सही निर्णय
सही निर्णय
सुधा अपने मां-बाप की पांच संतानों में से दूसरी संतान है। उसके मां-बाप उसकी शादी अपने हिसाब से अच्छे लड़के से कर दी थी ,वो अपने पति के साथ शहर में किराए के मकान में रहती थी ।लगभग दस साल हो गई थी शादी की।इन दस सालो में बहुत अत्याचार सही सुधा ने।दोनो बेटियो के सामने भी उसका पति हाथ उठने से बाज नहीं आता। यहां तक कि बच्चो को बहलाने के लिए खिड़की के पास खड़ी भी नही रह सकती। इधर सुधा शांत रहने लगी पर ये क्या अब तो उसका पति रोज रात में देर से पीकर घर आता और बेवजह सुधा को मारता पीटता ।अत्याचार सहने की उसकी आदत हो चुकी थी। प्रसव के समय जब सुधा ने अपनी छोटी बहन को बुलाया था तब उसकी बहन को भी गाली देने से बाज नहीं आया था।सुधा बहुत रोती थी।
पर,अब तो हद हो गई ।सुधा को सांस लेना भी मुश्किल हो गया, ईसलिए उसने अलग होने का निश्चय किया । किसी तरह वो चोरी छिपे भागकर बच्चो के साथ मायके आ गई।आते ही सारा वृतांत माता पिता को सुनाया।और अगले दिन उनके साथ तलाक के लिए कोर्ट में आवेदन कर दिया।बिल्कुल सही निर्णय लिया था सुधा ने।
एक लड़की के लिए सही निर्णय लेना इतना आसान कहा होता ,उसके लिए अपनो का साथ होना भी जरूरी होता है। भले ही उसके मायके की माली स्थिति अच्छी नहीं थी,फिर भी अपनी बेटी का उन्होंने साथ दिया।