और रमेश ने बताया की “बूढ़ी अम्मा के बेटे ने बताया था कि शुरुआत में रजनी के पति ने घर को किराए पर लगाया था लेकिन कोई भी किराएदार दो तीन महीने से ज़्यादा नही रुका। शायद दो या तीन लोग रहने आए थे लेकिन पता नही क़्यों बहुत ही जल्दी में घर छोड़ कर चले गए। एक तो अपना आधा सामान छोड़ कर ही चला गया था जिसे लेने वह वापस कभी नही आया। पता नही ऐसा क़्यों था कि कोई घर में टिकता ही नही था। पिछले पाँच सालों से तो कोई इस घर की तरफ़ आया ही नही, और घर वीराना पड़ा रहा। ”
गुरुजी रजनी-रमेश से अभी उन्हें मिली जानकारी सुन ही रहे थे कि अचानक एक पत्थर का नुकीला टुकड़ा, कहीं बाहर से गुरूजी की तरफ़ आया, बिल्कुल उनके गर्दन के पास। लेकिन जब तक वह आहत करता गुरुजी ने बहुत ही तीव्रता से अपने शरीर को पीछे की तरफ़ झुका लिया। उस समय गुरुजी की फुर्ती देख कर रजनी-रमेश तो दंग रह गए। गुरुजी ने आँखे बंद कर ली और कुछ ध्यान करने लगे। कुछ पलों बाद उन्होंने आँखे खोली और बाहर झूले की तरफ़ देखते हुए कहा “ वह शक्ति मुझे यहाँ नही देखना चाहती है इसलिए वह मुझ पर प्राणघातक हमला किया था। ” पत्थर को हाथ में उठाते हुए गुरुजी आगे कहते है “ वह शक्ति चाहती थी कि यह नुकीला पत्थर मेरे कंठ पर लगे और कुछ क्षण में मैं मृत हो जाऊँ और वह अपनी मंशा में सफल हो जाए। ”
गुरुजी बाहर झूले की तरफ़ बढ़ने लगे और उनके पीछे-पीछे रजनी और रमेश। जब ये तीनो बाहर आए तब वह झूला हिल रहा था लेकिन जब ये उसकी ओर बढ़ने लगे तो झूला अचानक ही आसमान की तरफ़ जाता हुआ रुक गया। ऐसा लगा जैसे वह कुछ आघात करने वाला हो। फिर बड़ी ही तेज़ी से नीचे आया और रुक गया। गुरुजी ने रजनी और रमेश को घर के अंदर जाने को इशारा किया और कहा यह शक्ति मुझ पर प्रहार करने वाली है, तुम दोनो यहाँ से जाओ नही तो यह तुमलोगों को भी चोट पहुँचा सकती है। पति-पत्नी दोनो घर के अंदर आ गए लेकिन डर और कौतूहल कम नही हुआ सो कमरे की खिड़की पर खड़े हो बाहर झांकने लगे। बाहर धूल भरी हवा का भँवर गुरुजी के चारों तरफ़ घूम रहा था और वे कुछ बुदबुदाते हुए अपनी आँखें बंद कर, दाएँ हाथ की बंद मुट्ठी को झूले की ओर करके खड़े थे। क्रमशः