मिली साहा

Abstract Children Stories

4.8  

मिली साहा

Abstract Children Stories

मोर और पिंकी

मोर और पिंकी

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घर के आंगन में खेलती हुई नन्ही पिंकी अपनी आई (माँ) से प्रतिदिन एक ही सवाल किया करती थी।

आई ओ आई......... बोल न उस जंगल में कौन रहता है? तू मुझे कभी उधर जाने क्यों नहीं देती। बता तो सही क्या है उस जंगल में? ठीक है तू अगर नहीं बताएगी तो मैं चली जाऊँगी वहाँ अकेले ही।

आई.... अच्छा बाबा चली जाना थोड़ी बड़ी तो हो जा अभी तू बहुत छोटी है घना जंगल है इसलिए तुझे मना करती हूँ वहाँ जाने के लिए। और सुन मेरी बात ध्यान से........ अकेली कभी चली मत जाना उस ओर। मैं तुझे खुद अपने साथ एक दिन ले जाऊँगी वहाँ घुमाने।

फिर पिंकी की आई (माँ) खुद से ही बड़बड़ाने लगी............पता नहीं इस लड़की पर भी क्या भूत सवार हो गया उस जंगल में जाने का। किसी दिन फुर्सत निकालकर उसे घूमा ही आती हूँ वहाँ। तभी मानेगी नहीं तो मेरी जान खाती रहेगी हर रोज़।

और फिर आई इसी तरह बड़बड़ाते हुए अपने रोजमर्रा के कार्य में व्यस्त हो जाती है।

पिंकी एक दस साल की बच्ची है जो जंगल के पास एक गाँव में अपनी आई (माँ) बाबा (पिता) के साथ रहती थी। उसके माता-पिता जितना उस जंगल में जाने के लिए उसे मना करते थे उतनी ही उस की ललक वहाँ जाने को बढ़ती जाती थी।

जून का महीना ख़त्म होने को था और मानसून दस्तक देने को तैयार थी। एक दिन की बात है......... संध्या का वक़्त था तभी मानसून का आगमन हुआ और हल्की-हल्की बूंदाबांदी भी शुरू हो गई।

उस दिन भी पिंकी रोजमर्रा की तरह अपने घर के आंगन में अकेले खेल रही थी। उसके आई बाबा दोनों ही उस वक़्त घर पर मौजूद नहीं थे। खेलते खेलते पिंकी बीच-बीच में बार-बार उस जंगल को भी निहार रही थी मन तो बहुत हो रहा था वहाँ जाने का किन्तु आई की बात याद आते ही उसके कदम रुक जाते थे।

किंतु खेलते खेलते पिंकी न जाने कब जंगल की ओर कब निकल गई उसे स्वयं भी इस बात का पता ही नहीं चला। उसने जब नजरें उठाकर देखी तो वह जंगल के बीचो बीच पहुँच चुकी थी जहाँ से उसका घर भी नज़र नहीं आ रहा था। अब बारिश भी तेज़ हो गई थी। पिंकी घबराकर इधर-उधर भागने लगी। किंतु बारिश इतनी तेज थी कि उसे रास्ता भी नज़र नहीं आ रहा था। तब पिंकी ने हिम्मत से एक लंबी साँस लेकर खुद को शांत किया और बारिश से बचने के लिए एक पेड़ के नीचे दुबककर खड़ी हो गई और वहीं बारिश के रुकने का इंतजार करने लगी। लाल रंग पिंकी को रोना आ रहा था जिसने अपनी माँ की बातों पर ध्यान नहीं दिया।

पिंकी थी तो एक छोटी सी बच्ची ही इसलिए डर भी उसके नन्हे से सर पर मंडरा रहा था पर हिम्मत और हौसला भी उसमें कम नहीं था।

उसी हिम्मत और हौसले को जुटाकर पिंकी खुद को ढाढस बंधाते हुए बुदबुदाने लगी....... नहीं पिंकी, तू डर नहीं सकती तू बहुत हिम्मत वाली लड़की है। अभी थोड़ी देर में बारिश रुक जाएगी तब तू अपने आई बाबा के पास पहुंँच जाएगी। तब तक शांत रह और इंतजार कर।

यह सब खुद को समझाते हुए पिंकी को डर भी सता रहा था कि आज उसको अपनी आई बाबा से बहुत डांट पड़ने वाली है। किन्तु ये बालमन पल में माशा पल में तोला।

अभी कुछ ही पल पहले जो पिंकी डर रही थी सहसा ही खुद से बातें करते हुए खिलखिलाते हुए कहने लगी...... खैर अब जंगल में पहुँच ही गई हूँ तो देख भी लेती हूँ यहाँ क्या-क्या है। बस यह बारिश थोड़ी रुक जाए। खुद को समझाते हुए उसका सारा डर कहीं छूमंतर हो गया था। फिर पिंकी बड़ी ही उत्सुकता के साथ उसी पेड़ के नीचे बारिश रुकने का इंतजार करने लगी।

तभी उस पेड़ से कुछ ही दूरी पर पिंकी की नज़र एक अजीबोगरीब प्राणी पर पड़ी। जब बड़ी ही मस्ती में झूम झूम कर नृत्य कर रहा था। यह सब देखकर पिंकी को बड़ा अजीब लगा। अब बारिश भी प्यासी धरती की प्यास बुझा कर शांत हो चुकी थी। पिंकी ने थोड़ा करीब जाकर देखा तो वो एक विशालकाय पक्षी था। देखते ही घबराहट के मारे पिंकी ने अपने कदम पीछे कर लिए।

उसने तो पहले कभी भी इस प्रकार का पक्षी नहीं देखा था और ना ही कभी अपने मांँ बाबा से सुना ही था। डर तो लग ही रहा था पिंकी को किंतु उस पक्षी के बारे में जानने की जिज्ञासा में वो हिम्मत करके धीरे-धीरे उसकी तरफ़ बढ़ी और निडर होकर उससे पूछने लगी तुम्हारा नाम क्या है? तुम किस प्रकार के पक्षी हो इइइइइइ......तने विशाल?

मैंने तो पहले कभी इतना बड़ा पक्षी ना देखा और ना इसके बारे में कभी सुना है। कहांँ से आए हो? क्या तुम इसी जंगल में रहते हो? लगता है मेरी आई तुम्हारे डर से ही मुझे इस जंगल में आने नहीं देती।

तभी इतने सारे सवालों की बौछार देखकर मोर अचानक ही बोला, अरे रुको-रुको थोड़ी साँस तो ले लो। इतने सारे सवाल एक साथ। पहले ये बताओ क्या तुम मेरी मित्र बनोगी? मोर को इस प्रकार इंसानों की भाषा बोलते हुए देखकर पिंकी आश्चर्यचकित रह गई और डरकर वहाँ से भागने लगी।

पिंकी को डर कर इस प्रकार भागते हुए देखकर मोर बोला......... अरे डरो नहीं पिंकी..... मैं तुम्हारा दोस्त हूँ तुम्हें कोई हानि नहीं पहुँचाऊँगा। इस प्रकार मुझसे डर कर मत भागो।

मोर की बात सुनकर पिंकी रुकी और कहने लगी....... मित्र क्यों? मैं कैसे तुम्हारे ऊपर विश्वास करूँ? आई (माँ) कहती है........ हमें किसी भी अनजान से बात नहीं करनी चाहिए।

तब मोर ने अपना परिचय देते हुए पिंकी से कहा....... सुनो पिंकी........….......

सब पक्षियों का राजा हूँ मैं, राष्ट्रपक्षी कहलाता हूँ,

बारिश में भीग-भीगकर नृत्य भी मनोरम करता हूँ,

चंद्राकृतियांँ पंख मेरे, जहाँ अनगिनत रंग झलकते,

नीली गर्दन वाला हूँ मैं, पक्षी बड़ी शान से जीता हूँ।

तभी पिंकी अचानक बोल पड़ी......अरे दोस्त ऐसे नहीं अच्छे से बताओ अपने बारे में। मुझे तुम्हारे बारे में सब कुछ जानना है। और वैसे भी अब तो हम दोस्त हैं एक दोस्त को दूसरे दोस्त की सारी बातें मानी चाहिए।

पिंकी की बातें सुनकर मोर खिलखिला कर हँसते हुए बोला हाँ हाँ क्यों नहीं मैं विस्तार से अपने बारे में तुम्हें सब बताता हूँ।

तब मोर ने कहा तुम जानती हो पिंकी.........मुझे "मोर" पक्षी कहा जाता है। मेरे पंख तो हैं पर वजन, आकार ज्यादा होने के कारण ऊँचा उड़ नहीं सकता। मैं पक्षियों का राजा हूँ, और भारत का राष्ट्रीय पक्षी भी। मेरा वजन 5 से 10 किलो तक का होता है।

और सुनो हम मोर पक्षी अधिकतर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में पाए जाते हैं। लेकिन कभी-कभी भटकते हुए इधर-उधर भी चले जाते हैं जैसे मैं आज इस जंगल में आ गया। बरसात के मौसम में जब हम पंख फैलाकर नाचते हैं तो ऐसा लगता है मानो हीरो से जड़ी हुई पोशाक हमने पहन रखी हो।

हमारा नृत्य देखकर तो बच्चे, बूढ़े, जवान सभी मंत्रमुग्ध हो जाते हैं जैसे आज तुम हो गई मुझे देखकर। हमें पंख फैलाकर नाचना बहुत अच्छा लगता है। लोग हमें तो पसंद करते ही हैं साथ-साथ हमारे पंखों को भी बहुत पसंद करते हैं। जिसमें चाँद जैसी आकृतियाँ और लगभग सभी रंगों का समावेश है। मेरे पंख मखमल जैसे कोमल और सुंदर हैं पर पैरों का रंग थोड़ा भद्दा और आवाज़ कर्करी है। मेरी गर्दन नील और लंबी है। और देखो मेरे सर पर एक सुंदर सी कलगी भी है। मैं थोड़ा शर्मीला भी हूँ इसलिए लोगों से थोड़ा दूर रहना पसंद करता हूँ।

और हाँ पिंकी हम "मोर" पक्षियों को शान से जीना बहुत पसंद है। हम मनुष्यों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं और भारत के धार्मिक ग्रंथों में तो हम मोर पंछियों को बहुत पवित्र माना गया है। भगवान श्री कृष्ण को भी मेरे पंखों से असीम प्रेम है तभी तो उन्होंने हमारे पंख को अपने सर पे धारण किया है। भगवान श्री कृष्ण के माथे की शोभा बनकर तो हम मोर पक्षियों का जीवन ही धन्य हो गया।

और सुनो पिंकी................ सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के राज्य में जो सिक्के चलते थे उन सिक्कों पर भी हमारी छवि बनी होती थी। हमें तो शिष्टता और सुंदरता का प्रतीक भी माना गया है। यह हम मोर पक्षियों के लिए बड़े ही गर्व की बात है।

पिंकी को मोर की ये भारी-भरकम बातें ज़्यादा कुछ समझ तो नहीं पा रही थी पर उसे सुनने में बड़ा ही मज़ा आ रहा था। इसलिए बिना कुछ बोले पिंकी ध्यान पूर्वक मोर की बातें सुन रही थी।

तभी मोर अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोला जानती हो पिंकी हम मोर पक्षी सर्वाहारी हैं, फल और सब्ज़ियांँ तो हमारा प्रिय भोजन है ही साथ में चना, गेहूँ, बाजरा और मकई यह सब हमें खाने में मिल जाए तो हम बड़े ही चाव से खाते हैं। इसके साथ खेतों में हानिकारक कीड़ों, चूहों, दीमक, छिपकली और साँपों को भी हम अपना भोजन बनाते हैं।

खेतों में इन हानिकारक कीड़ों को खाने के कारण ही तो हमें किसानों का सच्चा मित्र भी कहा जाता है।

पिंकी ध्यान से सब सुन रही थी कि उसने देखा मोर अचानक उदास हो गया तब पिंकी ने पूछा............... अरे दोस्त, अभी तो तुम खुशी-खुशी अपनी सारी बातें बता रहे थे और अब अचानक ऐसे उदास हो गए बोलो ना क्या बात है। क्या अपने दोस्त को नहीं बताओगे?

तब पिंकी के बहुत बोलने पर मोर ने बताया................. मैं थोड़ा चिंतित हो गया हमारी सुरक्षा को लेकर। हमारे पंखों के लिए लोग हमारा शिकार करते हैं। जिसके कारण हमारी संख्या कम होती जा रही है। पर इस बात की खुशी भी है कि भारत सरकार ने हमारे संरक्षण के लिए कुछ कानून बनाएं हैं। इसी सुरक्षा कानून के तहत ही तो हमारी संख्या में बढ़ोतरी हो पाई है। फिर भी कुछ लोग गैरकानूनी तरीके से हमारा शिकार करते हैं।

पिंकी मोर की बात सुनकर थोड़ी उदास हो गई लेकिन फिर चहकती हुई बोली................. तुम उदास मत हो मित्र मैं सबको समझाऊंँगी कि तुम कितनी सुंदर पक्षी हो कितना सुंदर नृत्य करते हो, तुम्हारे पंखों से ही तो तुम इतने सुंदर और आकर्षक लगते हो वो तुम्हारा शिकार न करे।

इतनी प्यारी बातें सुनकर मोर ने मुस्कुराकर पिंकी का हृदय से धन्यवाद किया और उसे अपना एक पंख निशानी देकर उससे विदा लिया। पिंकी भी मोर का पंख लेकर खुशी-खुशी अपने घर की ओर लौट गई।


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