पुनर्विवाह-एक नई शुरुआत
पुनर्विवाह-एक नई शुरुआत
माता पिता की इकलौती बेटी अंजलि जिसका विवाह बड़ी ही धूमधाम से अजीत नामक युवक के साथ हुआ था। एक खुशहाल ज़िंदगी जी रही थी।
अंजलि के व्यवहार और कार्यकुशलता से उसके सास-ससुर बहुत खुश थे और वो अंजलि को बहुत प्यार भी करते थे। अंजलि भी अपने परिवार का बहुत ध्यान रखती थी। और कोई भी ऐसा कार्य नहीं करती थी जिससे उसके परिवार को ठेस पहुंँचे।
जीवन की गाड़ी ऐसे ही खुशहाल पटरी पर चल रही थी। पर कहते हैं ना "सब दिन होत ना एक समान"। और ऐसा ही कुछ हुआ अंजलि और उसके परिवार के साथ। एक बम ब्लास्ट में अंजलि के पति की मृत्यु हो गई। परिवार पर और अंजलि पर तो जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा।
अभी तो हंँसती खेलती ज़िन्दगी थी और पल में बदल गई। जाने किस्मत ने अंजली के लिए क्या सोच रखा था। बेटे की मौत के बाद उसके सास-ससुर मैं अपना कुछ और रंग ही दिखाना शुरू कर दिया। अजीत की मौत का जिम्मेदार अंजलि को ठहराने लगे।
आए दिन उसे ताना देते रहते थे। उसके कि हर काम में बेबुनियाद नुक्स निकालते ताकि अंजलि स्वयं घर छोड़कर चली जाए। अंजलि अब सास ससुर को फूटी आंँख नहीं सुहात थी। पर अंजलि अपने पति की चौखट छोड़कर जाने को राज़ी नहीं। इसलिए वो सब कुछ चुपचाप सह रही थी।
कहीं ना कहीं उसके माता-पिता के दिए संस्कार भी उसे बड़ों के सामने मुंँह खोलने की इजाजत नहीं देते थे।
खैर, जैसे तैसे खुद को समझा कर अंजली के जीवन की गाड़ी आगे तो बढ़ रही थी। किंतु अंजलि के लिए खुद को समझा पाना बहुत मुश्किल था। वो खुद को संभालने की कोशिश कर ही रही थी कि उसके सास ससुर ने उसे एक दिन अपशगुनी कहकर घर की चौखट से बाहर कर दिया।
अंजलि खूब गिड़गिड़ाई, रोती बिलखती रही किंतु इसका उसके सास-ससुर पर कोई असर नहीं हुआ। दरवाजा बंद करके वो अंदर चले गए। पूरी रात अंजलि वहीं चौखट पर आंँसू बहाती रही। उसे समझ नहीं आ रहा था जाए तो जाए कहाँ। माता- पिता के घर जाती है तो उन पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ेगा। एक तो आर्थिक तंगी ऊपर से के विधवा बेटी का बोझ। यही सब सोचकर अंजलि के पांँव अपने मायके की तरफ़ नहीं बढ़ रहे थे।
किंतु अचानक कुछ ऐसा घटित हुआ इसे अंजलि का भाग्य कहिए या वक़्त का फैसला। जिस रात अंजलि को घर से बाहर निकाला गया उसी की अगली सुबह अंजलि की ननद विदेश से अपनी पढ़ाई पूरी करके घर लौटी। अंजलि को इस हालत में देखकर उसकी ननद को बहुत बुरा लगा।
वो जोर जोर से चिल्लाने लगी........ "भाभी उठो ना, क्या हुआ आपको ? ऐसे क्यों घर की चौखट पर बेहाल कैसे पड़ी हो। "
पर अंजलि का तो बुखार से बुरा हाल था वो कुछ बोलने की हालत में भी नहीं थी।
अंजलि की ननंद ने दरवाजा खटखटाया तो सामने मांँ पिताजी को देखकर अंजलि की इस हालत के बारे में पूछने लगी। किंतु उसके माता-पिता बात को टालने की कोशिश करते रहे।
पर कब तक टालते तब उससे झूठ ही कह दिया....... पति के दुःख में पागल हो गई है इसलिए ऐसी हरकत कर रही है। हमने कुछ नहीं किया। तू चल अंदर हमारे साथ ये खुद ही आ जाएगी।
किंतु अंजलि की ननंद अंजलि की हालत देखकर सब समझ गई कि ज़रूर उसे घर से निकाला गया है।
अंजलि की ननंद ने अपने माता पिता को समझाया आप कैसे भाभी को घर से बाहर निकाल सकती हैं भैया नहीं रहे इसमें भगवान की मर्जी है भाभी की कोई गलती नहीं। यहांँ रहना उनका हक है। बाकी उनकी मर्जी। आप उन्हें इस प्रकार घर से नहीं निकाल सकती।
हमारा देश इतना आगे बढ़ गया है और आप लोग उसी दकियानूसी रीति-रिवाजों को सीने से लगाए बैठे हैं। जाने हमारा समाज कब इन कुरीतियों से मुक्ति पाएगा।
बेटी की बात सुनकर माता-पिता ने सोचा...... बिटिया तो कुछ दिनों में चली जाएगी तब तक के लिए हम शांत रहते हैं इस मनहुस को तो हम बाद में देख लेंगे।
मन में यह सोचते हुए उन्होंने अपनी बेटी को कहा ठीक है ठीक है जाओ भाभी को अंदर ले आओ। अंजलि की ननद अंजलि को उठाकर कमरे तक लाई। ननद की सेवा से अंजली कुछ दिनों में स्वस्थ तो हो गई। किंतु बहुत गुमसुम सी रहने लगी उसके जीवन में मानो कोई रंग ही ना हो उसके सास ससुर उसे कोई भी रंगीन कपड़ा पहने नहीं देते थे यहांँ तक कि अगर वो रंगीन कपड़ों की तरफ़ देख भी ले तो बहुत ही जली कटी उसे सुनाने लगते थे। इसके अलावा नौकरों की तरह व्यवहार करते और घर का सारा काम उसी से करवाते थे। ठीक से काम करने के बावजूद भी लाखों गलतियांँ उसमें निकालते थे। अंजली इसी को अपना नसीब मानकर किसी तरह जीवन काट रही थी।
किंतु अंजनी की ननद से यह सब देखा नहीं जा रहा था वो एक पढ़ी-लिखी, समझदार और नई सोच वाली लड़की थी। ऐसे ही एक दिन बैठे बैठे वो सोचने लगी अंजली भाभी की अभी उम्र ही कितनी है पूरी ज़िंदगी पड़ी है उनके आगे। भैया तो अब लौट कर आने वाले नहीं तो भाभी पूरी जिंदगी किसके सहारे काटेगी ऐसी जिल्लत सहते सहते तो उनकी जिंदगी नर्क हो जाएगी। मैं भाभी को ऐसे नहीं देख सकती
आखिर वो भी तो इंसान है उन्हें भी जीने का हक है। मुझे भाभी से बात करनी ही होगी उनके पुनर्विवाह के विषय में। उन्हें अपने जीवन में एक नई शुरुआत करनी ही चाहिए यह उनका अधिकार भी है।
यही सोच कर अंजली की ननद अंजली के पास जाती है और उससे अपने मन की सभी बात कह देती है
पर अंजलि यह सब सुनकर थोड़ा मायूस हो जाती है और कहने लगती है..... नहीं मैं अपने पति को धोखा नहीं दे सकती। मैं पुनर्विवाह नहीं कर सकती किसी और के बारे में सोचना पाप है और मैं अपने सर ये पाप नहीं लेना चाहती। मुझसे यह तनिक भी ना होगा। तुम कृपा दोबारा मुझसे यह सब बात ना करना मुझे सुनने में बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा।
किंतु अंजलि की ननद ने हार नहीं मानी वो बार-बार अंजलि को रही समझाती रही पुनर्विवाह कोई पाप नहीं ज़िंदगी की नई शुरुआत है। हर स्त्री को ज़िंदगी जीने का हक है। मैं आपको ऐसे घुट-घुट कर जीते हुए नहीं देख सकती।
फिर एक दिन अंजलि की ननद ने उसे योगेश जो उसका एक अच्छा मित्र है जिसकी पत्नी का एक साल पहले देहांत हो चुका है, उसकी पूरी कहानी अंजलि को सुनाई। अंजलि को योगेश की कहानी अपने जीवन से मिलती जुलती लगी वो भावुक हो गई।
तभी अंजलि की ननंद ने तपाक से कहा......उसकी उम्र भी ज़्यादा नहीं है और वो दूसरा विवाह करने के लिए तैयार है आप कहो तो उससे मैं आपकी बात चलाती हूंँ।
किंतु अंजलि ने इनकार करते हुए कहा.....नहीं नहीं तुम्हें ऐसा कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं।
फिर अंजलि की ननद ने कहा..... अच्छा ठीक है मिल तो सकती हैं आप। बस एक बार मिल लीजिए मेरी खातिर उसके बाद आपका जो भी निर्णय होगा मुझे मंजूर है।
ननद के बहुत जोर देने पर अंजलि उस व्यक्ति से मिलने के लिए तैयार हो जाती है। मिलने का दिन तय होता है योगेश और अंजलि दोनों मिलते हैं। दोनों में बहुत देर तक बातें होती हैं। कुछ घंटों की बातचीत के बाद अंजलि घर लौट आती है।
घर लौटते की उसके सास-ससुर उस पर बरस पड़ते हैं........"दूसरा ब्याह करेगी करमजली, मेरे बेटे को तो खा गई अब किसको खाने चली है।"
इतने कड़वे बोल सुनकर भी अंजलि कुछ ज़वाब न दे पाई। किंतु अंजलि की ननद किसी भी प्रकार अंजलि की ज़िंदगी सुधारना चाहती थी। क्योंकि उसे पता था कि जब तक वो घर में है तब तक अंजलि इस घर में रहेगी उसके बाद उसे घर से निकाल दिया जाएगा। इसलिए जाने से पहले अंजलि को खुश अपने जीवन में आगे बढ़ते हुए देखना चाहती थी।
अंजलि की ननद ने अपने माता पिता को समझाया। अंजलि की मानसिक तकलीफ के बारे में बताया। पहले तो वो तैयार नहीं हुए किंतु बार-बार समझाने के बाद किसी प्रकार वो मान गए।
अगली सुबह अंजलि के लिए एक नई सुबह थी। अंजलि की जैसे ही आँख खुली उसके सास-ससुर ननद सभी उसके सामने थे। अंजलि को लगा उससे कोई बहुत बड़ी गलती हो गई है।
अंजली बिस्तर से उठते ही बड़बड़ाने लगी......"अगर मुझसे कोई गलती हो गई है तो मुझे माफ़ कर दीजिए दुबारा ऐसा नहीं होगा।"
किंतु अंजलि तब हैरान हो गई जब उसके सास-ससुर ने मुस्कुराते हुए उसके सर पर हाथ रखा और कहा...... आज से तुम हमारी बहू नहीं बेटी हो। और अपनी बेटी के हाथ पीले करने के लिए हमें बहुत सी तैयारियांँ करनी है। तुम सदा खुश रहो अपने जीवन में आगे बढ़ो।
अंजलि को कुछ समझ नहीं आ रहा था। यह चमत्कार कैसे हुआ। फिर उसकी नज़र अपनी ननद पर पड़ी वो भी मुस्कुरा रही थी।
अंजलि सब समझ गई। सास ससुर के जाने के बाद अंजलि की ननद ने अंजलि से पूछा तो बताइए भाभी आपको योगेश कैसा लगा। अब तो मांँ बाबा भी मान गए हैं अब आप तैयार हैं ना। अंजलि को अभी भी कुछ समझ नहीं आ रहा था वो समझ नहीं पा रही थी कि यह कदम उठाए या ना उठाए। पहली शादी के बाद जो हादसा उसके साथ हो चुका है उससे वह पहले से ही डरी हुई थी। और इसके लिए खुद को ही कसूरवार समझ रही थी।
लेकिन जैसे ही अंजलि कमरे से बाहर निकली उसके माता-पिता वहांँ पहले से ही मौजूद थे। यह सब उसकी ननद का किया धरा ही था। उसने अंजलि के माता-पिता को भी सारी बात समझा दी थी और अंजलि के माता-पिता की इस पुनर्विवाह के लिए पूरी तरह से तैयार थे। सबकी मर्जी और माता पिता के समझाने पर अंजलि भी इस पुनर्विवाह के लिए राज़ी हो जाती है।
फिर कुछ दिनों के पश्चात बहुत ही साधारण ढंग से अंजलि और योगेश का पुनर्विवाह हुआ। क्योंकि योगेश और अंजलि दोनों की यही इच्छा थी।
आज अंजलि और योगेश दो बच्चों के साथ एक खुशहाल जीवन जी रहे हैं। और इस खुशहाली का सारा श्रेय जाता है अंजलि की ननद को। जिसने सही समय पर यह कदम उठाकर अंजलि के जीवन को संवारा उसे एक नई उम्मीद नई शुरुआत की रोशनी दिखाई।
गर समाज में पुरुषों को अधिकार प्राप्त है पुनर्विवाह का,
तो स्त्रियों पर क्यों रोक उन्हें भी हक है नई शुरुआत का।।