Ragini Sinha

Others

4.4  

Ragini Sinha

Others

एहसास

एहसास

2 mins
7.8K


रजत सुनैना का पति है लेकिन देखकर कोई कहता नहीं की दोनों पति पत्नी है।यहाँ तक की मोहल्लेवाले भी पूछ ही बैठते कभी आप दोनो को साथ में घूमते नहीं देखा, हाथ में हाथ डालकर शौपिंग करते नहीं देखा। आप लोग तो लगते ही नहीं की पति पत्नी हो। घर से बाहर निकलते भी हो तो एक 20 कदम आगे तो दूसरा उसके पीछे। साथ साथ गप्पे मारते, हसते बतियाते क्यों नहीं जाते। एक पल के लिए वो ख़ामोश हो जाती। फिर अचानक बोल पड़ती दिखाना जरुरी है क्या ? रिश्तों में दिखावे की क्या जरूरत। फिर अनमने ढंग से अपने कामो में लीन हो जाती। कहीं न कही लोगो की बाते उसे परेशान करती। न चाहते हुए भी उसे रजत की बेतुकी बातें, उसके ताने, उसकी दुर दूर वाली दुरी सब आँखों के सामने घूमते रहते और आँखों में अॉंसू आ जाते। अॉंसू आना लाजमी भी था, क्योंकि सुनैना की एक भी बात रजत को अच्छी नहीं लगती थी।उसके साथ घूमना फिरना, साथ में शौपिंग करना बिलकुल अच्छा नहीं लगता। फिर सुनैना खुश रहने की पूरी कोशिश करती। जबबर्दस्ती उसके साथ कभी सेल्फ़ी तो कभी साथ में जाकर बैठ जाती पर तुरन्त ही रजत ऐसे ताने मारता की उसका दिल टूट ही जाता। कभी कभी उसे ज़िंदगी नीरस लगने लगती,सोचती जीकर क्या करना, जब उसका हमसफ़र उससे खुश ही नहीं। पर अगले ही पल बच्चों को देखते ही सोचती "अपने लिए न सही बच्चों के लिए तो जीना ही पड़ेगा। जहर जिंदगी का पीना ही पड़ेगा।"

इधर कई दिनों से सुनैना बस रोये जा रही थी। रोते रोते उसकी आँखे सूज जाती, पर उसके आंसू पोछनेवाला कोई नहीं था।कोई पोछता भी कैसे, सब के सामने खुश रहने का नाटक जो करती। हमेशा रोने के लिए एकांत खोजती। चुपके चुपके सबसे छुपके खूब रोती, अपनी किस्मत को कोसती। रजत को एक ही बे़ड पर सोये सुनैना के रोने का आभास भी नहीं होता।जब सूजी आँखे देखता तो बस इतना ही कहता आँखों में कुछ चला गया। अच्छे से ठंडे पानी से छीटे मार लो। ठीक हो जायेगी फिर सुनैना को लगता कम से कम इतनी फ़िक्र तो है की मेरी आँख दिखने में ठीक ठाक लगे। अपने आप को समझाती "औरत तेरी यही कहानी, आँचल में दूध और आँखों में पानी" और वो शून्य में ताकती रह गई। तकते तकते अतीत में खो गयी। कितना सुखद और प्यारा पल था,जब पहली बार माँ बनी, बच्चे के बहाने ही सही, अक्सर जादू की झप्पी लगा दिया करते थे। कितनी खुश थी मैं अक्सर बाहर जाते समय प्यार की मुहर लगा जाते। अब तो बताकर जाना भी मुनासिब नहीं समझते। अचानक किसी के आहट से उसकी तन्द्रा भंग हुई। आँख पोछते हुए किचन में घुस गयी और हल्की मुस्कान के साथ बुदबुदाई-जिंदा रहने के लिए काफी है।


Rate this content
Log in