Kajal Manek

Romance

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Kajal Manek

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मुसाफिर से हमसफ़र तक

मुसाफिर से हमसफ़र तक

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माँ जल्दी करो ट्रेन का वक़्त हो रहा है, ये लफ्ज़ जैसे ही प्रतीक ने कहे वंदना जी जल्दी जल्दी तैयार होने लगी।

वंदना जी की बेटी की गोद भराई थी उसी के लिए वंदना जी उनका बेटा प्रतीक और बहू साथ में ट्रेन में बेटी के ससुराल जा रहे थे। 


बहुत लंबे समय बाद वंदना जी ट्रेन में दोबारा सफर कर रही थी। उनके पति के देहांत के बाद वे अकेली पड़ गयी थी उनके जाने के बाद सफर कम कर दिया था उन्होंने, ट्रेन में तो बिल्कुल नहीं जाती थी। वजह भी बेहद खास थी वे अपने पति से पहली बार ट्रेन में जो मिली थी।


वंदना जी बेटे प्रतीक और बहू के साथ ट्रेन में बैठी, पर उनका मन तो पुरानी यादों में खोया था। 


एकाएक उन्हें सब कुछ याद आता गया जब पहली बार वो प्रणव से मिली थी। वो अकेली ट्रेन में जा रही थी हाथ में एक किताब पकड़े पढ़ रही थीं ।

तभी सामने की सीट में एक लड़का आकर बैठा, वंदना जी को मालूम था ये लड़के अकेली लड़की देखकर मर्यादा खो बैठते हैं, अतः उन्होंने उनसे दूरी बनाना ही बेहतर समझा। वंदना जी को ऊपर की बर्थ मिली थी रात हुई तो वे जाकर सो गयीं, वही सामने वाला लड़का भी शांति से अपनी सीट पर सो गया, रात करीब दो बजे अचानक कुछ शोर हुआ वंदना और प्रणव की नींद खुली उन्होंने देखा वंदना की सीट के नीचे वाली लोअर बर्थ में दो लड़के बैठे हैं नशे की हालत मे धुत।

वंदना उन्हें देख सहम गयी थी, उनके शोर में उसे नींद भी नहीं आयी प्रणव ने दोनों लड़कों को समझाने की कोशिश की पर वे हाथापाई पर उतर आए। चूंकि रात का समय था तो प्रणव ने सोचा अभी शांत रहना चाहिए बाकी यात्रियों को भी तकलीफ हो सकती है। सुबह ही टी सी से शिकायत करूँगा, पर तब तक प्रणव ने भांप लिया था कि वंदना जी बेहद डरी हुई थीं। प्रणव ने भी फैसला लिया कि सोएगा नहीं रात भर ताकि वे लोग वंदना जी के साथ बत्तमीजी न कर सके।


सुबह हुई टी सी से शिकायत कर समस्या का निवारण किया प्रणव ने। तब वंदना जी को भी अहसास हुआ प्रणव कितने अच्छे इंसान हैं, उन्होंने कहा आपका बहुत शुक्रिया रात को आप को जागता देख मैंने चैन की सांस ली थी। प्रणव मुस्कुरा दिया बोला कि कहाँ जा रही हैं आप, वंदना ने कहा कि मेरा इंटरव्यू है तो उसी के लिए दिल्ली आयी हूँ, प्रणव ने कहा मैं यहीं जॉब करता हूं।


तब वंदना ने उसे अपना नम्बर दिया और कहा कि मै इंटरव्यू के बाद आपसे जरूर मिलूंगी।

वंदना प्रणव से मिली उसने सबसे पहले यही कहा ट्रेन में पहली बार तो आपको देख आवारा ही समझा था, पर भला हो उन लड़कों का जिनकी वजह से आपकी अच्छाई समझ मे आयी थी। प्रणव ठहाके लगाकर हँस पड़ा बोला की मेडम फिर तो आवारा के साथ आपको कॉफी पर आना नहीं चहिये था।


वंदना हौले से मुस्कुरा के बोली अच्छा ये तो बताइए कि मुझे घूर के क्यों देख रहे थे आप ट्रेन में, प्रणव ने कहा वो दरअसल बात ये है कि इतनी सादगी से भरी हुई लड़की पहली बार देखी थी।

मल्टीनेशनल कम्पनी में काम करता हूं हमेशा मॉर्डन लड़कियां ही देखी हैं आपको देख लगा कि साँवली सी सीधी सादी लड़की सलवार सूट में भी कितनी खूबसूरत लगती है , शायद ये सुनकर वंदना थोड़ा शरमा गयी थी।

फिर मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो गया और अंततः विवाह किया दोनों ने वंदना का सफर का मुसाफिर उसका हमसफ़र बन गया था। जिसके साथ बाकी की जीवन यात्रा का सुखद समय उसने तय किया था। कितना खूबसूरत वक़्त बिताया था उसने प्रणव के साथ उसके साथ पार्क में जाना, ढलती शाम में उसका हाथ थामकर टहलना मानों कभी उसे छोड़ना ही नहीं था दूर जाने का तो ख्याल भी रूह को हिला दिला देता था।


वंदना के लिये प्रणव एक आदर्श पति थे, जिससे वो अपने मन की सारी बातें कहती। वो हर एक चीज़ जो उसने अपने हमसफ़र के साथ करने की सोची थी चाहे वो रात के समय नदी किनारे हाथ मे हाथ थामे चाँद को निहारते हुए नदिया की कल कल सुनना हो, चाहे नाव की सवारी हर इच्छा उसकी प्रणव के साथ शुरू होकर उसी पर खत्म होती थी।


फिर प्रतीक और प्रेरणा ने जैसे उनकी दुनिया पूरी कर दी। वंदना और प्रणव जो मुसाफिर बनकर मील थे आज ज़िन्दगी के सफर में हमसफ़र बन चुके थे।


मुसाफिर तो दुनिया मे हर व्यक्ति है मुसाफिर वह होता है जो चलता ही जाता है अपनी यात्रा पर। लेकिन जब वो हमसफ़र बन जाये तो उसका हाथ थामकर ज़िन्दगी की बाकी की यात्रा पूरी करनी होती है।


वंदना को याद आता था कैसे ट्रेन के सफर में दो मुसाफिर मिले और हमसफ़र बन गए।


वंदना जी की आँखें भीग आयी अतीत को याद कर आज फिर वही ट्रेन है फिर वही सफर है जो वंदना को अकेले तय करना पड़ रहा था अकेला मुसाफिर बनकर क्योंकि अब उनका हमसफ़र उनके साथ नहीं था।


तभी ट्रेन रुकी एक स्टेशन पर और कुछ मुसाफिर और चढ़े अपनी मंज़िल तक जाने के लिये और अपने सफर को पूरा करने के लिए। 

वंदना देख रही थी कैसे आज भी लोग मुसाफिर बन ट्रेन में आते हैं प्रेम से मिलते हैं एक रिश्ता सा बन जाता है और अगर रिश्ता गहरा हो तो क्या पता वही मुसाफिर हमसफ़र भी बन जाये।

वंदना की आंखों में आंसू थे पर एक सुकून भी था कि जिसके साथ सफर शुरू किया था वो पूरा निभाया था। 


आज फिर सामने की सीट में बैठे हुए वंदना एक लड़की को देख रही थी जो हाथों में एक नॉवेल लिए पढ़ रही थी शायद वह भी एक मुसाफिर थी । शायद उसे भी एक हमसफ़र का इंतजार था।


एक हमसफ़र जो उसका ज़िन्दगी का सफर पूरा होने तक साथ दे जो मुसाफिर से हमसफ़र तक का सफर और यात्रा प्यार, सम्मान और विश्वास के साथ पूरी कर सके जिसके साथ ये सफर प्रेम से कट जाए और जब उसका साथ हो तब किताब की जरूरत ही न पड़े यही सफर तो होता है तो मुसाफिर को हमसफ़र का रूप दे देता है।


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