मिली साहा

Abstract Tragedy Inspirational

4.8  

मिली साहा

Abstract Tragedy Inspirational

बुजुर्ग पीढ़ी का तिरस्कार

बुजुर्ग पीढ़ी का तिरस्कार

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नहीं मांगते चाँद और तारे नहीं मांगते कोई कीमती उपहार,

बुजुर्ग हैं हमारी धरोहर उन्हें तो चाहिए बस थोड़ा सा प्यार,

होते वे परिवार का मजबूत स्तंभ इनसे है परिवार की शान,

जिस घर में बुजुर्गों का सम्मान, वहीं पलते आदर्श संस्कार।

नीरज अपने माता-पिता की इकलौती संतान। आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी ना होने के बावजूद भी बड़े ही लाड प्यार से उसके माता-पिता ने उसका बचपन संवारा। उन्होंने नीरज को केवल प्यार ही नहीं दिया अच्छे संस्कार और आदर्श की शिक्षा भी दी। बड़े बुजुर्गों का सम्मान करना शालीनता से बात करना सब कुछ सिखाया। जीवन में ऊंँचे मुकाम तक पहुँच पाए, अपना लक्ष्य प्राप्त कर सके इसके लिए जहाँ तक भी हो सका हर संभव प्रयास किया। अपने सुख के लिए उन्होंने कभी कुछ नहीं किया किंतु अपने बेटे के आँखों में पल रहे सपनों को अपनी आँखों में बसाया, उसे हकीकत का पूर्ण आकार दिया। जिसके परिणाम फलस्वरुप नीरज आज सफलता के उस मुकाम पर है जहाँ पहुंँचने की ख्वाहिश हर किसी के दिल में होती है। एक बहुत बड़ी कंपनी में अच्छी खासी सैलरी वाली नौकरी बड़ा घर, गाड़ी, ऐसो आराम, कहा जाए तो नीरज को आज के समय किसी बात की कोई कमी नहीं थी। 

नीरज के माता-पिता को नीरज से बहुत उम्मीद थी। उन्हें अपने बेटे पर पूर्ण विश्वास था। वो अक्सर आपस में, अपने लोगों के बीच में बातें किया करते थे भगवान ने नीरज के रूप में हमें कितना अच्छा बेटा दिया है वो हमारी कितनी परवाह करता है। भाग्यशाली हैं हम, हमारा बुढ़ापा तो बड़े ही सुख चैन से गुजरेगा। 

नीरज भी अपने माता-पिता से अक्सर कहता था। मैं हमेशा आप लोगों के साथ रहूँगा, जीवन के किसी भी मोड़ पर आप लोगों को अकेला नहीं छोडूंगा। पढ़ लिख कर एक बहुत बड़ा आदमी बनूंँगा फिर बड़े से घर में आप लोगों को रखूंँगा। ऐसे ही कई अनगिनत बातें जिन्हें सुनकर उन्हें अपने बेटे पर बहुत गर्व महसूस होता था।

पर कहा जाता है न बेटे की असली पहचान तो होती है उसका विवाह होने के पश्चात ही। तो आइए देखते हैं नीरज अपने माता पिता के प्रति अपना फ़र्ज़ निभा पाता है या नहीं? 

नीरज के परिवार की रोजमर्रा की ज़िंदगी वैसे ही चल रही थी जैसे अधिकतर परिवारों की होती है। सुबह-सुबह की भागदौड़, छोटी मोटी नोकझोंक वगैरा-वगैरा।

यार प्रीति...... मेरी टाई कहाँ रखी है अब मेरा वॉलेट भी नहीं मिल रहा है ये रोज-रोज मेरी चीजें इधर से उधर कैसे हो जाती हैं मैंने अपनी वॉच भी कल इसी टेबल पर रखी थी वो भी दिखाई नहीं दे रही। प्रीति जल्दी करो मेरा नाश्ता कहांँ है, मुझे लेट हो रहा है यार।

तभी घर के दूसरे कमरे से आवाज़ आती है..... यार नीरज तुम्हारा यही प्रॉब्लम रोज़ का है मुझे भी तो ऑफिस जाना है तैयार होना है तुम अपनी चीजें खुद क्यों नहीं ढूंढ लेते या माँ को बोलो वो ढूंढ कर देंगी।

प्रीति की बात सुनकर नीरज माँ-माँ की आवाज़ देकर ज़ोर से अपनी माँ को पुकारने लगा। सामने दरवाजे से माँ आती है हाथ में नाश्ता लेकर और टेबल पर रखते हुए कहती है बेटा पहले तुम नाश्ता करो मैं तुम्हारी सारी चीजें ढूंढ कर देती हूंँ। नीरज शांत होकर नाश्ता करने लगता है उसकी माँ उसका सारा सामान ढूंढ कर उसके सामने लाकर रख देती है।

नीरज नाश्ता करने के पश्चात अपनी माँ के हाथों को थामकर कहता है सच में माँ अगर तुम ना हो तो मैं एक कदम भी आगे नहीं चल सकता। बेटे के शब्द सुनकर माँ के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान आ जाती है। अमृत समान थे उसके लिए ये शब्द जिसे सुनकर उसकी सारी की सारी थकान उतर जाती है। एक माँ को आखिर इसके अलावा और क्या चाहिए।

प्रीति भी नाश्ता कर नीरज के साथ एक ही गाड़ी में ऑफिस के लिए निकल जाती है। रास्ते में नीरज प्रीति से कहता है प्रीति‌ यार मम्मी की थोड़ी सी मदद कर दिया करो अब उनकी उम्र हो गई है सुबह-सुबह इतना काम करके थक जाती है।

इतना सुनना था कि प्रीति झल्लाकर बोली.......... अच्छा इतना ही है तो तुम क्यों नहीं मदद कर देते सारी जिम्मेदारी क्या मेरी है तुम्हारी कुछ नहीं। पापा जी रोज़ सुबह-सुबह सब्जी लाने मार्केट जाते हैं तुम क्यों नहीं लेकर आते। मैं भी तो ऑफिस जाती हूंँ पूरा दिन घर पर बेकार नहीं बैठी रहती। 

नीरज ने कहा अच्छा बाबा ठीक है अब अपना मूड मत ख़राब करो। लो तुम्हारा ऑफिस भी आ गया शाम को तुम्हें पिक कर लूंँगा। प्रीति का मूड ख़राब था इसलिए बिना बाय बोले ही वो ऑफिस के अंदर चली जाती है। 

ऑफिस जाते समय प्रत्येक दिन नीरज और प्रीति में अक्सर इसी प्रकार की चर्चा होती थी जो बहस का रूप ले लेती थी। किंतु हर बार नीरज प्रीति के सामने झुक जाता था।

शाम को दोनों घर वापस आते हैं प्रीति अपनी सास के हाथ में दवाईयाँ देते हुए कहती है माँ इसमें आपकी और पिताजी की सारी दवाइयांँ हैं वो आपने मुझसे कहा था ना लेकर आने के लिए। 

प्रीति की सास उसके सर पर हाथ रखते हुए कहती है.......... बेटा तुझे याद था मैं तो भूल ही गई थी इसके बारे में। प्रीति ने अपनी सास का हाथ थामते हुए कहा आप भूल सकती हैं पर मैं कैसे भूल सकती हूंँ माना काम के प्रेशर के कारण मैं घर पर आपका हाथ नहीं बटा पाती पर इतना तो आपके लिए कर ही सकती हूँ।

थोड़ी दूर खड़ा नीरज प्यार भरी नज़रों से प्रीति को निहार रहा था। प्रीति ने पास आकर पूछा क्या हुआ ऐसे क्यों देख रहे हो। नीरज बोला बस ऐसे ही देख रहा हूंँ तुम्हारा गुस्सा एक तरफ़ है और माता-पिता के प्रति प्यार एक तरफ़। तुम कैसे ये सब मैनेज कर लेती हो मुझसे तो होता ही नहीं। तुम सच में बहुत अच्छी हो। मैं बेकार ही तुम पर गुस्सा करता हूँ।

प्रीति अपनी तारीफ़ सुनकर नीरज से बोली...…...बस-बस अब इतनी भी तारीफ़ मत करो वे मेरे भी माता-पिता हैं मेरा भी तो कुछ फ़र्ज़ है उनके प्रति। और फिर प्रीति एक हल्की सी मुस्कान देकर अंदर चली जाती है।

फिर रात को सब एक साथ बैठकर खाना खाते हैं नीरज और प्रीति दोनों माँ के हाथों की खाने की तारीफ़ करते हुए कहते हैं सच में माँ आपके हाथों में तो जादू है मन भर जाता है। 

खाने के बीच में ही प्रीति और नीरज पिताजी से कहते हैं....... कल से आप रोज़ योगा क्लासेस जाइए आपकी सेहत बिल्कुल ठीक नहीं रहती है हमने योगा सेंटर में बात भी कर ली है।

सुनकर नीरज के पिता ने कहा..... अरे बेटा तुम लोग बेकार ही तकलीफ़ कर रहे हो। मैं ठहरा गांँव देहात का रहने वाला योगा वोगा सेंटर मेरे बस की बात नहीं। तुम लोग इतना ही कह रहे हो तो मैं घर पर ही थोड़ा बहुत कर लूंँगा।

नीरज की पिता की बातें सुनकर नीरज की माँ हंँसने लगी........ अरे बेटा, इनसे तो बस खेतों में हल चलवा लो वही काम अच्छे से कर सकते हैं। बाकी यह तुम लोग का योगा तुम्हारे पिताजी की बस की बात नहीं।

ऐसे ही हंँसी खुशी से ज़िंदगी चल रही थी उनकी। रोज़मर्रा की सागर की लहरों सी हलचल वाली ज़िंदगी थी लेकिन शाम होते-होते सब कुछ शांत सरोवर सा हो जाता था।

फिर एक दिन अचानक आई एक खुशखबरी ने उनके घर का माहौल ही बदल कर रख दिया।

नीरज अपने पिताजी के साथ बाज़ार जा कर ढेर सारे खिलौने खरीद लाया। दोनों के चेहरे पर एक अलग ही खुशी थी। उधर प्रीति और उसकी सास का तो पूछो ही मत। प्रीति की सास प्रीति को एक मिनट के लिए भी बिस्तर से उठने नहीं दे रही थी। उसके लिए अच्छा-अच्छा पौष्टिक खाना बना रही थी। और साथ-साथ पूरे घर की साज-सज्जा भी हो रही थी।

और यह सब हो रहा था प्रीति की प्रेगनेंसी की ख़बर सुनकर। एक नन्हा मेहमान नया सदस्य घर आएगा यह बात सोच कर ही सभी परिवार के सदस्य बहुत उत्साहित थे। खासकर नीरज के माता-पिता तो फूले नहीं समा रहे थे। कि अब वो दादा-दादी बन जाएंँगे।

सब मिलकर प्रीति का बहुत अच्छे से ख़्याल रखते थे प्रीति ने अपने ऑफिस से मेटरनिटी लीव ले रखी थी। क्योंकि प्रीति कोई भी रिस्क लेना नहीं चाहती थी। इसलिए अब वो पूरा टाइम घर पर ही रहती थी। 

सही समय आने पर एक प्यारी सी नन्ही गुड़िया का उनके घर संसार में आगमन हुआ। किलकारियांँ गूंँजने लगी। सबकी आँखों का तारा वो नन्ही परी माता-पिता दादा-दादी के प्यार की छांव में पलने लगी। प्रीति ने भी कुछ सालों के लिए अपनी जॉब छोड़ दी उसने तय किया जब तक उसकी बेटी थोड़ी बड़ी नहीं हो जाती तब तक वो जॉब पर नहीं जाएगी। समय ऐसे ही धीरे-धीरे बीत रहा था एक दिन अचानक नीरज को ऑफिस से एक लेटर मिला भी जिसमें उसके प्रमोशन की बात लिखी थी उसके तहत उसे विदेश में रहकर ही अपना काम संभालना होगा। 

नीरज के लिए यह बहुत बड़ा मौका था आगे बढ़ने का किंतु उसे समझ नहीं आ रहा था कि घर पर यह बात कैसे बताए। खैर जैसे-तैसे नीरज अपने परिवार को यह बात बताई। नीरज की प्रमोशन की बात सुनकर परिवार में सभी खुश हो गए। प्रीति की खुशी का तो जैसे कोई ठिकाना ही नहीं था।

प्रीति ऐसे खुश हो रही थी मानो उसके मन की कोई मुराद पूरी हो गई हो। अब आप लोग यहांँ सोच रहे होंगे ऐसी कौन सी मुराद है जो पूरी हो गई। तो आइए जानते हैं दरअसल यह सब कुछ जो अच्छा अच्छा दिख रहा था उसके पीछे की आखिर असली तस्वीर क्या है?

प्रीति नीरज से कॉलेज के समय से ही प्यार करती थी। किंतु वो एक ऐसी लड़की थी जिसे किसी की रोक टोक बिल्कुल पसंद नहीं थी। कॉलेज के समय से ही वो अपने माता-पिता के साथ नहीं रहती थी। अपनी प्राइवेसी में किसी की भी दखलअंदाजी उसे बर्दाश्त नहीं थी। किंतु एक सच यह भी था कि वो नीरज से बहुत प्यार करती थी और नीरज की उससे उतना ही प्यार करता था, इतना कि वो प्रीति की हर बात पर आंँख मूंदकर विश्वास कर लेता था। वह जैसा कहते हैं वैसा ही करता, उसकी हर बात मानता। और प्रीति इसके इस प्यार का कभी कभी ग़लत फ़ायदा भी उठा लेती थी। 

दोनों की शादी ही इस शर्त पर हुई थी शादी के बाद नीरज अपने माता पिता को साथ नहीं रखेगा। और नीरज ने बिना कुछ सोचे समझे ही उसकी ये शर्त आसानी से मान ली उसने सोचा एक बार शादी हो जाए तो माता-पिता को किसी तरह समझा-बुझाकर गांँव वाले घर में भेज देगा। यह सब सोचते हुए उसके मन में एक बार भी ख़्याल नहीं आया कि इस ढलती उम्र में उसके माता-पिता कैसे अकेले रहेंगे। तब नीरज के माता-पिता को इस शर्त के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं थी।

फिर नीरज की कॉलेज की पढ़ाई पूरी होने के बाद एक बहुत बड़ी कंपनी से जब नीरज को जॉब का ऑफर आया तो नीरज उस समय बहुत खुश था और प्रीति ने इस खुशी के मौके का फायदा उठाकर नीरज को प्रपोज कर दिया। प्रपोज करने के एक साल बाद धूमधाम से दोनों की शादी हुई । प्रीति ने इस शादी में अपने माता पिता को शामिल नहीं किया। नीरज के माता-पिता को यह बात अच्छी नहीं लगी किंतु बेटे की खुशी के आगे उन्होंने चुप रहने में ही समझदारी समझी। क्योंकि नीरज ही उनके बुढ़ापे का इकलौता सहारा था से नाराज होकर अखिल को कहांँ जाएंँगे।

शादी के कुछ दिन बाद ही प्रीति ने नीरज को शर्त याद दिलाई। और नीरज के ऊपर दबाव डालने लगी कि अभी के अभी जाकर अपने माता-पिता से कहो कि गांँव चले जाएंँ। 

नीरज ने प्रीति को समझाया.…... मैं मानता हूँ कि मैंने तुमसे वादा किया था पर तुम एक बार सोचकर तो देखो, अभी-अभी हमारी शादी हुई है, उनके भी तो कुछ अरमान है अपने बेटे बहू के साथ रहने का। कैसे कह दूंँ अचानक कि यहांँ से चले जाओ।

लेकिन प्रीति जिद पर अड़ गई। मैं कुछ नहीं जानती तुम अभी के अभी उनके बात करो। अगर तुमने उनसे बात नहीं की तो मैं जाकर कर लेती हूँ।

तब नीरज मजबूर होकर अपने माता-पिता के समक्ष जाकर हिचकिचाते हुए कहता है........... मांँ, पिताजी मुझे आप लोगों से कुछ बात करनी है।

नीरज के माता-पिता..... हांँ बोलो बेटा, इतना हिचकिचा क्यों रहे हो कोई परेशानी है क्या? हम तुम्हारे माता-पिता है बेझिझक अपनी बात कहो बेटा। 

इतना सुनकर नीरज ने हिम्मत जुटाते हुए किंतु नजरें झुकाकर कहा...... माँ पिताजी आप लोग अब गांँव में ही जाकर रहें तो अच्छा होगा मुझे और प्रीति को ऑफिस के काम से अक्सर बाहर जाना ही पड़ेगा तो आप लोगों की यहांँ देखभाल कौन करेगा और शहर की भागदौड़ वाली जिंदगी में आप लोगों का अकेले रहना बहुत मुश्किल भी है। 

नीरज के माता-पिता बहुत भोले थे। उन्हें सच में लगा कि उनका बेटा उनकी इतनी चिंता कर रहा है। किंतु वे जाते कहाँ? गाँव का घर यहांँ तक कि ज़मीन भी वे नीरज की पढ़ाई के लिए बेच चुके थे। किंतु इस बात की भनक उन्होंने नीरज को लगने नहीं दी थी। 

इसलिए उन्होंने बहाना बनाया.........बेटा नीरज, वो गाँव के घर की कुछ मरम्मत अभी बाकी है जैसे ही पूरी हो जाएगी हम लोग वहांँ चले जाएंँगे। तुम हमारी चिंता मत करो हम अपनी देखभाल खुद कर सकते हैं।

माता-पिता की बात सुनकर बिना कुछ जवाब दिए केवल सर हिलाकर नीरज वहांँ से चला गया। और प्रीति को जब सारी बात बताई तो वो गुस्से से बौखला गई। कहने लगी यह सब तो बस बहाना है ऐसे लोगों की तो आदत ही होती है बस सर पर बैठ कर रोटियांँ तोड़ना। बहुत हो गया नीरज तुमने अपनी शर्त अभी तक पूरी नहीं की जल्दी से उनका कोई इंतजाम करो नहीं तो इसका अंजाम इतना बुरा होगा कि तुम सोच भी नहीं सकते। 

अपने माता-पिता के लिए इतनी कड़वी बातें सुनकर तकलीफ़ तो उसे ज़रूर हुई होगी किंतु फिर भी वो चुप रहा। आखिर क्यों? जिस माता-पिता ने उसके लिए इतना सब किया उनके समर्थन में कहने के लिए उसके पास एक शब्द भी नहीं था क्या सच में औलाद ऐसी ही होती है। नीरज प्रीति के प्यार मैं इस कदर खो गया था कि यह भी भूल गया कि आज वो जो कुछ भी है, जिस मुकाम पर है सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने माता-पिता की बदौलत ही है।

और नीरज को ऐसे वक्त में भी केवल प्रीति की ही चिंता हो रही थी। खैर उस समय तो किसी तरह उसने प्रीति को मना लिया और आश्वासन दिया कि जल्दी ही कुछ करेगा।

किंतु आए दिन इसी बात को लेकर प्रीति और नीरज में भयंकर झगड़ा होता था। इस बात की थोड़ी बहुत भनक नीरज के माता-पिता को तो थी किंतु वे इसे मियां बीवी की छोटी मोटी झड़प समझकर अनदेखा कर दिया करते थे। 

जैसे-जैसे दिन बीत रहे थे प्रीति का गुस्सा और उनका आपसी झगड़ा सातवें आसमान पर बढ़ रहा था। प्रीति प्रेगनेंसी के दौरान और बेटी के जन्म होने के बाद थोड़ी शांत ज़रूर हो गई थी किंतु उसके मन से यह बात अभी तक गई नहीं थी। वो तो मौका ही ढूँढ़ रही थी कि कब इन बूढ़ा बुढ़िया से छुटकारा मिले। नीरज भी प्रीति की हांँ में हांँ मिलाया करता था। किंतु माता-पिता तो माता-पिता ही होते हैं कभी-कभी नीरज को उन पर दया भी आ ही जाती थी। किंतु ऐसी दया किस काम की जो अपने माता-पिता के बुढ़ापे का सहारा ही ना बन पाए। 

नीरज प्रीति की बातों का पूरी तरह से समर्थन करता था। वो कहते हैं ना जैसी संगत वैसी रंगत। प्रीति के साथ रहते रहते उसे भी बात-बात पर माता-पिता की रोक टोक पसंद नहीं आने लगी। नीरज प्रीति के रंग में पूरी तरह से रंग गया था। अब जिस प्रकार प्रीति अच्छा बनने का दिखावा करती थी उसी प्रकार धीरे-धीरे नीरज भी यही काम करने लगा। 

प्रीति तो कुछ शांत इसलिए भी रहती थी कि उसे घर का कोई काम नहीं करना पड़ता था सारा काम उसके सास-ससुर ही किया करते थे। किंतु प्रीति और नीरज के इस झूठे दिखावे को वो भोले माता-पिता कभी पकड़ ही नहीं पाए।

आज इसलिए जब नीरज ने अपने प्रमोशन की ख़बर सुनाई तो प्रीति को मानो खुशियों का आसमान मिल गया। नीरज के कहने पर प्रीति ने अपनी पैकिंग भी शुरू कर दी। 

दूसरी और नीरज के माता-पिता को यह लग रहा था कि वे लोग भी नीरज के साथ विदेश रहने जाएंँगे। इसलिए वो भी खुश होकर अपना सामान सजाने लगे। 

किंतु ये क्या ? अगले दिन प्लेन की केवल तीन टिकटें ही नीरज लेकर घर आया। नीरज के माता-पिता केवल तीन टिकट देखकर आश्चर्यचकित रह गए। उन्होंने सोचा होगी कोई बात नीरज खुद ही आकर उन्हें बताएगा इसलिए कुछ कहे बिना ही दोनों अपने कमरे में चले गए। 

थोड़ी देर बाद नीरज उनके पास आया और कहा.............. माँ, पिताजी आप लोग मुझे माफ कर दीजिए। मैं अभी आप लोगों को अपने साथ नहीं ले जा सकता। नई जगह, नया शहर है, मैं एक बार वहाँ सेटल हो जाऊँ फिर आप लोगों को अपने साथ ले जाऊंँगा। 

बेटे की बात सुनकर उन्होंने कहा..........अरे बेटा, तो माफ़ी क्यों मांँग रहे हो। ठीक है ना अभी तुम लोग चले जाओ तब तक हम लोग यही रहेंगे। और जब तुम्हें ठीक लगे हमें आकर ले जाना या हमारी टिकट करवा देना हम खुद ही चले जाएंँगे।

तब नीरज थोड़ी दबी आवाज़ में कहने लगा..........वो......वो....वो पिताजी मुझे कहना था कि ये फ्लैट ऑफिस का है इसलिए इसे खाली करना पड़ेगा इसलिए आप लोग गांँव चले जाइए। 

नीरज की बात सुनकर नीरज के माता-पिता थोड़े परेशान हो गए। फिर भी उन्होंने मन की व्यथा छुपाकर नीरज से कहा.... अच्छा खाली करना होगा? कब तक बेटा?

नीरज.......आज ही ये फ्लैट खाली करना होगा, मैं आज शाम की ही आप लोगों की टिकट करवा देता हूंँ आप लोग उसी से निकल जाइए। मेरी भी कल की ही फ्लाइट है इसलिए मैं आप लोगों को छोड़ने नहीं आ सकता वरना आप लोगों को कभी अकेला नहीं छोड़ता। यह कुछ पैसे हैं अपने पास रख दीजिए आप लोगों के काम आएंँगे। और हाँ, एक बात और आप लोग वहांँ से मुझे फोन मत कीजिएगा। जब मुझे फुर्सत मिलेगी तो मैं खुद ही आप लोगों को फोन कर लूंँगा। वो दरअसल बात यह है कि अभी शुरुआती दौर में काम का प्रेशर कुछ ज़्यादा ही होगा। लेकिन आप लोग चिंता बिल्कुल मत कीजिए मैं पैसे भेजता रहूंँगा।

अब नीरज के माता-पिता के पास कहने के लिए कुछ भी नहीं था सच्चाई वो उसे बता नहीं सकते कि गाँव का कोई घर तो है ही नहीं। और सच ही तो है माता-पिता अपने बलिदान और त्याग का बखान कब अपनी संतान के सामने करते हैं। वो तो बिना किसी फल की चिंता किए अपना कर्म करते जाते हैं।

उसी दिन शाम की ट्रेन में बैठकर नीरज के माता-पिता गांँव की ओर रवाना हो गए। नीरज काम का बहाना कर उन्हें स्टेशन तक छोड़ने भी नहीं आया। किंतु उसके माता-पिता ने इसे भी उसकी मजबूरी समझकर सहज स्वीकार कर लिया। बेटे बहू और पोती से अलग होकर दोनों का मन बहुत उदास हो गया था।

नीरज के माता-पिता जब ट्रेन में सफ़र कर रहे थे तो नीरज के पिताजी को मायूस देखकर नीरज की माँ ने पूछा क्या हुआ है से मुंँह लटका कर बैठे हो जी। 

नीरज के पिताजी...... हम गांँव तो जा रहे हैं नीरज की माँ पर कुछ सोचा है कहांँ रहेंगे हमारा तो वहांँ कुछ भी नहीं।

नीरज की माँ...... आप इतनी चिंता क्यों करते हैं? थोड़े बहुत पैसे तो हैं हमारे पास और नीरज ने भी तो दिया है ना। और अपना ही तो गांँव है कुछ ना कुछ इंतजाम कर ही लेंगे। और फिर कुछ ही दिनों की तो बात है नीरज आकर हमें ले ही जाएगा। वैसे भी नीरज को इतनी बड़ी कामयाबी मिली है उस पर अगर हम उसे घर ज़मीन बिकने की बात बता देते तो यह उसके लिए अच्छा नहीं होता। वो बेकार में ही हम लोगों के लिए परेशान हो जाता। आखिर है तो हमारा इकलौता बेटा उसे हम कैसे परेशान कर सकते हैं।

नीरज के पिताजी..... हांँ भागवान, कह तो तुम ठीक ही रही हो। ईश्वर ने जब इतना कुछ किया है हमारे लिए तो आगे भी कर देंगे। 

नीरज के माता-पिता गांँव तो पहुंँच गए। किंतु ये क्या नीरज और प्रीति तो अभी भी उसी शहर में उसी फ्लैट में मौजूद हैं यहांँ तो पूरी तस्वीर ही बदली बदली नज़र आ रही है। तो क्या वो प्रमोशन वाली बात और विदेश जाना सब कुछ दिखावा था, नाटक था अपने बूढ़े माता-पिता से छुटकारा पाने का।

माता-पिता को गांँव भेजने के बाद नीरज ने अपनी सारी प्लानिंग सारी चालबाजी प्रीति को बताई। प्रीति तो पहले से यही चाहती थी। नीरज की सारी बातें सुनकर प्रीति ने मुस्कुरा कर कहा.... आखिर तुमने अपनी शर्त पूरी कर ही दी। 

नीरज बोला...... अरे यार कैसे नहीं करता तुम्हारे लिए तो जान भी हाज़िर है। यह तो बस एक छोटी सी शर्त थी और भी कुछ करवाना है तो बोलो। 

प्रीति मुस्कुराते हुए बोली..... और कुछ करने की ज़रूरत नहीं है बस इतना करना कि अब उन्हें दोबारा वापस यहांँ लेकर मत आना।

तब नीरज ने कहा...... प्रीति तुम इसकी चिंता मत करो मैंने सारा इंतजाम कर लिया है सब कुछ सोच लिया है क्या और कैसे करना है।

उधर नीरज के माता-पिता जब गांँव पहुंँचते हैं तो इतने वर्षों के पश्चात अपनी भूमि पर पैर पड़ते ही वे लोग इस कदर खुश हो जाते हैं कि कहांँ रहना है इसकी चिंता तक दिलो दिमाग से निकल जाती है। तभी गांँव के कुछ जाने पहचाने लोग उन्हें वापस गांँव में देखकर दिल से उनका स्वागत करते हैं। 

तभी एक ग्रामीण निवासी पूछ बैठता है...... काका, काकी प्रणाम, आप लोग यहाँ? आपके बेटे नीरज की तो शहर में अच्छी खासी नौकरी और बड़ा घर भी है आप लोग तो वहीं बस गए थे तो फिर वापस इस गांँव में? और जहाँ तक मेरी जानकारी है आपने तो इस गांँव में अपनी ज़मीन और घर सब कुछ बेच दिया था अब तो यहांँ पर आप लोग का कुछ नहीं है। 

तभी दूसरा ग्रामीण बोला...... अरे कैसी बात करते हो भैया अपना गांँव है घर ज़मीन नहीं है तो क्या हुआ? हम लोगों से मिलने तो आ ही सकते हैं। और हम लोग अपने ही तो हैं। उस ग्रामीण में बड़े ही ताव से कहा क्यों काका, मैं सच कह रहा हूंँ ना। 

नीरज के पिताजी ने मुस्कुराए और फिर ग्रामीणों को सारी बात बताई। कुछ ग्रामीणों ने तो विश्वास कर लिया किंतु कुछ गांँव वालों को यह बात कुछ हज़म नहीं हुई। वे आपस में कानाफूसी करने लगे। 

एक ग्रामीण दूसरे ग्रामीण से फुसफुसाते हुए..... सुनो मुझे विश्वास नहीं हो रहा है ऐसे कोई अपने मांँ-बाप को अकेले थोड़ी भेज देता है उन्होंने क्या कुछ नहीं किया नीरज की पढ़ाई की खातिर अपना घर ज़मीन सब कुछ बेच दिया। मुझे तो दाल में कुछ काला नज़र आ रहा है।

तभी दूसरा ग्रामीण बोला..... अरे दाल में काला नहीं मुझे तो पूरी दाल ही काली नज़र आ रही है। बेचारे काका काकी इस उम्र में कहांँ जाएंँगे क्या करेंगे भगवान ना करे जैसा हम सोच रहे हैं उनके साथ ऐसा कुछ हुआ हो। पर आजकल के इन बच्चों का कुछ कह भी तो नहीं सकते पढ़ लिख कर इतने आगे निकल जाते हैं कि अपने संस्कार ही भूल जाते हैं।

तभी दूसरे ग्रामीण ने कहा..... सच कह रहे हो भैया। मैं तो अपने बेटे को शहर कभी नहीं भेजूंँगा। वो भी वहांँ जाकर ऐसा ही हो जाएगा। 

इसी प्रकार गांँव के कुछ लोग आपस में बातचीत कर ही रहे थे कि गांँव का सरपंच वहांँ आ पहुंँचा और नीरज के माता-पिता को देखकर उन्हें प्रणाम किया। किंतु उसे आश्चर्य भी हुआ।

सरपंच ने पूछा.... अरे काका, आप लोग यहांँ शहर में सब कुछ ठीक तो है? आपके बेटे बहू पोती सब ठीक हैं ना। नीरज तो बहुत बड़ा आदमी हो गया है काका। कभी आता भी नहीं हमसे मिलने।

फिर सरपंच के पूछने पर गांँव वालों ने ही सारा वृत्तांत सरपंच को सुना दिया। सरपंच ने भी दुनिया देखी थी इतना तो वो समझ ही गया की बात कुछ और है और बहुत बड़ी है। लेकिन वो नीरज के माता-पिता की बहुत इज्जत करता था इसीलिए उनके सामने कुछ कहा नहीं।

फिर सरपंच उन्हें अपने साथ लेकर जाता है और गांँव में ही एक छोटी सी कोठरी में उनके रहने का इंतजाम कर देता है।

जाते-जाते सरपंच कहता है...... काका आप चिंता मत कीजिए मैं अभी अपनी पत्नी को कहकर खाने के लिए कुछ भिजवा देता हूंँ और किसी भी चीज़ की ज़रूरत होगी तो बेझिझक मुझसे कह दीजिएगा।

नीरज के पिताजी ने मुस्कुराते हुए कहा........ हांँ-हांँ बेटा ज़रूर हम कह देंगे वैसे भी हम तो यहांँ कुछ दिन के ही मेहमान हैं जैसे ही नीरज विदेश में सेटल हो जाएगा वो हमें यहाँ से लेकर चला जाएगा। तुम्हें ज़्यादा दिन कष्ट नहीं देंगे हम।

सरपंच हल्की सी मुस्कान देकर वहांँ से चला जाता है और बड़बड़ाते हुए कहने लगता है......... हे भगवान इनके साथ कुछ अनर्थ ना हुआ हो काश! इनका बेटा ज़रूर आकर इन्हें ले जाए।

दो-तीन दिन तो गांँव वालों से मिलने मिलाने और घूमने में ऐसे ही बीत गए। सरपंच और गांँव वालों को भी इंतजार था अब तो उनका बेटा आ ही जाएगा। किंतु दिन, हफ्ते और कई महीने गुज़र गए ना तो उन्हें लेने नीरज आया, ना ही उन्हें पैसे भेजे और ना ही उसका कोई फोन ही आया।


नीरज के माता-पिता को लगने लगा हो सकता है नीरज किसी परेशानी में फंँस गया होगा। नई-नई नौकरी है ज़रूर उसे समय ही नहीं मिला होगा इसलिए नहीं आया।


नीरज के पिता जी थोड़ा घबरा भी रहे थे कहीं कुछ और बात तो नहीं इसलिए उन्होंने नीरज को फोन करने की सोची। नीरज के पिताजी के पास तो कोई मोबाइल भी नहीं था सो उन्होंने सरपंच के घर से ही जाकर फोन करना चाहा। 


नीरज के पिता जी सरपंच के घर पहुंँचते हैं नीरज को फोन लगाने का आग्रह करते हैं तब सरपंच कहता है........ अरे काका इसमें आग्रह करने की क्या बात है आप जितने चाहे उतने कॉल कर लीजिए। नीरज के पिताजी ने कई बार नंबर मिलाया, प्रीति का भी नंबर लगाया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।


अब गांँव वालों का शक धीरे-धीरे यकीन में बदलता जा रहा था। वे लोग नीरज के माता-पिता से कहते भी थे काका आपके बेटे ने आपके साथ धोखा किया है। वो आप लोगों को कभी लेने नहीं आएगा। 


किंतु नीरज के पिताजी उन्हें यह कहकर चुप करवा देते थे कि उनका बेटा ऐसा नहीं है वो ज़रूर किसी काम में फंस गया होगा इसलिए नहीं आ रहा। 


एक साल होने को आया अब तो नीरज के माता-पिता के पास पैसे भी ख़त्म हो चुके थे। किंतु उन्हें अब भी अपनी नहीं बेटे, बहू और पोती की ही चिंता हो रही थी। उन्हें लग रहा था कहीं वो लोग किसी मुसीबत में तो नहीं। क्योंकि उन्हें अपने बेटे पर पूरा विश्वास था कि वो बिना किसी कारण के ऐसा तो कुछ नहीं करेगा।


इसी प्रकार कई साल गुज़र गए। नीरज अपनी पत्नी प्रीति और बेटी के साथ ऐशो आराम की ज़िंदगी बसर कर रहा था और यहांँ उसके माता-पिता गरीबी में अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे। सरपंच थोड़ी बहुत जो मदद कर सकता था करता था। खुद का बेटा होते हुए भी किसी और की दया पर उनका जीवन चल रहा था। 


किंतु सिर्फ खाना और पहनना तो बस उनकी ज़रूरत नहीं थी। उनका हालचाल पूछने वाला, उन्हें अपना कहने वाला कोई नहीं था। नीरज की माँ तो नीरज के मुख से माँ शब्द सुनने को तरस गई। इतने वर्षों में नीरज ने कभी उनका हाल-चाल भी नहीं पूछा कभी आकर देखा भी नहीं कि वो जिंदा हैं भी या नहीं। कितने साल गुज़र गए बेटे, बहू और पोती का चेहरा तक नहीं देखा। पोती को देखने की इच्छा बेटे बहु से मिलने की ललक, इंतजार, मजबूरी, बेबसी सब कुछ उनकी आँखों में साफ़-साफ़ झलकता था। किंतु फिर वो भी किसी से अपने बेटे बहू की शिकायत तक नहीं करते थे। 


कोठरी की चारदीवारी में कैद दोनों बूढ़ी हड्डियाँ आंँसू बहाकर अपना दर्द एक दूसरे से बांँट लिया करते थे। किंतु गांँव वालों को कभी जताते नहीं थे। आखिर मांँ-बाप तो मांँ-बाप ही होते हैं बच्चे कितना भी कुछ गलत करें कभी दिल से उन्हें बद्दुआ नहीं दे सकते, उनके बारे में कुछ गलत नहीं कह सकते। हमेशा ईश्वर से यही प्रार्थना करते रहते थे कि उनका बेटा, बहू पोती जहाँ रहे बस कुशल मंगल और खुश रहें।


ऐसे ही इंतजार में किसी प्रकार दोनों के दिन कट रहे थे। जीवन के सफ़र के इस आखिरी पड़ाव में इस प्रकार तन्हा ज़िंदगी कटेगी उन्होंने कभी सोचा भी ना था। 


एक दिन अचानक उसी गांँव का एक लड़का राजेश अपने किसी काम के सिलसिले में उसी गांँव पहुंँचता है। वो नीरज का बचपन का दोस्त था और नीरज के साथ अक्सर उसकी बातचीत होती रहती थी। नीरज के माता-पिता को भी भली-भांति जानता था। 


उसने वहांँ जब नीरज के माता-पिता को इस प्रकार दयनीय अवस्था में देखा तो उसके पैरों के नीचे ज़मीन खिसक गई। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था अभी कुछ दिन पहले ही तो नीरज से बात हुई थी जिसमें उसने बताया था कि उसके माता-पिता उसके साथ ही रहते हैं स्वस्थ है और खुश हैं। 


राजेश का दिमाग काम नहीं कर रहा था नीरज के माता-पिता को ऐसी हालत में देखकर पूछे बिना उससे रहा भी नहीं गया। 


राजेश ने उनकी इस दशा के बारे में पूछा तो वो कुछ भी बताने को तैयार नहीं थे किंतु राजेश के बहुत पूछने और आग्रह करने पर......नीरज के पिताजी ने सारी बात राजेश को बताई। 


तब राजेश ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा.....….. क्या कह रहे हैं आप काका? नीरज तो अभी भी मुंबई में ही रहता है वो तो कभी विदेश गया ही नहीं मेरी तो अक्सर उससे बातचीत होती रहती है। अभी कल ही की तो बात है यहांँ आने से पहले मेरी उससे बात भी हुई है।


राजेश फिर खुद से ही बड़बड़ाते हुए कहने लगा अच्छा अब समझ में आया जब मैंने कहा था काका काकी से बात करवा दो तो उसने बात क्यों टाल दी थी।


नीरज के पिताजी ने पूछा अरे क्या हुआ बेटा क्या खुद से ही बातें कर रहे हो कोई बात है क्या? अभी तुम कुछ बता रहे थे नीरज के बारे में। ऐसा कैसे हो सकता है उसका तो प्रमोशन हुआ था वो तो हमारे जाने के अगले दिन ही विदेश के लिए निकल गया था। 


नहीं काका नीरज ने आप लोगों के साथ धोखा किया है वो वहीं मुंबई में ही है। मैं कल लौट रहा हूंँ आप लोग चलिए मेरे साथ, सारी सच्चाई आपकी आँखों के सामने आ जाएगी।


मन तो नहीं मान रहा था किंतु बेटे बहु पोती को देखने की इच्छा भी हो रही थी इसलिए राजेश के बहुत कहने पर नीरज के माता पिता उसके साथ चलने को तैयार हो गए। 


किंतु जैसे ही नीरज माता पिता वहांँ पहुँचते हैं अंदर से आती कुछ आवाज़ सुनते ही उनके कदम वहीं दहलीज पर ही रुक जाते हैं।


अंदर प्रीति और नीरज आपस में बातें कर रहे थे प्रीति नीरज से कह रही थी कितना अच्छा हुआ तुम्हारे बुड्ढे मांँ-बाप गांँव चले गए। हमारी ज़िंदगी कितनी सुकून से गुज़र रही है ना। तुमने भी ना यार, क्या तरकीब निकाली थी उन्हें यहांँ से भगाने की। मानना पड़ेगा दिमाग तो है।


नीरज ने हंँसते हुए कहा........ अरे यार, सब तुमसे ही तो सीखा है। मुझे तो पहले से ही पता था कि वो लोग सरपंच काका के घर जाकर मुझे फोन करने की ज़रूर कोशिश करेंगे इसलिए मैंने उनका नंबर पहले से ही ब्लॉक कर दिया था।


प्रीति ठहाके लगाकर हंँसने लगी....... यह तुमने बहुत सही काम किया। नहीं तो किसी न किसी प्रकार को लोग यहांँ तक पहुंँच ही जाते। और जब वो साथ थे तो झूठा दिखावा करते-करते मैं तो सच में बहुत थक गई थी। और कुछ दिन अगर वो लोग यहांँ रहते ना तो मेरे सब्र का बांँध ही टूट जाता।


तब नीरज ने हंँसते हुए कहा..... अच्छा हुआ ना तुम्हारे सब्र का बांँध टूटने से पहले ही मैंने उनका बोरिया बिस्तर बांँध दिया हमेशा के लिए। अरे यार प्रीति क्यों बेकार की बातें कर रहे हैं हम अब भूल जाओ सब। मैंने ऐसा भटका आया है की कितनी भी कोशिश कर ले वह दोबारा हमारी जिंदगी में नहीं आ सकते। और यह सब कहते हुए नीरज को लज्जा भी नहीं आ रही थी कि जिनके लिए वो ये शब्द कह रहा है वो उसके जन्मदाता हैं उन्हीं की बदौलत वह इस संसार में आया है उन्हीं की उंगली पकड़कर चलना सिखाया, जीवन में अपना लक्ष्य पाया।


खैर जो संतान अपने संस्कार ही भूल गई हो उसके बारे में और कहा ही किया जा सकता है। नीरज के पिता ने जब ये बातें सुनी तो सहन नहीं कर पाए और वहीं मूर्छित होकर गिर गए। उनकी आँखों के सामने अंँधेरा छा गया। ऐसा लग रहा था मानो पल भर में ही उनका समस्त संसार छिन गया। ज़िंदगी हाथ से रेत की तरह फिसलती हुई नज़र आ रही थी। ऐसा लग रहा था जीने की कोई ख्वाहिश ही नहीं रह गई। नीरज की माँ कभी उनके सर पर हाथ रखती तो कभी उनके हाथों को सहला रही थी। आप क्यों इतनी चिंता करते हैं चलिए हम लोग वापस गांँव जाते हैं वहीं अपनी बाकी की बची खुची ज़िंदगी एक दूसरे के साथ गुज़ार लेंगे। 


नीरज की माँ जोर-जोर से कहने लगी.... बेकार ही उस राजेश के कहने पर हम लोग यहांँ चले आए नहीं आते तो इतने दिन से जिस भ्रम में हम जी रहे थे कि हमारा बेटा हमारा है अपना खून है कभी कुछ गलत नहीं करेगा उसी में जीते रहते हैं और उसी भ्रम में इस दुनिया से विदा हो जाते। हे ! भगवान ये सब कुछ देखने से पहले मुझे उठा क्यों नहीं लिया?


किंतु नीरज की माँ की बातें शायद अब नीरज के पिता जी के कानों तक पहुंँच ही नहीं पा रही थी। क्योंकि वो सारे जंजालों से मुक्त होकर इस दुनिया को छोड़कर सदा सदा के लिए विदा हो चुके थे। नीरज की माँ विलाप करते हुए कहने लगी आप तो चले गए मुझे किसके भरोसे छोड़ गए। और कह कर जोर जोर से रोने लगी।


इस कदर घर के बाहर से रोने की आवाज़ सुनकर आसपास के सभी लोग एकत्रित हो गए प्रीति और नीरज भी घर से बाहर आए। भीड़ में से निकल कर देखा तो उसके पिताजी मृत अवस्था में घर की दहलीज पर पड़े थे और पास ही इसकी माँ मिलाप कर रही थी। 


यह सारा माजरा नीरज की समझ से बाहर था। कि उसके माता-पिता आखिर यहाँ तक पहुंँचे कैसे उन्हें कैसे पता चला कि वे लोग यहीं पर हैं। उसी समय राजेश का कॉल आता है वो नीरज से पूछता है नीरज, काका काकी कहांँ है मेरी उनसे बात करवाओ मैं ही उन्हें गांँव से लेकर आया हूंँ मैंने कहा था मैं उन्हें अंदर तक छोड़ देता हूंँ पर उन्होंने जिद की कि वो लोग स्वयं ही चले जाएंँगे इसलिए मैं उन्हें तुम्हारी दहलीज पर छोड़कर ही वापस आ गया।


अब नीरज को सारी बात समझ में आ गई। और शायद उसके पिताजी ने प्रीति और उसकी सारी बात सुन ली जिनके कारण यह सब कुछ हुआ।


अपनी गलतियों के कारण पिता को तो खो ही चुका था कम से कम माँ का जीवन संवार कर अपने पापों से मुक्ति पा लेता। किंतु नीरज की तो बुद्धि ही भ्रष्ट हो चुकी थी। उसे प्रीति की जिद के आगे और कुछ दिखाई नहीं दे रहा था।


समाज के सामने दिखावा करने के लिए तो उसने अपने पिता का अंतिम संस्कार किया और माँ को रहने के लिए घर में एक छोटी सी जगह भी दे दी। किंतु अभी भी नीरज की आंँखें नहीं खुली थी। 


प्रीति ने नीरज की माँ को घर में रहने की इजाज़त तो दे थी किंतु उसके साथ नौकरों जैसा व्यवहार करती थी यहांँ तक कि पोती से भी मिलने नहीं देती थी। नीरज की माँ तो वैसे भी पति के देहांत के बाद विक्षिप्त सी हो गई थी बिल्कुल अकेली और लाचार। इसलिए प्रीति द्वारा किया गया बुरे व्यवहार को ऐसे सहन कर जाती मानो उसे किसी बात का कोई असर हो ही ना रहा हो। वो एक जिंदा लाश के समान हो गई थी।


किंतु धीरे-धीरे उन्होंने हालातों से समझौता कर लिया। वापस अकेली गांँव जाकर करती भी क्या? अब जिंदगी के दिन ही कितने बचे हैं? यही सोचकर बुरे से बुरे हालातों में भी रहने के लिए एक असहाय माँ मजबूर हो गई।


नीरज की बेटी अब आठ साल की हो चुकी थी इसलिए उसके सामने जो कुछ होता था वो सब कुछ समझती थी। उसे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था कि एक बूढ़ी औरत को उसके माता-पिता इस प्रकार सताते हैं।


एक दिन उसने जब पूछा की मम्मा यह बूढ़ी आंटी कौन है तो प्रीति ने बताया कोई नहीं बेटा ऐसे ही गांँव की कोई गरीब औरत है। इसका इस शहर में कोई नहीं है ना इसलिए कुछ दिन यहांँ रहेगी फिर चली जाएगी।


पर कहते हैं ना खून तो खून को पहचान ही लेता है। नीरज की बेटी को उस औरत की तरफ खिंचाव महसूस होता था नीरज और प्रीति जब सो गए नीरज की बेटी चुपके से अपनी दादी के कमरे में जाती है। और पूछने लगती है आप कौन हैं? तब नीरज की माँ कहती है बेटा मैं तुम्हारी दादी हूँ। तुम जब बहुत छोटी थी तब मुझे देखा था अब बड़ी हो गई हो ना इसलिए नहीं पहचान रही हो।


नीरज की बेटी.....अच्छा आप मेरी दादी हो लेकिन मम्मा, पापा ने तो पहले कभी बताया ही नहीं कि मेरी कोई दादी भी है। 


तब नीरज की माँ ने कहा..... अरे बेटा ज़रूर बताया होगा तुम भूल गई होगी। अच्छा नहीं बताया तो क्या हुआ अब आओ मेरी गोदी में बैठो।


दादी की गोदी पर बैठते ही..........मुझे छोड़कर क्यों चले गए थे दादी? इतने दिन से कहांँ थे? मम्मा पता नहीं क्यों आपको गंदी बोलती है आप तो बहुत अच्छे हो मुझे आपके पास बैठकर बहुत अच्छा लगता है। मम्मा तो पूरा दिन अपनी सहेलियों के साथ बाहर रहती है और मुझे आया के पास छोड़ देती है। वो आया बहुत गंदी आंटी है। लंबा चक्कर पर नहीं रहती तो मुझे खूब डांटती है। दादी मैं आपको यहांँ से कभी जाने नहीं दूंँगी आप हमेशा यही रहना मेरे साथ।


अब दादी अपनी पोती से क्या कहे पोते की बातें सुनकर उनकी आंखों में आंँसू आ गए। निशब्द होकर ममता भरी नजरों से बस पोती को निहारती रही। उसके गोदी में बैठते ही ऐसा लग रहा था मानो उसका सारा दर्द छूमंतर हो गया।


इतने में ही अचानक वहांँ प्रीति आ जाती है और गुस्से से आगबबूला होकर बेटी को झटके से गोद से खींच कर उतार देती है। और कहने लगती है ये बुढ़िया, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरी बेटी को छूने की?


प्रीति अपनी बेटी को कड़े शब्दों में डांटते हुए समझाने लगी बेटा इस औरत की बात नहीं सुनना यह झूठी औरत है गरीब लोग होते ही ऐसे हैं अपने फायदे के लिए झूठ बोलते हैं तुम इससे दूर ही रहना और आज के बाद कभी इसके पास मत आना। ऐसा करते हुए प्रीति को ना तो अपने बेटी के आंसू दिखाई दे रहे थे और ना ही अपनी सास के।


फिर प्रीति अपनी बेटी ज़ोर से खींचते हुए वहांँ से लेकर चली जाती है और नीरज पर बरसते हुए कहती है...........ये बुढ़िया आखिर कब तक हमारे घर में पड़ी रहेगी। ये तो अब हमारे किसी काम की भी नहीं तुम इसे या तो गांँव छोड़ आओ या फिर किसी वृद्धा आश्रम में भेज दो। तुमने तो कहा था तुमने पूरी प्लानिंग कर रखी है अब क्या हुआ तुम्हारे प्लान का?


इस बात को लेकर नीरज और प्रीति में भयंकर झगड़ा होता है। प्रीति एक के बाद एक अपनी सास को ताना दिए जा रही थी। और नीरज माँ की चिंता किए बिना केवल समाज की दुहाई दे रहा था। उसे माँ का दर्द नहीं दिख रहा था। दिख रहा था तो केवल समाज जिसे दिखाने के लिए ही उसने अपनी माँ को अपने घर में जगह दी थी।


अपने बेटे बहू का ऐसा रूप नीरज की माँ ने पहले कभी नहीं देखा था उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि उसका बेटा ऐसा निकलेगा। जिस पिता ने उसके लिए अपना सब कुछ त्याग दिया उसने उसी पिता की जान ले ली। माँ को अब अपने बेटे से कोई उम्मीद नहीं थी। बेटा तो पहले से ही पराया हो चुका था पति के गुज़र जाने के बाद वो बहुत अकेली हो गई थी।


नीरज ऑफिस से जब घर लौटता था सीधा प्रीति के पास चला जाता था माँ के कमरे में आकर उससे हाल-चाल तक नहीं पूछता था। यहांँ तक कि उन्हें खाने की टेबल पर अपने साथ बैठता तक नहीं था। 


नीरज की माँ घर का सारा काम, खाना बनाना, झाड़ू पोछा बर्तन सब कुछ करती थी फिर भी प्रीति उस पर दिनभर बरसती रहती थी। उसे जली कटी सुनाती थी। 


एक दिन नीरज अपने परिवार के साथ बाहर होटल में खाना खाने के लिए जाता है किंतु उसकी माँ घर पर क्या खाएगी इस बारे में कोई चर्चा नहीं होती है। किंतु पति को अपनी दादी की चिंता सता रही थी कि वो घर में अकेली कैसे रहेगी। फिर किसी बहाने शिवद्वार कर अंदर जाती है और अपनी गुड़िया दादी को देकर कहती है दादी आप इसके साथ रहना आपको डर नहीं लगेगा। पर यह मेरी चॉकलेट भी आप रख लो इसे खा लेना आपको जब भूख लगेगी।


इतना कहकर वह वापस अपने माता पिता के पास आ जाती है। और माता पिता के पूछने पर झूठ कह देती है कि वॉशरूम गई थी।


पोती का इतना लाड देखकर बालू दादी का जीवनी धन्य हो गया। सोचने लगी चलो दुनिया से जाते जाते कुछ अच्छी यादें तो साथ लेकर ही जाऊंँगी। साथ में जाने के लिए केवल आंँसू ही रखे हैं।


नीरज की माँ पति के जाने के दुःख, और बेटे के तिरस्कार की वज़ह से अंदर से पूरी तरह से टूट चुकी थी। वो उस रात केवल पानी पीकर ही सो जाती है 


नीरज और उसका परिवार देर रात घर पहुँचता है। बच्ची अपनी दादी के पास जाना चाहती थी किंतु प्रीति उसे झटके से खींच कर अपने साथ ले गई। और नीरज भी इस बात की सुध लिए बिना कि उसकी माँ ने कुछ खाया भी होगा या नहीं, प्रीति के पीछे पीछे कमरे में चला जाता है। उससे इतना भी नहीं हुआ प्रीति से छुपकर ही सही दो पल जाकर अपनी माँ से हाल-चाल ही पूछ ले प्यार से उनके हाथों को ही थाम ले। क्या पता फिर यह मौका मिले ना मिले।


खैर सुबह होती है प्रीति चाय के लिए शोर मचाने लगती है। किंतु काफी देर तक जब कोई आवाज़ नहीं आती है तो प्रीति गुस्से से अपने कमरे से निकलकर नीरज की माँ के कमरे की ओर जाती है। और जोर जोर से चिल्लाने लगती है ये बुढ़िया अभी तक सो रही है सारा काम कौन करेगा। प्रीति के बहुत बोलने पर भी जब वो नहीं उठीं तो उसके मन में शंका हुई। प्रीति पास जाकर उसे हिलाने लगती है किंतु उसकी तो साँसे ही अब बंद हो चुकी थी। 


प्रीति जोर-जोर से चिल्लाकर नीरज को बुलाने लगी। नीरज प्रीति की आवाज़ सुनकर दौड़कर वहाँ पहुंँचता है तो माँ को मृत अवस्था में पाकर अचंभित रह जाता है। पहले पिताजी की मृत्यु और अब माँ भी उसे छोड़ कर जा चुकी थी।


माँ की लाश को देखकर नीरज को अपनी गलती का आभास हुआ। किंतु अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत। वक़्त ने तो नीरज को दूसरा मौका भी दिया था। किंतु वो नादान समझ ही ना सका। और एक के बाद एक गलतियांँ करता चला गया। और नीरज की सजा ये थी कि वक़्त ने उसे माफ़ी तक मांगने का मौका नहीं दिया। 


कितने भी जन्म ले लो माता-पिता का क़र्ज़ चुका न पाओगे।

सब कुछ मिलता जीवन में दुबारा माता पिता कहांँ पाओगे।।


अब नीरज पछतावे की आग में जल रहा था। काश! उसने प्रीति की बातों में आकर अपने माता-पिता का तिरस्कार नहीं किया होता, काश! उन्हें गांँव ही न भेजा होता काश उन्हें वापस ले आता, काश! फोन ही कर लेता, काश, काश, काश, काश। नीरज के पास काश के अलावा कुछ नहीं था। अब इसी पछतावे के साथ उसे पूरी उम्र गुजारनी पड़ेगी।


हर माता पिता अपने बच्चों को अच्छे संस्कार ही देते हैं। और संतान ये भली-भांँति जानती और समझती है कि उसके माता-पिता ने उसे एक बेहतर जीवन देने के लिए स्वयं को भुलाकर अपना सर्वस्व त्याग किया है। 


किंतु जैसे जैसे वो बड़ा होता है, समझदारी की दुनिया में कदम रखता है, उसे अपने माता-पिता का किसी बात पर उनका रोक-टोक करना बेतुकी लगने लगती है। वो हर बात पर तर्क वितर्क करना शुरू कर देता है। माता-पिता तो सदैव अपनी संतान की भलाई ही चाहते हैं, किंतु वो उनकी इस चिंता को बंधन समझता है।


और ऐसी समस्याएं अक्सर संतान के विवाह उपरांत ही दिखाई देती हैं। और यहांँ पर दोष अक्सर पराए घर से आई हुई बेटी अर्थात संतान की पत्नी को भी दिया जाता है। मैं यहांँ एक बात कहना चाहूंँगी कि अपने माता पिता के प्रति फ़र्ज़ किसका सबसे अधिक बनता है? एक बेटे का या बहू का? समाज के हिसाब से देखा जाए तो विवाह उपरांत यह सारी जिम्मेदारी एक बहू की हो जाती है। 


किंतु मेरे विचार से एक बेटा यदि माता-पिता के दिए हुए संस्कार और उनके प्रति अपना फर्ज ज़िंदगी भर याद रखें तो किसी भी कारण से वह अपने माता-पिता को बे घर नहीं कर सकता। क्योंकि बहू तो पराए घर से आई है किंतु उसके माता पिता ने तो उसे जन्म दिया है वो उनका अंश है। तो जिम्मेदारी भी सबसे अधिक एक बेटे की ही बनती है।



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