राजनीति
राजनीति
समाज और देश की उन्नति और विकास के लिए नीतियां बनाना है राजनीति का काम
पर जातिवाद, परिवारवाद और संप्रदाय की भावना आज राजनीति को कर रही बदनाम।
देश प्रेम की भावना त्याग कर राजनीति के नाम पर भ्रष्टाचारी सेक रहे हैं अपनी रोटियाँ
राजनीतिक खेल, खेलकर अपनी कुर्सी बचाने को काट रहे हैं बस एक दूजे की चोटियाँ।
"राजनीति" एक ऐसा शब्द, जब भी हम इसके बारे में सुनते हैं तो दिमाग में सरकार, राजनेता और राजनीतिक दल के बारे में ही विचार आते हैं।
"राजनीति" किसी भी सरकार का आधार होती है और अपने वोट बैंक को भरने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों को अंजाम देती है। "राजनीति" हर जगह होती है बड़े से बड़े देश और छोटे से छोटे देश में भी। क्योंकि हमारा देश भारत एक लोकतांत्रिक देश है इसलिए यहांँ की राजनीतिक प्रणाली देश के नागरिकों को अपनी सरकार चुनने का अधिकार देती है। अर्थात देश के नागरिक सरकार के निर्माण और उससे असंतुष्ट होने पर उसे बदलने की शक्ति रखते हैं।
"राजनीति" में कुछ अच्छे नेता हैं। तो कुछ ऐसे भ्रष्ट नेता भी है जो सरकार की "राजनीति" का अपने स्वार्थ पूर्ति हेतु गलत उपयोग करते हैं। जिसका परिणाम देश और देश की सरकार को भुगतना पड़ता है। "राजनीति" के गलत उपयोग से देश की तरक्की में रोक तो लग ही जाती है साथ में कई प्रकार के संकट भी खड़े हो जाते हैं, जैसे भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, गरीबी, महंगाई और भी बहुत कुछ। नेता अपनी स्वार्थ पूर्ति हेतु किसी भी हद तक चले जाते हैं। उन्हें देश हित नहीं स्व हित से मतलब होता है।
आए दिन किस्से सुनने को आ ही जाते हैं भ्रष्टाचार के,
कहाँ से करेगा देश विकास नेताओं के ऐसे व्यवहार से।
भ्रष्ट नेताओं के अलावा इसी प्रकार कुछ अशिक्षित व्यक्ति भी धन और ताकत के बलबूते पर राजनीति में प्रवेश कर सत्ता संभालने लगते हैं। जिसके कारण देश विकास का रास्ता ही भटक जाता है।
राजनीति में परिवारवाद, जातिवाद और संप्रदाय का होना भी देश की तरक्की में सबसे बड़ी बाधा है। जाति, संप्रदाय के आधार पर राजनीतिक खेल खेलकर विभिन्न राजनीतिक दल के मंत्री विपक्ष को बदनाम करने के लिए भड़काऊ भाषण देते हैं, फर्जी खबरें फैलाते हैं। या यूँ कहें कि आपस में ही एक दूसरे पर कीचड़ उछालते हैं। और यह सब करते हैं सिर्फ़ अपनी कुर्सी बचाने के लिए और इसके लिए देश और समाज का कितना भी बड़ा नुकसान हो जाए इससे उन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता।
देश की समरसता के साथ करते हैं ये बहुत बड़ा खिलवाड़,
राजनेताओं की ये अभद्रता निम्न करती राजनीति का सार।
वैसे तो राजनीति पर अगर बहस की जाए तो इसका कोई अंत नहीं किंतु कुछ राजनीतिक विषयों पर एक आध लोगों की राय तो मेल खा ही जाती है तो आइए सुनते हैं राजनीति में परिवारवाद विषय पर दो व्यक्तियों के बीच हो रही बातचीत.....
पहला व्यक्ति: सबसे पहले तो ये बताइए कि आखिर यह परिवारवाद मुद्दा क्या है?
दूसरा व्यक्ति: परिवारवाद वो है जिसमें एक ही परिवार से एक के बाद एक राजनीति में उतर कर पद हासिल करते जाते हैं चाहे उनमें काबिलीयत हो या ना हो। कहा जा सकता है कि सत्ता में अपनी पैठ जमा लेते हैं। जबकि हमारे लोकतंत्र में परिवारवाद या वंशवाद का कोई स्थान नहीं है।
पहला व्यक्ति: अच्छा तो इसे कहते हैं परिवारवाद। फिर तो राजनीति में इसकी मौजूदगी लोकतंत्र के लिए हानिकारक है।
दूसरा व्यक्ति: हाँ बिल्कुल, इसकी सबसे बड़ी हानि है कि यह राजनीति में घुसकर हमारे लोकतंत्र को खोखला और कमज़ोर कर रहा है। इसके कारण समान अवसर का सिद्धांत भी पीछे छूट रहा है। परिवारवाद से राजनीति में अयोग्य शासकों की नियुक्ति से देश के विकास और उन्नति पर भी प्रभाव पड़ता है। यह हमारी चुनावी लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है और लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ भी है। इस प्रथा को खत्म करने के लिए देश के युवाओं को जागरूक होकर राजनीति में आगे आना होगा।
यह तो बात थी राजनीति में परिवारवाद की। इसी प्रकार जातिवाद और सांप्रदायिकता की भावना भी हमारे लोकतंत्र को मजबूत नहीं बनने देती। इससे समाज के विभिन्न समूहों में आपसी द्वेष बढ़ता है, जिससे समाज और देश का भयंकर विनाश होता है।
आमतौर पर यह भी देखा जाता है कि की राजनीतिक दल अपने लाभ के लिए जनता से अलग-अलग चाल चलती है, जो किसी राष्ट्र और उसकी अर्थव्यवस्था के लिए एक बहुत बड़ी बाधा है। राजनीति में घोटाला, चुनाव के समय नागरिकों से भारी भरकम वादे कर बाद में मुकर जाना और भ्रष्टाचार का होना भी लोगों के दिलों में सरकार के प्रति नफ़रत पैदा करता है।
देश के राजनीति की सबसे बड़ी कमजोरी है कि यहाँ आना बहुत ही आसान है, क्योंकि इसमें शिक्षा की आवश्यकता भी न्यूनतम है। इसलिए जिनके पास पर्याप्त धन है वो अशिक्षित होते हुए भी उम्मीदवार बनकर राष्ट्र पर कब्जा करने में सक्षम हो जाता है।
अतः देश के राजनीति का सही इस्तेमाल से ही देश तरक्की करेगा और विकास के रास्ते पर अग्रसर होगा। इसके लिए राजनीति में पढ़े लिखे और योग्य नेताओं की आवश्यकता तो है साथ ही हम सबको खासतौर पर युवा वर्ग को आगे आने की भी ज़रूरत है, ताकि गंदी राजनीति से हमें और देश को छुटकारा मिल सके।