रंजना उपाध्याय

Drama

1.0  

रंजना उपाध्याय

Drama

जीवन का असली सुकून अपने टूटी छत

जीवन का असली सुकून अपने टूटी छत

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रमा और सरला दोनो बचपन की सखी थी। दोनों एक दूसरे से वादा की थी। कि हम दोनों बराबर अपनी दोस्ती बनाकर रखेंगे। रमा की शादी बहुत बड़े घर मे हुई।

"सरला जी की शादी एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ। रमा की शादी में तो सरला जी थी। सरला की शादी में रमा जी नहीं आ पाई थी। क्यूंकि रमा अपने पति के साथ दुबई में थी।

"शादी के बाद दोनो सखियों की मुलाक़ात 3 साल बाद हुई। सरला जी गाँव मे ही रहती थी। जमीदार परिवार से थीं। उसी हिसाब से रहन- सहन था।

"दोनो लोगों के एक एक बच्चे भी थे। रमा का बेटा बहुत स्मार्ट था। तो इधर सरला जी की बेटी भी कुछ कम नही थी। बस फर्क था पहनावे का और खूबसूरती में दोनों एक दूसरे को टक्कर दे रहे थे।

"एक बार रमा ने सरला के परिवार को दुबई आने को बोला तो सब बहुत खुश हुए। सरला जी के पति देव ग्राम प्रधान थे। घर के काम अपने भाई को सौंप कर जाने की तैयारी में जुट गए।

"अपना और पत्नी सरला और बेटी स्तुति का पासपोर्ट बनवाया। और बाकी का प्रोसेस जारी रखा। सरला भी बहुत खुश थी। पहली बार दुबई जा रही थी।

"रमा को फोन करके पूछी की क्या क्या लाऊं तुम्हारे लिए बता न जो भी गाँव की चीज लानी है। बता दो मैं लेकर आऊँगी। वैसे अचार पापड़ सब रख लिया है।

"रमा-अरे सरला तुम ये सब मत लाना यहाँ सब भरा है। देखना ज्यादा समान मत भर लेना नही तो सब निकलवा देंगे। या तो फेंको या तो एक्स्ट्रा पैसा दो बहुत मुश्किल होगा।

"पैकिंग हो गयी और सब पूरी तरह से तैयार थे। समय हुआ सरला परिवार सहित कैब में बैठ गयी। एयरपोर्ट पर पूछ कर सब कर लिया।

"फ्लाइट में बैठी एक लंबी सांस ली बेटी छोटी थी। उसे चॉक्लेट पकड़ा दी और खुद सीट के आगे लगी पत्रिका को देखने लगी। सुबह से शाम हो गयी।

"एयरपोर्ट पर उतरने के बाद सरला की आँखे केवल रमा को ढूढ़ रही थी।

सामान लेकर दोनों लोग बेटी के साथ बाहर के तरफ बढ़ ही रहे थे कि आवाज आई सरला .....सरला !

"तो सरला घूम कर देखी तो रमा काले रंग की पैंट सफेद टीशर्ट खुले बाल आंखों पर काले रबग का चश्मा लगाए। एक दम पहचान में नही आ रही थी।

"लेकिन बुलाने से पता चल गया कि वही है और रमा का बेटा मौसी आ गयी.... जोर से चिल्लाने लगा। सरला समझ गयी। फिर अपने तरफ देखी तो अपने पहनावे पर उसे शर्म आनी लगी।

"खैर दोनों सहेलियों ने खूब मस्ती मजाक किया।

घूमने टहलने में समय व्यतीत हुआ। एक दिन सरला किचन की तरफ बढ़ ही रही थी कि धीरे धीरे रमा के पति की आवाज आ रही थी।

"अरे रमा ये लोग कितने दिनों के लिए आये हैं। रमा ने जवाब दिया अभी तो हमने पूछा भी नही। ये गाँव के लोग कितना खाते हैं। नाश्ता भी पेट भर के करते हैं।

"इतना सुनते ही सरला जी को बहुत दुख हुआ।

लेकिन ज़ाहिर नहीं होने दीं। शाम को रमा ने बोला चलो पास में एक मॉल है वहाँ चलते हैं। सरला जी ने जाने से इनकार कर दिया।

"बोली आज रमा रहने दो कहीं जाने का मन नही कर रहा है। इधर अपने पतिदेव से कह कर टिकट कैंसिल करवा कर दूसरे ही दिन का करवा लिया।

"सरला के पतिदेव ने पूछा कि इतने जल्दी का टिकट क्यों करवा रही हो। सरला ने बोला मेरी माँ की तबियत ठीक नही है। मुझे लगता है कि इस समय मेरा वहां होना अति आवश्यक है।

"यही बहाना लगाकर जल्दी ही वापस आ गयी।

रमा से दोस्ती कायम रही लेकिन पतिदेव तक नहीं। क्योंकि पतिदेव का असली चेहरा दिख गया।

"अपने घर पहुच कर अपने पति देव से सरला ने"चाहे कुछ भी हो किसी के घर का छप्पनभोग अपनी सूखी रोटी जैसा सुकून नही देता। "भइया अपनी राम मड़ैया ही अच्छी है।"


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