सुनो ना
सुनो ना
सुनो ना
सुनो ना !
आज मेरे कान इन दो शब्दो को सुनने के लिए तरस गए हैं ।कैसे बयां करू मै अपनी उस पीड़ा को जो मुझे हर पल विचलित कर जाती है।याद है मुझे वो हॉस्पिटल का आईसीयू वार्ड जहां आपकी इलाज चल रही थी ।मै आपसे मिलने जाती थी,आप मुझसे बातें करना चाहते थे,पर मै समझ नहीं पाती थी। आपकी वो स्थिति मुझसे बर्दाश्त नहीं होती और अपने आंसू छुपाते हुए बाहर निकल जाती।
मै बाहर निकल कर जी भर कर रोती,और खुद को संभालती।खुद को सांत्वना देती नहीं बिल्कुल नहीं रोना है अपने पति को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज करवाकर घर वापस ले जाना है। याद है वो पल जब आपसे मिलने गई और आपकी आवाज मेरे कानो में आई.......सुनो ना..मैंने अनसुना कर दिया।
आपकी दुबारा वहीं बात मेरे कानो मे गूंजी
सुनो ना..
फिर से मै अनसुना करके बाहर निकल गई और खूब रोई,क्युकी आप बार बार अपने हाथ और पैर खोलने कहते थे जो की डॉक्टर के निर्देशानुसार बांधा गया था और मै आपको तड़पते और मजबूर नहीं देख सकती थी।
मुझे नहीं पता था कि वो आपकी आखिरी आवाज थी,क्युकी उसके बाद आपको वेंटिलेशन पर कर दिया गया था।उस वक्त मैंने आपके इशारे को भी समझने की कोशिश कि पर समझ नहीं पाई।मुझे लगा आप मुझे बुला रहे है और कुछ बाते करना चाहते हैं।काश मै आपकी बातो को समझ पाती।
4 जुलाई 2021 की रात 3:30 बजे आपकी हृदय गति थम गई थी कुछ पल के लिए।लेकिन ये बात मुझे दोपहर में पता चला।डॉक्टर ने बताया कि अगर ऐसा दुबारा हुआ तो नहीं बचा पाएंगे, तब से मै लगातार भगवान से प्रार्थना करती रही मेरे सुहाग पर कोई मुसीबत न आए पर ऐसा ना हुआ।
7 जुलाई सुबह 6 बजे आईसीयू से कॉल आया कि ऊपर आ जाइए। पर मेरी हिम्मत नहीं थी उनसे मिलने कि इसलिए मेरे परिजन मिलने गए। काश मुझे आभास होता कि वो लोग सॉरी बोलने के लिए बुलाए है,कॉल आने से पहले मेरी नींद भी उसी भयावह सपने से टूटी थी जो हकीकत में हो चुका था और मै उसी सपने को याद करके रो रही थी।
मुझे नहीं पता था कि सपना सपना ना होकर हकीकत बन चुका है,आप मेरा हाथ और साथ छोड़कर चले गए थे।कहा ढूंढू मै आपको,वो आवाज़ कहा से सुनू मै जो मेरे कानो मे मिश्री घोलते थे। मेरा सुकून और चैन सब चला गया आपके साथ।काश! कहीं से आकर आप फिर से कहिए ना मेरे कानो मे "सुनो ना"