Latika Batra

Romance Others

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Latika Batra

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पिया सतरंगी

पिया सतरंगी

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इशिता चाय का कप लेकर बालकनी में आराम कुर्सी पर बैठी थी। प्लास्टर चढ़ा अपना दायां पांव उसने सामने मेज पर फैला रखा था और बायां पैर जमीन पर थप- थप -थप - थप कर लगातार हिल रहा था जो यह यह दर्शा रहा था कि वह किसी गहरी सोच में डूबी है। चाय लगभग ठंडी हो चुकी थी। कुर्सी की बैक से सिर टिकाए समाधिस्थ अवस्था में बैठी इशिता का ध्यान चंपा की आवाज में भंग किया।


"भाभी आपने चाय नहीं पी अभी तक। लाइए दूसरी बना देती हूं।"


" नहीं चंपा, अब और नहीं पीनी, रहने दो।" कहकर इशिता ने अधपिया चाय का कप चंपा को पकड़ा दिया।


" भाभी  धूप आने लगी है यहां। आपको अंदर ले चलूं ?" 


 चंपा इशिता के मन की ऊहापोह को भलीभांति समझ रही थी।


" नहीं, तुम जाओ, काम करो, मैं कुछ और देर यही बैठूंगी।"


" ठीक है, कुछ चाहिए हो तो आवाज दे देना।"


 कहकर चंपा रसोई में चली गई।


इशिता की खामोश सूनी आंखों में दो कतरे उभर आए, जिन्हें ढुलकने से पहले ही उसने हथेलियों से झटक दिया। कितनी बेचैनी और बेबसी महसूस हो रही थी उसे।


 उसे अपना घर, कमल से अपना रिश्ता रेतीली नींव पर खड़े महल जैसा लग रहा था जो जरा सी जुंबिश से कब ढह जाए कौन कहे। इशिता सोच में डूबी थी कि कैसे दो व्यक्तियों की दो भिन्न-भिन्न प्राथमिकताएं संबंधों को अर्थहीन बना देती हैं। इस पांव के प्लास्टर ने तो उसके चलने फिरने को ही नियंत्रित किया था पर अवसाद के झुटपुटे में घिरी इशिता को लग रहा था कि कमल उसके मन मस्तिष्क और जीवन को नियंत्रित करने की जिद ठाने बैठा है। अपने भीतर के विघटन की ऊब डूब में तैरती इशिता की आंखों के सामने अपने विवाहित जीवन के डेढ़ साल चलचित्र की भांति घूम रहे थे।


इशिता और कमल बचपन से ही एक साथ थे। एक ही स्कूल में एक ही कक्षा में पढ़ते हुए , एक ही कॉलेज तक जा पहुंचे थे। बचपन के क्लासमेट्स की दोस्ती कब गहरी दोस्ती में परिवर्तित हुई और फिर कब यह गहरी दोस्ती प्रेम में बदल गई दोनों को एहसास ही नहीं हुआ था। और फिर उसके बाद यह प्रेम बड़ी ही सरलता और बिना किसी बाधा के , दोनों परिवारों की आपसी रजामंदी से विवाह संबंध में भी परिवर्तित हो गया था I


कमल के साथ बचपन की शरारतें और नोकझोंक, टीन एज की रूमानियत और मस्ती तथा युवावस्था का रोमांस सब कुछ इशिता के लिए एक परी कथा के तिलिस्म सदृश्य था जिसमें जीवन के सारे रास रंग और चाहतों की परिपूर्णता समाई थी।


 इस ऐश्वर्य मैं नख शिख डूबी इशिता कभी सोच ही नहीं पाई थी कि जीवन के इस परिदृश्य से परे भी उन के संम्बधों की कोई अन देखी अछूती कोई ऐसी  कड़ी है जिसे अभी समझना और परखना बाकी है।

वह दिन बड़ा खास था दोनों के लिए। कमल की प्रमोशन हुई थी , साथ ही उसे दफ्तर की तरफ से गाड़ी और बंगला भी अलॉट हुआ था। इतनी कम उम्र में इतनी ऊंची पोस्ट पर पहुंच गया था कमल। इशिता के पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। वह दोनों अपने स्वर्णिम भविष्य के सपने बुनते एक दूसरे की बाहों में समाए थे।


" कमल, हमें एक पार्टी देनी चाहिए। "


" हां, ऑफिस में सभी कुलीग्ज भी पार्टी मांग रहे हैं। देनी तो होगी।" कमल ने उल्लास में भरकर कहा।


" ठीक है, तो शनिवार को रखते हैं ना पार्टी। दो दिन है अभी मैं पूरी तैयारी कर लूंगी। तुम ऑफिस में सब को इन्वाईट कर लो।" 


" घर पर दोगी पार्टी ?"


" हां, होटलों में बड़ा फॉर्मल सा हो जाता है। घर पर रौनक रहेगी , मजा आएगा।"


इशिता के मन में तो अभी से पार्टी की प्लानिंग शुरू हो गई थी।


" तुम्हारे इसी अंदाज़ पर तो मैं फिदा हूं।" कमल ने रोमांटिक होते हुए कहा।


" अच्छा जी , मुझे तो पता ही नही था। इशिता ने इठलाते हुये कहा।

 

" अजी, बचपन से फिदा हैं। कोई नई बात थोड़ी ना है।"


" अच्छा, फिदा तो थे, पर एक बात बताओ, तुम्हें सच में मुहब्बत कब हुई थी मुझ से ?"


"हम्म... सच कहूं तो याद ही नहीं ।तुम शायद आदत बन चुकी थी मेरी। और जैसे जैसे उम्र बढ़ती है , आदतें पक्की होती जाती हैं।" कमल ने इशिता को  बांहों में भरते हुए कुछ हंसी कुछ रूमानियत से कहा।


" अच्छा तुम बताओ तुम्हें कब एहसास हुआ कि तुम्हें मुझ से  मुहब्बत हो गई है।" 


" मुझे , मुहब्बत ....और तुमसे..। जाओ , जाओ।" इशिता ने जान छुड़ाते हुए हंस कर कहा।

" अच्छा,  तो वह क्या था , जब मैं कॉलेज में तुम्हारी दोस्त , वह ... क्या नाम था उसका ... हां , मीनाक्षी। मैं, मीनाक्षी के साथ टाइम स्पेंड करता था , तो कैसे जल भुन जाती थी तुम , और तो और तुमने तो उसके साथ लड़ झगड़ कर दोस्ती तोड़ ली थी उस से। " 


" अरे, वह, वह तो इतनी चिपकू थी कि क्या कहूं। बड़ी लाइन मारती थी तुम पर। उसकी इसी बात पर तो चिड़ होती थी मुझे। तुम्हें कोई लड़की लाइन मारे तो मैं मुंह ना नोच लूं उसका। " 


 " यही तो प्यार है मेरी जान , मोहब्बत इसी को तो कहते हैं।"


 अगले दो दिन इशिता को दम मारने की भी फुर्सत नहीं थी। घर का पूरा रिनोवेशन ही कर डाला था उसने।क्रोकरी , पर्दे, कुशनकवर , बेड कवर से लेकर गार्डन के फूल पौधों और सजावटी सामान , ऐसी कोई भी चीज नहीं थी जिसमें उसने उलटफेर कर नया रूप ना दे दिया हो। ड्रिंक्स , स्नैक्स मैन कोर्स और डेजर्ट ही नहीं रिटर्न गिफ्ट को लेकर भी कमल के साथ लंबी बहस और सलाह मशवरे हुए थे। एक एक चीज इशिता को परफेक्ट चाहिए थी। 


पार्टी के दिन सुबह से ही इशिता कमल और चंपा के साथ किचन में व्यस्त थी। कमल ने चिकन मैरिनेड किया और सलामी सैंडविच बना दिए थे।पनीर टिक्का ,वेज कबाब, पटेटो बाइट सब तैयार थे। मेनकोर्स की सारी तैयारी लगभग पूरी हो चुकी थी।छोटे-मोटे कई काम अभी भी बाकी थे। दो बजे के करीब इशिता कुछ ब्रेक लेने के लिए ड्राइंग रूम में आ बैठी थी। चंपा गरम कॉफी बना लाई। तभी इशिता का फोन बज उठा। इशिता की मम्मी ने घबराई हुई आवाज में बताया कि उसके पापा की तबीयत अचानक बहुत खराब हो गई है। सीने में दर्द उठ रहा है।उनका फैमिली डॉ छुट्टियों पर था , तो पापा को हॉस्पिटल ही ले जाना होगा।


 इशिता के हाथ-पांव फूल गए। कमल उस समय डेजर्ट लेने बाजार गया हुआ था। इशिता ने कई बार उसे फोन मिलाया पर उसका फोन नॉट रिचेबल आ रहा था। परेशान इशिता ने बाकी बचा हुआ काम चंपा को समझाया और गाड़ी लेकर तुरंत मम्मी के घर के लिए निकल पड़ी। वहां पहुंचकर देखा कि पापा के सीने में काफी दर्द था। मम्मी ने सॉर्बिट्रेट की गोली तो पापा की जीभ के नीचे रख ही दी थी। इशिता ने तुरंत पापा को गाड़ी में बिठाया और हॉस्पिटल लेकर पहुंची। पापा को तुरंत ऑब्जर्वेशन में ले लिया गया। ई सी जी ठीक नहीं थी अतः अब उनका इको किया जाना था। इशिता ने मम्मी को पापा के पास बिठाया और खुद रिसेप्शन पर पैसे जमा करवाने और बाकी की फॉर्मेलिटी पूरी करवाने में जुटी थी। इस बीच कमल के कई फोन आ चुके थे।कमल बार-बार इशिता को फोन कर रहा था पर बदहवास और हॉस्पिटल में व्यस्त इशिता उसका फोन रिसीव नहीं कर पा रही थी। पापा को इको के लिए ले गए तो इशिता ने कमल को फोन मिलाया।


" कमल, लगता है पापा को हार्ट अटैक आया है।" 


 अब तक मम्मी और पापा को संभालती और त्वरित गति से हालात संभालती इशिता फफक पड़ी थी।


" वह तो ठीक है , इशिता , सात बज रहे हैं , अभी गेस्ट आना शुरू हो जाएंगे। पार्टी का क्या होगा ? तुम कब तक आ रही हो घर ? " 


 कमल की बात सुनकर सन्न रह गई इशिता।


" तुम्हें पार्टी की पड़ी है कमल , तुमने सुना नहीं मैंने क्या कहा है। पापा को शायद हार्ट अटैक आया है। मैं हॉस्पिटल में हूं। पापा के टेस्ट चल रहे हैं।" 


" मैंने सुन ली थी तुम्हारी बात , पर इतने लोगों को बुलाया हुआ है। अब लास्ट मोमेंट पर मैं क्या करूं बताओ?" तुम्हें मेरी सच्युऐश्न में समझ में आ रही है ?" कमल ने बौखला कर कहा।


" भाड़ में जाओ तुम और तुम्हारी पार्टी। मुझे समझ में नहीं आ रहा कमल कि तुम इन हालातों में मुझसे क्या एक्सपेक्ट कर रहे हो ?" 


 क्रोध , बेबसी और कमल की हृदयहीनता से टूटी इशिता बिलख पड़ी थी।


 यह कोई पहली बार नहीं था कि मम्मी ने इशिता को इस प्रकार फोन करके सहायता के लिए बुलाया था। शादी हो जाने के बाद भी मायके के घर बाहर के अनेक कार्यों की जिम्मेदारी इशिता पर ही थी। और इस बात को कमल भी शुरू से ही भली भांति जानता था। इशिता अपने मम्मी पापा की इकलौती संतान थी, और अपने मम्मी पापा का एकमात्र सहारा। वस्तुतः इशिता ने तो कॉलेज के जमाने से ही अपने घर और बाहर की अनेक जिम्मेदारियां बड़ी कुशलता से संभाल रखी थी। घर के बिल जमा करवाने हो या बैंक के काम , कुछ टूट फूट या रिपेयर के लिये मिस्त्री बुलाना हो , डॉक्टर के जाना हो या ग्रौसरी लानी हो , ममी इशिता पर इस कदर आश्रित थी कि घर का पूरा निजाम इशिता के बिना अधूरा था। और ये सिलसिला शादी के बाद भी बदस्तूर जारी थी। वक्त बेवक्त ममी को जब भी कोई काम होता वे इशिता को ही फोन करती थी। कमल इशिता के घर के हालात समझता था। हालांकि उसे खुद अपने ससुराल जाना पसंद नही था , पर इशिता को उसने वहां जाने से कभी नही रोका था।


पर आज हालात ने जो करवट ली थी कमल स्वयं को संभाल नही पा रहा था। पार्टी तो जैसे तैसे निबट ही गई थी। मेहमानों को तो कमल ने इशिता के पार्टी में ना होने का कारण समझा दिया था , पर ऑफिस कुलिग्ज को दी गई इतनी इम्पोर्टैट पार्टी पर बुला कर इशिता का यूं घर से गायब रहना कमल बरदाश्त नही कर पा रहा था। उसने उस रात खूब शराब पी। पार्टी खत्म होने के बाद भी ड्राईग रूम में सोफे पर अकेले पसरा कमल बोतल खोल कर बैठा था।


 डॉक्टर ने पापा की इंज्योग्राफी करने का बोला था । उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट करवाने के बाद ममी को पापा के पास छोड़ कर थकी हारी इशिता लगभग बारह बजे घर लौटी थी। चिन्ता और तनाव से उस का सिर फटा जा रहा था। ग्लानिबोध भी था कि कमल ने पार्टी में अकेले कैसे सब कुछ हैड़ल किया होगा। घर में कदम रखते हुये उसका ह्रदय धड़क रहा था। ये पहला अवसर था जब समय ने उसे किसी ऐसी कठिन परीक्षा में डाल दिया था जब एक मोर्चे पर अपने कर्तव्य को निभाते हुये दूसरे महत्वपूर्ण मोर्चे को अनदेखा करना पड़ा गया था। वक्त की डिमांड यही थी कि पापा को समय से उचित चकित्सकिय सहायता मिले। फिर क्यों इशिता की छटी इन्द्री उसे किसी अप्रिय अनहोनी की आशंका का आभास दे रही थी।


" तुम अभी तक पी रहे हो कमल "


इशिता ने कमल के हाथ से गिलास छीन कर मेज पर रखा और इधर उधर निगाह दौड़ाई। फिर थके स्वर में बोली " पार्टी कैसी रही कमल। ओफ्फ। कितना बिखरा है सब। चंपा समेट कर भी नहीं गई ये सब।"


" ओह। तो मैड़म आ गई। आओ, आओ अभी तो पार्टी शुरू हुई है। आओ, बैठो यार। दो घूंट तुम भी लगा लो। मेरी प्रमोश्न हुई है जानू। " कमल ने नशे में बहकते हुये कहा।


इशिता ने कमल को जबरदस्ती सहारा दे कर उठाया और सीढ़ियों की तरफ ले चली।


" तुम्हें बहुत चढ़ गई है कमल। चलो उपर, कमरे में चल कर आराम से लेटो। "


" चढ़ी नहीं है। नहीं , नहीं कहां चढ़ी है। आज तो उतरी है पहली बार। तुम ....तुम जाओ ....वही जाओ जहां से आई हो। कहती है , मुझे चढ़ी है। अरे ऑसिफ वालो के सामने इतनी बेज्जती के बाद भी चढ़ा रहे नशा तो लानत है ऐसे पीने पर ....हां नहीं तो।" कमल के पांव और जुबान दोनों लड़खड़ा रहे थे। 


ऐन पार्टी के वक्त इशिता का घर पर पर ना होने का सारा दबा हुआ क्रोध और आक्रोश नशे की हालत में जुबान पर आ बैठा था। इशिता चुपचाप सब सुन रही थी क्योंकि हालात वो भी समझ रही थी कि उस समय उस का घर पर रहना भी कितना जरूरी था।


कमल अपनी रौ में बड़बड़ता जा रहा था।


" और ये जो हमारे ससुर जी है, पांव लागूं ससुर जी।" 

कमल ने हवा में ही हाथ अपने घुटने तक ला कर सिर से छुआया।

" ये तो महान है। बताओ , दामाद के घर दावत है और खुद पहुंच गये हॉस्पिटल। अरे यार, गलत समय पर गलत जगह ही क्यों होते हो आप। " 

तिलमिला गई इशिता। 


" नशे में कुछ भी बके जा रहे हो कमल। होश करो। पापा के बारे में दिल ही दिल में इतना गंदा सोचते हो। छीः।" इशिता बिलख पड़ी थी।


" तो क्या करूं। आरती उतारूं तुम्हारे मां बाप की। जब से शादी हुई है , कभी मौक बेमौका नही देखते , बस झट से फोन घुमा देते हैं , इशिता ये कर दो इशिता वो कर दो। अरे कुछ जिम्मेदारी इशिता की यहां के लिये भी है कि बस आप के आगे पीछे ही घूमती रहे। बोलो सासु मां ...।ओ सासु मां ....।

कमल जोर से चिल्लाया।


" अच्छा तो ये है तुम्हारा असली चेहरा। " इशिता ने घृणा और क्रोध में भर कर कमल को धक्का दे दिया। कमल लड़खड़ा कर सीढ़ी पर बैठ गया।


" हां , यही मेरा असली चेहरा है ...। बोलो क्या कर लोगी। " कहते हुये कमल ने इशिता को परे धकेला ।


इशिता डगमगा गई और सीढ़ियों से लुढ़कते धड़ाम से नीचे आ गिरी। उस के सिर से खून बहने लगा।


" इशिता ..." 


कमल का सारा नशा पल भर में काफूर हो गया।


इशिता के सिर में तो ज्यादा चोट नहीं थी पर पांव में फ्रैक्चर हो गया था। दो महीने का पलॉस्टर चढ़ा था। इशिता कमल की बातों से इतनी आहत थी कि गुमसुम हो चुकी थी। कमल अपनी हरकत पर बेहद शर्मसार था। वह इशिता से नजर नही मिला पा रहा था। बार बार माफी मांग रहा था। पर कड़वे शब्दों के नश्तर इतने गहरे मर्म पर चोट कर चुके थे कि माफी का मरहम भी उन्हें भरने में नाकाम सिद्ध हो रहा था।


 इशिता के सामने देह के घावों के दर्द की हैसियत ही क्या थी उन घावों के सामने जो मन पर लगे थे। सब से अधिक तड़प इस बात की थी कि अकेली ममी पापा को कैसे संभाल रही होगी। डॉक्टर ने साफ कहा था कि इंज्योग्राफी की रिपोर्ट ठीक ना आई तो उसी समय निर्णय लेना होगा स्टंट डालने का । ममी तो खुद को नहीं संभाल सकती ये सब काम कैसे संभालेंगी। उन्हें तो ए टी एम से पैसे तक निकालने नहीं आते। इशिता फूट फूट कर रो रही थी। 

" ओह गॉड़ , मैं क्या करूं। कौन है जो मेरे ममी पापा के साथ खड़ा हो उन्हें सहारा देने के लिये।" बेबसी की कसमसाहट आंसूओं में बह रही थी। कमल ग्लानि और अपराध बोध में घिरा हिम्मत नहीं कर पा रहा था इशिता को हौसला देने का। इशिता की मरहम पट्टी और पांव में पलॉस्टर चढ़वाने के बाद घर पहुंचते पहुंचते सुबह के दस बज गये थे। चंपा काम पर आ चुकी थी। कमल गोद में उठा कर इशिता को भीतर ले आया और सोफे पर लिटा दिया।


"ये क्या हो गया भईयाजी , पांव पर ये इत्ती मोटी पट्टी कैसे बंधी है भाभी के। और ये सर पर पट्टी ? भाभी आप तो अपने पापा को देखने गई थी ना। आप को क्या हो गया ? मैं आई तो कित्ती घंटियां बजाई। जब दरवाजा नहीं खुला तो अपनी चाबी से दरवाजा खोल कर अंदर आई। वही मैं सोचूं कि बिना बताये आप कहां चले गये।" 


चंपा इशिता का हाल देख कर घबरा गई थी।


" रेल गाड़ी की तरह मत भाग। एक ही सांस में इतने सवाल। चल जा पहले भाभी के लिये चाय और कुछ खाने को ले आ। और हां , फिर नीचे का गेस्ट रूम ठीक कर देना। तेरी भाभी अभी सीढ़ियां नहीं चढ़ पायेंगी।" 


कमल ने चंपा को आदेश दिया।


" तुम्हें मेरी परवाह करने की जरूरत नहीं है। " उदास स्वर में इशिता ने कमल को कहा।

फिर चंपा से बोली , " मेरा फोन ला दो चंपा मुझे जरूरी कॉल करनी है 


कमल इशिता को घर छोड़ कर नहा धो कर कहीं चला गया था। इशिता ने मम्मी को कॉल करने के लिए फोन उठाया कि था कि मम्मी का ही कॉल कि आ गया। वह उसका हाल पूछ रही थी। साथ ही पूरा आराम करने और अपने पैर का ध्यान रखने को कह रही थी। मम्मी की आवाज बिल्कुल सामान्य लग रही थी। इशिता ने तड़प कर पापा का हालचाल पूछा , तो मम्मी झट से बोल पड़ी , " वे बिलकुल ठीक है तू उनकी चिंता मत कर। यहां सब ठीक है।तू बस अपना ध्यान रख।"

पर इशिता को चैन नही था। ममी कैसे सब संभालती होंगी। कई बार उसके मन में आता कि कमल से कहे कि गाड़ी में बिठा कर वो उसे कुछ देर के लिये ममी के घर ले चले। या कमल खुद ही वहां हो आये। पर हर बार उस का अहं आड़े आ जाता। 


वैसे कमल उसका जरूरत से ज्यादा ध्यान रख रहा था। हर रोज सुबह की चाय वो खुद बनाता उसके लिये , और ट्रे में एक गुलाब का फूल भी रख देत था। जब तक घर पर रहता इशिता के हर काम का ध्यान खुद ही रखता ।वह हजारों बार हाथ जोड़ कर माफी भी मांग चुका था पर इशिता के दिमाग से वो शब्द निकलते ही नही थे जो नशे की हालत में कमल के मुंह से निकले थे। उसके मन और आत्मा में एक टीस और दर्द की एक लहर अटक कर रह गई थी। कमरे में पड़े पड़े इशिता जल बिन मछली की भांति तड़पती रहती। कमल की देखभाल और प्यार उसे नाटक लगने लगा था। ममी भी अब कम ही फोन करती थी उसे , और इशिता के फोन करने पर भी वह कभी किसी व्यस्तता का बहाना बना देती और कभी थोड़ी सी औपचारिक बात करके फोन रख देती थी।


दो महीने बाद कहीं जाकर इशिता को चैन आया , जब उसका प्लास्टर कटा। एक्स-रे किया गया , हड्डी ठीक से जुड़ चुकी थी। फिर भी डॉक्टर ने कुछ दिनों तक फिजियोथैरेपी करवाने को कहा था। कमल रोज ऑफिस से छुट्टी नहीं ले सकता था तो उसने डिसाईड़ किया कि ऑफिस का ड्राइवर रोज आकर इशिता को फिजियोथैरेपी के लिए ले जाएगा और सिर्फ घर ही ड्रॉप कर दिया करेगा। यह सुविधा इशिता को भी ठीक लगी। पहले ही दिन फिजियोथैरेपी के बाद उसने ड्राइवर से ममी के घर ले चलने को कहा कह दिया इतने। दिनों बाद वह जा रही थी मायके। मम्मी तो सदा फोन पर कह देती थी कि सब ठीक है , पर जब तक वह सब कुछ अपनी आंखों से ना देखे ले , उसे चैन कहां था। जब वह घर पहुंची तो उसने देखा कि पोर्च में एक नई सिल्वर कलर की ऑल्टो गाड़ी खड़ी है। कौन आया होगा घर पर , यह किसकी गाड़ी है , सोचते हुये इशिता ने डोरबेल बजाई। मम्मी इशिता को दरवाजे पर खड़ा देखकर हैरान रह गई।


" बिट्टू , तू यहां , इस समय कैसे , तुझे तो फिजियोथैरेपी के लिए जाना था ना।" कहते हुए मम्मी ने इशिता को गले से लगा लिया। 

" पापा कैसे हैं ममी ?" कहकर इशिता फूट कर रो पड़ी।

" चल अंदर तो चल पहले, सब बताती हूं। " कह कर ममी इशिता को सहारा देकर भीतर ले आई।

" कोई आया है क्या घर प , बाहर गाड़ी खड़ी है , और पापा कहां है ?" पानी पी कर कुछ संयत  होकर इशिता ने इधर-उधर देते देखते हुए पूछा।


" गाड़ी तो मेरी है। "


इशिता का मुंह खुला का खुला रह गया। जब से पापा को गाड़ी चलाना मना किया था डॉक्टर ने, ममी ने पापा की गाड़ी इशिता को दे दी थी , ये कह कर कि इतनी बड़ी गाड़ी पड़े पड़े जंग खा जायेगी। ममी तो चलाती ही नही थी गाड़ी।


उसे हैरान देख कर ममी हंसती हुई बोली , " अरे कमल ने जबरदस्ती गाड़ी खरीदवा दी और फिर प्रेक्टिस भी करवा दी। कहता था आदमी स्विमिंग और ड्राईविंग एक बार सीख ले तो जन्म भर नही भूलता। और देख वही हुआ , आठ दस दिन उसने जम कर प्रेक्टिस करवाई और अब मै फिर से ट्रेड़ हो गई हूं गाड़ी चलाने में।


इशिता सोचने लगी कि कमल ने गाड़ी चलाने की प्रैक्टिस करवाई मम्मी को , और गाड़ी भी खरीदवा दी। इतना कुछ हो गया दो महीनों में और उसे कुछ पता ही नहीं।


" अच्छा, पापा कहां है ?" वह उठकर पापा के कमरे की ओर जाने लगी।


तभी दरवाजा खुला और कमर भीतर आते हुए बोला 


" डार्लिंग, पापा यहां है।"


" कमल पापा को डॉक्टर के लेकर गया था , बिट्टू , हर दस दिन बाद जाना पड़ता है ना चेकअप के लिए , वही तो लेकर जाता है पापा को ।" मम्मी बोली।


यह एक और सरप्राइस था इशिता के लिए।


मम्मी ने उसे बताया कि जिस दिन पापा की एंजियोग्राफी होनी थी कमल सुबह ही हॉस्पिटल पहुंच गया था, और स्टंट डालने के लिए जब कंसल्ट पेपरों पर साइन करने की बारी आई तो वह साइन भी उसी ने किए थे। उसके बाद हर रोज सुबह शाम वह यहां के चक्कर लगाता था। उसने एक पल के लिए भी उन्हें महसूस नहीं होने दिया था कि इशिता के बिना वे लोग कितने अकेले हैं। 

" और इशिता पता है तुझे , कमल मुझे अपने साथ ग्रोसरी या शॉपिग के लिये ले जाता था और खुद एक ओर खड़ा रहता था। कहता था , ममी आप खुद से करो सारे काम।ऐसे ही तो आप में कॉन्फिडैंस आये गा। और देख अब मैं सब कुछ खुद से हैंडल कर लेती हूं। ए टी एम ऑपरेट करना भी आ गया है मुझे। अब मैं गाड़ीसे अकेली कहीं भी आती जाती हूं। ये सब कमल की मेहनत से ही तो हुआ है।" 


इशिता सोच रही थी कि अच्छा तो ये कारण था कि कमल पिछले दो महीने से घर से सुबह जल्दी निकल जाता था और रात को देर से घर आता था। इशिता को ये बस जान कर बहुत सुकून तो मिला ही पर साथ ही कमल और ममी के प्रति क्रोध की लहर भी उठी कि ये सब उसे क्यों नही बताया गया।


" इतना कुछ हो गया , मुझे आप लोगो ने कुछ नही बताया , मुझे इतना पराया कर दिया आप सब ने मिल कर।" इशित रोते हुये पापा के गले लग गई।


" रोती क्यों है पगली , देख तेरे सामने तो खड़ा हूं ठीक-ठाक। और तू तो मेरी जान है बिट्टू।" पापा इशिता के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोले।


" अब बेटी बिस्तर पर पड़ी थी , पर हमारा बेटा तो था ना हमारे पास। चिंता की क्या बात है।" 


" हां जी पापा।" वह कमल की ओर हैरानी से देखती हुई बस इतना ही कह पाई।


"  ऐन मेरे ऑपरेशन के दिन तू तो अपना पैर छुड़वा कर बैठ गई , अकेले हमारे बेटे को दौड़-धूप करनी पड़ी दोनों मोर्चों पर।" पापा बोले।


 उन के चेहरे पर कमल के लिए जो वात्सल्य था , वह उनकी मुस्कुराहट में घुल कर इशिता के मन पर जमे गिले-शिकवे की सारी परतों को धो डाले दे रहा था। संवेगो और भावनाओं के आवेग में उसका गला रूंध गया था। उसने कमल की ओर नजर भर कर देखा। कमल उसके चेहरे कें उतर चढ़ाव बारीकी से पढ़ रहा था। वैसे भी वह कहां छुपा पाती है अपना मन कमल से। कमल ने अपनी दोनों बांहें इशिता की ओर फैला दी ।वह लरज कर उठी और कमल के सीने से लग गई। दो महीनों से आँखों में कैद आँसुओं की झड़ी लग गई। ये लम्हे , बारिश की बूंदों में भीगे वे लम्हें थे , जिन में सराबोर इशिता अपने जीवन के कलाईडो स्कोप में कमल के प्रेम के इन्द्रधनुषी रंगों के विचित्र रूपों स्वरूपों को चकित हो कर देख रही थी ।


उसे लग कि कमल की बलिष्ठ बांहों का घेरा वो वासन्ती बयार है जिसने उसके रोम रोम में चटक सुनहरी पीली सरसों खिला दी है।



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