Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Ragini Sinha

Abstract

4.7  

Ragini Sinha

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मॉर्निंग टी

मॉर्निंग टी

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238



"ससुराल में कौन देगा तुझे सुबह की चाय।"

"मम्मी आप ऐसी बाते मत करो।मैं शादी नहीं करनेवाली।और आप तो है न सुबह की चाय देकर मीठी नींद से जगानेवाली।"

सुप्रिया बेहद चंचल और खुशमिजाज लड़की है।अपने माँ बाप की लाड़ली भी।माँ की चिंता रहती की मेरी बेटी ससुराल में कैसे खुद को ढाल पायेगी।बेटी के लिए अच्छे लड़के की तलाश चल रही थी ।माता पिता दोनों मिलकर पूरी छानबीन में लगे थे।मेरी बेटी को कभी कोई कष्ट न हो।ऊपर से इसका अल्हड़पन और चुलबुलापन।बिलकुल बच्चों जैसी हरकत करती है।आखिर माँ बाप के लिए बच्चे तो बच्चे ही होते हैं न।चाहे वो कितने भी बड़े क्यों न हो जाएं।आखिर एक भले घर का लड़का उनको पसंद आ गया।झटपट सुप्रिया की शादी की तैयारी होने लगी।लड़का का नाम सुमित था जो की सॉफ्टवेयर इंजीनियर था।सुप्रिया भी ना नुकर करने के बाद शादी के लिए राजी हो गयी।

शादी का घर था,चहल पहल भी लाजमी था।घर के सारे सदस्य और मेहमान ब्यस्त थे।माँ भी कहीं नजर नहीं आ रही थी।उसे रोना आ रहा था की आज के बाद ये घर मेरा नहीं रहेगा परया हो जायेगा।मैं कैसे उस नए घर और माहौल में खुद को ढाल पाऊँगी।इतने में माँ उसे आवाज लगाती हुई कमरे में प्रवेश करती है।पर ये क्या उसके लाडो के आँखों में आंसू।माँ ने पुचकारते हुए गले लगा लिया।

"अरे मेरी बच्ची,क्यों रोये जा रही है।" इतना सुनते ही सुप्रिया और फफक फफक कर रोने लगी।माँ ने आंसू पोछते हुए कहा, "चुप हो जा न लाडो अभी से इतना रोयेगी तो बिदाई के समय क्या करेगी।" सुप्रिया रोते हुए कहा, "माँ मुझे नहीं जाना उस अजनबी घर में ।जहाँ मुझे कोई जनता पहचानता भी न हो।मैं वहां कैसे रहूगी।" माँ ने समझाते हुए कहा-"बेटा मैं भी तो तेरे नाना नानी की बेटी हूँ न तो देख मुझे। मैं तेरे दादा दादी के घर कैसे रह रही हूँ।दुनिया की यही रीत है लाडो, हर बेटी को एक दिन ससुराल जाना ही पड़ता है।"

माँ की बातें सुप्रिया ध्यान से सुन रही थी।और समझने की कोशिश कर रही थी।फिर एक प्यार की झप्पी देकर माँ वहां से चली गयी।अब तो सुप्रिया ने भी गांठ बांध ली।माँ भी अपने माँ पिता की बेटी है ।जब मेरी माँ अपने आप को कहीं भी ढाल सकती है तो मैं क्यों नहीं।मैं भी तो अपनी माँ की बेटी हूँ।

दुल्हन के लिबास में आज मेरी लाडो कित्ती प्यारी लग रही है।ये लाल रंग कितना जचता है बेटा तुझ।सारी बलाये लेते हुए माँ उसे मण्डप तक ले गई।पिता भी मुरझाये से बगल में बैठे थे।एक नजर पिता को देखते हुए उसका गला फिर से रुंध आया।छोटा भाई भी किनारे में मायूस बैठा था।आज उसके आँखों में कोई शरारत नहीं सूझ रही थी।ढोल बाजे बारात के साथ सुप्रिया की शादी हो गयी। मायके से विदाई भी हो गयी।

सुमित के साथ सुप्रिया अपने नए घर यानि की ससुराल में प्रवेश किया।सासु माँ ने प्यार से प्रवेश कराया।सुमित भी स्वभाव से अच्छा लड़का था।सुप्रिया को एक पल के लिए भी ये एहसास नहीं होने देता की वो गैरो के बीच है।धीरे धीरे सुप्रिया अपने ससुराल के तौर तरीके जान पहचान गई।उसे अब लगने लगा की ये घर भी उसका है।

समय का पहिया तेजी से घूमता है।दो तीन साल के अंतराल वो माँ बन गयी।एक गोलू मोलू बेटा उसके गोद में आ गया।

पर ये क्या बेटे के आते ही सब उससे दूर दूर रहने लगे।सब बच्चे को ही लाड प्यार करने लगे।फिर उसने सोचा बच्चे तो मनमोहक होते ही है,सबके आँखों के तारे।।जैसे कभी मैं थी अपनी माँ की लाड़ली।सोचकर सुप्रिया मुस्कुरा उठी।कोई बात नहीं,खुद को खुद से प्यार करना है मुझे।

कई बार सुमित ऑफिस से आते ही सुप्रिया पर झल्ला उठता।अन्य लोग भी कुछ न कुछ बात के लिए खरी खोटी सुना देते ।जैसे उसे अपने बेटे की कोई चिंता न हो।अब तो उसे सबकी बातें सुनने की आदत हो चुकी थी।

समय गुजरता गया।शादी के 12 साल कैसे गुजर गया पता नहीं चला।एक दिन सुमित ऑफिस से आया तो उसकी सांसे फूल रही थी।जोर जोर से हाफ रहा था।सुप्रिया देखते ही चीख पड़ी।"क्या हुआ आपको।" सुमित बस इतना बोला पता नहीं एक दो उलटी हो गयी है।बेटा भी पापा पापा करते आ गया।सुप्रिया जल्दी से सासु माँ को लेकर हॉस्पिटल पहुची।डॉ ने चेक अप किया और कहा "डरने की कोई बात नहीं।बस कुछ दवाई लिख दिया है,उसे दे।"सुप्रिया की जान में जान आई।सुमित को खाना दवा देकर सुला दिया ।बेटे को भी सुला दिया।खुद सिराहने बैठ गयी।बैठे बैठे उसकी आँख कब लग गयी पता भी नहीं चला।उसकी आँख सुबह तब खुली जब सुमित चाय की प्याली लिए उसे उठा रहा था।सुप्रिया की आँखे फ़टी की फ़टी रह गयी।अचानक उसे माँ की याद आ गयी।शादी के 12 साल बाद आज उसे मॉर्निंग टी मिली।मन ही मन झूम उठी।और प्यार भरी मुस्कान उसके होठो पर तैर गयी।



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