परवरिश
परवरिश


नीलिमा सोच रही थी लोग सिर्फ मॉर्डन होने की बात करते हैं लेकिन जब बात खुद की घर की औरतों पर आती है तो वही रवैया रहता है।
बाहर से आने पर थके होने पर भी खाना बनाओ, हज़ार खामियां निकाली जाती है ये ठीक नहीं है वो ठीक नहीं है, कभी जो आवाज देकर बुलाये तो लगता अब क्या गलती हो गयी, विवाह लिव इन अब बोझ लगने लगा है खाना बनाओ कपड़े सुखाओ बस यही औकात है क्या औरत की?
बिल्कुल नहीं लड़कों के साथ वफादार रहना बेवक़ूफ़ी है क्योंकि ये तो खुद वफादार नहीं रहते धोका देते हैं औरत को। उनकी गुलामी मैं करूँ नामुमकिन अब कभी उस नरक में नहीं जाऊंगी।
न ही अपनी बेटी को जाने दूंगी, शादी को पांच वर्ष हो गये फिर भी अखिलेश मेरे लिये कभी स्टैंड लेता ही नहीं, उसके और उसके घरवालों की डिमांड पूरी करते करते थक गई हूं अब ऊपर से उनके ताने वही सब मेरी बेटी भी सीख रही है वह भी मुझे इज्जत नहीं देगी।
नहीं इस माहौल में उसे बड़ा नहीं कर सकती मैं क्योंकि जहां महिला का सम्मान नहीं होता किसी भी बच्चे की परवरिश उस माहौल में अच्छी हो ही नहीं सकती। औऱ इसी के साथ उसने फैसला किया अपनी बेटी को एक अच्छा माहौल देने का जहां सिर्फ खुशियां होंगी आंसू या ताने नहीं।