बदहवास भागता आदमी हर बार... ठीक मेरी नाक की सीध में आ जाता है... बिलबिलाकर मर जाता है... अपने हक़ को भीख की शैली में माँगता हुआ और मैं फूल-पत्ती-मादा के सारे प्रचलित मुहावरों और सन्दर्भों से कट जाता हूँ !
Share with friendsवृद्ध लाठी टेककर खड़े दरवाजे से भीतर कमरे में झाँक रहे थे. शायद पूरी अलर्ट बरतते हुए. शायद बहू के देख लेने और उसके बाद गर...
Submitted on 04 Jul, 2016 at 18:11 PM
हम पैदल कच्ची गली के कीचड़,कंकड़ और उठान पर आई नालियों को लांधते-फांदते चल रहे थे। स्निग्धा गुमसुम थी।ये गौर करने वाली बात...
Submitted on 30 Jun, 2016 at 10:38 AM
कामेश्वर का सिर अपनी जगह है । उसने पहले फैसला किया था कि वह प्रत्यक्ष दोस्त हो सकता है, और अप्रत्यक्ष प्रेमी । उसने फैसल...
Submitted on 30 Jun, 2016 at 10:27 AM