Mukta Sahay

Horror Fantasy Thriller

4.5  

Mukta Sahay

Horror Fantasy Thriller

नया घर और.......(अंतिम भाग)

नया घर और.......(अंतिम भाग)

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इधर गुरुजी रमेश के साथ उस राख निकलने वाली गुफा की भीतर तक खुदाई कर रहे थे और रजनी उस गुड़िया को साफ़ कर ने कपड़े पहना रही थी। गुड़िया के लिए ने कपड़े उसने अपने दुपट्टे को फाड़ कर बनाया था।

गुरुजी और रमेश को खोदते खोदते काफ़ी आगे तक निकल गये थे वहाँ उन्हें कुछ हड्डियाँ दिखीं। गुरुजी के कहने पर रमेश ने उन्हें बाहर निकाला और एक डब्बे में बंद कर रख दिए। गुरुजी ने और आगे तक खोदने को कहा। आगे जाने पर एक फ़ोटो फ़्रेम मिला। फ़ोटो तो गाल गई थी लेकिन फ़्रेम जीर्ण अवस्था में बचा था। और आगे खोदने पर गुफा का दूसरा छोर आ गया।

दोनो रजनी के पास आए। अब रजनी सच में गुड़िया से खेलने लगी थी बिल्कुल छोटे से बच्चे की तरह और बाहर झूला धीमे धीमे हिल रहा था। गुरुजी ने रमेश से कहा कि वह किसी भी तरह जल्दी से जल्दी शालिनी की बेटी रजनी से सम्पर्क करे। रमेश अपने दोस्तों, पड़ोसियों और इंटरनेट के माध्यम से उसे खोजने की कोशिस करने लगा। तभी याद आया की घर के काग़ज़ात पर जिनका नाम है उनसे सम्पर्क करे और उन्होंने जिनसे घर ख़रीदा था उनका पता माँगे। उसने ऐसा ही किया। उनसे बात करने पर रमेश को शालिनी की रजनी का पता और फ़ोन नम्बर दोनो मिल गया। उससे सम्पर्क किया गया। अब तक अंधेरा गहरा हो गया था। लेकिन शालिनी की रजनी के यहाँ तो अभी सबेरा हुआ था। रमेश शालिनी की रजनी को सारी बात बताई और फिर गुरुजी से बात करवाई। गुरुजी ने भी उसे बहुत से बात बताई और कहा उसकी माँ उसे बहुत याद करती है, वह तड़प रही है बेटी से मिलने के लिए। अब तो उसकी स्थिति ऐसी है की ना वह इस जहां की है और ना ही उस जहां की। तु आ जाओ तो वह इस घुटन से छुटकारा पाए और उसके ममता की तड़प शांत हो।

उस तरफ़ से रजनी ने क्या कहा वह किसी को समझ नही आया लेकिन अगले दिन दोपहर ढलते ढलते शालिनी की रजनी आ गई। रात से लेकर दोपहर तक रमेश की रजनी भी खुश थी देख कर की शायद अब उसकी परेशनियाँ खत्म हो जाएँगी।

शालिन की रजनी से बात करने के बाद गुरुजी ने बताया की शालिनी कहीं खोई नही थी। वह छुप गई थी क्योंकि उसका दामाद उसे अपने साथ विदेश ले जाने के लिए आने वाला था। बीमारी और बुढ़ापे की वजह से शरीर तो ढल ही गया था सो वह इस राख वाली गुफा में छुप कर बैठ गई थी, कई दिनो तक। जब सब चले गए तो वह इसी रास्ते से बाहर निकलती थी रात में और झूले पर बैठ जाती थी, गुड़िया ले कर और अपनी रात अपनी यादों के साथ बीता देती। ऐसा कुछ दिनों तक चला फिर शालिनी की दवाइयाँ और खाने-पीने का सामान सब खत्म हो गया और वह बहुत बीमार हो गई। ऐसी स्थिति में उसने इस राख वाली गुफा से बाहर निकलने का आख़िरी प्रयास किया लेकिन निकल नही पाई और उसका देहांत हो गया। शरीर तो शेष हो गया लेकिन आत्मा और इच्छा जीवित रह गई। वह हर पल रजनी को ढूँढने लगी। जब तुम और रमेश इस घर में आए तो उस अतृप्त आत्मा को तुम में अपनी बेटी दिखने लगी। वह भी शायद इतनी ही बड़ी थी जब वह शादी करके विदेश में बस गई थी। जो भी उसे रजनी से अलग करने के प्रयास करता वह उसे हानि पहुँचाना चाहती। इसलिए उसने पंडितजी को नुक़सान पहुँचाया और उसके बताए दूसरे पंडितजी को इस घर तक नही आने दिया। वह मुझे भी आहत करना चाहती थी बल्कि मारना ही चाहती थी लेकिन जब मैंने उसकी प्यारी चीज़ उसकी गुड़िया को रसोईघर में अपने पास बंधक रखा तब उसने मुझे अपनी सारी बात बताई।

शालिनी की रजनी के आने के बाद उसे भी शालिनी की अतृप्त आत्मा से मिलवाया गया। गुरुजी ने उसे गुड़िया के साथ झूले पर बैठने को कहा और उसके झूले पर बैठते ही झूला धीमे धीमे झूलने लगा। झूले पर बैठी रजनी के कपड़े सिमटने लगे जैसे किसी ने उसे पकड़ा हो। रजनी को भी किसी के छूने का अहसास हुआ। आत्मा ज़रूर तृप्त हुई होगी। अब बारी थी आत्मा को दूसरे लोक जाने के लिए मुक्त करने की। गुरुजी ने हड्डियों के उस डब्बे को बाहर आँगन में निकला और शालिनी की रजनी से कुछ पूजा-हवन करवाया। रमेश की रजनी ने शालिनी का फ़ोटो उसके परिवार के साथ का घर में लगा दिया। सारी पूजा करके रजनी फिर विदेश अपने घर चली गई और शालिनी को भी मुक्ति मिल गई। गुरुजी भी सारे काम सम्पन्न करा अपने आश्रम को वापस चले गए।

रजनी-रमेश अब अपने नए घर में बिना किसी समस्या या कठिनाई के रहने लगे थे, लेकिन जो भी उनके साथ इस गहरा में घटित हुआ था वह अब भी उन्हें अब भी उन्हें हर पल याद आ ही जाता था। उन सारी यादों के साथ रजनी और रमेश का इस घर में रहना कठिन होता जा रहा था ऐसे में दोनो ने अपने लिए नए घर की तलाश फिर से शुरू कर दी।


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