खामोशी
खामोशी
दुनिया में मजदूरों और काश्तकारों की हैसियत एक मैले-कुचैले कपड़े में लिपटे और बदबूदार शरीर के साथ धनाढ़य वर्ग की मेहरबानी पर पलने वाले जीव से ज़्यादा कुछ नहीं है।
रॉयल फर्नीचर के कारीगरों की हैसियत भी वैसा ही है जैसा बाकी दुनिया के हिस्सों में पाया जाता है। ज़्यादातर ग्राहक कारखानों के कारीगरों से प्रोडक्ट के बारे में बात करना ज़्यादा बेहतर समझते हैं, बनिस्बत सीधा मालिक या मैनेजर से बात करके आर्डर बुक करने में। इस कारखाने में भी गाहे-बगाहे समझदार ग्राहक कारीगरों से सवाल कर बैठते हैं, आर्डर बुक करने के बाद भी। जैसे कि - किस सामान का इस्तेमाल किया गया या कितनी मात्रा में इस्तेमाल हुआ।
यह बात कारखाने के मालिक को नागवार गुज़र रहा था कि ग्राहक मालिक के बजाय कारीगर को महत्व दे रहे हैं। एक दिन उसने कारखाने के सारे कारीगरों को इकट्ठा किया और इस बात की हिदायत दी कि – " तुम लोगों को सिर्फ़ काम करने का अधिकार है, बोलने का अधिकार नहीं है इसलिए तुम लोग अपना मुंह अब बन्द रखना।" मतलब सब कुछ अपनी शर्त पर बेच डालने का दंभ।
लेकिन उपभोक्ता पूंजीपतियों की खींची हुई लकीरों पर चलने के लिए बाध्य नहीं होता। जिसका नतीजा यह हुआ कि जब भी कोई ग्राहक कारीगरों से सवाल करता तो उनका सीधा-सा जवाब होता– 'मुझे बोलने का अधिकार नहीं है। आप मालिक या मैनेजर से बात करें।' ऐसे में उपभोक्ता का दिमाग तेज़ी से चलता और उसे समझने में देर न लगती कि यहाँ कोई बड़ा गड़बड़ घोटाला हो रहा है। धीरे-धीरे कारखाने की अर्थव्यवस्था डामाडोल होने लगी।
कारखाने का मालिक परेशान है कि अचानक ऐसा कैसे हो गया। लेकिन यह बात अभी तक किसी की समझ में नहीं आया कि मजदूरों की मेहनत ही नहीं, ख़ामोशी भी कहीं की भी अर्थव्यवस्था को हिला सकती है। देश की भी।