अख़लाक़ अहमद ज़ई

Classics

4.5  

अख़लाक़ अहमद ज़ई

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इब्लीस की प्रार्थना सभा

इब्लीस की प्रार्थना सभा

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शैतानों में बेरोजगारी बढ़ रही है। यह समस्या दुनियां की समस्याओं में से सबसे ऊपरी दर्जे की समस्या है। हजरत आदम-हौवा के जमाने से खुदा के समानान्तर इब्लीस इंसानों पर राज करने की कोशिशें करता आ रहा है लेकिन इतनी विकट और विषम परिस्थितियों का सामना कभी नहीं करना पड़ा था। उसे तो इसी बात का गुमान था कि जब दुनियां में पैगम्बरी के लिए ‘द एण्ड’ का बोर्ड लटकाया जाएगा तो ही सही मायने में उसका एक छत्र राज होगा। लेकिन उसके सोच का पासा ही उलट गया। नतीजतन, कुछ समय से इब्लीस की तबीयत नासाज रहने लगी थी। लेकिन ‘ज्यों-ज्यों दवा की मर्ज बढ़ता गया’ इब्लीस पर मरहूम जनाब मीर तकी मीर चचा का शे’र ही घूम-फिर कर चस्पां हो जाता था। आखिरकार उसने अपने वजीर से सलाह-मश्विरा करके दुनियां के गोशे-गोशे में अपने आम-ओ-खास मुरीदों के लिए मुनादी करवा दी कि इमरजेंसी मीटिंग में, शैतानों में बेरोजगारी बढ़ने के कारणों तथा उससे निपटने के उपायों पर चर्चा होगी और जो भी कारगर हल सुझाएगा उसे शहनशाहे इब्लीस का खासुलखास सलाहकार मुकर्रर किया जायेगा।

तुरन-फुरन इजलास मुनक्कद हो गयी। इजलास के सदर की हैसियत से इब्लीस खड़ा हुआ। कुर्ते का दामन उसने पहले अगाड़ी से फिर पिछाड़ी से झाड़कर उस पर पड़ी सिलवटों को मिटाया। खंखार कर गला साफ करने की जुगत की। उसने अगल-बगल देखा-शायद उसे पीकदान की हाज़त महसूस हो रही थी। उसके भक्त तन्मयता से उसी को तके जा रहे थे। बेशुमार भीड़ के सामने थूकना उसे ग़लाजत महसूस हुई। मुंह दबाया और भरे हुए बलगम को निगलकर मुंह खाली किया।

‘‘मेरे हुक्मबरदार, खैरख्वाह, जांनिसार मुरीदों। जैसा कि इत्तेला की गयी थी कि हम अपनी बिरादरी में बढ़ती बेरोज्गारी से बेहद ग़मजदा हैं। ग़मजदा क्या,अपनी कौम के नाकारेपन को देख, हवा पतली हो गयी है। मुझे तो लगता है कि लुप्त हुए जानवरों की तरह मेरी नस्लें भी लुप्त हो जाएंगी और खोजकर्ता दस हजार करोड़ साल पहले लुप्त हुए नस्ल का कयास लगाएँगे। हालांकि यह मुझे आज तक समझ में नहीं आया कि ये दानिश्वर, करोड़-लाख-हजार साल का हिसाब-किताब किस उंगली पे लगाते हैं।

बहरहाल, मैं जब अपना गुजरा वक्त याद करता हूं तो सोचता हूँ कि क्या मैं ही वह इब्लीस हूँ जिसने खुदा से बग़ावत करने और सामानान्तर दुनियाँ को संचालित करने का दावा करने की जुर्रत की। क्या मैं ही वह इब्लीस हूँ जिसके इशारे पर कायनात का दूसरा गुनाह हज़रत हौवा के जरिए करवाया ताकि इंसानों को संदेश जाए कि औरत ही वह बदज़ात है जिसने खुदा की नाफरमानी का झंडा बुलन्द करने की नींव डाली। दुनिया का पहला कत्ल हज़रत आदम की औलाद हाबील का काबील के हाथों करवाया, वह भी एक औरत के लिए। हालांकि खुदा ने औरतों को पैगम्बरों से ज्यादा बुलंदी बख्शी। औरतों को पैगम्बरों का जन्मदात्री बनाकर माँ के रूतबे से नवाज दिया। एक बार तो मुझे लगा था कि मैं हार गया लेकिन जब मर्दों के दिमाग में यह बात डालने में सफल हो गया कि औरत का माँ बनना उसके नुत्फे के बगैर मुमकिन ही नहीं है तो बड़ी खुशी मिली। कमअक्ल इंसानों को यह जताया कि जिस तरह पानी के बगैर ज़मीन बंजर हो जाती है उसी तरह मर्द के बगैर औरत भी बंजर जमीन से ज्यादा कुछ नहीं। पैगम्बर आद की कौम के मर्दों को खूबसूरत मर्दो का शैदायी बनाकर यह साबित भी कर दिया कि मर्द सिर्फ औरतों के भरोसे ही अपनी गाड़ी खींचने के लिए मजबूर नहीं हैं। इन कौमों में मैंने इतनी बुराईयाँ फैला दी कि अच्छाईयों का नामो-निशान मिट गया।

‘‘खुदा को लगा- दुनियाँ से इंसानियत खत्म करने में इब्लीस कामयाब हो जाएगा तो ऐन वक्त पर हजरत नूह की कौम की तरह आद और समूत की कौमों को भी नेस्तनाबूद कर दिया। आद की कौम पर सात रात आठ दिनों तक तूफानी हवाएँ चलायी गयीं। उसमें हमारे भी काफी लोग हलाक़ हुए। मुझे लगा था कि मेरे भक्तों की शहादत ज़ाया न जाएगी। इसी बीच एक और दुर्घटना हो गयी। हजरत मरयम को मर्द के संपर्क के बगैर हज़रत ईसा अ. की माँ का दर्जा दे दिया गया। खुदा ने दुनियाँ को जता दिया कि यदि किसी को बाप का दर्जा दे सकता हूँ तो उसे छीन भी सकता हूँ। ऐ इंसानों, यह मत भूलो कि अगर पत्थरों में फूल खिला सकता हूँ तो मर्दो के बगैर भी औरत को माँ का मर्तबा दे सकता हूँ।

‘‘वैसे इंसानों में तमाम मेरे मोअत्बर चेले हुए हैं। मिसाल के तौर पर हजरत इब्राहीम के वक्त नमरूद, हजरत मूसा के वक्त कारून, फिरऔन, हजरत हुसैन के वक्त यज़ीद, हज़रत प्रहलाद के समय में हिरण्यकशिपु, हजरत राम के समय में रावण। लेकिन इन सब में मेरा सबसे अजीज चेला यज़ीद रहा है जिसने इस्लाम की लोकतांत्रिक व्यवस्था में सेंध लगाकर निंरकुश शासन को इस्लामी जामा पहना दिया। जिसका नतीजा यह हुआ कि आज दुनियां के सत्तावन मुस्लिम देशों में 99 प्रतिशत देशों से बुनियादी धर्म यानी लोकतंत्र गायब है। बाकी तो बादशाहत झाड़ने और अपने को खुदा साबित करने में ही फंसे रहते थे।

‘‘दरअसल, नबियों के जमाने में ही खेल का असली मज़ा था जब अच्छाई-बुराई आमने-सामने होती थी। मजहबी, तालीम-ए-याफता, खुदापरस्त किस्म के इंसानों को बरगलाने, बहकाने में जो मजा आता था वह आज के जमाने में कहाँ! उन नौधे धार्मिक इंसानों की लायकियत, ईमानदारी, बंदानवाजी के हम भी कायल हो जाया करते थे। कभी-कभी तो मेरा भी ईमान डगमगा जाता था कि नाहक खुदा की हुक्मउदूली की। अब माफी मांग ही लूं। खुदा ने मुझे वह रूतबा इनायत किया था जो आज तक किसी को मयस्सर नहीं हुआ। कभी मौअल्लिमे-मलाकूत (फरिश्तों का शिक्षक) हुआ करता था। चाँद के झूले पर बैठ, फरिश्तों को सबक देते हुए जाना और लौटते झूले की पेंग पर सबक सुनते हुए लौटना। फरिश्तों का उस्ताद-उस्ताद की रट लगाना... उफ, क्या आलम था। क्या मंज़र हुृआ करता था।... फिर मुझसे बड़ा खुदापरस्त कौन था? कायनात की कोई ऐसी जगह नहीं हैं जहाँ मैंने खुदा को सज़दा न किया हो।’’

इब्लीस हसीन ख्यालों की दुनियाँ से चौंककर बाहर आया-

‘‘उस जमाने के ईमानफरोशों की ‘ला हौला वला कूवता...’ सुनकर, हम भागते जरूर थे पर हिम्मत की सरकशी बढ़ जाती थी और दुगने जोश, नये-नये तरकीबों के साथ उनसे टक्कर लेने को उतावले रहते थे। अब तो ‘ला हौला वला कूवता’ (और ताकत व कूवत अल्लाह के लिए) पढ़ने वाले ढूँढने से नहीं मिलते। वैसा ही जैसे फिरऔन के जमाने में नहीं मिलते थे और मैं अपनी सलाहियत के बलबूते उसका पैगम्बर बन बैठा था। मुझे आज भी याद है- उसके राज्य में बारिश नहीं हो रही थी। मैंने... मैंने बारिश कराने की जिम्मेदारी ली।अपने सभी शागिर्दों को ड्यूटी पर तैनात कर दिया। रात भर जमकर बारिश हुई।सुबह फिरऔन कहने लगा कि इस बारिश में बदबू है। अब उसके जैसा खुदा और मेरे जैसा पैगम्बर होएगा तो बारिश से बदबू ही आएगी। उसको खुश्बू वाली बारिश चाहिए थी तो पहले बताना चाहिए था। मैं अपने शार्गिदों को इत्र पीकर मूतने के लिए कहता। इन्हीं खूबियों की वजह से बेचारा आज भी वह मेरे इन्तजार में अपने लाव-लश्कर के साथ पिरामिड में पड़ा सूख रहा है।

‘‘मेरे शार्गिदों, सातवीं सदी के उत्तर्राद्ध से उन्नीसवीं शताब्दी तक मेरे लिए वैसा ही रहा जैसे दाल-भात के साथ पुदीने की चटनी। वह दौर खोजों, छोटे-छोटे आविष्कारों और इंसानी जीत-हार का दौर रहा। इस बीच इंसानियत जिंदा थी। दरअसल इसी इंसानियत ने आगे के लिए भूमिका तैयार की तब मैं फिर एक बार हैवानियत का अलमबरदार बना। 1914 में प्रथम विश्व युद्ध के बाद तो मेरे परम चेलों की बाढ़ आ गयी। एडॉल्फ हिटलर जिसने मुझे ऊँचाईयों पर पहुँचाया। स्तालिन, मुसोलनी, लेनिन, माओत्सुंग, सुहार्तो, पोलपोट, ईदी अमीन मेरे प्रिय शिष्य थे जिनके कारण यूरोपीय-एशियायी देश धर्म और जातिवाद में घिरे आज भी छटपटा रहे हैं।

मेरा मकसद इंसानों से वह सारे काम करवाने हैं जिससे धर्म, ईमान उन्हें रोकता है। मेरा मकसद हिरोशिमा, नागासाकी, वियतनाम, बोस्निया, चेचन्या, युगाण्डा, हिन्दुस्तान-पाकिस्तान और पाकिस्तान-बांग्लादेश विभाजन की त्रासदी की स्थिति ही नहीं पैदा करनी है बल्कि मद्धम-मद्धम सुलगने वाली समस्याएँ पैदा करके अपने कारोबार को स्थाई बनाए रखना है। जैसे-2 नवम्बर 1917 को ब्रिटेन द्वारा बेल्फोर घोषणा के तहत यहूदियों को अवैध रूप से आश्वासन दिया गया कि ब्रिटेन यहूदी कौम को फिलिस्तान में राष्ट्रीय आवास भूखण्ड स्थापित करने के लिए हर संभव प्रयास करेगा। और यही मेरे लिए प्लस प्वाइंट बन गया। जिसका नतीजा फिलिस्तीन-इजराइल में आज भी देखा जा सकता है। जैसे-भारत का साम्प्रदायिक संघर्ष। जैसे-जर्मन पर फ्रांस और ब्रिटेन द्वारा प्रथम विश्व युद्ध के बाद थोपा गया संधि जो दूसरा विश्व युद्ध का कारण बना।’’

इब्लीस ने देखा-भीड़ में एक हाथ ऊपर की जानिब नमूदार हुआ। उसने सोचा-शायद बगल में खुजली करने के लिए उठा होगा। ऐसी खुजलियाँ वक्तन-फवक्तन ऐसे मौकों पर उभर ही आती हैं। उसने उस उठे हाथ को नजरअंदाज करना चाहा लेकिन जब हाथ आसमान की जानिब उठा ही रहा तो उसे गुस्सा आ गया। गरजा-

‘‘कौन है नामाकूल, अहमक? क्या इसको इतना भी नहीं पता कि जब इब्लीस कुछ कह रहा हो, कर रहा हो तो शैतानों की क्या इंसानों तक की कहने-सुनने की ताकत खत्म हो जाती है? इंसानों की तरह बेसब्रा कौन है जो मेरी बिरादरी में आ गया? उसे सामने लाओ।’’

शाही सिपाहियों ने फौरन उसे पकड़कर इब्लीस के सामने हाजिर किया। उसने बड़े ही नम्र भाव से झुककर सलाम किया और अदब के साथ बोला-

‘‘जान की सलामती चाहता हूँ हुजूरे आला, मगर हम जिस मकसद के लिए यहाँ इक्ट्ठा हुए हैं उसे बिना वक्त गँवाए जितनी जल्दी हो सके, हमें हल कर लेनी चाहिए क्योंकि खुदा के पैगम्बरों ने जो कयामत की निशानियाँ बतायी थीं वह लगभग सभी दुनियां पर अयां हो चुकी हैं। कयामत कभी भी आ सकती है। हमें चाहिए कि बिना वक्त गँवाए एक ही वक्त में कई-कई कारगुज़ारियों को अंजाम दे दें ताकि हश्र (फैसले का दिन) में कह सकें कि ऐ खुदा देख, तेरे बंदे सिर्फ ख्वाहिशों के गुलाम निकले जिन्हें तेरी हिदायतें तो क्या तू भी याद नहीं रहा।’’

‘‘खूब!’’ इब्लीस गद्गद् हो उठा- ‘‘बहुत खूब! देखो शैतानों, इससे इबरत हासिल करो! यही... बिल्कुल यही ज़ज्बा मैं सभी शैतानों में देखना चाहता हूँ।’’

सुकून की सांस लेने के बाद इब्लीस ने मुँह खोला-

‘‘हाँ, तो दरअसल, आज इंसानी फितरत यह हो गयी है कि वह हम शैतानों से दो नहीं, चार कदम आगे चल रहा है। हम जो सोचते है, इंसान पहले ही कर गुजरता है। नतीजतन हमारे रोजगार की गुंजाईश ही खत्म हो गयी है। अमेरिका संयुक्त राष्ट्र संघ को जेब में रखकर खुले आम घूम रहा है और पूरी दुनियां पर रौब गालिब किए हुए है। अच्छा है, बहुत अच्छा है लेकिन इसी उतावलेपन की वजह से हमारी कौम नाकारेपन की शिकार होती जा रही है। अमेरिका इराक को ईरान पर इस्तेमाल करने के लिए पहले रासायनिक हथियार मुहैया कराता है और फिर उसी रासायनिक हथियार को ढूँढने के बहाने इराक पर खुद हमला कर देता है। लादेन को पहले रूस के खिलाफ प्रशिक्षित करता है लेकिन जब उसने पलटवार करके अमेरिका को ही हबोट लिया तो एंटीरेबीज़ का इंजेक्शन लगवाने के बजाए अफगानिस्तान पर हमला कर देता है। लेकिन न तो लादेन हाथ लगा और न ही रासायनिक हथियार।’’

‘‘मैंने अमेरिका को कई बार समझाया कि इतने उतावलेपन का काम मत किया करो वरना कहीं नेमतउल्ला शाह वली ‘नुश्रत’ या नेस्त्र डेमस की पेशनगोई (भविष्यवाणी) सच हो गयी तो सिर्फ कागज के एक छोटे से एरिए में चिपक कर रह जाओगे। मैंने अपना एक किस्सा कई-कई बार हैरी एस.ट्रमन (हिरोशिमा काण्ड का रचयिता) रिचर्ड एम.निक्सन (वियतनाम में अमेरिका कार्यवाही का सूत्रधार), प्रथम तथा द्वितीय जार्ज बुश को सुनाया कि जब ब्रिटिश का सूरज डूबता नहीं था, उस वक्त मैं हिन्दुस्तान की एक मस्जिद में इमाम के पास पहुँचा और उनको बताया कि लोग मुझे नाहक बदनाम करते हैं। आज से मैं आपके साथ ही रहूँगा, इसी मस्जिद में। फिर आप खुद फैसला करें कि किसकी कितनी गलती है। उन्होंने साथ में रखने से मुझे साफ मना कर दिया। मैंने काफी मिन्नतें की फिर वह जाकर माने। मैं उनके साथ-साथ रहने लगा। एक दिन वह बाजार जाने लगे। मैंने भी साथ चलने की जिद की। इमाम साहब न-नुकुर के बाद मेरे तर्क के सामने मजबूर हो गए। बाजार में इमाम साहब एक तम्बाकू की दुकान पर रूके। उन्हें हुक्के का तम्बाकू लेना था। सामने बड़े से बरतन में शीरा रखा हुआ था। हालांकि मुझे मालूम था फिर भी मैंने शीरे में उंगली लगाकर इमाम साहब से पूछा- ‘यह क्या है?’ इमाम साहब ने बताया- ‘यह शीरा है। तम्बाकू में मिलाया जाता है।’ मैंनें कहा- ‘अच्छा’ और उंगली दीवार पर पोंछ दिया।

‘‘शीरे की मिठास से उस पर मक्खियाँ बैठने लगीं। मक्खी को पकड़ने मकड़ी आ गयी। उन दोनों को देख, अपना शिकार बनाने छिपकली आ गयी। छिपकली देख, दुकान में पली बिल्ली घात लगाकर बैठ गयी। थोड़ी देर बाद उधर से एक अंग्रेज बाबू अपने कुत्ते के साथ निकले। कुत्ते ने बिल्ली को देखा। बस कुत्ते ने न देखा आव न देखा ताव। लार्ड साहिबी में चूर सीधा बिल्ली पर छलांग लगा गया। बिल्ली तो सड़ाक से दुकान में घुस गयी पर चौतरे पर सजाकर रखा गया तम्बाकू का सारा टीम-टामड़ा उलट गया। दुकानदार को गुस्सा आया और उसने सोंटा उठाकर लार्ड साहब के कुते को जड़ दिया। इंग्लिश मैन के कुत्ते को ब्लडी इण्डियन ने मारा! लार्ड साहब ने भी कंधे से बंदूक उतारी और धांय से चला दिया दुकानदार पर। दुकानदार वहीं टें हो गया। शहर में बात फैलते देर नहीं लगी। लोगों को बेकाबू होते देख, प्रशासन ने शहर में कर्फ्यू लगा दिया। इमाम साहब किसी तरह जान बचा कर हाँफते-ढाफते मस्ज़िद पहुँचे। मैंने तो उन्हें साफ लफ्जों में बता दिया कि अब आप खुद ही देख लीजिए। इसमें मेरी कहीं कोई गलती नहीं है। उन्होंने भी माना कि हाँ भाई, वाकई तुमने तो कुछ भी नहीं किया सिर्फ शीरा लगा उंगली दीवार पर पोंछी थी।

‘‘तो मैंने इन अमेरिका के राष्ट्रपतियों को कई बार समझाया कि उंगली पर शीरा लगाकर दीवार पर पोंछने जैसा काम करो या ब्रिटेन जैसी हरकतें करो। सफल रहोगे। भारत में हिन्दू-मुस्लिम के बीच नफरत का जो बीज ब्रिटिश ने बोया था, भारतवासी आज तक उसकी फसल काट रहे हैं। फिलिस्तीन को देखो। जर्मन के साथ किए गए संधि का नतीजा देखो। इराक में तुम्हारे साथ किए गए सहयोग को देखो। उसने अपनी जमीनी लड़ाई के तजुर्बे से तुम्हें जीत तो दिला दी। रक्षा विशेषज्ञों ने इस बात को माना भी लेकिन छीछालेदेरी हुई सिर्फ तुम्हारी। वह मदद देने के नाम पर साफ-साफ निकल गया। हवा निकली तुम्हारी, आर्थिक ढांचा चरमराया तुम्हारा।

‘‘पाकिस्तानियों जैसी हरकतें करो। वह पहले आतंकवादी संगठनोें को प्रोत्साहित कर हिन्दुस्तान में विध्वंसक काम करवाता है और बाद में आतंकवादियों द्वारा संपादित कार्यों को दिखा-दिखाकर अपने यहाँ हिन्दुस्तान के खिलाफ प्रचारित-प्रसारित करता है। मैंने अमेरिका को समझाया कि खुदा बनने की कोशिशें बंद कर।

अगर किसी मख्लूक(जीव)के खुदा बनने का चांस होता तो मैं कब का बाज़ी मार चुका होता और तुम लोगों का खुदा बन कर ऐश कर रहा होता। मैंने समझाया कि तेरा मुक्तमंडी का धंधा बढ़िया है। उसी को चमका। उसका सबसे बड़ा सौदागर बन फिर देख। यह बारूद में हाथ काला क्यों करता है? तेरी गोरी चमड़ी पे यह धंधा छजता नहीं है। वैसे हर चीज़ की पहल तू कर तो देता है पर बाज़ी मार ले जाता है कोई दूसरा और तू उड़कचुल्लू की तरह देखता रह जाता है। अपने मुक्तमंडी के मुआमले में ही ब्राजील को देख, इबीज़ा को देख, पेरू को देख। तुझसे ही मुक्तमंडी के गुर सीखे और आज तेरे ही गुरू बन बैठे। हिन्दुस्तान को देख। किस तेज़ी से मुक्तमंडी की दौड़ में फर्राहटें भर रहा है। सब मुंह फैलाए सिर्फ देख रहे हैं- वह गया कि वह गया।

‘‘साम्प्रदायिकता के मामले में हिन्दुस्तान की अपनी एक अलग पहचान है। मैंने सोचा था- शहाबुद्दीन, बुखारी, आडवाणी, जोशी, सिंघल मेरा नाम रोशन करेंगे पर इनसे कुछ खास तो हुआ नहीं अलबत्ता मोदी और तोगड़िया जैसे धतूरे के पेड़ कब किधर से निकल आए, पता ही नहीं चला। ये मेरे बताए रास्तों पर तो चलते नहीं, अलबत्ता मेरी सोच से चार कदम आगे मिलते हैं।

‘‘शहाबुद्दीन बाबरी मस्जिद टूटते ही जैसे पस्त हो गया। मरियल बैल की तरह बैठ गया तो आज तक बैठा ही है। बुखारी के लिए तो शुरू से पता था कि वह सिर्फ वोटों का व्यापारी है। उससे कोई उम्मीद रखना ही बेवकूफी है।’’

‘‘हुजूर यहाँ की...’’ एक चेले ने इब्लीस को बीच में टोका।’’

‘‘खामोश! बदबख्त, बदअक्ल, अहमक, नालायक, नामाकूल...।’’

इब्लीस दांत पीसते हुए गुर्राया- ‘‘हम यहाँ अपनों की तारीफ करने के लिए इकट्ठे नहीं हुए हैं। वैसे भी जिसकी तू बात करने जा रहा है, उन लोगों को तोड़-फोड़ करने के अलावा आता ही क्या है? उन लोगों पर मैंने कितना अपना कीमती वक्त जाया किया। सिर्फ उनमें एक ही अच्छाई है कि वह अपनी बुराई नहीं सुन सकते।

इब्लीस थोड़ा रूका फिर बोलना शुरू किया- 

‘‘हमें कोई कारगर उपाय खोजना है ताकि हमारी, मतलब हमारी बेरोजगारी दूर हो सके।’’

बेशुमार भीड़ के बावजूद ‘पिन ड्राप’ खामोशी छा गयी। सभी शैतानों की नजरें जमीन को कुरेदने लगीं पर किसी के हत्थे कीमती उपाय नहीं लगा।

इब्लीस इस खामोशी से बुरी तरह मायूस हो गया उसने सभा को मुंतकिल करने की सोच ली, बोला- ‘अच्छा...।’’ फिर वह अपने ही शब्द पर चौंका- ‘अच्छा’ से याद आया- हमें लगता है कि अब हमारी समस्या बुरे लोगों से हल नहीं होने वाली। इन लोगों ने हमारे धंधे पर कब्जा कर हम लोगों की वाट लगा डाली है। हमें पूरी तरह बेकार, अपाहिज, बेरोजगार कर दिया है। हमें जरूरत है कुछ अच्छे, नेक इंसानों की। जिनकी दुनियाँ में आजकल बड़ी शार्टेज चल रही है। हम जानते हैं कि अच्छे लोग बनाना हमारे बस में नहीं है। तो क्यों न आज हम सब मिलकर इंसानों के लिए खुदा से दुआ मांगने की शुरूआत करें।’’ स्वर में हताशा थी।

सभा में खुशी की लहर दौड़ गयी और इब्लीस की समस्या के हल के लिए बुलाई गयी इमरजेन्सी मीटिंग अचानक प्रार्थना-सभा में तब्दील हो गयी। इब्लीस और इब्लीस के चेलों ने खुदा वन्दे कुद्दूस की बारगाह में दुआ के लिए एक साथ हाथ बुलन्द किया। इब्लीस ने आजिजी के साथ अर्ज किया-

‘‘अये तबारक-ओ-ताला, इंसानों की कम-अज-कम एक खेप तो दुनियां में भेज ताकि मेरा भी कारोबार चले।’’

सभी ने एक साथ हांक लगायी।

‘‘आमीन!’’

और शैतानों में बेरोजगारी की समस्या से निपटने के लिए दुनियां में इंसानों की पैदावार बढ़ाने की दुआ मांगने का प्रस्ताव एकमत से पारित हो गया।

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