नहीं सहूँगी ,मैं सब जैसी नहीं
नहीं सहूँगी ,मैं सब जैसी नहीं
निशिता शादी हो कर नए घर आई थी। एक पल मन में गुदगुदी होती और दूसरे ही पल घबराहट, कुछ अजीब सी स्थिति थी। नया परिवार नए लोग और साथ ही जिसके साथ विदा हो कर आई, अनुज, वह भी अनजान। निशिता और अनुज शादी से पहले बस दो बार ही मिले थे। ऐसे माहौल में समझ ही नहीं आ रहा था कि किससे क्या बातें करे और अपने मन की स्थिति साझा कर कुछ हल्का महसूस करे।
निशिता के ससुराल में सास ससुर जी के अलावा एक जेठ-जेठानी और छोटा देवर है। जेठ की शादी भी बस दो साल पहले ही हुई है। देवर अनुज से तीन साल छोटा है और अभी कुछ पक्का काम नहीं करता है।
अभी निशिता लोगों के नाम और रिश्ता समझने की कोशिश में थी कि देवर आकर पास में बैठ गया और कुछ इधर उधर की बातें करने लगा। इस दौरान वह कभी निशिता के हाथ पर तो कभी पाँव पर स्पर्श भी कर लेता था। जिसे निशिता नज़र अन्दाज़ कर रही थी क्योंकि उसे कोई तो मिला जो बातें कर रहा था। तभी जेठानी निशिता को खाने के लिए बुला कर के जाती है।
धीरे धीरे दिन बीतते गए और शादी का माहौल ख़त्म होकर सब कुछ सामान्य होता गया किंतु एक बात नहीं बदली वह थी देवर का बात करते हुए स्पर्श करना। अब तो वह इधर उधर और कई बार ग़लत जगह पर भी स्पर्श करने लगा था। ऐसा करने पर निशिता उसे सम्भाल कर बात करने को कहती तो माफ़ी माँग लेता और फिर ऐसा नहीं होने की बात कहता| लेकिन फिर और फिर वही चीज़ें दोहरा जाता था वह।
निशिता को ये सब पसंद नहीं आ रहा था। उसने देखा कि देवर ऐसी हरकतें उसकी जेठानी के साथ भी करता है और जेठानी भी उसे पसंद नहीं करती पर ज़ोर से विरोध नहीं करतीं। निशिता ने जेठानी से बात करने की सोची।
उसने जेठानी से बोला "दीदी आप छोटे भैया की हरकतों को क्यों बर्दाश्त करती हैं? विरोध क्यों नहीं जताती?"
तब जेठानी ने जो बताया उससे निशिता सकते में आ गई। जेठानी ने कहा उसने देवर की हरकतों के बारे में अपने पति से कहा तो उन्होंने नहीं माना और कहा कि ये तुम्हारी ग़लतफ़हमी है। सासु माँ से भी बात करी तो उन्होंने कहा भाभी देवर के बीच मज़ाक़ तो चलता है और धीरे से मेरे पर ही उँगली उठा दी। अब अपने सम्मान को मैं चुपचाप बचती हूँ। कोशिश करती हूँ कि उनसे सामना कम ही हो और अगर हो भी तो समुचित दूरी रखती हूँ।
निशिता ने अब अपने पति से बात करने की सोची। देवर की हरकतें बताकर निशिता कुछ सहयोग की आशा कर रही थी अनुज से, लेकिन अनुज अपने भाई को शरीफ़ और सज्जन बताता रहा और उसे फिर से मौक़ा देने को कहा ताकि निशिता के मन में जो ग़लतफ़हमी है सही हो जाए। इसके बाद निराश निशिता ने सास को भी बताया लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।
अब निशिता ने देवर की हरकतों को रोकने और उसे सबके सामने उजागर करने की ठान ली। इसमें उसने साथ देने के
लिए जेठानी को भी मना लिया। रात को खाने की मेज़ पर और सुबह की चाय-अख़बार के समय पूरा परिवार साथ होता है। इसलिए समय को दोनों ने सही समय माना अपनी बात सबूत के साथ सब तक पहुँचने का। रात को खाने के समय जब निशिता हाथ पोछने के लिए देवर को तौलिया बढ़ाया तो उसने तौलिया के बजाए निशिता के हाथ को पकड़ लिया। इससे पहले कि वह माफ़ी माँगे निशिता ने थोड़े ऊँची आवाज़ में कहा भैया हाथ ना पकड़ो तौलिया पकड़ो।
वह सकपका गया और झटके से हाथ छोड़ दिया। सभी खाने की मेज़ पर ही बैठे थे इसलिए निशिता की आवाज़ सभी ने सुनी। अपने छोटे भाई की हरकत दोनों बड़े भाइयों ने भी देखी और सास ससुर ने भी। ससुर जी को इन सारी घटनाओं की जानकारी नहीं थी सो उन्होंने छोटे बेटे को सीमा में रहने की हिदायत दी। इसपर सास बेटे के बचाव में आगे आई तो ससुर ने उन्हें भी समझाया मर्यादा का पालन ही परिवार को खुश रख सकता है।
अपनी आदतों से लाचार देवर अगले दिन फिर अपनी हारकर दोहराया। जब निशिता की जेठानी सभी को सुबह की चाय दे रही थी तो वह पीछे ग़लत तरीक़े से खड़ा होकर जेठानी के शरीर को छूता हुआ चाय का प्याला उठाने लगा। इस बार जेठानी ने अपनी जगह नहीं बदली और ज़ोर से कहा क्या बेढंगी है भैया, क़ायदे से थोड़ी दूर खड़े हों और आगे से आ कर चाय का प्याला उठायें। फिर सभी के सामने देवर की हरकतों का खुला चिट्ठा प्रस्तुत हो गया। अब सास भी चुप थीं। अनुज और जेठ दोनों अपनी पत्नियों से माफ़ी माँग रहे थे और इधर ससुर जी छोटे बेटे पर बरस रहे थे और नैतिकता का पाठ पढ़ा रहे थे। साथ ही सासु माँ को भी घर में हो रही ऐसी ग़लत बातों को नहीं रोकने पर नसीहत दे रहे थे।
फिर निशिता और उसकी जेठानी को देखते हुए कहा कि तुम लोगों ने मुझे पहले क्यों नहीं बताया? मैं अपने बेटे की हरकतों से शर्मिंदा हूँ। पर एक सीख ज़रूर दूँगा छोटे को, सबसे छोटा होने कारण बहुत लाड़ मिला। उसकी अच्छी बुरी सभी हरकतों को संगरक्षण मिलता रहा और देखो स्थिति यहाँ तक पहुँच गई है| तुम लोग मेरी आने वाली पीढ़ी को सही राह दिखाना। सही ग़लत का ज्ञान कराना ताकि एक स्वस्थ समाज विकास हो।
इस घटना के बाद निशिता के देवर ने दोनों भाभियों से क्षमा माँग अब वह पूरी लगन से एक अच्छी नौकरी की तलाश में जुट गया। थोड़े दिनों में ही उसे दूसरे शहर में अच्छी नौकरी मिल गई और वह वहाँ चला गया।
कई बार किसी बीमारी का इलाज शुरुआत में नहीं करने से वह भयानक रूप ले लेती है| इसी तरह अगर हर ग़लत और अनैतिक बातों पर शुरू में ही अंकुश लगाया जाए तो समाज में फैले बहुत सी गंदगी को फैलने से रोका जा सकता है। साथ ही इसका ज़िम्मा हम महिलाओं को ही उठाना होगा| इसे बर्दाश्त ना करके, इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठा कर, शुरुआत में ही करवाई कर के।