सन्त का आगमन
सन्त का आगमन
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आजादी से पहले बसा व्यापार का केंद्र रहा एक शहर-सरदारशहर। अपने ऊपर अनुभव के अनेकों निशान लिए चल रहा था। कोरोना काल ने उसकी गति भी धीमी कर दी थी। उसके आंचल में बसने वाले लोग अपनी रोजमर्रा की अवश्यकता को जुटाते से चल रहे थे कि अचानक से उस शहर के गली कुंचों में रौनक पसरने लगी। चुने के ढेलो से बनी बंद पड़ी सेठो की बिसियों हवेलियाँ अचानक से खुल गई। पुरानी हवेलियों की उसी प्रकार रंगाई पुताई शुरु हो गई जिस प्रकार उस जमाने में हुआ करती थी जब आधुनिकता के आगाज का आभास भी नहीं था। सोचता हूँ उस जमाने में इन हवेलियों को भी अपने उपर कितना नाज होता होगा। कोई सेठ अपनी पूरी शान ओ शौकत से इनमें रहता होगा। धन धान्य के साथ साथ भंडार गृह भी अनाज से अटे पड़े रहे होंगे।पालतू पशुओं से लेकर गरीब जरूरतमंद, कामगारों तक न जाने कितने लोगों का आश्रय स्थल ये हवेलियाँ रही होंगी। कोई नवोढ़ा हवेली के किसी झरोखे से गलियों में आते जाते राहगीरों को ताकती होगी कि शायद कोई उसके पीहर से संदेशा ले आया हो या व्यापार को गये पतिदेव लौट कर आते हो।
उस जमाने में जीवन की धारा इन हवेली के आँगन से निकल कर गाँव की गली गुवाहड़ तक बहती होगी।
आज भी सेठ है और ये हवेलियाँ भी है। पर उस जमाने सी जिंदादिली नहीं है। सभी सेठों के व्यापार इन हेलियों से निकल कर पूरे भारत और विश्व में फैल गये है जबकि ये हेलियाँ अपने अनुभवों को सीने में दबाएं अपने आखिरी दिन गीन रही है। दिन ब दिन इन हेलियों को गिरा कर नई इमारतें बनाई जा रही है। ऐसे प्रतीत होता है कि आधुनिकता के नाम पर संस्कृतिक धरोहर को ध्वस्त किया जा रहा हो।
ऐसे समय में अचानक रंग रोगन होने से हेलियाँ भी आश्चर्यचकित हो रही है। हर गली में से रंग कली की खुशबू ऐसे आ रही है जैसे अक्सर दीपावली पे आती है। महिला के श्रृंगार की भांति हवेलियों का भी श्रृंगार हो रहा है। चुपचाप से उनकी मरम्मत और साज सज्जा के कार्य हो रहे है। ऐसे समय में शहर के प्रथम व्यक्ति ने भी शहर के सौंदर्यकरण का प्रण ले लिया हो। हर उस सड़क और नाली को सुधारा जा रहा है, नया बनाया जा रहा है जो मुख्यबाजार और शहर के मैन रास्तों को जोड़ती हो। नए होर्डिंग, नई फुटपाथ, सड़कों और मुख्यमार्गो पर संकेत चिह्न, रंग रोगन त्वरित गति से किया जा रहा है।
उत्साह का माहौल है। इसी उत्साह उत्साह में मीना के कुंए से लेकर गढ़ तक की 700 मीटर की दूरी में 7 स्पीड ब्रेकर लगा दिये गये है।शायद अतिउत्साह में कर्मचारी ये भूल गए होंगे कि यह रास्ता शहर के ट्रैफिक को अंदर लाने वाला मैन रास्ता है। हजार के आसपास साधन इस से रोज गुजरते है। 1000 साधनों के नाजायज ब्रेक से कितना ईंधन फिजूल खर्च होता होगा और कितना प्रदूषण बढ़ता होगा। इस बात का उन्हें ज़रा भी अहसास उन्हें होता तो वो ऐसे नहीं करते। खैर... इस अचानक आई रौनक़ से काम करने के लिए कामगारों की कमी सी हो गई। गांव से कामगारों को बुलाया जा रहा है। शहर की दुकानों पर भी चहल कदमी बढ़ रही है। लोग समान साधन की खरीद करते दिख रहे है। धीरे धीरे सेठ लोग परिवार सहित अपने पूर्वजों की इन हेलियों में नई पीढ़ी को लेकर पधार रहे है। शहर में अपरिचित चहरों की संख्या बढ़ रही है। उत्सव का माहौल हो रहा है। शहर को दुल्हन की भांति सजाया जा रहा है जो अपनी ही शान में झूमने लगा है।
गाँव गली और बाहर से आने वाले लोग हैरान हो रहे है कि अचानक शहर की गलियों में बहार कैसे आ रही है।ये शहर किसके स्वागत में अपने पूरे शबाब से आतुर हो रहा है? क्या उत्सव है?कौन है वो जिनके आगमन की सूचना से निष्प्राण पड़ी हवेलियों की जान में जान आ गयी। नकारात्मक हो रही जीवन धारा में अचानक सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह हो गया। लोगों के मुरझाये चहरे अचानक से गुलाब की भांति खिलने शुरू हो गए। निर्जीव सजीव सबमें प्राण वायु का संचार हो गया।
ऐसा तो सन्त के आगमन से ही सम्भव है। जी हाँ, सही समझा आपने; धरतीपुत्र महा ज्ञानी, संत शिरोमणि सरदार शहर के लाल आचार्य श्री महाश्रमण जी पधार रहे है। संत के स्वागत में तो सृष्टि भी लग जाती है फिर ये तो वो शहर जो सेवा और स्वागत में हमेशा हाजिर रहता है। सन्त का ऐसा स्वागत मैंने पहले कभी नहीं देखा। पूरे का पूरा शहर स्वागत की तैयारी में लगा है।हर कोई पलक पाँवड़े बिझाये उनकी एक झलक पाने को आतुर है।
सजीव प्राणियों से लेकर निर्जीव वस्तुएं सब के सब स्वागत की तैयारी में लगे है।