सुनो ना
सुनो ना
सुनो ना
सुनो ना !
आज मेरे कान इन दो शब्दों को सुनने के लिए तरस गए है। कैसे बयां करूँ मैं अपनी उस पीड़ा को जो मुझे हर पल विचलित कर जाती है। याद है मुझे वो हॉस्पिटल का आईसीयू बेड जहां आपकी इलाज चल रही थी। मैं आपसे मिलने जाती थी, आप मुझसे बातें करना चाहते थे, पर मैं समझ नहीं पाती थी। आपकी वो स्थिति मुझसे बर्दाश्त नहीं होती और अपने आंसू छुपाते हुए बाहर निकल जाती।
मैं बाहर निकल कर जी भर कर रोती, और खुद को संभालती। खुद को सांत्वना देती नहीं बिल्कुल नहीं रोना है अपने पति को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज करवाकर घर वापस ले जाना है। याद है वो पल जब आपसे मिलने गई और आपकी आवाज मेरे कानों में आई.......सुनो ना..
मैंने अनसुना कर दिया
आपकी दुबारा वहीं बात मेरे कानों में गूंजी
सुनो ना..
फिर से मैं अनसुना करके बाहर निकल गई और खूब रोई मुझे नहीं पता था कि वो आपकी आखिरी आवाज थी, क्योंकि उसके बाद आपको ventilation पर कर दिया गया था। उस वक्त मैंने आपके इशारे को भी समझने की कोशिश कि पर समझ नहीं पाई।