पांचों उंगलियां बराबर नही होती
पांचों उंगलियां बराबर नही होती
"दीपा अपने ससुराल में सबसे बड़ी बहू थी। बड़ी होने के नाते जिम्मेदारी भी बहुत बड़ी थी। दीपा अपनी जिम्मेदारी से कभी पीछे नही हटती थी।
"हाँ कभी कभी अपनी जिम्मेदारी से थोड़ा हटना चाहती और अपनी सास से बोलती कि मां थोड़ा आज मैनेज कर लीजियेगा। मैं इस विषय पर बिल्कुल भी नही बोलूंगी।
"सासु माँ तुरन्त जिम्मेदारी लेने से हट जाती थी। एक दिन दीपा की देवरानी बिना किसी से पूछे बिना बताए ही मार्केट गयी। वही से अपने मायके चली गयी।
"इस तरह से उसका मन बढ़ता गया। जब जी करता चली जाती थी। घर के किसी सदस्य से कोई मतलब ही नही था। जो जी करता वही करती थी।
"दीपा भी लागातार ससुराल में रहकर ऊब गयी थी। पतिदेव गोपेश से बोली क्या मैं अपनी माँ के घर एक हप्ते के लिए जा सकती हूँ। तो फौरन गोपेश ने मना कर दिया। और बोला माँ से पूछ लेना माँ कहेगी तो चली जाना।
"शाम को दीपा ने अपनी सास से पूछा माँ मैं भी एक हप्ते के लिए जाना चाहती हूँ। अपनी माँ के घर तो आप कहे तो मैं चली जाऊँ। सासु माँ ने भी इंकार कर दिया।
"दीपा दुखी होकर अपनी माँ से फोन पर बात कर रही थी। उधर से माँ भी समझा रही थी। दीपा ने बोला जो जितना करता है उसको उतना ही परेशानी का सामना करना पड़ता है।
"दीपा ने कहा माँ मेरी देवरानी जब जी करता है तभी चल देती है। जो जी करता है वही करती है। उसे कोई नही बोल पाता मुझे हर कोई बोलता है।
"मेरे लिए ही इस घर मे नियम कानून है बाकी किसी के लिए कोई नियम कानून नही है।
"बेटा तुम चिंता मत करो हम बहुत जल्दी ही आपसे मिलने आ रहे हैं। और तुम्हारी सास से बात करके अपने साथ ही ले आऊंगी। कुछ दिन रहना फिर जाना।
"बेटा जो सबका सम्मान करता है। जो सबकी बातो को मानता है। उसी से सबकी उम्मीद जुड़ी हुई होती हैं। उसी के लिए सारे नियम कानून होते हैं। जो नियम का पालन करता है।
"और एक बात ध्यान से सुनना बेटा जो जैसा करता है वही पाता भी है। और किसी को कुछ कहने से कोई फायदा नही है। इस लिए देवरानी के बारे में तुम कुछ भी न कहो।
"कहते हैं कि पांचों उंगलियां बराबर नही होती तो जहां चार बर्तन रहता है वही आवाज आती है। जहां बर्तन ही नही रहेगा वहां आवाज कहाँ से आएगी।
"तुम समझदार हो तुम मेरे बताये हुए रास्ते पर चलोगी तो हमेशा खुश रहोगी। सबका सम्मान करना और अपने सास ससुर की सेवा करना। जैसे हमने तुम सब के साथ तुम्हारी दादी माँ की सेवा की है।
"देखो आज मेरे सारे बच्चे सुखी हैं। मुझे भी किसी चीज की कमी नही है। एक ही माँ के चार बच्चे होते हैं। लेकिन सबके विचार ,स्वभाव अलग अलग होते हैं।
"इसलिए सुरभि जी को दो बहुएँ हैं एक तुम एक शिखा तुम दोनों में भी वही फर्क है। तुम शिखा जैसी नही बन पाओगी। शिखा तुम जैसी नही बन पाओगी।
"दीपा माँ के समझाने से काफी समझी और जो दुखी थी वो थोड़ा उसका मूड ठीक हुआ। और अपने घर रोज मर्रा के काम मे बिजी हो गयी।
"दूसरे दिन दीपा के मायके से माँ ,पापा,भाई ,बहन सब लोग आए और दीपा बहुत खुश हुई। दीपा की माँ जाने से पहले दीपा की सास से बात की और दीपा को मायके जाने की इजाजत मिल गयी।
"दीपा भी खुशी खुशी पैंकिग की और अपनी माँ के साथ मायके गयी। एक हप्ते बाद फिर गोपेश के साथ वापस आयी। और अपने ससुराल में खुशी और प्यार से रहने लगी।