Latika Batra

Tragedy

4.5  

Latika Batra

Tragedy

पगली

पगली

6 mins
378


वो कई दिनों से पड़ी थी हॉस्पिटल के इस लोहे के पलंग पर ।अक्सर वो बहुत उग्र भी हो उठती थी ।ऐसे में हॉस्पिटल का स्टाफ़ उसके हाथ पैर पलंग के साथ बाँध देता था । एक मोटी सी काली नर्स उसकी बाँह में इंजेक्शन घुसेड़ देती , और फिर वह कम से कम बारह घंटे तक सोती रहती ।नींद से जब जागती , तो बिलकुल शांत होती , और चेहरा ज़र्द पीला , भाव हीन। बीस बाईस साल की देह जैसे बिलकुल नन्हें बच्चे सी हो जाती , या कहें कि रोबोट सी हो जाती ।मोटी नर्स उसे ब्रश करने को कहती तो वो आज्ञाकारी बच्चे की तरह उसकी बात मान जाती ।ख़ुद से नहा भी लेती ,बाल बनाती और खाना भी खा लेती ।कोई कह नहीं सकता कि ये वही लड़की है जो दौरा पड़ने पर पूरी चंडालिका सी बन जाती है । एक बार तो दौरा पड़ने पर उसने मोटी नर्स को इतनी ज़ोर से काट खाया था कि उसकी कलाई से खून निकल आया था ।फिर भी पता नहीं कौन सा अंजाना मोह था कि मोटी नर्स उस पगली की हर ख़ता माफ़ कर देती थी ।और इतने स्नेह से उसकी देखभाल करती थी ।


पगली का कोई नाम नहीं था हो भी ,तो किसी को पता नहीं था ।सब के लिए वो पगली बस एक बेड नंबर थी ।बैड नंबर तेरह । मोटी नर्स की ड्यूटी चाहे जिस वॉड में क्यों ना हो वह सुबह शाम बैड नम्बर तेरह को देखने ज़रूर आती । पगली के हाथ अभी भी पलंग के साथ बँधे हुए थे ।मोटी नर्स उसके पलंग के पास स्टूल पर बैठी उसे निहार रही थी ।आज पगली की आँखों में वहशत नहीं बाल सुलभ सरल करूण उजास भरा था । नर्स ने उसकी और मुस्कुराकर देखा ।उसे पता था की इलेक्ट्रिक शॉक और इंजेक्शनों की डोज के ट्रीटमेंट के बाद जब वो उठेगी तो काफ़ी सामान्य होगी ।नर्स ने पगली के हाथ पाँव खोल दिए और प्यार से सहलान लगी ।पगली उठकर बैठ गई ।


“ सुनो , आज तुम मुझे बग़ीचे में ले जाओगी ?”


औचक ही पगली ने नर्स का हाथ पकड़कर पूछा ।पगली की आँखों में आशा की चौंध नजर आई नर्स को । पता नहीं कौन सा ऐसा जुड़ाव था , कि नर्स के ह्रदय मे इस बालिका के लिए वात्सल्य ठाठें मारता था ।

“ हाँ ज़रूर , पर अभी नहीं । बाहर अभी कितने धूप है चलो पहले ब्रश करेंगे , नहाएँगे फिर कुछ बढ़िया सा खाएंगे ।उसके बाद शाम को मैं ले चलूंगी तुम्हें बग़ीचे में ।”


पगली आँखे फाड़कर बस नर्स को देखती रही ।सपाट चेहरे से ये पता नहीं चल पाया कि उसे नर्स की बात समझ आयी भी है या नहीं , पर उसने शांति से वह सारे काम निपटा दिए जो - जो नर्स ने कहती रही । नहाई , बाल सँवारे और आज तीन दिन बाद कपड़े भी बदले , धुले , प्रेस किये हुऐ अस्पताल के नीले कुर्ते पजामे में पगली काफ़ी स्वस्थ लग रही थी ।खाना भी उसने ख़ुद से खा लिया । मोटी नर्स ने जाते जाते हैं वॉड में ड्यूटी पर तैनात गार्ड को बैड नंबर तेरह के लिए कुछ निर्देश दिए और पगली से वादा किया कि वो शाम को आएगी , उसे घुमाने ले जाने के लिए । पगली उसके बाद शुन्य में ताकतें हुये , शांत गुमसुम पत्थर की मूर्ति की तरह अपने बिस्तर पर बैठी रही ।


नर्स वादे की पक्की थी । उसने डॉक्टर से पगली को बग़ीचे में घुमाने की अनुमति ले ली थी । बाहर मौसम बहुत खुशगवार था । बीतती फ़रवरी में यूँ भी प्रकृति एक अलग लगी ख़ुमारी में होती है ।हवा में हल्की सी खुन्नस थी । ये बग़ीचा हॉस्पिटल के पिछले हिस्से में था ।बाहरी चारदीवारी से कुछ ही दूरी पर एक नहर बहती थी उसके आगे खेत थे जिनमें से कुछ में सरसों अभी भी अपने पूरे कद में लहराती हुई बीते वसंत की तस्वीर सहेजे इठला रही थी ।चारदीवारी के भीतर दीवार के साथ ही एक क़तार मे भरे पूरे यौवन में मदमस्त अशोक वृक्ष झूम रहे थे । क्यारियों में जाती बहार के पैंजी , पिटुनिया और पॉपी आदि फूल यूँ अपनी पूरी शक्ति से रंग बिखेर रहे थे जैसे बुझने से पहले दिया पूरे ज़ोर से फड़फड़ाता है । 


हॉस्पिटल की चार दीवारी में बीच बीच में मज़बूत चकोर जाल लगे थे , जिन से बाहर झांक कर देखा जा सकता था ।पगली पता नहीं पिछली बार कब बाहर आयी थी । कुछ देर तक तो वह हतप्रभ सी नर्स के पीछे दुबकी , सहमी सी , खुली हवा फेफड़ों में भरती रही , फिर अचानक ही चारदीवारी में जुड़े लोहे के जाल की ओर दौड़ पड़ी। जाल के साथ मुँह सटाकर बड़ी देर तक वहीं खड़ी रही , फिर लौटकर नर्स के पास आकर बैठ गई ।नर्स फूलों की क्यारी के पास रखी एक बेंच पर बैठी कोई किताब पढ़ रही थी।


" बाहर की दुनियाँ कितनी सुंदर है ना " 


पगली की आवाज़ में दार्शनिक गंभीरता थी ।


नर्स ने चौंककर पगली और देखा ।पगली की आंखें दूर शून्य में किन्ही विगत के अँधेरे क्षणों को खंगाल रखी थी ।


" तुम्हें पता है , मैंने अपनी नस काट ली थी ।"


पगली बता तो नर्स को रही थी पर बात शायद स्वयं से ही कर रही थी । नर्स विस्मित थीं , ये बालिका लौट रही है वापिस सामान्य होने की ओर । पगली की आँखों में शहद सी नमी थी।


 नर्स के पाँव के पास एक फूल किसी टहनी से झड़ कर आ गिरा ।अनायास ही नर्स का हाथ उस फूल की और बढ़ गया। पगली ने भी देखा , फूल बहूत सुन्दर लाल रंग का था ।नर्स ने अपने हाथ की खुली किताब में उस फूल को रख लिया और किताब बंद कर दीं ।पगली की आँखों का शहद खून के उबाल में बदल गया ।पलांश में ही ख़ूँख़ार शेरनी की तरह वह नर्स पर झपट पड़ी ।जब तक नर्स कुछ समझ पाती पगली ने उसे नीचे गिरा कर दबोच लिया । वहशत की सारी सीमाएं पार करती पगली , नर्स का गला दबाकर उसका सर ज़ोर ज़ोर से ज़मीन पर पटकने लगी ।


" तुमने किताब में फूल रखा..…."

" क्यों रखा ...फूल किताब में .…."


कह कर पगली ने नर्स को कस कर दबोच लिया ।नर्स की साँस घुट रही थी और आंखें बाहर उबल पड़ी थी ।पता नहीं पगली में कहाँ से इतना ज़ोर आ गया था की नर्स जितना छूटने को छटपटाती , पगली और ज़ोर से उसे भींच लेतीं ।


" किताब में फूल रखा तुमने ....

"फू...ल.. रखा .."

"किताब में..."

" न..हीं र..ख..ना ..."

पगली "नहीं ..रखना... चाहिए "

 "किसी ...कि..ता..ब. में..."


 ये सब दो पल में ही हो गया । गली नर्स के सीने पर चढ़ी उसके बाल खींच रही थी , और दहाड़ते हुए टूटे फूटे शब्दों में चीखते हुए कह रही थी ।


जब तक हॉस्पिटल के गार्ड दौड़कर वहाँ पहुँचे नर्स बुरी तरह से पगली के चंगुल में छटपटा रही थी ।बड़ी मुश्किल से पगली को नर्स से अलग किया गया ।नर्स बेहाल थी ।गार्डों की गिरफ्त में पगली बुरी तरह से छटपटा कर चीख चिल्ला रही थी ।डॉक्टर भी तुरंत वहाँ पहुँच गए और जल्दी से पगली को एक इंजेक्शन लगाया गया। पगली की गिरफ्त ढीली होने लगी। अर्ध बेहोशी में भी वो कुछ बुदबुदा रही थी ।नर्स ने ख़ुद को संभाला और ध्यान से सुना , पगली बुदबुदा रही थी....

" नहीं रखने चाहिए...

" किताबों में फू..ल ...

"मत... रखो ।"


नर्स जानती थी कि बैड़ नंबर तेरह को अब फिर से बाँध दिया जाएगा पलंग के साथ ।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy