नन्ही पकड़
नन्ही पकड़
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अपने गृह जिले से बाहर कार्यरत किसी भी कर्मचारी के लिए छुट्टियों की विशेष अहमियत होती है। शिक्षक के रूप में कार्यरत एक कर्मचारी के लिए ग्रीष्मावकाश, मध्यकालीन अवकाश और शीतकालीन अवकाश विशेष होते है। क्यूँकि इन दिनों में लम्बी छुट्टियां मिलती है जिसका सद्पयोग परिवार व रिश्तेदार बंधुओ से मिलजुल कर किया जाता है। इक्का दुक्का अवकाश आने जाने में ही चले जाते है और रिश्तेदार मित्र बंधुओं के उलाहने सिर चढ़ जाते है कि घर आये थे और मिले नहीं।
खैर...
4 वर्ष पहले की बात है शीतकालीन अवकाश का बेसब्री से इंतजार था। 25 दिसम्बर से अवकाश शुरू होना था। 22 दिसम्बर को एक शुभ सन्देश प्राप्त हुआ कि छोटे भाई विपिन के घर लक्ष्मी का आगमन हुआ है। मुझे बड़े पापा बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। अब बेसब्री में और भी इजाफ़ा हो गया कि कब घर जाऊँ और नवजात को गोद में उठाकर उसका स्वागत करूँ। 25 दिसम्बर को घर जाते ही बैग रखकर उस नन्ही परी को मिलने हॉस्पिटल जा पहुंचा। बहुत प्यारी, मासूम सी नन्ही परी खिलते हुए गुलाब की भाँति अपनी मां के बगल में आँखे बंद किए सो रही थी। एक टक उसको निहारा, मन ही मन में स्वागत किया, प्रणाम किया। उसे देख कर प्रसन्नता की कोई सीमा नहीं थी।
उसकी नानी ने उसे उठाने का प्रयास किया पर वो नहीं उठी। नानी ने उसे बताया कि बड़े पापा आये है अब तो आँखे खोल, पर वो आराम से सोती रही।तब उसकी नानी ने उसे मेरी गोद में दे दिया। मैंने जैसे ही उसे पुकारा उसने आँखे खोल ली। मैंने उसके कोमल गुलाब की पंखुड़ी जैसे हाथ में अपनी अँगुली रखी तो उसने कस के पकड़ ली। उसकी नानी बता रही थी कि जन्म के बाद इसने आपके सामने ही आँखे खोली है।आपकी तो ऊँगली भी पकड़ ली।
मेरे लिए वो पल अविस्मरणीय था। यूँ लग रहा था जैसे उसने मेरा स्वागत, मेरा निवेदन स्वीकार कर लिया हो और आँखे खोल के कह रही हो कि मेरे बड़े पापा आ गए। उसका स्पर्श बता रहा था कि हमारा नाता आज से नहीं पिछले जन्म से है। उस समय की अनुभूति को शब्दों में नहीं बाँधा जा सकता। इस 22 दिसम्बर को वो चार साल की हो गयी। बड़े पापा आज भी उसके लिए विशेष है और बड़े पापा के लिए वो।
उसकी वो नन्ही पकड़ मुझे आज भी ज्यों की त्यों याद है। जब भी याद करता हूँ उससे वो पहली मुलाकात एक पल में आंखों के आगे जीवंत हो उठती है।उसकी प्यारी प्यारी बातें, उलाहने, हँसना, खेलना सब में बेहद आत्मीयता और अपनापन महसूस होता है। बचपन की निश्छलता, शुद्धता व सहज अभिव्यति बालस्वरूप में देवनुभूति के दर्शन मात्र है, जो मैं आज भी महसूस करता हूँ।