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Latika Batra

Drama Classics

4  

Latika Batra

Drama Classics

ठूँठ होने से पहले

ठूँठ होने से पहले

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सत्तो फुलकारी के अपने  दुपट्टे को हाथ में लिए कितनी देर से यूं ही क्लोसेट खोले खड़ी थी। दुपट्टे के लाल, पीले, हरे, गुलाबी रेशम का स्पर्श उसे नकोदर के खेतों में खड़ी सरसों के बूटों को स्पर्श करने का एहसास दिला रहे थे। उसकी आंखों के सामने खेतों में कल कल बहता ट्यूबवेल का पानी,  हवाओं में झूमती लहराते पीली सरसों, खेतों में दूर-दूर तक फैली सोने सी गेहूं की बालियां,  खेतों की मुंडेर पर लगे नीम पर झूला झूलती गीत गाती सखियां,  सोंधी मिट्टी से लिपे पुते आंगन में संध्या वेले दूध दोहती मां और चारपाई पर हुक्का गुड़गुड़ाते बापू सब एक साथ गडमड़ से तैर रहे थे।

 आंखें धुंधलाने  लगी थी संतो की।उसने क्लोसेट के ऊपरी खाने में पड़ा ऑर्गेनाइजर उतारा।सुनहरी लाल घुंधरू दार लटकन वाला परांदा, रंग बिरंगी चूड़ियां,  पाजेब, बाबाजी का रेशमी रुमाला,  यह सब चीजें तो ऑर्गेनाइजर में सजी हुई थी। पर इन से जुड़ी एक एक मधुर स्मृति सत्तो के दिलो-दिमाग में सजी हुई थी। मुकलावे के बाद यही फुलकारी और गुलाबी रेशमी सूट पहने,  परांदे में गुंथी कमर तक लंबी चोटी लहराते पावों में यही भारी पंजेवें पहनकर छमछम करती सतविन्दर कौर ससुराल के आंगन में उतरी थी। 

 अमेरिका आते समय भी बेबे ने उसे खास तौर पर यही गुलाबी सूट पहनाया था और बालों में मेंडियां काढ़ कर यहीं परांदा गूंथा था उसके बालों में।सिर पर यही फुलकारी ओढ़ कर उसने चलते समय बाबा जी की बीड़ को मत्था टेका था। मनविंदर उसे इस रूप में देख कर कुढ़ रहा था।

" यह क्या बना दिया है इसे बेबे, असी अमरीका चले हां, पिंड़ दे मेले नई चले।"  उसने कहा था।

( मां यह क्या बना दिया है इसे हम अमेरिका जा रहे हैं गांव के मेले में नहीं)

" बस कर वे,  नवीं व्याही कुड़ी ऐदा की सज संवर के रैंन्दी है। लोकां नूं पता ते चले कि तू वौहोटी ले आया है। वेख कितनी सोनी लग रही है।" 

( अरे नई ब्याही लड़की इसी प्रकार तैयार होती है। लोगों को पता तो चले कि  दुल्हन लेकर आया है।देख कितनी सुंदर लग रही है।)

 बेबे ने उसकी नजर उतारते हुए कहा था।वह बिलख कर बेबे के कंधे लग गई थी, " बेबी मैं नहीं जाना। मैंनू ऐथे ही रख ले।" 

( बेबी मैंने नहीं जाना मुझे यहीं रख ले। )

नहीं ब्याही सत्तो के मन में जहां पति के साथ विदेश जाने का उत्साह और रोमांच ठांठे मार रहा था , वहीं घर परिवार,  मां-बाप , अपना पिंड और सखी सहेलियों से बिछड़ने का गम भी उसे भीतर ही भीतर खाए जा रहा था।

एयरपोर्ट पर रोती बिलखती,  सब से विदा लेकर मनविंदर के पीछे पीछे चलती,  चेक-इन इत्यादि की औपचारिकताएं पूरी करने के बाद जैसे ही वह वेटिंग लाउंज में पहुंची थी,  मनविंदर ने अपने हाथ में पकड़े बैग में से एक जींस और शर्ट निकाल कर उसे पकड़ा दी थी।

 " सू , सामने लेडीज रेस्ट रूम है,  जाओ और यह गंवारू कपड़े और परांदा शरांदा उतारकर अपना हूलिया बदलो।और ढंग से बाल बना कर आओ। नौटंकी नहीं चाहिए मुझे।" 

 सत्तो ने कांपते हाथों से वह कपड़े पकड़े थे।

" सुनो जी, मैंने तो यह सब कभी नहीं पहना " 

डरते डरते उसने कहा था।

" तो अब पहनो। यहां तुम्हारे गवार पिंड का कोई बंदा नहीं है तुम्हें देखने वाला। और अब से तुम ही यही सब पहनना होगा। अमेरिका में तुम्हारे यह गंवारू चमकीले भड़कीले कपड़े नहीं चलते समझी। मन्वीन्दर ने सख्त लहजे में कहा था।

 बदलाव उसी दिन से शुरु हो गया था सत्तो के जीवन में। 

' सत्तो '  जिसका पूरा नाम सतविंदर कौर था विदेश की धरती पर पड़ने से पहले ही सत्तो से ' सू ' हो गई थी। सू के तन से गंवारू कपड़े तो उतर गए थे,  पर गंवार शब्द उसके अस्तित्व पर चिपका ही रह गया था। दूसरी और खुद को अमरीकी समाज का ही एक हिस्सा मानने वाला मॉडर्न और अमेरिकी सोसाइटी में मूव करने वाला स्मार्ट और पढ़ा लिखा मनविंदर मन ही मन कितना गंवारू था,  यह तो सिर्फ सू को ही पता था। 

मनविंदर के दिमाग में घरवाली और बाहरवाली के लिए बड़ी स्पष्ट सीमा रेखाएं थी।बाहर वाली हर औरत उसके लिए एंटरटेनमेंट मेटेरियल थी तो घरवाली का दायरा बिल्कुल रूढ़िवादी भारतीय पुरुषों की मानसिकता वाला ही था जो कि औरत को घर की देहरी के भीतर घर गिरस्ती और बच्चे संभालने तक ही सीमित रता था।यदा-कदा बीवी को पीट कर अपने पौरूष की धाक जमाने में ही असली मर्दानगी थी। सत्तो भी देश में अपनी मां चाची और दादी नानी सबको यही करते हुए भुगतते देखते हुए बड़ी हुई थी। समझोंते करना भारतीय नारियों को तो घुट्टी मे घोल कर ही पिलाया जाता है। 

सत्तो भी मनविन्दर के आधे अमरीकी आधे ठेठ भारतीय रंग में रच बस रही थी। बस जो नही एडजस्ज हो पा रहा था, वो एक मोर्चा था खान पान  । पीटा ब्रेड, तरह तरह के चीज, फ्रोजन फूड,  प्री मेरीनेटिड़ चिकन,  मटन, खूसखूस, और सलाद के नाम पर खाई जाने वाली घास फूस से सत्तो तगं आ जाती थी। उस का मन मक्की की रोटी और सरसों के साग, देसी घी में लसहन प्याज भून भून बनाये चिकन और घर के निकले मक्खन के साथ गर्मा गरम गोभी के परांठों के लिये मचलता रहता। एक बार कोशिश की थी उसने अपने मनपसंद गोभी के पराठे बनाने की। पहले की परांठे को खूब घी लगाकर जैसे ही तलना शुरू किया था,  तवे पर से उठते धुएं से फायर अलार्म बजना शुरू हो गया था। सत्तो थर थर कांपने लगी थी कि जाने यह क्या हो गया है। मनविंदर ऑफिस कॉल छोड़कर भागा आया था।उसने पहले अलार्म ऑफ किया और फिर रसोई में आकर सत्तो के गाल पर एक जोरदार चांटा जड़ दिया था। 

" – – – जादी, गंवार कहीं की,  बताया था ना रसोई में कुछ ऐसा ना बनाना जिससे धुआं उठे। पता है अभी पुलिस और फायर ब्रिगेड वाले आ जाने थे घर पर कितने डॉलर का चालान कट जाता तेरी एक गलती से "।

 गुस्से में आ कर मनविन्दर ने कसी हुई गोभी,  गूंथा हुआ आटा और। अधपका  परांठा गार्बेज में फेंक दिया था। उस दिन के बाद से सत्तो की कभी हिम्मत कि नहीं हुई थी कि वह रसोई में अपनी मनपसंद का तला भुना कुछ बनाए।हालांकि रोती बिसूरती, उदास संतो को देखकर मनविन्दर का मन पिघल गया था और उसने इंडियन स्ट्रीट पर पटेल की शॉप से तरह-तरह के फ्रोजन भरवां परांठे और नान, लच्छा परांठा वगैरह लाकर फ्रिज में भर दिए थे।पर संतों की जुबान पर उनका स्वाद चढ़ता ही ना था बल्कि उन्हें खाकर उसका कलेजा भारी हो जाता था।

कलेजा तो सत्तो का तब भी भारी होता था जब वीक एंड पार्टीज और दोस्तों के साथ क्लब में गेट टुगेदर में वह मनविन्दर को दूसरी औरतों के साथ इतना खुला व्यवहार करते देखती थी। पीने के बाद होश खोकर मर्यादा की सारी हदें पार करते मनविन्दर को देखकर सत्तो शर्मसार तो होती ही थी,  प्रेम का यह वीभत्स दैहिक रूप देखकर हतप्रभ भी हो जाती थी। अक्सर ऐसी पार्टीज में मनविन्दर किसी भी महिला को लेकर रात भर के लिए गायब हो जाता और फिर सत्तो को घर छोड़ने की जिम्मेदारी ग्रुप के ही किसी साथी की होती थी। अक्सर माइक ही यह ड्यूटी उठाता। माइक इस ग्रुप का अकेला ऐसा सदस्य था जिसका स्टेटस सिंगल था। माइक को सत्तो के व्यक्तित्व का सादा देसीपन बहुत भाता था ।

" सू,   मन को लेकर यह रोना धोना छोड़ दो। तुम क्या समझती हो यह एक रात के संबंध परमानेंट होते हैं। सब चलता है दोस्त " माइक सत्तो को समझाता।

" पर यह तुम्हारे देश में होता है माइक हम लोग तो सारी उम्र एक ही साथी के साथ काट देने की वुक्कत रखते हैं।" सत्तो आंखों में आंसू भर कर माइक की और कातरता से देखते हुए कहती।

" चाहे दर्द और आंसुओं में ही क्यों ना बीते जीवन ?" माइक उपहास में कहता।

" कम ऑन सू,  जिंदगी एक ही होती है।नहीं जमती किसी के साथ तो मूव ऑन हो जाना ही समझदारी है। " 

माइक सत्तो के साथ जितना खुद को अटैच समझता था उसकी विचारधारा से उतना ही असहमत होता था।

किसी के भी साथ रात बिता कर जब मनविन्दर घर लौटता तो उसका सबसे पहला काम यही होता था कि अपनी खिसिआहट सत्तो पर उतारता।

 ' रात को कौन छोड़ने आया था तुम्हें घर ? वही तुम्हारा यार माइक ?" 

सत्तो तड़प कर रह जाती ।

" रंगरेलियां मनाते और इल्जाम मुझ पर धरते हो ?" 

 सत्तो तड़प कर कहती ।

इस वाद विवाद का अंत सत्तो की धुआंधार पिटाई से ही होता था।

बच्चे अपने मॉम डैड की इन हरकतों को देखते हुए ही बचपन की देहरी पार कर तीन एज में आ गए थे। यह एक ऐसा फ्रंट था जहां सत्तो को अपनी हार सबसे अधिक चुभती थी। अमेरिका में पैदा हुए बच्चे घर के असहज वातावरण और दो विपरीत विचारधाराओं के जाल में फंस कर में बेहद उच्छृंखल और मनमौजी हो गए थे।

कितना प्यारा नाम रखा था सब तो ने बेटी का .. गुरजोत।

पर जैसे सुखविंदर सू बन गई थी अमेरिका में आते ही, वैसे ही गुरजोत सबके लिए ' जो ' बन चुकी थी। जब तक वो बच्ची थी सत्तो उसे अपने हिसाब से ढ़ालने की कोशिश में लगी रही। पर उम्र बढ़ने के साथ-साथ उसके व्यवहार , तौर-तरीकों और पहनने उड़ने के ढंग में भी आमूलचूल परिवर्तन आते जा रहे थे। एक दिन तो हद ही हो गई। जब ' जो ' घर आई तो सत्तो का कलेजा उसे देखकर धक से रह गया था। कुछ देर तो उसे समझ में ही नहीं आया कि जो लड़की उसके सामने खड़ी है वह उसकी अपनी बेटी गुरजोत ही है। उसने अपने घने लंबे काले बाल बॉब कट करवा लिए थे और आगे की एक लट लाल रंग में रंगी हुई थी तो पीछे के बाल आधे जामुनी और आधे सुनहरी लालिमा लिए हुए थे।

 " क्या हुआ मॉम क्या देख रही हो? यह मैं ही हूं। ऐसे आंखें फाड़ फाड़ कर मत देखो।" 

" यह क्या किया गुरजोत? बाल क्यों कटवा लिए। और ये क्या रंग बिरंगे कर लिये हैं बाल। " 

 सत्तो धम्म से कुर्सी पर बैठ गई थी।

 " मॉम दिस इज लेटेस्ट फैशन , और मैंने जो हिप हॉप म्यूजिकल ग्रुप ज्वाइन किया है वहां यही सब चलता है।"

 सत्तो मुंह खोले आश्चर्य मिश्रित क्रोध से गुरजोत को देख रही थी।तभी उसकी नजर बेटी के खुले गले वाली टीशर्ट के नीचे से झांकते एक काले से निशान पर पड़ी।

" और ये तेरी छाती पर कैसा निशान है ।" सत्तो ने गुस्से में चीख कर पूछा।

 गुरजोत ने हंसते हुए अपनी टीशर्ट उठा दी सत्तो के सामने। उसकी ब्रा के नीचे से सीने पर अरबी भाषा में गुदा हुआ एक टैटू दिख रहा था।

" मॉम इसे टैटू कहते हैं , स्मिथ को यही पसंद था तो बनवा लिया।" 

 स्मिथ का नाम लेते हुए गुरजोत की आंखों में जो चमक थी वह सत्तो से छुप ना सकी थी।

" यहां , सीने पर,  यह स्मिथ की पसंद है , बेशर्मी से सीना खोलकर किससे बनवाया है ये गोदना , और यह स्मिथ कौन है ?" 

सत्तो गुस्से और अपनी औलाद पर अंकुश न लगा पाने की बेबसी में चिल्लाई थी।

" डोंट शाउट मॉम, इतने सवलों के जवाब नही दे सकती मैं। समझी आप। और सुनो,  इट्स माय बॉडी एंड माय लाइफ यू आर नो वन टू इंटरफेयर इन माय लाइफ " 

कह कर ' जो ' वहां से निकल गई थी।

 मनविंदर को तो कोई फर्क ही नहीं पड़ता था इन बातों से। वो आजाद था और बच्चों की आजादी से भी उसे कोई दिक्कत नही थी। सत्तो कुछ कहती तो मनविन्दर उसी को चार बातें सुना देता।

" ये मेरे बच्चे है, सोसाईटी में मछव करना जानते है। तचम्हारी तरह गंवार नही हैं।समझी तुम। "

पिता की राह पर चलता मनदीप तो वैसे भी उसके बस में कभी था ही नहीं। स्कूल से सीधे कभी दोस्तों के पास , कभी ट्यूशन तो कभी पिकनिक।वह अक्सर दिन ढ़ले ही घर लौटता था जब मनिंदर के ऑफिस का समय खत्म होता था। मॉम की डैड के सामने क्या हैसियत है यह वह अच्छी तरह जान चुका था। किसी भी बात को मनवाने के लिए वह सीधे डैड को ही अप्रोच करता था। ' मेरा शेर पुत्तर ' कह कह कर मनमिंदर ने उसे इतना सिर पर चढ़ा रखा था कि अब उसकी आंखों से मां का डर बिल्कुल ही खत्म हो चुका था। सत्तो को उसका कमरा साफ करते समय कई बार सिगरेट, शराब की बोतलें, सफेद पाउडर के छोटे पैकेट और भी ना जाने क्या-क्या अजीबोगरीब चीजें दिख जाती थी, पर कुछ भी पूछने कहने या रोकने का अधिकार उसे नहीं था। अब तो मनदीप कई कई दिन घर भी नहीं आता था। सत्तो मनविन्दर को मनदीप की गलत हरकतों के बारे में कुछ भी कहती तो एक ही जवाब मिलता, " जाट का गबरु जवान पुत्तर है अब ऐश नहीं करेगा तो क्या बुढ़ापे में करेगा। " 

 सत्तो मन मार कर रह जाती।

अब उसका पूरा ध्यान गुरजोत की हरकतों पर ही रहता था। पिछले कई दिनों से वह नोट कर रही थी कि गुरजोत कुछ बदली बदली सी लग रही है।पर क्या वह समझ नहीं पा रही थी। एक दिन उसने उसकी ड्रेसिंग टेबल की दराज में कुछ दवाइयों के पत्ते भी देखे थे।पर वह कुछ समझ नहीं पा रही थी। फिर अचानक एक दिन कपड़े मशीन में डालते समय गुरजोत की जींस की जेब में से उसे एक कागज का पर्चा मिला। यह किसी गायनाकोलॉजिस्ट की प्रिस्क्रिपश्न थी। सत्तो दंग रह गई। गुरजोय 5 महीने की प्रेग्नेंट थी।

शाम को जब वह घर लौटी तो सत्तो ने उसकी बांह पकड़कर लिविंग रूम में ही बिठा लिया। 

" इस महीने तुझे पीरियड नहीं हुए हैं लगता है। " 

शांत स्वर में सत्तो ने गुरजोत से पूछा।

" मॉम,  व्हाट इज दिस , आई एम फाइव मंथ प्रेग्नेंट। " गुरजोत ऐसे बोली जैसे कुछ हुआ ही न हो।

 संतो ने क्रोध में भरकर एक चांटा मारने के लिए जैसे ही हाथ उठाया, गुरजोत ने उसकी कलाई कसकर पकड़ ली थी।

" ऐसा करने की सोचना भी मत। मुझे एक मिनट लगेगा 911 में कॉल करने को।" 

" पुलिस की धमकी देती है मां को बेशर्म,  चलो मेरे साथ अभी के अभी। ऐबौर्शन करवाना होगा। "

 " वॉट ! नॉट अट ऑल मॉम।" गुरजोत हंस कर बोली, " यह तो मैं कभी नहीं करूंगी।यह मेरा और स्मिथ का बच्चा है।हम रखेंगे इसे।" 

" नाजायज औलाद है यह,  तू समझती क्यों नहीं ?" आँखों में बेबसी के आँसू भर कर सत्तो बोली।

" यह सब ना, आपके उस बैकवर्ड पिंड़ में चलता है।यहां अमेरिका में नहीं।समझी आप।" गुरजोत हिराकत भरे स्वर में  बोली।

" और फिर यह तो यह भी तो सोचो मैं तो दे रही हूं आपको बच्चा , आपने उस ' गे ' बेटे से आप कोई उम्मीद ना रखना।"

 किसे 'गे ' कह रही है ?" 

' उसी को डैड के राज दुलारे को।आपको नहीं पता आजकल वह अपने ' गे ' दोस्त जॉनसन के साथ लिव-इन में रह रहा है यह आपका लाडला मॉम।" 

तुषारापात हो गया था सत्तो पर।यह क्या हो गया था उसका जीवन। विवाह के बाद जिस हंसती खेलती घर गिरस्ती की कल्पना उसने की थी उसकी हकीकत इतनी डरावनी होगी यह तो उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। माईक उसे हमेशा प्रैक्टिकल होने की सलाह देता था। क्या इस देश में व्यवहारिकता के माने अपने देश की संस्कृति और संस्कारों से इतने भिन्न है कि सत्तो चाह कर भी उन्हें अपना नहीं पा रही थी। अवसाद में घिरी सत्तो कुछ भी सोचने समझने की शक्ति गंवा चुकी थी।

उस के दोनों बच्चे  ने अपनी अलग राहें चुन ली थी।गुरजोत स्मिथ के साथ फ्लैट में शिफ्ट हो गई थी और गुरमीत अपने

' गे' क्लब के दोस्तों के साथ पता नहीं कौन-कौन सी गतिविधियों में व्यस्त रहता था। वह सब कभी किसी एक जगह टिक कर नहीं रहते थे। मनविन्दर के जीवन में सत्तो का स्थान तो बस इतना ही था कि उसकी बदौलत घर साफ सुथरा रहता था और वक्त पर खाना कपड़ा तैयार मिल जाता था। साथ ही कपल पार्टीज में लोगों को दिखाने के लिए तो पत्नी के रूप में सत्तो साथ रहती ही थी।

 उस दिन सत्तो का जन्मदिन था। माइक ने सत्तो को अवसाद से बाहर निकालने के लिए लॉन्ग बीच आईलैंड पर समुद्र के किनारे एक पार्टी का आयोजन किया था। ग्रुप के सभी लोग आमंत्रित थे। मनविन्दर अपने ऑफिस की कुलिंग मार्था के साथ वॉशिंगटन डीसी गया हुआ था। नाम को तो यह एक ऑफिस टूअर था पर सत्तो तो इस टुअर की हकीकत जानती थी। माईक ने मनविंदर को फोन करके पार्टी के बारे में बता दिया था, और मनविन्दर ने भी वादा किया था कि वह समय पर सीधा लॉग बीच आईलैंड पहुंच जाएगा। पर वह नहीं आया। माइक ही सत्त़ को लेने आया था और वहीं पार्टी के बाद उसे छोड़ने भी आया।वापसी में माईक ने सत्तो को घर ड्राप करने से पहले एक गिफ्ट पकड़ाया। सत्तो की आंखों में आंसू थे। 

"थैंक्स माइक, आज के खूबसूरत दिन के लिए। तुम ना होते तो मैं आज भी घर में अकेली बैठी रो रही होती। " 

 " रोना और अपने आपको दुख देना किसी समस्या का हल नहीं होता मेरी जान। " माइक ने सत्तो का हाथ पकड़कर कहा था।

" तुम इंडियन चाहे जो भी समझो,  पर हम अमेरिकी लोग संबंधों को इतनी गंभीरता से नहीं लेते कि एक रिश्ता सफल ना हो पाए तो जीवन को ही खत्म लगने लगे।सोचना इस बारे में"। कह कर माईक ने प्यार से सत्तो का हाथ थपथपाया था।

 आज सत्तो की शादी की 25वीं सालगिरह है। ना तो बच्चों ने उसे विश किया ना मनविन्दर को ही यह दिन याद है।वह आज भी रोज की ही तरह ऑफिस कॉल्स में व्यस्त रहा,  फिर शाम होते ही उठा और तैयार होकर बिना सत्तो को कुछ कहे,  बताएं बाहर निकल गया था। सत्तो जानती थी कि वह मार्था के पास ही गया होगा। सत्तो का दम घुटने लगा था।

 उसने अपने हाथ में पकड़ा  फुलकारी का दुपट्टा तहा कर वापस क्लोसेट में रख दिया और कमरे की खिड़की खोल दी। ताजी ठंडी हवा के झोंके ने उसके तन में एक सिहरन सी भर दी। अमेरिका में ऑक्टूबर का ये मौसम कैसा विचित्र मदमाता सा हो जाता है। 

फॉल का मौसम।

प्रकृति के अप्रतिम सौंदर्य का मौसम।

पेड़ों के सारे पत्ते कैसे जादुई रंगों में रंग जाते हैं। जैसे कोई जादू की छड़ी घुमा कर रंगों की गुफा के द्वार खोल दें और सारे रंग... .. लाल, पीले, नीले,  संतरी, जामुनी , बैंगनी। हरे भरे पत्तों पर आकर अपना अधिपत्य जमा लेते हैं। फिर यकायक एक साथ झर झर,  झर जाते हैं। पेड़ पूर्णतः पत्र विहीन ठूंठ के ठूंठ खड़े रह जाते हैं।

सत्तो को लगा कि प्रकृति मानो उसे कोई संदेश दे रही है। झर कर ठूंठ रह जाने से पहले रंगों में डूब जाने के जश्न का संदेश।

 उसने माइक का दिया गिफ्ट खोला। यह एक काले रंग की नेट का खूबसूरत बैकलेस गाउन था। सत्तो पल भर को ठिठकी और फिर झटके से उठी।उसमें इत्मीनान से बाथरूम में जा कर एक शॉवर लिया और वह गाउन पहन लिया। अच्छे से तैयार होकर उसने अपना मनपसंद परफ्यूम लगाया। तैयार होकर उसने आदम कद शीशे में खुद को निहारा।एक तिक्त मुसकुराहट उसके चेहरे पर खेल गई। उसने अपना पर्स उठाया और घर को लॉक करके बाहर निकल गई।


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