Mukta Sahay

Horror

4.5  

Mukta Sahay

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नया घर और.....(भाग-7)

नया घर और.....(भाग-7)

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आँखो आँखो में रात निकल गई और सुबह की पहली किरण के साथ ही रजनी-रमेश पंडितजी से मिलने को तैयार होने लगे। अस्पताल में सुबह छः बजे आगंतुकों के आने का समय था। दोनो छः बजे अस्पताल पहुँच गए। इतनी सुबह इन दोनो को देख कर पंडितजी समझ गए कि ज़रूर कुछ तो अनहोनी हुई है जिसकी वजह से दोनो इतनी सुबह यहाँ हैं।

पिछले दिन की पूरी बात रजनी-रमेश ने पंडितजी को बताई। पंडितजी ने कहा यह सब उस शक्ति की ही माया है वह तुमसे कुछ तो चाहती है और उसे पाने के लिए वह सब जुगत लगाएगी।

पंडितजी थोड़ी देर के लिए आँखे बंद करके, शांत हो गए। रजनी-रमेश एक दूसरे को देखे और थोड़े भयभीत हो गए यह सोंच कर कि वह शक्ति उनसे पता नही क्या चाहती है और उससे बचने का कोई उपाय है भी की नही। पंडितजी ने देर से आँखे खोली और दोनो की तरफ़ देखते हुए बोले, "मुझे लगता है, उस शक्ति को वश में करने के लिए हमें गुरुजी की मदद लेनी होगी। यूँ तो वह अपनी साधना में ही रहते है और हमसभी शिष्यों को समय-समय पर मार्गदर्शन देते रहते है। किंतु जब हमारे उपाय और प्रयोग से काम नही होता तो कई बार वह स्वयं भी आते हैं कार्य को सफल बनाने। लेकिन यह निर्णय उनका होता है कि वह स्वयं आएँगे या हम में से ही किसी को उपाय बता कर भेजेंगे। मैं उनका पता देता हूँ और एक पत्र भी , तुम दोनो उनसे मिल कर आग्रह करना इस परेशानी से मुक्त कराने का।"

दोनो पत्र और पता ले कर गुरुजी से मिलने निकल पड़े। गुरुजी का आश्रम शहर से बाहर, एक गाँव में था। गाँव के अंदर एक एक गली के बाद गाड़ी से जाना सम्भव नही था सो दोनो को पैदल जाना पड़ा। लगभग पंद्रह-बीस मिनट चलने के बाद आश्रम मिला। आश्रम के द्वार के पास बैठे शिष्य ने रजनी-रमेश को देख उनसे आने का प्रयोजन पूछा और उनके आने के कारण को जान कर उन्हें गुरुजी के पास ले गया।

सफ़ेद धोती-कुरते में लिपटा एक सुडौल शरीर जिसके सारे के सारे बाल यहाँ तक कि भौंव के बाल भी सफ़ेद थे और चहरे पर अद्भुत आभा एवं निश्चल शांति। जैसा पंडितजी ने बताया था कि वे अनठानबे वर्ष के है तो ऐसा व्यक्तित्व का अनुमान नही था रजनी-रमेश को।

रजनी-रमेश को देखते ही गुरुजी ने पंडितजी द्वारा दिया गया पत्र माँग़ा। बड़े ध्यान से उसे पढ़ा। रजनी-रमेश को देखते हुए कहा यह घर आपने कब और किससे लिया है। रमेश ने गुरुजी को इस बारे में बताया। गुरुजी ने फिर पूछा कि इस घर के बारे में वे और क्या जानते हैं जैसे जिस ज़मीन पर बना है वह कब लिया गया था, वहाँ पहले क्या था, घर कब बना था, इस घर में अब तक कितने लोग रह चुके है, किसी के साथ क्या ऐसी घटनाएँ हुई थी क्या, रमेश के घर लेने के पहले यह घर कब तक ख़ाली रहा था इत्यादि। रजनी-रमेश के पास इसके कोई उत्तर नही थे। दोनो ने कहा इन सब के बारे में तो कुछ पता नही है। गुरुजी ने कहा, "ये बात आप अब जान लें कि अब से आगे जब भी कहीं रहने के लिए ज़मीन या घर लें तो उसके बारे में ये सारी जानकारी ज़रूर जमा करें। अब जब आप उस घर में रहने ही लगें हैं तो भी ये सारी जानकारी इक्कठा करना और भी ज़्यादा आवश्यक है, क्योंकि आपकी समस्या का समाधान कहीं ना कहीं ऐसे ही प्रश्नों के उत्तर के साथ जुड़े हैं। ये तो हुई पहली बात।

दूसरी बात, जो अपनी मदद स्वयं करता है उसकी ही मदद भगवान या कोई और कर सकता है। ऐसी शक्तियाँ वहीं अपनी पकड़ बनाना चाहती हैं जहां उन्हें कोई कमजोर कड़ी मिलती है। ये आपके सोंच और आपके विचारों की मज़बूती का आँकलन कर प्रहार करती हैं। ऐसे में आपको मानसिक रूप से बहुत मज़बूत रहना होगा। आपको अपने ऊपर पूरा भरोसा रखना होगा कि आप में उस शक्ति से भी ज़्यादा शक्ति है और आप उस शक्ति से जीतेंगे। ध्यान रहे एक पल के लिए भी कमजोर नही पड़ना है। आपकी अपनी दृढ़ शक्ति ही आपकी ढाल है उस अनजानी शक्ति के विरुद्ध। यदि आप मज़बूत रहेंगे तभी मैं भी आपकी मदद कर सकूँगा अन्यथा बहुत मुश्किल है। इस पत्र के माध्यम से आपके पंडितजी ने जैसा बताया है उससे यह अनुमान है कि उस शक्ति ने वर्षों से उस घर और उसके आसपास निवास किया है। इतने लम्बे समय से वह निवास करने के कारण वह उस जगह को मज़बूती से पकड़े हुए है।"

गुरुजी ने आगे कहा, पंडितजी ने आपको सिद्ध किए हुए जो धागे बंधे हैं उसका ख़ास ध्यान रखें और उसे अपने से अलग ना होने दें, किसी भी हालत में और मेरी बताई दोनो बातों को गाँठ बांध लें। मैं आज शाम आपके घर आऊँगा, जबतक घर के बारे में जितनी ज़्यादा जानकारी इकट्ठा कर सकते है कर लें। रजनी-रमेश गुरुजी को प्रणाम कर विदा लेते हैं और घर के बारे में जानकारी इकट्ठा करना शुरू करते हैं। क्रमशः


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