किसान टॉर्च
किसान टॉर्च
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समय के साथ बदलाव प्रकृति का नियम है। कुछ बदलाव अत्यंत धीमे होते है जिन्हें वर्षों बाद महसूस किया जाता है जबकि कुछ बदलाव इतने जल्दी होते है कि पलक झपकते ही सब कुछ बदला बदला महसूस होता है।
खैर... समय बीत जाता है और यादें शेष रह जाती है।
विद्यार्थी जीवन में रात्रिकालीन अध्ययन का सर्वप्रिय साथी जिसके बिना रात्रि अध्ययन लगभग असंभव था, वो थी किसान टॉर्च।
उस समय जब प्रान्त में ऊर्जा उत्पादन के संसाधन सीमित थे और रात्रिकालीन सत्र में अधिकतर विद्युत आपूर्ति बाधित रहती थी। तब लगभग सभी घरों में आपातकालीन उजाले की जिम्मेदारी रिचार्जऐबल किसान टॉर्च के हाथ में थी।
विद्यार्थियों के अध्ययन की साक्षी होने के अलावा किसान टॉर्च गृहणी और किसानों की सच्ची संगिनी भी रही है। एक ओर जहाँ किसान टॉर्च की लाइट में गृहणी अपने सांयकालीन कार्यों को आसानी से निपटा लेती थी वही दूसरी ओर लंबी और तेज लाइट के कारण किसान रात्रिकालीन पारी में आवारा पशुओं से अपनी फसलों की रक्षा करने और सिंचाई जैसे कार्यों को आसानी से कर पाने में सक्षम हो पाते थे।
उस समय किसान टॉर्च परिवार का अहम सदस्य हुआ करती थी।
बच्चों को तो इतना चाव होता था कि रात्रि में बेसब्री से लाइट जाने का इंतज़ार करते। कब मौका मिले कि दूधिया रोशनी से आँगन को रोशन करें और अपनी खेल धमाल जारी करें।
एक छोटी सी वस्तु ही अनेकों खुशियों का ठिकाना हो गयी थी।
कभी बल्ब फयूज हो जाने या तार का टाँका उखड़ जाने पे मिस्त्री के चक्कर लगाना या चार्जिंग के दौरान बार बार संकेतक मनकों को निहारना दिनचर्या का हिस्सा हो गया था।
टॉर्च बस फुल चार्ज और टनाटन रहे, ये भी खुशी का एक पैमाना था। छोटी छोटी बातें भी खुशियाँ बाँटती थी।
बचपन में खुशियों की उस दुकान की जगह आज इन्वर्टर और मोबाइल की फ़्लैश लाइट ने ले ली।
बदलाव लाज़मी है और होता भी है परंतु जो आनंद उस ज़माने में किसान टॉर्च की दूधिया लाइट में थे वो आज के चकाचौन्ध उजाले में नहीं है।