मिली साहा

Abstract Tragedy Inspirational

4.8  

मिली साहा

Abstract Tragedy Inspirational

सबक

सबक

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सोमू, ओ सोमू कहांँ है तू?........ पढ़ाई लिखाई करनी भी है या अपने पिता की तरह रिक्शा ही चलाना है। तेरे मांँ-बाप अनपढ़ गवार ज़रूर हैं पर इतना तो जानते हैं कि पढ़ाई लिखाई की ज़िन्दगी क्या कीमत होती है।

बेटा हमारी ज़िंदगी तो गुज़र जाएगी जैसे तैसे .......... पर तू तो अपना जीवन सुधार ले। कह कह कर थक चुकी हूंँ पर तेरे कान पर तो जूँ तक नहीं रेंगती। बेलगाम घोड़े की तरह सारा दिन इधर-उधर भटकता रहता है। आजा जल्दी से तुझे कुछ खिला दूंँ फिर मुझे काम पर भी जाना है। और देख मेरे पीछे से कोई शरारत नहीं चुपचाप घर पर बैठकर अपनी पढ़ाई करना तू समझा।

सोमू ने हाँ में सर तो हिला दिया पर वो कहांँ घर पर बैठने वालों में से था। मौका देखते ही निकल पड़ा किताबों को देखकर तो वो ऐसे चिढ़ता था जैसे उनसे बड़ा दुश्मन उसका और कोई है ही नहीं। फिर यहांँ पढ़ने का तो सवाल ही नहीं उठता।

सोमू एक सात साल का बड़ा ही नटखट और चंचल दिमाग का बच्चा था वो अपनी माँ रमा और पिता उमेश के साथ शहर से दूर एक छोटी सी बस्ती में रहता था। सोमू के पिता रिक्शा चलाते थे और मांँ छोटे बड़े घरों में झाड़ू पोंछा और खाना बनाने का काम करती थी। घर की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी दोनों की आमदनी से किसी प्रकार घर का गुज़ारा चलता था। जमा पूंजी के नाम पर भी उनके पास कुछ नहीं था।

किन्तु इंसान कितना भी गरीब हो माता-पिता की ममता गरीब नहीं होती। रमा और उमेश भी अपने बच्चे से बहुत प्यार करते थे भले ही उसे सहूलियत ऐसो आराम नहीं दे पाते थे पर प्यार की कमी कभी नहीं होने दी।

सोमू के माता पिता की हैसियत नहीं थी कि अपने बेटे को किसी बड़े स्कूल में पढ़ाए इसलिए उन्होंने पास ही के एक सरकारी स्कूल में सोमू का दाखिला करवा दिया था। रमा और उमेश चाहते थे कि उनका बेटा पढ़ लिख कर कुछ अच्छा काम करे, अच्छी ज़िंदगी बसर करे। किन्तु पढ़ने लिखने में सोमू का बिल्कुल भी मन नहीं लगता था।

सोमू की तो दुनिया ही अलग थी स्कूल ख़त्म होने के बाद पूरा दिन दोस्तों के साथ बस्ती भर में मटरगश्ती करता रहता, बस्ती के बच्चों के साथ मारपीट लड़ाई झगड़ा। आए दिन सोमू की शिकायत लेकर कोई ना कोई रमा के दरवाजे पर खड़ा ही मिलता था।

रमा सोमू को बहुत समझाती कभी प्यार से तो कभी फटकार से किंतु उसके ऐसे स्वभाव के कारण अक्सर चिंतित रहती थी। उसे इस बात की चिंता खाए जा रही थी कि उसके बेटे का भविष्य भी क्या उसी के जैसा होगा। क्या वो भी रिक्शा चलाकर मजदूरी कर अपना जीवन व्यतीत करेगा।

रमा के बहुत डांट लगाने के बाद भी जब सोमू नहीं सुधरा तो रमा ने तय किया अब से स्कूल के बाद वो सोमू को अपने साथ लेकर जायेगी।और इसके लिए रमा ने उन घरों से इज़ाजत भी ले ली जहांँ वो काम किया करती थी। पहले तो सोमू ने जिद पकड़ ली कि वो रमा के साथ कहीं नहीं जाएगा उसे अपने दोस्तों के साथ ही खेलना है। किंतु रमा के बहुत डांटने फटकारने पर सोमू रमा के साथ चलने के लिए तैयार हो गया।

चलते चलते रास्ते भर रमा सोमू को समझा रही थी.......... देख सोमू वहाँ जाकर कोई बदमाशी नहीं करेगा तू। वो बड़े लोग हैं, उनके रहने बोलने चलने का तरीका हम सब से बहुत अलग है तू बस एक कोने में बैठ कर अपनी पढ़ाई करेगा ठीक है। रमा ने सोमू की ओर देखते हुए कहा...... तू सुन भी रहा है मैं क्या कह रही हूंँ।

सोनू ने सर हिलाते हुए कहा हांँ मैं सब सुन रहा हूँ.......सोमू मांँ की बात पर हांँ में हांँ तो मिला रहा था। किंतु कहीं ना कहीं वो उसकी बातों को अनसुनी भी कर रहा था। उसका चंचल दिमाग बस शरारत करने के लिए मचल रहा था। पर रमा के मज़बूत हाथों की पकड़ से छूट पाता तभी तो कुछ कर पाता।

तभी चलते चलते रास्ते में एक महिला बड़े ही गुस्सेल अंदाज में एक रोते हुए बच्चे के साथ तेजी से उसी की ओर बढ़ती हुई नज़र आई। सामने आते ही अचानक उस महिला ने सोमू का हाथ ज़ोर से अपनी तरफ खींचते हुए उसे आगे की ओर धकेला। पहले तो रमा को कुछ समझ नहीं आया कि आखिर हो क्या रहा है। रमा ने शांति से उस महिला से बात करनी चाही किंतु वो कुछ सुनने को तैयार ही नहीं थी तभी उसने सोमू को मारने के लिए अपना हाथ उठाया यह सब देखकर रमा से रहा नहीं गया उसने उस महिला का हाथ बीच में ही रोककर बड़ी ही विनम्रता से पूछा, आखिर बात क्या है आप क्यों इतनी क्रोधित हो रही हैं। किया क्या है मेरे बेटे ने, जो आप जानवरों की तरह उसे मारने पर तुली हैं।

रमा की बात सुनकर उस महिला का गुस्सा फूट पड़ा और वो जोर जोर से चिल्लाने लगी......... किया क्या है तुम्हारे बेटे ने? पूछो अपने लाल से। तुम्हारे बेटे ने मेरे बेटे की गेंद तो चुराई ही है साथ में उसे बुरी तरह मारा भी है। देखो इसके चेहरे और हाथ पर यह निशान। कितनी बुरी तरह से पीटा है मेरे बेटे को और तुम कह रही हो किया क्या है?

रमा ने गुस्से से सोमू की ओर देखा और पूछा...... सोमू ठीक ठीक बता क्या तेरी शरारत है ये। तेरे पास तो अपनी गेंद है न फिर इसकी गेंद क्यों चुराई। चुराई तो चुराई इसे मारा भी तूने कोई जवाब है तेरे पास इसका। कहांँ है इसकी गेंद अभी वापस कर। इतना कहकर रमा सोमू को पीटने के लिए उसकी ओर दौड़ी।

तभी सोमू अपनी मांँ के हाथ पैर जोड़ने लगा......... नहीं मांँ, मुझे मत मारो अभी इसकी गेंद वापस कर देता हूंँ और आगे से कोई शरारत भी नहीं करूंँगा वादा करता हूंँ पक्का। रमा को सोमू पर गुस्सा भी बहुत आ रहा था और दया भी।

रमा और उसके बेटे की बात सुनकर उस महिला का गुस्सा आसमान पर चढ़ गया .......... बहुत हो गया बंद करो तुम लोग यह मांँ बेटे का नाटक, अरे गेंद वापस देने से क्या मेरे बेटे का दर्द ठीक हो जाएगा। जब तक मेरा बेटा इसके गालों में दो थप्पड़ नहीं लगाएगा मैं इसे नहीं छोड़ूंगी। इतना कहकर वो महिला अपने बेटे को सोमू को मारने के लिए उकसाने लगी।

रमा ने उस महिला को समझाने की बहुत कोशिश की............देखिए बहन जी, आप ठीक कह रही हैं गेंद वापस करने से आपके बेटे का दर्द नहीं जाएगा पर मेरे बेटे को मारने से भी तो नहीं जाएगा। और बच्चे तो आपस में लड़ते ही हैं आज लड़ रहे हैं कल दोस्त बन जाएंँगे हम और आप बीच में नहीं पड़ते हैं तभी अच्छा होगा। मेरे बेटे से गलती हो गई जो आपके बेटे को मारा किंतु वापस मेरे बेटे को मार कर आपको क्या मिलेगा। सोमू अभी आपकी गेंद वापस कर देगा।

किंतु वो महिला किसी भी कीमत पर समझने को तैयार नहीं थी। वो रमा से कहने लगी अब बात गेंद की नहीं है अब बात इज्जत की है तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझसे ऐसे बात करने की तुम जानती भी हो मैं कौन हूँ अब जब तक तुम्हारे बेटे की पिटाई मेरे बेटे के हाथों नहीं हो जाती मुझे और मेरे बेटे को चैन नहीं आएगा।

रमा को अब पानी सर से उतरता नज़र आया....... समझ ही नहीं पा रही थी मामले को कैसे सुलझाया जाए। रमा समझ रही थी कि सोनू ने गलती की है पर अपनी आंँखों के सामने अपने बेटे को मार खाता हुआ भी नहीं देख सकती थी। सोमू भी उस महिला के डर से अपनी मांँ के आंँचल के पीछे छुप गया। और रोते-रोते कहने लगा मांँ इस बार बचा लो नहीं तो यह औरत मुझे मार देगी आगे से कभी कुछ नहीं करूंँगा तुम्हारी सौगंध, तुम कहोगी तो मैं घर से बाहर भी नहीं निकलूंँगा चाहे मुझे दो दिन खाना भी मत देना, रोज स्कूल भी जाऊंँगा मन लगाकर पढ़ूँगा भी।

एक तरफ़ वो महिला थी जो कुछ सुनने को तैयार नहीं और दूसरी और उसका अपना बेटा सोमू जो खुद को बचाने के लिए मांँ से गुहार लगा रहा था। रमा को कुछ समझ नहीं आ रहा था कैसे बात को संभाला जाए। आखिर मांँ है वो गलत ही सही पर कैसे अपने बेटे को मार खाता हुआ देख सकती है। रमा सोचने लगी आखिर मेरी ही परवरिश में कोई कमी रह गई है तभी तो आज मेरे बेटे को यह सब भुगतना पड़ रहा है। सब मेरी ही गलती है, अगर पहले ही सोमू की शरारतों पर मैंने अंकुश लगाया होता तो आज यह दिन देखना नहीं पड़ता।

यही सब सोचते सोचते रमा उस महिला को समझा भी रही थी किंतु बहुत समझाने के बाद भी जब वो महिला नहीं मानी तो रमा ने कुछ सोच कर अपने कदम आगे बढ़ाते हुए कहा............ बहन जी आप मेरे बेटे को छोड़ दीजिए और मेरे गालों पर दो थप्पड़ क्या दस थप्पड़ जड़ दीजिए मैं उफ्फ तक नहीं करूंँगी। आपको जो करना है मेरे साथ कीजिए मैं अपने बेटे के गलती की सज़ा भुगतने के लिए तैयार हूंँ। सोमू पीछे से आश्चर्यचकित होकर यह सब देख रहा था उसकी आँखें आंँसू से डबडबा गई।

रमा उस महिला से कहती है...........मैं जानती हूंँ मेरे बेटे ने गलती की है और मैं उसे बचाने की कोशिश भी नहीं कर रही मैं उसे सज़ा भी जरूर दूंँगी पर यहांँ इस तरह नहीं। आप चाहे तो उसे डांट लीजिए फटकार लीजिए पर हाथ न उठाइए। मैं आपके आगे हाथ जोड़ती हूंँ। आपको जो भी सजा देनी है मुझे दे दीजिए मेरे बेटे को छोड़ दीजिए।

वो महिला गुस्से में इतनी पागल थी कि उसने रमा की बात बीच में ही काट कर उसके गालों पर दो थप्पड़ जड़ दिया। ऐसा करने के बाद वो महिला बड़बडाते हुए अपने बेटे को लेकर झटक कर निकल गई। वहांँ आसपास खड़ी भीड़ ममता के आगे मजबूर एक मांँ को आश्चर्यचकित देखती ही रह गई। सोमू जोर-जोर से रोने लगा उसे ऐसा लग रहा था मानो वो चांटा उसकी मांँ को नहीं उसके गालों पर पड़ा हो। वो रोते-रोते जाकर मांँ से निपट गया और अपनी गलती के लिए बार-बार अपनी मांँ से माफ़ी मांगने लगा।

रमा ने बिना कुछ कहे सोमू का हाथ पकड़ा और वापस अपने घर की तरफ चली गई। घर पहुंँचकर रमा ने सोनू से कहा....... देख सोनू अब तेरी शरारते मुझसे सहन नहीं होती आए दिन तेरी शिकायतों की पोटली का भार अब मैं सहन नहीं कर सकती। इतना कहकर रमा मौन अवस्था में सर पकड़ कर वहीं बैठ गई।

सोमू के पिता को भी जब सारी घटना के विषय में पता चला तो उसने सोमू को खूब डांट लगाई और समझाया कि देख बेटा आज तो तेरी मांँ तुझे बचाने के लिए तेरी ढाल बनकर खड़ी थी पर जीवन में कई ऐसे मोड़ आएंगे जहांँ तुझे अकेले चलना पड़ेगा और तब तेरी शरारतों के कारण अगर तुझ पर फिर ऐसी मुसीबत आएगी तब तुझे वहांँ कौन बचाने आएगा।

सोनू के पिता जब उसे समझा रहे थे तब रमा ने आकर उससे कहा....... देख सोमू, तूने जो किया उसकी सज़ा तो तुझे मिलेगी। और तेरी सजा ये है कि आज से हम दोनों तब तक तुझसे बात नहीं करेंगे जब तक तू अपनी सारी बदमाशियाँ छोड़ नहीं देता और पढ़ाई में अपना मन नहीं लगाता।

कब सोनू बिना कुछ कहे आंँखों में आंँसू लेकर अपने माता-पिता से आकर बुरी तरह लिपट जाता है। सोमू था तू आखिर छोटा सा ही बच्चा कितनी सज़ा देते हैं उसे। सोमू के माता पिता समझ गए किस सोमू को अपने किए का पछतावा है और उसकी आंँखों में जो आंसू हैं वो सच्चे हैं।

रमा ने यह सब इसलिए नहीं किया कि वो अपने बच्चे को बचाना चाहती थी बल्कि इसलिए किया क्योंकि वो नहीं चाहती थी कि दुनिया वाले उसके बच्चे को ग़लत समझे। क्योंकि सोमू अभी बहुत छोटा था उसने जो कुछ भी किया जानबूझकर नहीं नासमझी में किया। और इस तरह की गलतियांँ आगे चलकर गुनाह ना बन जाए सोमा ने इस बात का ख़्याल रखते हुए सोमू का साथ दिया और खुद को सजा दी। और रमा का खुद को दी गई ये सज़ा उसके बेटे सोमू के लिए जिंदगी भर का सबक बन गई।

दूसरी ओर इस घटना का इतना अधिक असर हुआ सोमू पर कि उस दिन के बाद उसने भूलकर भी कभी कोई गलती नहीं की। अब वो दिन रात मेहनत करके पढ़ाई करता था अपनी मांँ की सभी बातें मानता था। इस घटना ने सोमू को पूरी तरह से बदल दिया। सोमू ने पढ़ लिख कर एक अच्छी नौकरी ही नहीं हासिल की बल्कि एक अच्छा इंसान भी बना।

जिस मोहल्ले में सोमू कभी शरारती बालक के नाम से जाना जाता था वहीं उसकी तारीफ़ों के पुल बांँधते हुए लोग थकते नहीं हैं। और सोमू इसका संपूर्ण श्रेय अपनी मांँ रमा को देता है। सोमू उस घटना को याद करते हुए सदैव अपने दोस्तों से कहता है मेरी गलती जानते हुए भी मेरी मांँ ने उस दिन मुझे बचाया जो थप्पड़ मेरे गालों पर पड़ने वाला था वो मेरी मांँ ने अपने ऊपर ले लिया।

सच कहते हैं ऐसी होती है मांँ, संतान पर आने वाली हर मुसीबत को अपने ऊपर लेने के लिए सदैव तत्पर रहती है। अगर उस दिन रमा ने सोमू को पिटने दिया होता या सभी के सामने उसे खुद ही पीटने लगती तो हो सकता था सोमू का मनोबल गिर जाता वो खुद को दोषी मानने लगता और इसके बाद‌ शायद कोई गलत राह भी चुन लेता फिर ना तो उसे अपनी मांँ के ऊपर विश्वास रहता और ना दुनिया पर।

किंतु रमा ने अपने बेटे सोमू को बचा कर उसकी गलती पर पर्दा नहीं डाला बल्कि उसे समझाया सजा तक देने की बात कह दी। माता-पिता का तो काम ही होता है बच्चों को संरक्षण देना। लेकिन इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि उनकी गलतियों पर पर्दा डालो। किंतु हर शरारत के लिए उन्हें सजा देना भी तो ठीक नहीं बल्कि समझदारी से उन्हें समझाना चाहिए उनकी गलतियों का एहसास कराना चाहिए ताकि भविष्य में आगे चलकर वो ऐसी कोई गलती दोबारा ना करे। क्योंकि कभी-कभी सज़ा वो काम नहीं करती जो मांँ बाप के द्वारा दी गई सलाह कर जाती है। 


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