Ragini Sinha

Others Tragedy

4.4  

Ragini Sinha

Others Tragedy

परीक्षा

परीक्षा

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अंजू पांच भाई बहनों में दूसरी नम्बर पर है। सबसे छोटा उसका भाई है, जो अभी 5 साल का भी नहीं हुआ।अंजू बहुत कम बोलने वाली लड़की है। जरूरत पड़ने पर ही मुँह खोलती थी। न ज्यादा गोरी और न ही काली।कद भी ठीक ठाक है। हँसना तो शायद उसे आता ही नहीं।और लड़कियों की तरह कभी भी न तो ऊँचे आवाज़ में बात करती और न ही खें खें करके हँसती। बस कभी कभी सखी सहेलियों के साथ धीरे धीरे बतियाती और कभी कभी हँस भी लेती दबी आवाज़ में। घर में किसी को पसन्द नहीं था की लड़की जात बिना मतलब के बात करती रहे और बतीसी दिखाती रहे। अपने बहनों के साथ ही जी भर के खेलती ,बतियाती, लड़ती झगड़ती और कभी कभी हँस भी लेती। उसे पत्रिका, कहानियां पढ़ना बहुत पसंद था। पर वो भी पढ़ने नहीं दिया जाता। तो वो चुपके चुपके अपनी किताब में छिपाकर पढ़ती थी। बहुत अच्छा लगता उसे ऐसे पढ़ने में। खुलकर तो हँसती नहीं थी, इसलिए किताब में ही चेहरा छिपाकर खूब हँसती। सोचती किसी को पता भी नहीं चला और मैंने पढ़ भी लिया। लेकिन ऐसा थोड़े न होता है, कोई न कोई जासूसी ज़रूर करता है। और माँ पिता से चुगली करने के लिए एक पैर पर तैयार। फिर होती मिन्नते चुगली न करने की। उस पर भी न माने तो अपने हिस्से की कोई भी टॉफी, आइसक्रीम उसके हिस्से में डाल देती .अंजू की शादी की बातें चल रही थी घर में। सब लोग उसे हिदायत देते की चेहरे में उबटन लगाओ, दही लगाओ ,अच्छे से हाथ पैर की सफाई करो।लड़केवाले देखने आयेगे तो सुंदर लगनी चाहिए न। बेचारी अंजू हर कोशिश करती की वो भी सुंदर दिखे। क्योंकि उसके माँ पिताजी चिंतित रहते थे की हर बार लड़के वाले आते है,और कोई न कोई कमी निकालकर चले जाते है। जैसे शोकेश में रखा हुआ समान। अंजू की दादी बहुत प्यार करती थी। अपने पोती की बड़ाई करते नहीं थकती। बोलती मेरी पोती को देखो कितनी सुंदर और सुशील है। इसके नाक देखो कितना खड़ा है।आँख देखो कितनी प्यारी है।जो नहीं पसंद करेगा मेरी पोती को वो पछतायेगा।फिर अंजू से कहती "बेटी तूने मेट्रिक, इण्टर तो पास कर लिया। लेकिन जिंदगी की असली परीक्षा बाकी है "अंजू पूछती ,ऐसा क्यों दादी हम लड़कियों को ही ये जिंदगी की परीक्षा देनी होती है। दादी बोली- वो ख़ुशियाँ भी तो हम लड़कियों के नसीब में होता है। सबसे बड़ी ख़ुशी माँ बनना, जो की पुरुषों के नसीब में नहीं। माँ बनकर जो ख़ुशी मिलती है न उसके आगे तो ऐसी सौ परीक्षाएं कुर्बान। जिंदगी के हर मोड़ पर एक परीक्षा देना होता है बेटी। अभी तुम ज्यादा नहीं समझ पाओगी। जब माँ बनोगी तब इस दादी की बातें याद आएगी। खैर दादी की बातें अंजू को कुछ कुछ समझ में आया कुछ नहीं भी। फिर अपने काम में लग गयी। माँ की आवाज़ कानों में पड़ी - अरे अंजू जल्दी से तैयार हो जाओ। पिताजी के साथ स्टूडियो में फ़ोटो खिंचाने जाना है। लड़के वालों ने डिमांड की है की साड़ी और सूट दोनों में लड़की की फ़ोटो चाहिए। सुनकर उसे गुस्सा आया बोली माँ तुम्ही बताओ फ़ोटो देखकर ही पसंद कर लेगा न। तब तो मुझे देखने नहीं आयेगा। माँ ने कहा -ऐसा नहीं कहते। जा फटाफट तैयार हो जा। अनमने ढंग से तैयार हो गयी अंजू। और पिताजी के साथ स्टूडियो गयी। स्टूडियो वाला कभी हँसने बोलता, तो कभी मुस्कुराने। अंजू पिताजी के सामने सही से मुस्कुरा भी नहीं पाती। दो तीन बार टोकने के बाद पिताजी चिल्लाये-यहाँ कोई परीक्षा चल रहा है जो डर रही हो। हँसने मुस्कुराने नहीं आता है। अब तो और डर से चेहरा कांप गया। सोचने लगी, हाँ पिताजी ये भी तो एक परीक्षा है न। किसी तरह से फ़ोटो खिचाया,और घर आ गई। अब बार बार पिताजी की कड़कड़ाती आवाज़ उसके कानों में गुंजते रहते। खैर फ़ोटो आ गया और वही रोनी सूरत वाला फ़ोटो लड़केवालों के पास पहुँच गया। अंजू की किस्मत यहाँ चमक गयी,लड़केवालों ने वही फ़ोटो पसंद कर लिया। और देखने के लिए डेट भी फिक्स हो गया।ये सुनकर तो बहुत खुश हुई अंजू को,पर दादी की बात याद आई की अभी जिंदगी की पहली परीक्षा बाकी है। बहुत कोशिश करती की वो भी सुंदर दिखे। खैर ,वो दिन भी आ गया जब लड़केवाले उसे देखने आये। बगल की भाभी ,चाची, सब आ गयी थी, माँ की मदद के लिए। बहने भी घेरकर खड़ी थी, जैसे मैदान में जंग जितने के लिए विदा कर रही हो। बहन और भाभी ने मिलकर साड़ी पहनाया और तैयार किया। माँ ने पहले ही हिदायत दी थी हिलवाली सैंडल मत पहनना, क्योंकि बाद में खोलवा भी देते है। इसलिए चप्पल पहनकर ही भाभी के साथ अंदर बैठक में दाखिल हुई। अंजू को भी बैठने के लिए कहा गया, लेकिन बैठी नहीं। फिर पिताजी के इशारे पर वही रखे कुर्सी पर बैठ गयी। फिर लड़केवालों ने पढ़ाई से संबंधित कई प्रश्न दागे। सबका जवाब दे दिया। फिर सवाल आया खाना बनाने का।अंजू से पहले उसकी माँ बोल पड़ी, ये ज्यादा खाना तो नहीं बना पाती है। पर जो सिंपल खाना बनता है, वो बना लेगी। इसी के साथ अंजू को अंदर जाने के लिए बोला गया। अंजू चली गयी। अब उसके मन में उथल पुथल हो रही थी की मेरी जिंदगी की पहली परीक्षा का परिणाम क्या आएगा? करीब आधे घण्टे बाद माँ कमरे में आई, साथ में भाभी भी। ख़ुशी उनके चेहरे से साफ झलक रही थी। और अंजू को गले लगाते हुए बोली - बेटी तुम पास हो गयी। इतना सुनते ही अंजू के आँखों में आँसू आ गए। दौड़ी दौड़ी दादी के पास गई,और गोद में सर रखकर रो पड़ी। दादी मैं परीक्षा पास कर गई। ख़ुशी के आँसू उसके गालो पर लुढ़क रहे थे। और दादी ने उसे सहलाते हुए कहा, "हाँ मेरी बेटी जिंदगी की पहली परीक्षा तू पास कर गई"


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