बेटे से बहू तो समानता एक सी हो

बेटे से बहू तो समानता एक सी हो

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किरन के शादी के बाद उसकी सास बेटा और बहू में फर्क करती थी।कोई चीज होती थी तो अगर बेटा पूछता तो तुरन्त कहती "अरे किरन ने एक बार भी नहींं पूछा अब ये कैसे करूँ।"

एक दिन रमेश ने किरन से कहा की माँ बाबू जी का टिकट करवा लूँ।आ जाएंगे तो उनका भी मन बहल जाएगा।किरन ने हाँ में सहमति दे दी।

शाम को रमेश ऑफिस से आया तो बाबू जी को फोन लगाया।"हेल्लो बाबू जी ....प्रणाम।....कैसे हैं। सोच रहा हूँ आप लोगों का टिकट करा दूँ।आइए कुछ दिन रहिए यहाँ थोड़ा आप लोगों का भी मन बहल जाएगा।और हम लोगों को भी अच्छा लगेगा।"

बाबू जी ने बोला "अरे बेटवा बहु का क्या इरादा है।उसने तो कभी नहींं कहा, जब वो बुलाएगी तभी आयेंगे।" रमेश ने बोला बाबू जी "आपका बेटा मैं हूँ तो वो भी तो आपकी बहु है।मुझसे ही जुड़ी है।हम दोनों अलग थोड़े हैं।"

बाबू जी ने कहा "हाँ अलग नहींं हो लेकिन दोनों की राय अलग हो सकती है।हो सकता है तुम बुलाना चाहो और बहू का मन न हो तब",रमेश ने कहा "बाबू जी आप ये कैसी बात कर रहे हैं।उसने कभी नहीं आप लोगों को कुछ कहा है।"आप दोनो का सम्मान भी बहुत करती हैं जितना कि मैंने देखा है।“ बाबू जी मे कहा "हां बेटा किरन के समर्पण में कोई कमी नहीं है।जहाँ भी रहती है हर जगह माहौल के हिसाब से ढल जाती है।"

"तो बाबू जी आपको फिर किस बात की कमी नजर आ रही है।ठीक है अगर किरन के बुलाने पर आएंगे तो मैं बोल देता हूँ।किरन से वही बुला ले भाई", इतना कह कर फोन काट दिया।

किरन ने पूछा "क्या हुआ या इतना उदास क्यों हो?अरे हम और आप बटे थोड़े हैं।हम दोनों एक ही तो हैं।बस सोच का फर्क है।अगर बाबू जी चाहते हैं कि हम ही बुलाये तो आप रहने दीजिए।हम ही आज के बाद से बुलायेंगे।"इतना कह कर ससुुर जी को फोन लगाायी।आशिर्वाद लेेेकर अपने यहाँ आने का प्रस्ताव रखा।दोनो लोग तैयार हो गए।रमेेेेश ने टिकट कर दिया।दोनो लोग ट्रेन में बैैैठ गए।

किरन ने कहा कि "आप रहने दीजिए।बाबू जी को हम ही लेने जाएंगे।फिर से कहीं ये विचार न आ जाये कि बहु नहीं आई लेने।इस लिए हमें ही जाने दीजिए।मेड आएगी तो काम करवा लीजियेगा।"

कहते घर से निकल गयी।गाड़ी स्टेशन पर पार्किंग में लगा कर स्टेशन के तरफ बढ़ रही थी।तब तक कुली के साथ दोनों लोग आ रहे थे।दुप्पटा सिर पर रख कर पैर छू कर आशिर्वाद लिया और गाड़ी में समान रखवा लिया।

बाबू जी ने पूछा "अरे बहु रमेश कहाँ है।तुम कैसे किसके साथ आई हो?" "बाबू जी हमने सोचा कि कहीं फिर न आप कह दें कि बहु तो लेने भी नहीं आई।तो कैसे घर जाऊँ इसलिए आपके बेटे को हमने घर पर बैठा दिया।और आप को लेने के लिए खुद निकल गयी"

आगे सीट पर सासु माँ और पीछे की सीट पर सामान और ससुर जी बैठ गए।घर के तरफ गाड़ी तेज रफ़्तार में निकल ली।25 मिनट लगा घर आ गयी।

घर आने के बाद सब चाय नाश्ता लिए और फिर स्नान कर के पूजा पाठ करके खाना खाए।शाम का समय हुआ।ड्राइंग टेबल पर फ्रूट लगा था।लेकिन बहु का इंतजार होता था।बस किरन लाकर दे तो ठीक है।अन्यथा खुद से कोई काम या कोई चीज़ नहीं लेते थे।

एक दिन रमेश ने देखा तो इस तरह का भेद भाव तो अपने पिता और माँ से बात किया और समझाया।बोला "बाबू जी आप अपना घर नहीं समझेंगे।तो किरन गाँव मे जाएगी तो किस हक से जाएगी।क्या वो अपना घर समझ पायेगी।इसलिए प्यार और सम्मान से रहिए उसी में आनन्द आएगा।आपको भी और हम सभी को किरन मुझसे अलग नहीं है।"

तो बेटे के समझाने से काफी बदलाव आया।और धीरे धीरे घर का माहौल बदला तो घर मे हमेशा हंसी खुशी का माहौल बन रहता है।


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