Vikrant Kumar

Inspirational

4.7  

Vikrant Kumar

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राष्ट्र की एकता में हिंदी

राष्ट्र की एकता में हिंदी

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यूँ तो मनुष्य ने आदिकाल से ही संदेशों के आदान-प्रदान हेतु बोलना सीख लिया था। परन्तु भाषा के रूप में विकसित होने के लिए बोलियों को भी हजारों वर्ष लगे। बोलियाँ जो अपने वर्ण, शब्द, मात्रा व समृृध्द शब्दकोश के साथ विकसित हुई और जनमानस के संचार का माध्यम बनी भाषा कहलाई।

 आज विश्व के अनेक देशों में अनेक भाषाएं बोली जाती है परन्तु भारतवर्ष की भाषा हिंदी का अपना एक अलग महत्व है। हिंदी ही है जो हमारे देश की जनमानस की भाषा भी है और हमारी अतुल्य,अमूल्य विरासत की आन बान और शान भी है। भारत की एकता, अखंडता और सम्प्रभुता की पहचान भी है। लगभग 1000 वर्ष से भी अधिक पुरानी हिंदी की जीवन यात्रा अपनेआप में इतिहास की अनेकों घटनाओं को समेटे, जनमानस की भाषा से साहित्यकारों तक के विचारों को समाहित करते हुए देश के वीर सेनानी की तरह सबको एकता के सूत्र में बांधे हुए आज भी विशाल जन समूह की आत्मप्रिय भाषा बनी हुई है।

    संस्कृत भाषा के मूल से उत्पन्न देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाला इस भाषा का वर्तमान स्वरूप अनेक परिवर्तन और परिष्करण के पश्चात सामने आया है। भारतीय संस्कृति में हुए परिवर्तन के सापेक्ष भाषा भी परिवर्तित होती रही। हिंदी की जड़ें प्राचीन भारत की संस्कृत भाषा से मध्ययुगीन भारत की अवधी, मागधी तथा मारवाड़ी जैसी भाषाओं तक फैली हुई है। इन भाषाओं में लिखे साहित्य को हिन्दी का आरम्भिक साहित्य माना जाता हैं। हिंदी साहित्य ने अपनी शुरुआत लोक भाषा व कविता के माध्यम से की। गद्य का विकास बहुत बाद में हुआ। हिंदी का आरंभिक साहित्य अपभ्रंश में मिलता है। हिंदी में तीन प्रकार का साहित्य मिलता है-गद्य,पद्य और चम्पू। जो गद्य और पद्य दोनों में हो उसे चंपू कहते है।

साहित्य जगत में आदिकाल व भक्तिकाल के साहित्यकारों कबीर, नानक, दादूदयाल, चंदबरदाई, अमीर खुसरो, मलिक मुहम्मद, जायसी, रहीम, रसखान से लेकर रीतिकाल और आधुनिक काल के साहित्यकारों केशव, बिहारी, सेनापति, महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, रामधारी सिंह दिनकर, हरिवंशराय बच्चन तक ने अपनी अभिव्यक्ति के माध्यम हिन्दी में काव्य रचनाएं की व उस समय के समाज को एक सूत्र में पिरोने, कुरीतियों को दूर करने व जन को जागृत करने का प्रयास किया।मुगलकाल में चाहे फ़ारसी राज्य की भाषा रही परन्तु आम बोलचाल की भाषा हिंदी ही बनी रही।200 वर्षों तक अंग्रेजों की गुलामी ने अंग्रेजी भाषा को प्रोत्साहित किया परन्तु फिर भी देश के एक छोर से दूसरे छोर तक हिंदी ही सम्प्रेषण का माध्यम बनी रही। देश की स्वतंत्रता आन्दोलन में हिन्दी के गीतों ने पुनर्जागरण की भूमिका निभाई। सुभद्राकुमारी चौहान के "खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी" से लेकर रामप्रसाद बिस्मिल की "सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है" व श्यामलाल गुप्ता के "विजयी विश्व तिरंगा प्यारा" ने आम जनमानस को एक कर आजादी के लिए प्रेरित किया। यह हिन्दी ही थी जो उस समय जनता की एकता की आवाज बनी। लाल बाल और पाल जैसे अनेकों वीर इसी भाषा में जनजागरण के नारे लगाते हुए स्वतंत्रता की बलिवेदी पर आहूत हो गए। राष्ट्र की एकता में हिंदी ने सूत्रधार का काम किया। विविधताओं से भरे राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोया। आजादी के राष्ट्रीय आंदोलन में गाँधी जी के सत्याग्रह से लेकर भारत छोड़ो आंदोलन तक हिंदी में अहम भूमिका निभाई। हिंदी की इस महत्वपूर्ण भूमिका के चलते आजादी से पूर्व ही राजाराम मोहन राय जैसे महापुरुषों ने इसे राष्ट्रभाषा के रूप में प्रस्तावित किया था। उनके मतानुसार समस्त भारत को एकता के सूत्र में बाँधे रखने के लिए हिन्दी अनिवार्य है। कलकत्ता के कांग्रेस अधिवेशन में सुभाष चन्द्र बोस ने हिन्दी में पढ़ते हुए कहा था कि हिन्दी प्रचार का उद्देश्य किसी भी प्रान्त की भाषा को हानि पहुँचना नहीं है अपितु यह है कि आज जो काम अंग्रेजी में किया जाता है, वह आगे चलकर हिन्दी में किया जा सके।

महात्मा गांधी ने 1917 में भरूच में गुजरात शैक्षिक सम्मेलन में अपने अध्यक्षीय भाषण में राष्ट्रभाषा की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा था कि भारतीय भाषाओं में केवल हिंदी ही एक ऐसी भाषा है जिसे राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाया जा सकता है क्योंकि यह अधिकांश भारतीयों द्वारा बोली जाती है, यह समस्त भारत में आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक सम्पर्क माध्यम के रूप में प्रयोग के लिए सक्षम है तथा इसे सारे देश के लिए सीखना आवश्यक है।

देश की आजादी में हिंदी भाषी नारों ने भी प्राण ऊर्जा का प्रवाह किया।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा”

महात्मा गांधी के “अंग्रेजों भारत छोड़ो”

भगत सिंह के “इंकलाब जिंदाबाद” व

लाला लाजपत राय के-“मेरे सिर पर लाठी का एक-एक प्रहार, अंग्रेजी शासन के ताबूत की कील साबित होगा” आदि नारों ने जनता को एकजुट करने का प्रयास किया।

     वस्तुत: भाषा ही संस्कृति का मूल आधार है, किसी भी देश में भाषा एवं संस्कृति की भूमिका निर्विवादरूप से महत्वपूर्ण होती है। ऋग्वेद की ऋचा में राष्ट्र के नागरिकों की भावनात्मक एकता एवं सांस्कृतिक चेतना का मूल आधार भाषा को बताया गया है। भाषा में मानव को बाँधने की अपूर्व शक्ति है। संस्कृत साहित्य में भाषा की इस शक्ति के संबंध में कहा गया है कि शब्देष्वाश्रिता शक्ति: विश्वस्यास्य निबंधिनी अर्थात् शब्द शक्ति (भाषा) ही संपूर्ण विश्व को बाँधनेवाली है। विचार-विनिमय मानव एकता का सबल सूत्र है। भाषा का मूल आधार भाव सम्प्रेषण है। सम्प्रेषण से ही सभी सामाजिक कार्य-व्यापार निष्पादित किए जाते हैं। विचारों की एकता राष्ट्र के नागरिक की सबसे बड़ी एकता हाती है।

राष्ट्रीय आन्दोलन में विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और समाचार पत्रों ने भी हिंदी के माध्यम से एकता और स्वतंत्रता की अलख जगाई।आजादी से पूर्व हिंदी की इसी महत्ता को देखते हुए अनेक महापुरुषों व स्वतंत्रता सेनानियों ने राष्ट्रभाषा के रूप में जो कल्पना की थी उसने आजादी के बाद 14 सितम्बर सन् 1949 को साकार रूप लिया और हिन्दी को भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया। संविधान के अनुच्छेद 343 से 351 तक राजभाषा के सम्बन्ध में व्यवस्था की गयी। हालांकि देश आज भी भाषीय विविधता से भरा पड़ा है परंतु हिंदी भी विशाल जनमानस की आत्माभिव्यक्ति बनी हुई है।आजादी के बाद भी सरकारें इसे भारत के प्रत्येक मुख की भाषा बनाने को प्रयासरत रही है। 19 मार्च, 1960 को शिक्षा मन्त्रालय, भारत सरकार ने 'केन्द्रीय हिन्दी शिक्षण महाविद्यालय' की स्थापना की और उसके संचालन के लिए 'केन्द्रीय शिक्षण मण्डल' नाम से एक स्वायत्त संस्था का गठन किया। 1963 में केन्द्रीय हिन्दी शिक्षण महाविद्यालय का नाम बदलकर केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय किया गया।

1975 में नागपुर में 18 से 14 जनवरी तक प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन आयोजित किया गया।

       1977 में श्री अटल बिहारी वाजपेयी, तत्कालीन विदेश मन्त्री ने पहली बार संयुक्त राष्ट्र की आम सभा को हिन्दी में संबोधित किया। 17 जुलाई, 2019 सर्वोच्च न्यायालय ने अपने सभी निर्णयों का हिन्दी सहित अन्य पाँच भारतीय भाषाओं में अनुवाद प्रदान करना आरम्भ किया।

आदिकाल से आधुनिक काल तक हिंदी सम्पूर्ण भारत की एकता की पहचान बनी। यह केवल भाषा ही नहीं है अपितु हमारी सांस्कृतिक विरासत भी है। इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के अलावा इसकी व्याकरण और रचना भी अन्य भाषाओं से विस्तृत और समृद्ध है। इसकी रचना बहुत सूक्ष्म एवं स्पष्ट वर्णों से हुई है। छोटी एवं बड़ी मात्राएँ भावों को शुद्धतम रूप प्रदान करती है। इसका शब्दकोश भी अन्य भाषाओं के मुकाबले विस्तृत है। विश्व की अन्य प्रचलित भाषाओं की अपेक्षा हिंदी में भाव-अभिव्यक्ति स्पष्ट और तीव्र है।भाव-अभिव्यक्ति के समय मुख मुद्राएं भी अन्य की अपेक्षा मनभावन होती है। हिंदी की यही विशेषताएं इसे अन्य भाषाओं से अलग और विशेष बनाती है। यह एक ऐसी भाषा है जो आत्मा से आत्मा को जोड़ने की क्षमता रखती है।

आजादी के पूर्व से अब तक हिंदी ही है जो आम जन से साहित्यकारों तक सिरमौर बनी हुई है। वास्तव में राष्ट्र की एकताजुटता में हिंदी की महत्ती भूमिका रही है। हिंदी ही है जो जनमानस के दिलों पर राज करती है।

कहा जाता है इतिहास उसी का जिंदा रहता है जिसकी भाषा जीवित रहती है।

सरलता है सबलता है,

सहज संस्कार है हिंदी।

है माँ की गोद हिंदी और

पिता का प्यार है हिंदी।

आइए आज हम देश के कोने कोने में बोली जाने वाली विभिन्न भाषाओं का सम्मान करते हुए हिंदी को राजभाषा के रूप में आसीन कर एकता, अखण्डता और सम्प्रभुता बनाए रखने के लिए कृतसंकल्प हों। हिंदी को व्यवहार में अपना कर इसका इतना प्रचार प्रसार करें कि भारत में ही नहीं अपितु विश्व में भी इसकी एक नई पहचान बन सके।



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