अख़लाक़ अहमद ज़ई

Inspirational

4.5  

अख़लाक़ अहमद ज़ई

Inspirational

सही निर्णय

सही निर्णय

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उसे ना तो खांसी आ रही थी, ना छींक। सर्दी-जुकाम बुखार भी नहीं था फिर भी उसका बदन कांप रहा था और बेहद कमज़ोरी महसूस हो रही थी। कोविड के चलते सारे डॉक्टर सीधा हास्पिटल जाने की सलाह दे रहे थे। खुशकिस्मती से एक डॉक्टर ने हास्पिटल जाने से मना करते हुए घर पर रखकर इलाज करने की सलाह दी। कुछ दवाइयों के साथ इम्यूनिटी बढ़ाने की भी दवा लिख दी और खान-पान में एहतियात बरतने के साथ-साथ काढ़ा पिलाते रहने की सलाह दी। 

 परिवार के सभी सदस्य दहशत में आ गये। आपस में सलाह कर इस नतीजे पर पहुंचे कि रात-बिरात हालत बिगड़ गयी तो कहाँ भागते फिरेंगे। इससे अच्छा है कि पहले ही  हास्पिटल में एडमिट करा दिया जाय। हालांकि हास्पिटल की जो खबरें बाहर निकलकर आ रही थीं, वह अच्छी खबरें नहीं थीं। अब समस्या ये थी कि इस मसले पर किस्से मदद ली जाय। फिर ध्यान आया कि उसकी बहन सुमित का राजनैतिक सक्रीयता के नाते शहर में काफी दबदबा है। वह ज़रूर कोई रास्ता निकाल लेगी। 

 उसने सुमित से इस बारे में चर्चा की। सुमित ने आश्वस्त किया और अपने परिचित डाॅक्टरों को फोन लगाना शुरू किया पर किसी भी हास्पिटल में बेड खाली नहीं था। उसने फिर एक बार कोशिश की। 

 "हैलो डॉक्टर, मैं सुमित बोल रही हूँ। मेरे जीजा की तबियत खराब है। कोरोना पाॅजिटिव हैं। आपके हाॅस्पिटल में एडमिट कराना चाहती हूंँ। मरीज़ को लेकर आ सकती हूँ?" 

 "मैडम, बेड एक भी खाली नहीं है पर हांँ, आपके लिए सुबह तक खाली हो सकता है। पचास हजार का खर्चा आयेगा। अगर आप एग्री हों तो हम अगले प्रोसीजर पर काम करें।"

वह इकबारगी चौंक गयी। उसने अपने आप से ही सवाल किया–'क्या यह इतना आसान है? 

 " वो कैसे?…… मतलब, वो कैसे खाली हो सकता है?"

 " मैडम, वह आप मुझ पर छोड़ दीजिए।"

 वह फिर सोच में पड़ गयी। 

 "……मतलब कल को कोई मुझसे भी ज़्यादा पैसा  दे देगा तो मेरे जीजा को भी….?"

दूसरी तरफ से फोन काट दिया गया। वह अभी भी पसोपेश में थी। ज़िन्दगी से हार मानना किसी के लिए आसान नहीं होता। वह आखिरी सांस तक जद्दोजहद जारी रखता है पर जब खुद की जान के बदले किसी की जान बचानेकीबात आ जाय तो वह बलिदान शहीदी का दर्जा दे जाता है। उसने एक पल में सोच लिया कि जीजा को होम क्वारंटाइन में रखेंगे। किसी की हत्या के पाप से बेहतर है……। उसने बहन को समझा दिया। 


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