Latika Batra

Others

4.0  

Latika Batra

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दोगले

दोगले

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वे तीनों, पति, पत्नी और बेटा पी वी आर में फ़िल्म देखने आये थे। टार्च मैन ने टिकटें देख कर उन तीनों को उन की सीटें दिखा दी। अंधेरे में टटोल टटोल कर, सावधानी से पैर रखते हुये  दो चार छोटी सीटियाँ चढ़कर वे अपनी जगह आ कर बैठ गये। पत्नी बहुत ख़ुश थी। अपने बड़े सेबैग में शाल के नीचे दबा कर कैम्पा की बोतल और दो तीन पैकेट नमकीन व मूँगफली इत्यादि छुपा कर ले आई थी। हॉल में कितना महँगा मिलता है सब कुछ। पिक्चर अभी शुरू नहीं हुई थी। विज्ञापन दिखा रहे थे अभी। आने वाली नई फ़िल्मों के ट्रेलर भी। बैठते ही बेटे ने पॉप कॉर्न और कैम्पा की जिद्द की। माँ ने धीरे से कहा, “ मैं बहुत कुछ लाई हूँ खाने को। चाकलेट भी है। अभी पिक्चर शुरू हो जाये तो देती हूँ। 

“ पर मम्मी, यहाँ अंदर तो कुछ भी लाने नहीं देते ना। “

“ ले आई हूं जैसे तैसे। अब चुप रह। चिल्ला मत। “

“ चोरी से ले आई “ बेटा बोला। पता नहीं खुशी से या हैरानी से।   

बेटे की बात अनसुना कर के वो बैग में सामान टटोलने लगी। 

तभी स्क्रीन पर तिरंगा लहराने लगा। राष्ट्र गान शुरू हो गया। हाल में उपस्थित सभी लोग खड़े हो गये। पति भी खड़ा हो गया। ये माँ बेटा दोनों अभी तक बैग में सामान टटोल रहे थे। पति ने फुसफुसा कर पत्नी को घुड़का, “ खाने की पड़ी है। देख नहीं रही, जन गन मन बज रहा है। सब खड़े है और तू ज़ाहिल अनपढ़ ..... खड़ी हो जा उल्लू की पट्ठी। “

पति ने ये कहते कहते बेटे को भी एक हल्की सी घोल जमाई और धकिया कर खड़ा कर दिया। पत्नी जब तक सकपका कर खड़ी होती, गान ख़त्म हो गया। सब बैठ गये। वो भी बौखलाकर कुर्सी पर धम्म हो गई। पिक्चर शुरू हो गई। वे तीनों सब कुछ भूल कर नमकीन व मूँगफली टूंगते हुये मज़े से फ़िल्म देखने लगे। 


भारत पाकिस्तान का फ़ाइनल मैच था क्रिकेट का। पति ने दफ़्तर से छुट्टी ले रखी थी। पूरी तैयारी थी। दफ़्तर के चार दोस्तों के साथ अड्डा जमा हुआ था। बोतल खुली हुई थी। चखने में तली मूँगफली और प्याज़ की पकौड़ी थी। टी वी पर कंमैंटटेटर उत्तेजना पैदा कर रहे थे। पूरा स्टेडियम खचाखच भरा था। दोनों टीमें मैदान में उतरी तो शोर शराबे तथा उत्साह ने सारे बाँध तोड़ दिये। पहले पाकिस्तान का राष्ट्र गान बजा। पति तथा उस के दोस्त सट्टा लगाने में व्यस्त थे। हार जीत की बहस में ज़ोर शोर से उलझे थे। बेटा पास बैठा सब देख रहा था। तभी जन गन मन बजने लगा। बेटा खड़ा हो गया। उसने पिता की और देखा। वो तथा उसके दोस्त यथावत बहस में उलझे थे। बेटे ने पिता का कुर्ता खींच कर कहा, “ पापा, जन गन मन आ रहा है। “

“ हाँ पता है रे। बस अभी मैच शुरू हो जायेगा। 

“ पापा, जन गन मन ........... “ बेटा खड़े खड़े बोला 

पिता ने ठहाका। लगाया।

 “ का दिमाग़ पाया है बे। सब याद रखता है।”

फिर बेटे की पीठ पर धौल जमाते हुये, हंस कर बोले, “ यहाँ कौन देख रहा है साले। “

और बोतल उठा कर उसका ढक्कन खोलने लगे। 



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