बहू तुमने तो अपनी गृहस्थी बसा ली

बहू तुमने तो अपनी गृहस्थी बसा ली

5 mins
542


मयंक दो भाई थे 3 बहने थी, उन सबकी शादी हो गयी थी। मयंक बाहर बनारस में रहता था। छोटा भाई माँ पिता के साथ रहता था। मयंक के अंदर एक खूबी थी, कि कोई भी काम होता था उसे करने को तैयार रहता था बस ईमानदारी से करता रहा।

"कहते हैं कि ईमानदारी का किया हुआ काम या ईमानदारी से एक रूपया भी कमाया हुआ, सौ रुपये के बराबर होता है।"

अपने टैलेंट और ईमानदारी से एक दो रूम सेट लिया। जिसमे कुछ पैसे कम हो रहे थे। तो पिता के पास फोन किया।

हेल्लो ....पापा ....

पिता -हाँ बेटा बोलो सब ठीक है न ।

बेटा मयंक-पापा कुछ पैसे की जरूरत थी। अगर आप सहयोग कर देते तो बाद में मैं लौटा दूँगा।

पिता- क्या काम है बेटा।

मयंक-पापा एक मकान ले रहा हूँ। कुछ पैसे कम पड़ रहे हैं। आप दे देंगे तो हो जाएगा।

पिता- बेटा इतने बड़े रिस्क के लिए मैं नहीं दूँगा। कल को पता नहीं तुम क़िस्त दे पाओ की न दे पाओ। तुम्हारा तो जाएगा ही मेरा भी चल जाएगा।

मयंक-दुःखी होकर बोला ठीक है पापा आप रहने दीजिए, मैं देखता हूँ।

"मयंक अपने दोस्त के पास फोन करता है और उससे हेल्प मांगता है। अब यहां मयंक को घर से कोई सहायता नहीं मिलती है। तो क्या दोस्त सहायता करेगा। आइये देखते हैं। आगे क्या होता है।"

मयंक- ट्रिन ट्रिन ...अरे यार राहुल उठाओ फोन।

राहुल-हेल्लो ....हाय मयंक कैसा है। आज कुछ अपसेट लग रहा है क्या बात है। बता न मुझे तो बता सकता है।

मयंक-हाँ यार थोड़ा दुखी हूँ। पापा के पास फोन किया लेकिन उसका हल नहीं निकला तो मुझे लगा मेरी इस परिस्थिति में केवल तू ही एक है जो हमेशा खड़ा होता है।

राहुल- बता न क्या बात है।

मयंक -राहुल एक मकान ले रहा हूँ। और उसमें कुछ पैसे कम पड़ रहे हैं। जिसकी वजह से रजिस्ट्री रुक जाएगी।

राहुल -ओह ? इतनी सी बात बताओ कितना चाहिए। अगर कैश नहीं हो पायेगा तो मेरी डेरी का पेपर लगा देना।

मयंक -भाई आज तू न होता तो शायद मेरा सारा पैसा डूब जाता। थैंक यू भाई।

अब मयंक बेहद खुश हुआ, और दो दिन की मोहलत मांगा था। सो समय से डेरी के पेपर लेकर और बाकी पैसे लेकर पहुँच गया, रजिस्ट्री हो गयी।

अब गृहप्रवेश करने के समय फिर माँ पिता बहनों सबको बुलाने के लिए फोन किया। तो सब बड़े ही खुश होकर सभी लोग आए एक हफ्ते लोग रहे। फिर वापस मयंक ने टिकट कराया, सब अपने अपने घर गए।

मयंक की शादी हुई, तो मयंक अपनी पत्नी को लेकर बनारस ले कर आ गया। अब इससे सब बहुत दुखी हुए की बहू को छोड़ना चाहिए था, लेकर चले गए।

खैर पत्नी संजना के आने के बाद कार्य बहुत तेजी से बढ़ गया। मयंक जो दो रूम सेट के लिए परेशानी उठाता था। आज 6 फ़्लैट और दो कोठी का मालिक हो गया।

जिस मयंक के पास बाइक तक नहीं थी। वही मयंक ऑडी में चलने लगा, यह सब देख परिवार के लोग बहुत तारीफ करते थे। "मयंक का स्वभाव बहुत ही अच्छा था। जरूरत पड़ने पर पिता ने साथ नहीं दिया लेकिन उनका सम्मान और सत्कार करने में दोनो पति पत्नी पीछे नहीं हटते थे।"

जब धीरे धीरे मयंक बढ़ना शुरू किया तो मयंक की माँ शोभा को जलन होती थी। क्योंकि छोटा बेटा कुछ नहीं करता था। लेकिन मयंक के सामने कभी नहीं बोलती थी। बेटे के सामने तो बहुत अच्छे से बात करती थी। जब मयंक ऑफिस चला जाता था। तो बहु को हर दम सुनाती थी। हर बात में "अरे तुम्हारा क्या तुम तो अपनी गृहस्थी बसा ली हो।"

एक दिन संजना ने इस बात का विरोध किया, कि माँ जी जो जहां रहता है तो उसे अपनी गृहस्थी बसानी ही पड़ती है। बिना गृहस्थी के कौन रह पाएगा।

यह बात माता जी को बहुत बुरी लगी। बड़बड़ाती हुई अपने कमरे में चली गयी। एक दिन फिर किसी बात पर यही बात बोल दीं और मयंक अचानक गेट के पास से सुन लिया। अंदर आया और अपनी माँ से पूछा, माँ आप खुश नहीं हो मैने कितनी मेहनत की है रात दिन एक करके तब ये सब बना पाया हूँ।

हम दोनों नाइट शिफ़्ट करने के बाद ओवर टाइम भी काम किये हैं। आप इस तरह से क्यों बोलती हो, पापा ने वहां गाँव में अपनी गृहस्थी बनायी है तो कोई बुरा थोड़ी है। कल को विमल भी अपनी गृहस्थी बनाएगा, अब उससे भी सब जलेंगे।" बेकार की बात न किया करो भगवान का नाम लिया करो खाओ पियो मस्त रहो। किसी भी चीज की जरूरत हो तो आप बेहिचक मुझसे बोलिये,आप सब मेरे लिए ईश्वर के रूप हैं।"

और इधर संजना को भी समझाया कि माँ की बातों का बुरा मत मानना, जो जैसा करता है उसे वही वापस मिलता है, तुम अच्छा कर्म करो फल की उम्मीद मत करो, तो तुम हमेशा खुश रहोगी।

कुछ ही साल बाद से मयंक अपने पिता को कुछ रुपये महीने का फिक्स कर दिया। हर महीने सीधे अकाउंट में जाता था, और छोटे बेटे विमल के नौकरी के लिए पापा जी ने घूस देने के लिए पूरी तैयारी की और कुछ पैसे घूस दे भी दिए।

इस बात से मयंक और संजना बहुत दुखी हुए। एक बार मयंक के ऊपर बहुत बड़ी मुसीबत आयी और पैसे एक भी नहीं, लेकिन वही पिता मयंक के लिए एक भी बार नहीं बोला कि बेटा जो तुमने दिया है वही ले लो। आज तुम्हें बहुत जरूरत है।

ख़ैर मयंक के दोस्त बहुत ही अच्छे थे। हर बार दोस्तों के सहयोग से आगे बढ़ जाता था। मयंक को घर का सपोर्ट कभी नहीं मिला और बाहर के लोग हमेशा खड़े रहे।" कहा जाता है जिसका कोई नहीं उसका भगवान खुद ब खुद व्यवस्था कर ही देता है। किसी न किसी रूप में, तो यहां राहुल ईश्वर का रूप धारण किये मयंक के हर कदम पर खड़ा रहता था। और मयंक भी राहुल के लिए जी जान हाज़िर किये रहता था।

अब मयंक के माता पिता छोटे बेटे और छोटी बहू से परेशान हैं, अब तो मयंक के परिवार की बहुत है तारीफ करते हैं। लेकिन पैसे की दोस्ती केवल छोटे बेटे विमल से ही है।



Rate this content
Log in