तुम ठीक तो हो
तुम ठीक तो हो
सरिता आज किचन में काम कर रही थी और बस यही सोच रही थी, कितने कमाल के यह चार शब्द हैं "तुम ठीक तो हो" ना क्योंकि कभी भी कोई भी इंसान अगर परेशान हो उसे अगर कोई हमदर्दी दिखाकर पूछ भी ले कि तुम ठीक तो हो ना, तो भी उसे अपनापन महसूस होता है, दिल को लगता है कि हां किसी ने तो पूछा।
यही सोच कर वह अपने काम में मन लगाने की कोशिश कर रही थी।
मायके में तो केवल भाई और भाभी ही रह गए थे जो कि कभी कभार ही उसे फोन किया करते थे, दोनों बच्चे बड़े हो गए तो वह अपनी पढ़ाई के लिए बाहर चले गए।
सरिता घर में अकेली रह गई, सासू मां अपने सहेलियों के साथ बाहर जाती और पतिदेव भी अब उसे खासी बात नहीं करते थे। सरिता एकदम अकेला महसूस करती थी।
वह पूरी तल रही थी, तभी पीछे से आवाज आई आप ठीक तो हो ना
सरिता ने पीछे पलटकर देखा उसकी बर्तन वाली, उसने पूछा दीदी आप ठीक तो हो ना सरिता ने बोला अरी हां ऐसे क्यों पूछ रही है, उसने बोला दीदी रोज आप मुझे डांटते हो ज्यादा पानी मत बहाना अच्छे से बर्तन धोना मैं कब से आई हूं, आज आपने मेरी तरफ देखा तक नहीं दीदी आप ठीक तो हो ना सरिता की आंखों से आंसू छलक पड़े जो शब्द वह अपनों के मुख से सुनना चाहती थी, उसे सुनने तो मिले उसने बर्तन वाली को गले से लगा लिया और कहां अरी हां मैं बिल्कुल ठीक हूं चल तेरे लिए चाय बनाती हूं।
