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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Drama Inspirational

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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Drama Inspirational

मोह घर का

मोह घर का

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"तुम कितने भी अधीर हो जाओ पर नाम धीरज है तो ये बातें अर्थहीन हो जाती हैं।जब एक हफ्ते बाद कालेज बंद हो ही जाएगा ।तब ही घर चले जाना।हम सब को ही घर बहुत ही प्यारा लगता है।पर घर के मोह में हम आखिर कब तक लिपटे रहेंगे।घर से हम सब जुड़े हैं । कहावत है कि अपना घर दिल्ली से दिखाई देता है। चिड़िया के बच्चों को भी बड़े होने पर अपना घोंसला छोड़ना ही पड़ता है। हम सभी बेहतर भविष्य की आशा में अपने घर और परिवारों से दूर इस हॉस्टल में रह रहे हैं। ऐसा लगता है कि तुम्हारा घर के प्रति मोह कुछ ज्यादा ही है। तुम्हारा सीनियर होने के कारण मैं तुम्हें समझाने का प्रयास करर रहा हूं।"- प्रशांत ने बड़े शांत भाव से अपने प्रिय मित्र धीरज को समझाने का प्रयास करते हुए कहा।

धीरज बोला-" मेरी मां जी मुझे लेकर बहुत ही अधिक चिंतित रहती। स्कूल के दिनों में जब मैं घर पर पहुंच जाता था तब ही मेरे साथ वे भी भोजन कर करती थीं।यही कारण है कि मेरे मन बार-बार घर जाने को कहता है।"

 प्रशांत ने धीरज को समझाने का प्रयास किया-" वास्तविक स्थिति में तो घरवाले ही हमें मोह में डालें रहते हैं।इस मोह-माया को त्यागने के लिए हम सब अपनी दिनचर्या बनाकर दैनिक कैलेंडर के साथ चिपका देना चाहिए। जितना ज्यादा समय तक अपने को व्यस्त रखेंगे। उतना ही घर के मोह- जाल से दूर रह पाएंगे। यह किशोर यहां सेकण्ड यीअर में पढ़ता है। यह भी जब हास्टल आया था तो घर के मोहपाश में बंधा हुआ था और आज हास्टल के साथियों यू बीच सबसे अधिक मनोरंजन करने वाला व्यक्ति बना हुआ है।"

सभी बच्चों ने अपने- अपने घरों को छोड़कर कॉलेज के इस हास्टल में रहने के लिए पहली बार आने के सभी ने अपने-अपने अनुभव साझा किए ।जब वे घर से यहां हास्टल में रहने के लिए आए तो उन्हें घरवालों की बहुत ही याद आती थी। उनका मन उनके घर पर पहुंच जाता था। यहां पढ़ने लिखने ,खाने-पीने , खेलने-कूदने में उनका मन नहीं लगता था । ऐसा कहा जाता है कि वक्त एक ऐसा मरहम है जो हर घाव को भर देता है ।धीरे-धीरे उनका घर के प्रति मोह घटा और उन्होंने यहां हॉस्टल के सीनियर साथियों के साथ अपने आपको समायोजित किया। उनके उज्ज्वल भविष्य को देखते हुए यह उचित भी था और आवश्यक भी।

प्रशांत ने धीरज को अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध की कविता एक बूंद का अंतिम अंतरा सुनाया- "लोग यूं ही हैं झिझकते- सोचते ,

जबकि उनको छोड़ना पड़ता है घर।

 किंतु घर का छोड़ना अक्सर उन्हें ,

बूंद लौ कुछ और ही देता है कर ।


इसलिए हम सब अपने आपको परिवारिक मोह माया से दूर कर अपने,अपने- परिवार,

 अपने समाज,अपने देश और सारी दुनिया के कल्याण के लिए अपने आप को इस तपस्या में लीन कर दें। शायद प्रशांत के समझाने में कुछ ऐसी गंभीरता थी कि धीरे के बुझे-बझे हुए से मायूस चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ पड़ी।


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