भेलपुरी
भेलपुरी
सविता दौड़े दौड़े काम किये जा रही थी दो दिन बचे थे दिवाली को और कमला को बोल रही थी जल्दी कर कमला पहले बर्तन धो ले फिर सफाई मे मदद कर देना मेरी।सविता को याद आता कैसे गायत्री जी के होने पर सारी जिम्मेदारियां वही सम्भालती थी।गायत्री जी सविता कि सास थी।
तीन महीने हो गए थे उनके देहान्त को, सविता कोलेज मे नौकरी करती थी।इसी वजह से ज्यादा तैयारियां तो नही कर पाई।पर उसके दो छोटे बच्चों को उनकी दादी के न होने पर त्यौहार कि कमी का अहसास न हो इसिलए तैयारी में लगी थी।वह बस ये चाहती थी कि दोनों बच्चों की मानसिक स्तिथि अच्छी हो।
त्योहार के दिन बच्चे गुमसुम न रहे बस इसी वजह से जल्
दी जल्दी दीवाली की सफाई और तैयारियों में लगी थी ताकि कुछ भी कमी न रह जाये।तभी बाहर से आवाज आई बीबी जी भेल वाला।सविता ने कई महीनो बाद वह आवाज सुनी ।सुनकर वह बाहर आई ये तो वही भेलवाला है जिससे उसकी सासु मा भेल खरीदा करती थी बड़े चाव से खाती थी ।
वह बोला "बीबी जी कुछ महीनों से गाँव मे था कल ही आया हूँ।"गायत्रीजी तो मेरी भेल खाये बिना रह ही नही पाती थी, लीजिये उनके लिये चटपटी भेल कहां है वे दिखाई नही दे रहीं।" सविता की आंखों से अश्रु बह चले उसने कहा "भैया वे तो अब नहीं रही।"इतना कहकर उसका गला भर आया।वो भेल वाला बिना कुछ कहे एक उदासी के साथ वहां से चला गया।उस दिन के बाद वह उस गली में किसी को नही दिखा।