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अख़लाक़ अहमद ज़ई

Abstract

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अख़लाक़ अहमद ज़ई

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फिर काहे के डॉक्टर ?

फिर काहे के डॉक्टर ?

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"डॉक्टर साहब, पन्द्रह दिनों से इलाज करा रहा हूं पर तबियत में कुछ खास फर्क नहीं पड़ा है।" 

 डॉक्टर ने पैथोलॉजी प्रोफार्मा निकाला और उस पर टिक करने लगा। 

"मैं कुछ रिपोर्ट्स लिख देता हूं। उसे सुबह खाली पेट चेकअप कराकर रिपोर्ट ले आना फिर उसी के मुताबिक ट्रीटमेंट चालू करते हैं। फिलहाल दवा लेते रहो। दवा बन्द मत करना।"

" डॉक्टर साहब, जब कुछ आराम ही नहीं है तो दवा खाने का क्या फायदा? ये रिपोर्ट आप पहले ही निकलवा लेते तो जल्दी फायदा भी हो जाता और मेरा इतना पैसा भी बर्बाद नहीं होता।"

डॉक्टर हंसा। 

 " लोग पहले जान की फिक्र करते हैं, तुम पैसे की फिक्र करते हो।" 

मरीज़ केबिन से बाहर आ गया और बड़बड़ाने लगा–

 "हमारे ज़माने में डॉक्टर नब्ज़ देखकर मरीज़ के कुछ बोलने से पहले ही बता देते थे कि तुम्हें ये-ये परेशानी है और तुम्हें ये बीमारी है। आज हमें डॉक्टर को सिमटम्स बताना पड़ता है और पैथोलॉजिस्ट की रिपोर्ट लाकर देना पड़ता है तब डॉक्टर को समझ में आता है कि हां, इस मरीज़ को यह बीमारी है। बिना रिपोर्ट के इनको मर्ज़ समझ में नहीं आता तो फिर ये काहे के डॉक्टर ?"


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