जेनोटाइप प्रेम
जेनोटाइप प्रेम
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अनुवांशिकी में पादप का अध्ययन जब बाहय लक्ष्णों के आधार पर किया जाता है तो फेनोटाइप और जब अध्ययन आन्तरिक सरंचना के आधार पर किया जाता है तो जेनोटाइप कहलाता है।
आजकल प्रेम भी फेनोटाइप हो गया है। कपड़े, हेयर स्टाइल और सिक्स पैक या जीरो फिगर आदि बाह्य लक्षणों के आधार पर प्रेम उत्पन्न होता है और समय के साथ धीमे पड़ते स्टाइल, ढलते लुक, झुर्रीदार सिक्स पैक और जीरो से एक्स एल होते फिगर को देख कर प्रेम का फेनोमानिया भी उतर जाता है।
जब प्रेम का सम्बंध आंतरिक रूप से होता है तब वह जेनोटाइप कहलाता है।
वास्तव में तो प्रेम का क्षेत्र बहुत बड़ा है या यूँ कहे कि प्रेम की सही व्याख्या जेनोटाइप है।
जब फोन पर आपकी आवाज सुन कर माँ पूछे कि बेटा तबियत तो ठीक है? वो प्रेम है।
जब मित्र चेहरा देख कर आपसे पूछे-
ओये तू आज उदास क्यूँ है? तो वह प्रेम है।
जब जीवनसाथी बिना कहे आपके मन की बातों को जान ले। आपके हृदय की तरंगें जब बिना संवाद प्रेयसी की जुबान से व्यक्त हो, तो वो प्रेम है।
प्रेम जब दैहिक से परे आत्मिक रूप
से हो और अभिव्यक्ति का माध्यम सांकेतिक न होकर आलौकिक हो, तब वह प्रेम है।
प्रेम का सम्बंध केवल प्रेमी-प्रेमिका तक ही सीमित नहीं होता। यह व्यक्ति, स्थिति और समय के अनुसार अलग अलग रूप में व्यक्त होता है। देश के लिए प्राण न्यौछावर करने वाले सैनिक के मन में भी देशप्रेम का अथाह समुद्र लहरें लेता है। डॉक्टर, वकील, शिक्षक और गृहिणी के मन में कार्य के लिए समर्पण भी प्रेम का रूप है। गर्भवती माता बिना चेहरा देखे, तब से ही अपने शिशु से प्रेम करना शुरू कर देती है,जब वह गर्भ में होता है।इसीलिए प्रेम अंधा होता है। यह जेनोटाइप वाला प्रेम कभी एक्सपायर नहीं होता। यह तो समय के साथ ओर प्रगाढ़ होता जाता है।
जेनोटाइप प्रेम को व्यक्त करने के लिए कोई विशेष दिन की जरूरत नहीं होती। यह तो शांत, शाश्वत और अमर है। शायद इसिलए भारतीय परंपरा में इसके लिए कोई दिन निर्धारित नहीं है।
पाश्चात्य संस्कृति का अंध अनुसरण भी अनुचित है। प्रेम भारत की संस्कृति का मूल है। इसी के आधार पर "वसुधेव कुटुम्बकम" की कल्पना साकार होती है।
आज जरूरत है कि फेनोटाइप वाले प्रेम के पीछे दौड़ने की बजाय विरासत में मिले जेनोटाइप प्रेम को समझा और अपनाया जाए।