रंजना उपाध्याय

Drama

3.7  

रंजना उपाध्याय

Drama

बहू की बुराई

बहू की बुराई

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अवधी भाषा मे चंद पंक्ति बहुओं की बुराई के ऊपर लिखी हूँ।

जो आप सब के बीच प्रस्तुत कर रही हूँ।

एक बहू अपने सास ससुर से कहती है।

कब तक करबा बाबू, मां बहू कै बुराई।

आज नाही कल तो ओहू कै दिना आई।

बेटी बहू में इतना फर्क न करा,

एक दिन बिटिया हो जइहै पराई।

बाकी के जीवन बहू रानी से टकराई।

अपने बिटियवा के उपर आइहै इहै जिम्मेदारी।

चार दिन बिटिया बहुत प्रेम करिहै,

एक बरस रहबा तो उहौ ऊब जइहै।

खुद के सास ससुर के देखै न चाहतीं।

जब हो दामाद जी खरीखोटी सुनाइ है,

बिटिया सुसुक के कुछ न करी पाईहै।

हमरे माई बाबू के बड़ी दुर्गति भइल।

अपने माइ बाबू के सर पर बिठावलू।

इतना वचन जब खुद ही सुनबा,

तब याद बेटा बहू, पोता पोती अइहै।

यहि नाते पहिले से चेता आपन बहू के,

दामाद सबका आपन नीक लागै।

जब हो बिटियवा के भरपूर सम्मान करै।

जब खुद के बेटवा बहु के सम्मान करै।

बेटवा धीरे धीरे नजर से उतर जइहै।

बिटिया के दामाद जी विदेश लेके जइहै।

तो दिल गदगद होई मन मुस्कुराई।

जब खुद के बेटा इहै काम करिहै।

फाटी करेजा आपन बहुत दुख होइहै।

यह दुनिया की परंपरा है। बेटी और बहू में फर्क लोग करते हैं। जबकि नही करना चाहिए। कुछ परिवार बहुत ही खुले विचारों वाले होते हैं। बहुत ही अच्छे स्वभाव के होते हैं। उनसे मतलब ही नही होता। बस उनको ये चाहिए कि मेरा परिवार खुश रहे बस उनसे कोई मतलब नही होता।

कुछ लोगों का स्वभाव होता है कि बस मेरी बेटी खुश रहे सुखी रहे। चाहे बेटा उनकी आँखों के सामने बहुओं का तिरस्कार करें। बस बेटी सुखी हो दामाद अच्छा हो जो बेटी का ख़्याल करे।

बेटी शॉपिंग कराये। बेड टी दे वैगरह खूब उसका मान करे। एक चीज हमने देखा है ये हमारी राय है। कोई इसे अन्यथा न लीजियेगा। जो सास खुद प्रताड़ित की गई होती है। उन्हें भी यही लगता है कि हम तो ऐसे रहें हैं। तो बहू क्यों इस तरह रहे। वो अपने जैसे ही देखना चाहतीं हैं।

कुछ सास जो खूब खाई पहनी घूमी होती हैं। उन्हें किसी चीज से मतलब नहीं होता। क्योंकि वो हर तरह से पहले ही खुश थी तो वो अपनी बहुओं को खुश देखना चाहेंगी। इस लिए जब उन्हें कोई प्रताड़ना नहीं मिली तो बहू को कैसे मिले।

सास बहू के रिश्ता होता है थोड़ा खट्टा थोड़ा मीठा लेकिन रिश्तों को संजोए रखना बहुत मुश्किल हो जाता है। जो सह लिया। हर रिश्ते में समझौता करना ही पड़ता है। कभी हम चुप तो कभी अगला चुप तभी बात ख़त्म होगी। नहीं तो बात की बात बढ़ती ही जाती है।

प्याज़ को छिलते जाइये छिलका ही निकलेगा। जब आप रुक गए तो वही छिलका ख़त्म तो रिश्तों में भी वही बात होती हैं। बहु कितनी भी अच्छी हो। बहुत कम ही लोगों को पसन्द आती हैं। और सास कितनी भी अच्छी हो लेकिन उनमें भी बुराई ही दिखती है। यहाँ भी कम ही बहुएं इस का तरह की मिलेंगी।

आपकी बेटी जो थी अब वो किसी और कि बेटी बहू बनकर गयी। जो आपकी असली बेटी है आपके बेटे के साथ आपके घर मे प्रवेश कर रही है। उसे ही आप असली बेटी माने। फिर देखिए इस रिश्ते में क्या आनंद आता है।

सोच बदलिए सास बहु का रिश्ता भी सुखमय होगा। हर वक्त अपनी बेटी की तारीफ भी मत करिए क्यों कि जो बहू आपके लिए दिनभर कर रही है । उसे दुख होगा। कि दिनभर दौड़ने पर सबका देखभाल करने पर अपनी ही बेटी की तारीफ करती हैं। मेरी तो कभी करी नहीं।

बहुओं को अहसास मत होने दीजिए कि आप बहू हैं और बेटी बेटी ही हैं। जब बहू को बार बार अहसास कराया जाएगा। तो स्वभाविक वह दुःखी होकर आप के प्रति दुर्व्यवहार करना शुरू कर देंगी। इसलिये अपने रिश्तों का ख़्याल रखें। उनके मान सम्मान का भी ख़्याल रखें।

तो दोस्तों आज आप सबके सामने बहू और सास ससुर के ऊपर अवधी भाषा मे लिखा है।


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