Ragini Ajay Pathak

Abstract Drama

4.5  

Ragini Ajay Pathak

Abstract Drama

नजरिया बदलिए !

नजरिया बदलिए !

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रक्षा आजकल घर मे बने तनावपूर्ण माहौल से परेशान थी। रक्षा की सास सरला जी और ससुर उमेश जी हर वक्त गुस्से में रहते। सरला जी कुछ दिनों से बात बात में रक्षा से तुनक जाती और गुस्सा कर या तो उल्टा सीधा सुनाकर डांट देती या फिर बात करना ही बंद कर देती।

रक्षा को सबसे ज्यादा आश्चर्य इस बात का था कि आजकल सरला जी रक्षा की ननद सिया से भी गुस्से में रहती। हँसमुख और मिलनसार सिया आजकल कुछ उदास और उखड़ी उखड़ी सी रहने लगी थी।

रक्षा को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर उसके हँसते खेलते परिवार को किस की नजर लग गयी। रक्षा पूछे भी तो किस से क्योंकि ना तो कोई कुछ बोलने बताने को तैयार... ना ही सुनने के लिए तैयार।

पूरा महीना निकल गया ऐसे ही तनाव भरे माहौल में ,रक्षा ने अपनी शादी के पांच सालों में घर वालो का ऐसा व्यवहार कभी नहीं देखा था।

एक दिन उसने अपने पति अमन से पूछा" अमन सच सच बताओ कोई बात है क्या? जो सब इतना परेशान है सबके चेहरे से हँसी ही गायब हो गयी है, कोई किसी से कुछ बोलता भी नहींं, कुल मिलाकर 6 लोगों का तो परिवार है। उसमें भी ऐसी स्थिति में घर में तो अच्छा ही नहीं लगता। माँजी भी आजकल सिया से जब भी बात करती है कमरा बंद करके ही बात करती है।"

और सिया जिसकी बातें और हँसना कभी बंद ही नहीं होता था आज़कल चुप्पी लगाए रहती है। उसकी सहेलियों का आना जाना भी बंद हो गया है। 

मैंने सिया की सहेली रोशनी को भी फ़ोन किया था लेकिन उसने मेरा फोन उठाया नहींं।

अमन तुम सुन रहे हो मैं क्या बोल रही हूँ,? कि खाली चुपचाप सुन रहे हो।

जवाब में अमन ने सिर्फ दो टूक कहा-"रक्षा रात बहुत हो गयी है सो जाओ कल बात करते है। और तुम आज के बाद कभी रोशनी को फ़ोन नहींं करोगी ना उसके नाम का किसी से जिक्र करोगी। समझी"

"लेकिन क्यों रोशनी ने ऐसा क्या कर दिया?"

"जितना कह रहा हूं उतना ही सुनो ज्यादा सवाल जवाब की कोई जरूरत नहीं समझी।"

रक्षा को जिस बात की उम्मीद थी वही हुआ, इतना कहकर अमन दूसरी तरफ करवट बदलकर सो गया और रक्षा देखती रह गयी। लेकिन इधर रक्षा के मन मे उधेड़बुन चलती रही।

रविवार के दिन रक्षा दोपहर में तीन बजे के करीब पानी पीने रसोई की तरफ बढ़ी थी कि तभी उसको सिया के कमरे से आवाज आई, जैसे कोई कुछ गुस्से में बोल रहा हो।

रक्षा तेज कदमो से भागती हुई कमरे की तरफ बढ़ी और कमरे के बाहर पहुंचते ही उसको एक जोरदार थप्पड़ की आवाज आयी। कमरे का हल्का खुला था तो रक्षा ने अंदर झांककर देखा

रक्षा के ससुर जी सास और अमन तीनो कमरे में मौजूद थे और ससुर जी ने सिया को एक जोरदार थप्पड़ गाल पर मारा था।

सिया रोते रोते सिर्फ इतना ही कह रही थी कि ये घर और आप लोगों की कोई जोर ज़बरदस्ती मुझे रोशनी से शादी करने से नहीं रोक सकती मैं जब भी शादी करूँगी उसी से करूँगी वरना मर जाऊंगी लेक़िन किसी और से शादी नहीं करूँगी।

माँ क्यों आप सब ने भैया को लव मैरिज करने से नहीं रोका और ना कोई विरोध किया तब तो सबने खुशी खुशी रक्षा भाभी को स्वीकार कर लिया। और आज आप सब मुझसे कह रहे है कि मैं रोशनी को भूल जाऊं, जब भाई के लवमैरिज करने से समाज मे बदनामी नहीं हुई तो मेरे ऐसा करने से कैसे बदनामी होगी।

सरला-"अच्छा, तो तुमको अपने और अमन की शादी में कोई फर्क नजर नहीं आता। अमन ने एक अच्छे घर की लड़की से शादी की ना कि तुम्हारी तरह ऐसी गिरी हुई हरकत की ....ये कैसा प्यार का नशा ... जो एक लड़की दूसरी लड़की से शादी करना चाहे। समाज मे हमारी क्या इज्जत रह जायेगी। एक बात कान खोलकर सुन लो सिया अच्छे संस्कारो और परवरिश वाली लड़कियां ये सब नहीं करती, और हम अच्छे थे तुम्हारा भाई अच्छा था, इसलिए रक्षा को कोई समस्या नहीं हुई लेकिन सब इतने अच्छे नहीं होते,इसलिए ये प्यार का भूत जितनी जल्दी तुम्हारे सिर से उतर जाए उतना ही अच्छा होगा।"

सिया-"वाह मां क्या बात कही आपने ? दुनिया कहाँ से कहाँ बदल गयी। और आप है कि अभी भी पुराने विचार लिए बैठी है और अब तो कानून भी हमारी शादी को मंजूरी देता है । फिर आप को क्या परेशानी है। सभी विवाह अच्छा बाकी दुनिया मे जो भी समलैंगिक विवाह करे वो सब बेकार और खराब ही है। क्यों क्या मैं जान सकती हूँ।"

अमन ने अपना गुस्सा काबू करते हुए कहा-"देखो सिया हम तुम्हारे दुश्मन नहीं है तुम्हारे भले के लिए ही तुम्हे समझा रहे है। ऐसी शादियों को हमारा समाज बिरादरी स्वीकार नहीं करता और ऐसी शादियां लम्बे समय तक चलती भी नहीं। कल को कुछ ऊंच नीच हुई या कोई बात हुई तो कैसे सारी चीजों का सामना करोगी। इसलिए कान खोलकर एक बात सुन लो कि अगर गलती से भी अगर तुमने उस से बात की या कोई गलत कदम उठाया तो हमारा तुम्हारा कोई रिश्ता नहींं, फिर तुम्हारे साथ जो भी हो तुम उसकी खुद जिम्मेदार होगी हम सबसे कोई उम्मीद मत रखना की हम सब तुम्हारा साथ देंगे।

"सिया कोई दे या ना दे लेकिन मैं हमेशा तुम्हारा साथ तुम्हारे हर फैसले में दूँगी, और जब भी तुमको जरूरत होगी तुम्हारी ये भाभी हमेशा तुम्हारे साथ खड़ी होगी"रक्षा ने कमरे का दरवाजा खोलते हुए कहा

और रोती सिसकती सिया को अपने गले से लगा लिया।

सिया ने रोते हुए कहा"आप सच कह रही हो भाभी"

रक्षा-"हाँ, सिया मैं बिलकुल सच कह रही हूं अगर तुम सही हो तो इसके लिए अगर मुझे पूरे परिवार के खिलाफ भी जाना पड़े तो मैं तैयार हूं,तुम तो मुझे अपना दोस्त कहती थी ना फिर ये बात क्यों छिपाई अपने दोस्त से?"

अमन ने रक्षा पर गुस्से में चीखते हुए कहा -"रक्षा तुम्हे जब पूरी बात नहीं पता तो तुम इस विषय पर चुप ही रहो तो अच्छा होगा,"

रक्षा-"पूछा तो था तुमसे अमन ...लेकिन तुमने बताई पूरी बात नहीं ना .....क्यों जान सकती हूँ?शायद तुम्हारे पास इसका कोई जवाब ही नहीं"

मुझे दो दिन पहले ही पता चल गया था कि सिया रोशनी से प्यार करती है और शादी करना चाहती है जब माँजी और सिया की बहस हो रही थी तब मैंने उनकी थोड़ी बात सुनी थी।

लेकिन प्यार करके सिया ने कोई जुर्म तो किया नहीं, सिया क्या गलत कह रही है माँजी , अगर इस घर मे अमन को प्यार करके अपनी पसंद की लड़की से शादी करने का अधिकार है तो सिया को क्यों नहीं है। लड़के लड़की में ये भेद क्यों?

और अमन तुम शायद भूल रहे हो तो मैं तुम्हें याद दिला दूँ कि बराबरी तो मेरी और तुम्हारी भी नहीं थी मैं ने भी सिया की तरह ही अपने पापा से जिद करके तुमसे शादी की थी तब उन्होंने भी यही कहा था मुझे की एक दिन पछताओगी अपने फैसले पर और तब तुमने कहा था कि मेरे पापा की सोच पुराने ख्यालों की गांवरो वाली है वो हमारी होने वाली शादी शुदा खुशहाल जिंदगी के विलन बन रहे है।

क्या मैं अब तुमसे जान सकती हूँ? कि अब तुम आज के जमाने के होकर खुद लवमैरिज करके किस तरह की सोच पाले बैठो हो...क्या इसको गांवर वाली सोच नहींं कहेंगे।

एक बड़ा भाई होने के नाते तो तुम्हारा फर्ज होना चाहिए था कि तुम सिया को समझते उसकी बात सुनते ,पहले रोशनी और उसके परिवार से मिलते तब कोई निर्णय लेते तुम तो बिना सुनवाई के ही फैसला सुना रहे हो। जानती हूँ कि इसे स्वीकार करना इतना आसान नहींं लेकिन इतना मुश्किल भी नहींं जो बेटी से ज्यादा प्यारा हो।

पापा माफी चाहूँगी लेकिन क्या हर अरेंज या लव मैरिज खुशहाल होती है। क्या अरेंज और लव मैरिज में समस्याएं नहीं आती तो क्या हम घर की बेटियों को अकेला छोड़ देते है। नहींं ना ....क्योंकि समस्या कही और कभी भी किसी भी रिश्ते में आ सकती है। पापा आप की इकलौती बहन यानी बुआ जी को दहेज के लिए जला कर मार दिया जाना इस बात का जीता जागता उदाहरण है आपकी जिंदगी में जिनको याद करके आप आज भी हर रक्षा बंधन पर रोते है। पापा मेरा मकसद आपका दिल दुखाने का नहीं , बल्कि एक सच आप सब के सामने रखना चाहती हूँ जिसे आप नकार नहीं सकते।

मम्मी जी कब तक हम औरतों के साथ ये दोहरा व्यवहार होता रहेगा, कब तक हम लोग कभी इज्जत, कभी मान मर्यादा के नाम पर कैद किये जायेंगे, कब तक हम लोगो को अपने फैसले शादी से पहले पिता ,भाई और शादी के बाद पति ,पुत्र से पूछकर लेने होंगे। क्यों एक माँ, एक बेटी, एक पत्नी ,एक बहन अपना स्वतंत्र फैसला नहीं ले सकती। एक औरत जो घर चला सकती है , एक बच्चे को नवजीवन देकर , उसका पालन पोषण करके उसका भविष्य संवार सकती है वो खूद के लिए एक फैसला नहीं ले सकती।

क्या पुरुषों के लिए हर फैसले सही ही होते है, क्या उनसे गलतिया नहीं होती। होती है ना।

आज अगर सिया कोई गलत कदम उठाती है और उसके उस फैसले से समाज मे बाते होती है तो उसके जिम्मेदार हम होंगे वो नहीं।

और जिस समाज की आपको चिंता है ना उसकी याददाश्त बहुत छोटी होती है,कल को यही समाज सिया के कुछ गलत करने से आपको गाली देगा तो हम सब के सिया का साथ देने से वाह वाही भी करेगा।

इसलिए खुले दिल दिमाग से सोचिए आप सब की 28 साल की आपकी बेटी पर आप को भरोसा है जो आपके हर सुख दुःख में आपका साथ देगी, आप उसका साथ देंगे या समाज के साथ चलेंगे जो आपको कुछ नहीं देने वाला।

अमन हम थियेटर में बैठकर जब फ़िल्म देखते है तो उसके अंत मे हिरो हीरोइन के प्यार की जीत होने पर खुशी से सिटी और ताली बजाते है और हार होने पर दुःखी हो जाते है। तो असल जिंदगी में हम सब प्यार करने वालों के मिलने पर खुश क्यों नहीं होते।

अमन ने कहा-"रक्षा तुम सही कह रही हो मैं गलत था," और फिर सिया को गले लगाते हुए कहा" मुझे माफ़ कर दे,जा जाकर फोन कर दे रोशनी को कल मैं उसके घर आने वाला हूं उसके घर वालो से मिलने।"

इतना सुनते सिया खुशी से मुस्कुरा उठी और रक्षा से कहा"भाभी मेरे मन की जो बात मेरे अपने ना समझ सके, वो आप समझ गयी,काश ऐसे ही हर औरत दूसरी औरत का साथ देने लग जाये तो हम लड़कियों की ज़िंदगी स्वर्ग बन जाये।

आज पूरे पांच साल बाद सिया अपनी शादी की सालगिरह पर रोशनी के साथ घर मे खुशी खुशी मौजूद थी सब खुश थे और समाज के लोग आज रक्षा के खुशहाल परिवार की मिसाल देते हुए कहते है ।परिवार हो तो ऐसा।

प्रियपाठकगण उम्मीद करती हूं कि मेरी ये रचना आप सबको पसंद आएगी, कहानी का उद्देश्य किसी की भावना को आहत करना नहीं है। किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए क्षमाप्रार्थी हुँ।


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