नसीहतों की गठरियाँ
नसीहतों की गठरियाँ
जब शिवानी की शादी हुई तो , हर आम भारतीय लड़की के समान उसके साथ भी दहेज़ के सामानों के साथ -साथ नसीहतों की गठरियाँ बाँधकर दी गयी। ये नसीहतों की गठरियाँ पीढ़ी दर पीढ़ी एक विरासत के समान हर माँ को , अपनी माँ से मिलती है और वह ज्यों की त्यों इसे अपनी बेटी को थमा देती है।
शिवानी के मामले में तो उसकी माँ ने इन गठरियों के भार को दुगुना कर दिया था ,तलाकशुदा शिवानी का यह दूसरा विवाह जो था। शिवानी तो एक बार पहले ही परिवार की नाक कटा चुकी थी।
पता नहीं ,हम भारतीयों की नाक इतनी बड़ी क्यों होती है ,जो बार -बार कट जाती है। बेटी के लड़के दोस्त हैं तो ,कट गयी। बेटी ने प्रेम विवाह कर लिया तो कट गयी। प्रेम विवाह दूसरे समुदाय में कर लिया तो ,दो -दो बार कट गयी। बेटी का तलाक हो गया तो कट गयी। लेकिन यह नाक चोरी ,बेईमानी ,रिश्वत लेने -देने ,दहेज़ लेने -देने ,कर चोरी करने से नहीं कटती है। सबसे मज़ेदार बात इतनी बार कटने के बाद भी यह नाक इतनी बड़ी रहती है कि हम दूसरों के मामलों में भी इसे घुसा ही देते हैं।
शिवानी का पहला विवाह बड़े धूमधाम से हुआ था। शिवानी भी हर लड़की की तरह कई सपनों को संजोये ससुराल गयी थी। उसके सपने भी अपने परिवार और पति के इर्दगिर्द ही बुने हुए थे। उन सपनों में वह सबकी प्यारी थी ,उसने अपने सेवा और समर्पण से सबका दिल जो जीत लिया था। उसके सपनों में कहीं यह तो था ही नहीं कि कोई उसका भी दिल जीतने की कोशिश कर रहा है।
लेकिन सपने और हकीकत की दुनिया में बड़ा फर्क होता है। शिवानी के सपने टूट गए ;जब शादी की पहली रात को उसके कमरे में,जिस शख्श के साथ उसने सात फेरे लिए थे ,वह न आकर कोई और ही आया। यह कोई और ,उसके पति का सगा छोटा भाई ,उसका देवर था। शिवानी की नसीहत की गठरी के अनुसार पतिव्रता स्त्री कोई दूसरा पुरुष उसे स्पर्श करे उससे पहले अपनी जान दे देती है।
शिवानी ने जान तो नहीं दी ,लेकिन उसी रात अपने देवर को बातों में लगा के जैसे तैसे अपनी जान बचाकर,भागकर अपने मायके आ गयी। नसीहतों की गठरी की एक गठरी कि ,"औरत डोली में जाती है और अर्थी में ही लौटती है", खुलने से रह गयी या शिवानी वह गठरी खोल ही नहीं पायी।
शिवानी इस मामले में तो भाग्यशाली ही कही जायेगी कि उसके मम्मी पापा ने नसीहत की गठरी के स्थान पर उसकी बात को महत्व दिया और सात जन्मों के घिनौने रिश्ते को निभाने के लिए उसे परिवार की नाक की दुहाई नहीं दी। लेकिन शिवानी पर एक कलंक तो लग ही गया था ,हम कितनी ही प्रगतिशीलता की बातें करें ?कितनी बार ही कहे कि जमाना बदल गया है ? ,तलाक को लड़की के चरित्र पर आज भी कलंक के तरह ही देखा जाता है; चाहे लड़के की कमी के कारण ही लड़की ने तलाक लिया हो।
ज्यादातर सभी भारतीय लडकियां अपनी शादी बचाने के लिए हर तरीके के समझौते करती रहती हैं;शादी को निभाती हैं। कई बार तो इस निभाने के चक्कर में उनकी जान तक चली जाती है। नसीहत की गठरी इतनी भारी होती है कि लड़की उसके बोझ तले दब सी जाती है।
जैसे नदी अपने आपको समंदर में विलीन कर देती है ,वैसे ही लड़की अपने आपको परिवार में विलीन कर देती है। एक बार समंदर से मिलने के बाद नदी का अस्तित्व समाप्त हो जाता है ,वैसे ही शादी के बाद अधिकतर लड़कियों का अस्तित्व परिवार और पति के अस्तित्व में ही गडमड हो जाता है।
शिवानी ने अपने आत्मसम्मान को बचाने के लिए तलाक लिया था ,उसने अपने पति को छोड़ा था ;लेकिन फिर भी उसे ही परित्यक्ता बोला गया। उस पर ही लांछन लगाया गया कि उसके पति ने उसे छोड़ दिया है।
पति द्वारा छोड़ी गयी लड़की किसी के लिए बेचारी ,किसी के लिए दयनीय ,किसी के लिए अति सुलभ ,किसी के लिए चरित्रहीन हो जाती है। अतः लड़की को ऐसे लांछनो से बचाने के लिए शिवानी के मम्मी पापा ने शीघ्र अति शीघ्र उसका दूसरा विवाह संपन्न कर दिया और इस बार पहले से दुगुनी भारी नसीहतों की गठरियों के साथ उसे उसके घर भेजा।
शिवानी दूसरी बार दुगुनी भारी नसीहतों की गठरियों का बोझ उठाये अपने घर आ गयी थी। शिवानी के पति राजीव का भी यह दूसरा विवाह था। उसकी पहली पत्नी की मृत्यु हो गयी थी। शादी के बाद राजीव जब तब शिवानी को उसकी पहली शादी को लेकर ताना मार देता था। शिवानी हँस कर टाल देती थी।
राजीव अपनी पहली पत्नी से शिवानी की तुलना भी करता रहता था। शिवानी में उसे कमियाँ ही कमियाँ नज़र आती थी। शिवानी अगर थोड़ी भी शिकायत करती तो उसे कहा जाता कि वह एडजस्टमेंट नहीं कर सकती ;इसलिए उसकी पहली शादी टूट गयी।
शिवानी पूरे घर की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की कोशिश कर रही थी ;लेकिन उसका अतीत उसकी एक छोटी सी गलती पर भी हमेशा भारी पड़ जाता था। ससुराल में हर एक जना उसकी पिछली विफल शादी के लिए उसे जिम्मेदार ठहराने और नीचा दिखाने का एक भी मौका नहीं छोड़ता था। अगर सुबह जागने में 5 मिनट की भी देरी हो जाए तो सासू माँ कहती ,"ऐसी कामचोर लड़की को कोई पूजा करने के लिए अपने घर में थोड़े न रखता। उन्होंने ही लात मारके निकाल दिया होगा और महारानी जी कहती हैं कि इन्होंने तलाक दिया था। "
शिवानी के पति केवल राजीव को ही शिवानी के तलाक की सही वजह पता थी। अगर कभी शिवानी अपनी छोटी ननद को कुछ समझाती तो वह भी कह देती ,"भाभी ,आप तो रहने ही दो। आप में इतनी ही समझ होती तो ,आपकी पहली शादी ही क्यों टूटती। "शिवानी सभी की प्रताड़नाओं को चुपचाप सहती रहती ,कभी शिकायत भी करना चाहती तो नसीहत की गठरी खुलकर सामने आ जाती। परिवार की मर्यादा उसके हाथ में ही है। दूसरी बार परित्यक्ता होने की सोच मात्र से वह काँप जाती थी।
इसी बीच वह एक बेटे की माँ भी बन गयी थी। लेकिन घर के चिराग को जनम देने के बाद भी उसकी किस्मत में कोई बदलाव नहीं आया था। लेकिन अब उसे जीने की एक वजह और मिल गयी थी उसका 1 साल का बेटा टिंचू।
ज़िन्दगी अपनी रफ़्तार से जाए जा रही थी , तब ही एक दिन राजीव के मौसेरे भाई रितेश जो कि राजीव के भाई कम दोस्त ज्यादा थे ;3 -4 दिनों के लिए उनके घर रहने आये। शिवानी एक अच्छे मेजबान की भांति उनकी बहुत खातिरदारी कर रही थी। राजीव के बहुत दिनों बाद शिवानी ने इतना खुश देखा था।
लेकिन शिवानी ने महसूस किया था कि रितेश चोर नज़रों से उसे घूरता रहता था। शिवानी जब भी उसे चाय ,कॉफ़ी कुछ पकड़ाती तो वह उसे छूने की कोशिश करता था। पहले शिवानी को लगा कि शायद रितेश का हाथ गलती से उसके हाथ को छू गया था। लेकिन यह रितेश जानबूझकर कर रहा था। अब शिवानी रितेश से बची -बची रहने लगी थी। लेकिन अभी भी रितेश के जाने में एक दिन बाकी था।
शिवानी की ननद अपने कॉलेज में गयी हुई थी। सासु माँ और राजीव रितेश के साथ भेजने के लिए उपहार और मिठाइयां आदि लेने गए थे। शिवानी टिंचू को सुलाकर किचन में लंच की तयारी कर रही थी। तब ही टिंचू जागकर रोने लगा ,शिवानी अपने बैडरूम में दोबारा टिंचू को सुलाने की कोशिश करने लगी। तब ही दो हाथों ने पीछे से आकर उसे दबोच लिया और उसके साथ जबरदस्ती करने लगे। इतनी में ही घर की घण्टी बज गयी। शिवानी ने उन दो हाथों को धकेल दिया ,देखा तो वह रितेश था। शिवानी बदहवास सी भागी और दरवाज़ा खोला। दरवाज़े पर राजीव और सासु माँ थे।
तब ही रितेश रूम से अपना सामान लेकर गुस्से में बाहर आया और जाने लगा। राजीव ने रोकने की कोशिश की तो कहा कि ,"तुम्हारी बीवी मेरे साथ जबरदस्ती कर रही थी। में मैं एक पल भी नहीं रह सकता। "रितेश जल्द ही घर से निकल गया।
अब शिवानी राजीव के सवालों के कटघरे में खड़ी थी। शिवानी ने राजीव को बताया कि ,"रितेश ने जबरदस्ती करने की कोशिश की थी। जब से रितेश यहाँ पर आया था ;तब से उसकी शिवानी पर बुरी नज़र थी। "
राजीव ने कहा ,"शिवानी कभी भी तुम्हारे लिए अपना पति पूरा नहीं पड़ता। हर बार तुम्हारे साथ ही तुम्हारे देवर जबरदस्ती करते हैं। तुम्हारी जैसी चरित्रहीन औरत मैंने आज तक नहीं देखी। दूध का जला छाछ भी फूंक -फूंक कर पीता है। लेकिन तुम तो पहली शादी के टूटने पर भी नहीं सुधरी ;जो तुमने दूसरी शादी भी दांव पर लगा दी। मैं तुम्हारी शक्ल भी नहीं देखना चाहता। "राजीव अपने रूम से बाहर निकल गया।
शिवानी ने राजीव से कई बार बात करने की कोशिश की ;लेकिन राजीव उसे हर बार दुत्कार देता ,बेईज्जत करता। अब तो घर के दुसरे लोग भी उसके चरित्र पर लाँछन लगाने लगे थे। शिवानी इन झूठे आरोपों को सहन नहीं कर पा रही थी। नसीहतों की गठरी खुल चुकी थी ,वह अपने मायके लौट सकती थी ;ससुराल में भी रोज़ -रोज़ जिल्लत नहीं झेल पा रही थी।
नसीहत की गठरी खुली हुई थी कि ,"औरत डोली में आती है और अर्थी में ही जाती है। " अगले दिन शिवानी पंखे पर झूलती हुई पायी गयी। शिवानी की अर्थी सजा दी गयी थी और शिवानी अर्थी में लौट रही थी। उसने अपने परिवार की मर्यादा और प्रतिष्ठा को बचा लिया था। नसीहतों की गठरी अभी भी खुली हुई थी।
