नदी

नदी

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मैं नदी हूँ, जल की कल कल करती निर्बाध गति से बहती जलधारा। पहाड़ों के बीच से मेरा उद्गम स्थल है,अलग अलग उद्गम स्थलों के अनुसार मेरा अलग अलग नामकरण हुआ, कभी मैं गंगा कहलाई,कहीं कहलाई मैं यमुना,पर हर जगह मेरी पवित्रता के कारण लोग आकर मेरी सुगम जलधारा में मारते हैं डुबकी और अपने सकल पापों को मुझमें निसृत कर खुद पुण्य कमाते हैं।

मैंने कभी इसका बुरा भी नही माना,मुझे लगा शायद ईश्वर ने मुझे इसी काम के लिए धरती पर उतारा है।

पर समस्त मानव जाति के लोगों तुम भी तो जरा विचार करो कि मेरी पवित्रता पर ये कैसी गंदगी तुम छोड़ रहे हो जिस चीज से तुम्हे बदबू और गन्दगी लगती है उससे मेरी बहती धारा को क्यों अस्वच्छ कर रहे हो, कल को तुम्हे ही इससे परेशानी होगी,बिन पानी कैसे गुजारा करोगे, अब भी समय है सचेत हो जाओ,

वरना स्वयं ही भुगतोगे अपनी करनी का फल, मुझे क्या मैं तो कल कल करते बहते जाऊंगी मेरी गति चलायमान है।


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