बड़े पापा
बड़े पापा
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यूँ तो हर शब्द के उच्चारण मात्र से ही अर्थ समझ आ जाता है परंतु कुछ शब्द ऐसे होते है जो केवल अर्थ से नहीं भावनाओं से ओतप्रोत होते है।
आधुनिकता ने रिश्तों के पुराने नाम चाहे बदल दिये हो लेकिन उनमें छुपा स्नेह और लगाव आज भी ज्यों का त्यों विद्यमान है।
2015 में छोटे भाई के घर नन्ही परी के आगमन से एक नये रिश्ते का आगाज आधुनिक नाम के साथ हुआ। वो आधुनिक नाम है बड़े पापा।
बच्चे जब बोलना सीखते है तो शब्दों को
तुतलाकर बोलते है। शब्दों को अटक अटक कर बोलते है पर उस नन्ही परी अन्वी ने बिना अटके ही सब सीखा। हर शब्द का सही उच्चारण किया। उसके नए बनते शब्दकोश में मेरे लिए जो शब्द था, वो है- बड़े पापा।
मेरे लिए यह संकेत मात्र शब्द नहीं है। इस शब्द के साथ एक बेहद आत्मियता का सम्बन्ध जुड़ा है। एक बाल सुलभ मन और उसकी प्यारी बातें जुड़ी है। पवित्र आत्मा से लगाव जुड़ा है जिसने आँखें खोलते ही जता दिया कि सम्बन्ध भले ही नया है लेकिन पहचान पुरानी है।
चंचल और शुद्ध मन की नटखट बहुत कम उम्र में समझदार भी है। हर उस अपने से वैसा ही लगाव रखती है जैसे वो उससे रखते है। मोहक मुस्कान और कर्णप्रिय वाणी से सबको बरबस ही अपनी ओर खींच लेती है।
मुझे जब वो प्यार से बड़े पापा बुलाती है तो मन आत्मा झंकृत हो जाते है। जब भी कभी उससे मिलने जाऊँ, मेरी तो बस आवाज सुनते ही .....बड़े पापा आ गये, तुरन्त दौड़ कर आती है और गोदी चढ़ बैठती है। फिर अपनी ढेर सी बातें बताती है जैसे मेरे लिए इकट्ठी कर रखी हो कि कब आये और कब बताऊँ।
उसकी बातों से मेरा भी बचपन लौट आता है। फिर उसके साथ बच्चों की अठखेलियाँ और खेल परिचर्चा शुरू होती है। खूब मस्ती में समय चिड़िया की तरह फुर्र हो जाता है। उसके साथ 7 दिन भी 7 घण्टे की तरह बीत जाते है।
समय की अपनी रफ्तार होती है और इंसान की अपनी। जिम्मेदारी और कामकाज के तले इंसान भी मशीन हो गया है। समय इजाजत नहीं देता कि जीवन को हम अपने तरीके से जी पाएं।
खैर... उसकी और मेरी हर मुलाकात जल्द ही दुबारा मिलने के वादे से मुक़म्मल होती है।
उसकी मनभावन बातें अगली मुलाकात तक जहन में घूमती रहती है। वक्त बेवक्त जब भी उसकी बातें याद आती है तो मन में खुशी का स्पंदन और सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो जाता है। आखिर हो भी क्यूँ ना, बड़े पापा जो हूँ उसका।