Vikrant Kumar

Inspirational

4.8  

Vikrant Kumar

Inspirational

यात्रा प्रकृति की

यात्रा प्रकृति की

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चुनावी ड्यूटी एक ओर जहाँ कर्मचारी को सतर्कता से कार्य करने के लिए भयभीत करती है वहीं दूसरी ओर हर बार अलग क्षेत्र की यात्रा कुछ नए अनुभवों और सुखद संस्मरण के साथ समाप्त होती है।

जिला परिषद व पंचायत समिति सदस्य के चुनाव में मेरी ड्यूटी तारानगर तहसील के अंतिम गाँव सोमसीसर में लगी। बस से सभी पार्टियों को गंतव्य की ओर रवाना किया गया। हमारी बस भी मधुर मधुर संगीत के साथ ऊंचे नीचे धोरों से गुजरती हुई सोमसीसर के रास्ते पर अग्रसर हो रही थी। सभी कर्मचारी चुनाव भली प्रकार से सम्पन्न करवाने की चर्चाओं में व्यस्त थे परन्तु मेरी दृष्टि प्रकृति के असीम सौंदर्य को निहार रही थी। तारानगर के अंतिम छोर पर जहाँ वो गांव स्थित था, उस क्षेत्र में प्रवेश करते ही चारों तरफ हरियाली ही हरियाली नजर आयी। ऊंचे नीचे धोरों पर खेतों में हल्की हल्की नवांकुरित फसलों की कतारें यूं प्रतीत हो रही थी जैसे अभी अभी किसी नन्हे बालक को नहलाकर माँ ने उसके केश सवारें हो।

किसान खेती के विभिन्न उपक्रम करते नजऱ आ रहे थे। खेतों में सिंचाई की आवश्यकता को पूरा करने के लिए जगह जगह पर जल भराव हेतु डिग्गियां बनी हुई थी। पूछने पर पता चला कि खेतों में यह रौनक इंद्रा गांधी बहुउद्देश्यीय योजना से निकली साहवा लिफ्ट नहर के कारण है। नहर के पानी से एक ओर जहाँ इस क्षेत्र को पेयजल मिल रहा है वहाँ दूसरी ओर मरूभूमि की प्यास को भी शांत कर खेती की जा रही है।चारों ओर का दृश्य बहुत ही आकर्षक और मनोहर था। शाम हो चली थी। सूरज भी लालिमा लिए गगन से ज़मीन की ओर विदा लेता नज़र आ रहा था। सिंदूरी शाम में दूर क्षितिज पर बालू रेत के धोरों के पीछे धरती आसमान भी मिलते हुए प्रतीत हो रहे थे।ऐसा लग रहा था जैसे कि धरती आसमान भी इस सिंदूरी शाम के मस्त प्राकृतिक नजारों से प्रफुल्लित हो आलिंगनबद्ध हो रहे हो। प्रकृति के अद्भुत नजारों के बीच ख़लल तब पड़ी जब आवाज आई कि गंतव्य स्थल पहुंच गए है।चुनाव का केंद्र राजकीय माध्यमिक विद्यालय भी मरुधरा में भव्य आकार लिए बाहें फैलाए हमारे स्वागत में आतुर नज़र आ रहा था।

 तहसील के अंतिम छोर पर स्थित होने के बावजूद विद्यालय का सौंदर्यीकरण व व्यवस्थाएं काबिले ए तारीफ थी। बाहरी दीवारों पर तिरंगे का रंग, एक अनुभाग से दूसरे अनुभाग को जोड़ते सुंदर ब्लॉक से बने रास्ते, पेयजल की साफ सुथरी टंकियाँ, चकाचक शौचालय, विद्यालय के ऑंगन में विशाल वृक्ष और पधारी हुई पोलिंग पार्टियों के लिए समुचित व्यवस्था। भले ही चुनावी टेंशन में किसी ने नोट ना की हो पर मेरा मन प्रकृति की गोद में विद्यालय की उचित व्यवथाओं को देख कर बाग बाग हो रहा था।सबसे ज्यादा आकर्षित मुझे विद्यालय प्रांगण में स्थित टांके ने किया, जो बरसाती जल को एकत्र करने के लिए बनाया गया था। टाँके की साफ सफाई और रखरखाव की शानदार व्यवस्था देख कर मन प्रसन्न तो था ही, पर इस बात का भी सुकून था कि जल सरंक्षण के पारंपरिक तरीके आज भी जीवित है और नहरी जल की सुविधा होने के बावजूद भी लोग इसे नहीं भूले है। 

सच ही है कि प्रकृति की स्वच्छता और सुंदरता का वास्तविक नज़ारा तो उसके नजदीक जा कर ही लिया जा सकता है।

हमें चूँकि लोकतंत्र के महोत्सव को भली प्रकार से सम्पन्न करवाना था, इसलिए शीघ्र ही हमारा दल पूर्व तैयारी में जुट गया। तैयारी पूर्ण कर कुछ समय के लिए विश्राम किया गया।अगले दिन अलसुबह ही समस्त औपचारिकताएं पूर्ण कर ईवीएम से मतदान शुरू करवाया गया।कोरोना महामारी के चलते विशेष सावधानियाँ भी रखी गयी। खैर... ड्यूटी तो अपने तरीके से पूर्ण भी हुई और वापिस घर भी लौट आये परन्तु उन मनभावन प्राकृतिक दृश्यों की आनन्ददायी अनुभूति प्रतिपल महसूस होती है।


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