नौकरी वाली बहू चाहिए

नौकरी वाली बहू चाहिए

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बलदेव जी का छोटा परिवार था। एक बेटा और दो बेटी ,दोनों बेटी बड़ी थी। बेटा छोटा था। दोनो बेटियों (वीना,सीनू)की शादी हो चुकी थी। बस बेटा राहुल बचा था। जो बीएड कर रहा था। ििइंतजार नौकरी की थी। कि नौकरी मिल जाये तो शादी की जाय। दो -चार रिश्ते आये लेकिन किसी को पसन्द नही आया।

राहुल बहूत ही संस्कारी बेटा था। अपनी बहनों और माँ पिता के बहूत ख़्याल रखता था। बलदेव जी और संगीता जी को यही सुनने को मिलता था। इस कलयुग में तुम्हारा बेटा बहूत अच्छा है। कलयुग का बिल्कुल भी असर नही है। ईश्वर सबको ऐसे ही औलाद दें । यह सुनकर बलदेव जी कर संगीता जी दोनो बहूत खुश होते थे।

राहुल का बीएड की पढ़ाई पूर्ण हुई। जॉब भी मिल गयी। जॉब मिलते ही राहुल अत्यंत खुश हुआ। अपनी बहनों के लिए साड़ी और मिठाई का डिब्बा लेकर अपनी बहनों के घर पहुच गया। वहां बहनें भी इस खुशखबरी को सुनकर बहूत खुश हुई। और प्यार से अपने छोटे भाई राहुल का माथा चूम लीं।

दोनो बहनों से मिल मिला कर वापस आया। तीनो लोग एक दूसरे के बिना न ही चाय पीते थे न ही खाना खाते थे। सब कुछ बहूत ही अच्छे से चल रहा था। यह परिवार का प्यार होता है। एक दूसरे का सम्मान होता है। राहुल की नौकरी लगते ही रिश्तों की लाइन लग गयी।

रोज कोई न कोई रिश्ता आता था। माँ की इच्छा थी कि नौकरी पेशा लड़की हो तो कर लूँगी। कुछ तो नौकरी पेशा ही थी। कुछ बिना नौकरी की थी। कोई बहूत बड़े घर की कोई छोटे घर से खैर एक रिश्ता माँ पिता को अच्छा लगा। उसी रिश्ते को आगे बढाने के लिए विचार किया। लड़की भी टीचर ही थी।

लड़की भी अच्छी थी। एक टीचर के तौर पर सब्र भी था। मीत नाम था। सबने देखा तो यह रिश्ता बहूत पसंद आया । शादी तय हो गयी। कुछ महीने बाद शादी हुई। मीत भी अपने मन मे बहूत सारे सपनों को संजोए थी। मीत विदा होकर अपने पति राहुल के साथ अपनी ससुराल पहुचीं। वहां भव्य स्वागत हुआ। यह सब देख बहूत खुश हुई।

एक हप्ते की छुट्टी ली थी। उसके बाद जॉइन करना था। सारे रिश्तेदार अपने अपने घर गए। बेटियों की भी अच्छे से विदाई हुई। वीना और सीनू ने भी अपनी छोटी भाभी को बहूत अच्छे अच्छे गिफ्ट दिए। जितना प्यार अपने भाई से करती थी। उतना ही अपनी इकलौती भाभी से भी करती थी।

एक हप्ते बाद मीत को स्कूल जाना था। तो जल्दी जल्दी जितना हो सकता था। उतना काम करके अपना लंच बॉक्स और राहुल का लेकर दोनो एक ही साथ निकल गए। यह संगीता जी को बुरा लगने लगा। कि बहू तो आधा अधूरा काम करके निकल जाती है। कोई नही मुझे भी अच्छा लगता है । मेरी आदत भी तो है। बाकी काम घर चमका कर रखती थी।

बाकी का काम खुद करना पड़ता था। एक दिन संगीता जी की सहेली आ गयी। और पूछने लगी अरे बहू कहाँ है। तुम ये सब कर रही हो। संगीता जी ने बताया कि ओ जॉब करती है। एक हप्ते की छुट्टी ली थी। आज ही से जॉइन की है। बहूत अच्छी है। जितना हो पाया उतना कर के गयी है। बाकी मैं कर लुंगी। आखिर आज तक तो मैं ही करती आई हूँ।

एक दिन जब मीत वापस आयी तो सासु माँ ने बेटे और बहू दोनो को एक साथ बैठाया और बोला कि बेटे तुम नौकरी छोड़ दो। लोग तरह तरह की बात करते हैं। कि एक हप्ते नही हुए बहू को नौकरी करा रही है। तब तक मीत को बोलने का मौका ही नही मिला राहुल ने तुरन्त माँ को जवाब दे दिया। कि मैं कल से एक काम वाली लगा देता हूँ। सारा काम ओ करेगी। तो कोई दिक्कत तो नही है। अगर नौकरी मिल गयी है तो करने दो माँ! आप तो देख ही रही हैं। कितने लोगों को नौकरी ही नही मिल रही है। नौकरी मिलनी बहूत आसान नही है। इसलिए करने दीजिए।

माँ ने बोला ठीक है जैसा तुम सब समझो। राहुल ने अपने पड़ोसी से बात किया। और उनकी मेड राहुल के घर काम करने को तैयार हो गयी। घर का सारा काम करने का 7 हजार माँगी। राहुल ने मंजूरी दे दी। दूसरे ही दिन से कांति (मेड) घर का काम संभाल ली। सुबह 6 बजे आ जाती थी। मीत और राहुल का लंच और टिफिन सब तैयार कर देती थी। और संगीता जी और बलदेव जी के हिसाब से उनका भी नाश्ता खाना सब तैयार करके चली जाती थी।

एक दिन संगीता जी ने अपनी मेड कांति से पूछा कि कितना लेती हो। कांति ने बोला भईया से तो बात हो गयी है। 7 हजार में आपको नही पता है क्या आंटी .....संगीता जी थोड़ी देर चुप रही। और बोली हाँ पता है लेकिन हमने सोचा तुमने कुछ कम किया होगा। अब संगीता जी की सहेलियां आती थी तो चाय नाश्ता खाना सब कांति बनाकर देती थी। और संगीता जी की सहेलियों ने कहा कि वाह संगीता तुम्हारी क्या तकदीर है। बहू आते ही नौकरानी भी लगा ली।

संगीता जी ने जवाब दिया। कि सच बताऊँ तो मैं खुद नौकरी वाली बहू चाह रही थी। सो तो मिल गयी। लेकिन ये सब नही चाह रही थी। लेकिन बेटा और बहू ने मिलकर यह किया है। बहू अपनी तनख्वाह से घर का पूरा खर्च उठा रखा है। और कामवाली का भी वही देती है।

देखो बहन अगर हम चाहते हैं कि हमारी बहू नौकरी पेशा हो तो हमे भी समझौता करना पड़ेगा। या तो हम नौकरी वाली बहू न लाये। अगर नौकरानी नहीं भी लगती तो भी मैं करती। इस घर के काम केवल बहू के नाम थोड़ी लिखा है। इस घर मे जितने लोग रहते हैं । उन सबकी जिम्मेदारी होती है। एक दिन थोड़ा मुझे बुरा लगा। लेकिन बेटे राहुल ने समझाया तो मुझे समझ मे आ गया। तब से मैंने कभी भी बहू का विरोध नही किया है।

विरोध करना भी नही चाहिए। चार दिन की जिंदगी है। इसमें जितना हँस खेल लो वही बहूत है। कल किसने देखा है। इस लिए हम अपना और बहू का रिश्ता बहूत ही मजबूत बनाना चाहते हैं। ताकि उसे भी मुझसे कुछ प्रेणना मिले। और मीत भी अपनी बहू का बखूबी ख्याल रखते हैं।


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