आखिरी आसरा
आखिरी आसरा
कई दिनों से उसे सांस लेने में परेशानी हो रही थी। वैसे भी उसका पहले से ही थायराइड का इलाज चल रहा था। डॉक्टर ने ऑपरेशन की बात कही थी पर वह पति के लिए पैसे का इंतज़ाम अभी तक नहीं कर पायी थी।
अचानक एक दिन उसके पति के सांस की तकलीफ़ बढ़ गयी। वह पति को लेकर अस्पताल भागी। उसने कई शहरों के कई सरकारी अस्पतालों के चक्कर लगाये पर कहीं भी जगह नहीं मिली। सांस की तकलीफ़ मतलब कोरोना! वह और भी घबरा गयी। दूसरे, अस्पतालों का भर्ती करने से इंकार करना। शक और भी पुख़्ता हो गया।
उसने प्राइवेट अस्पतालों का रुख़ किया। एक अस्पताल ने एक लाख रुपये डिपॉजिट लेकर एडमिट कर लिया। साथ ही पच्चीस हज़ार की दवा की पर्ची हाथ में थमा दी। सिटी स्केन और दीगर टेस्ट करावाया सो अलग। मार्केट में न मिल पाने के कारण छह रेमडेसिविर इंजेक्शन के लिए दो लाख रुपये की डिमांड अलग से।
सारी चीजें इकट्ठा करने के बाद कोरोना टेस्ट का सैम्पल पैथोलॉजिस्ट लेकर गया। दूसरे दिन उसने रिपोर्ट लाकर ससम्मान हाॅस्पिटल को सौप दी। कोरोना रिपोर्ट निगेटिव था। ऐसा कैसे हो सकता है। डॉक्टर ने दोबारा उसकी आयी हुई रिपोर्टस् का अध्ययन करने की ठानी लेकिन तब तक उसका आखिरी आसरा घर गिरवी रखा जा चुका था।